उपजाऊ जमीन के बंजर होने का खतरा

पलवल जिले में कुछ इलाकों में पोटास, व नाइट्रोजन की कमी है तो कुछ इलाकों में जिंक की कमी है। जबकि किसान भूमि में बिना जांच कराए खादों का ही प्रयोग कर लेते हैं। जिससे खाद का प्रयोग करने से पोषक तत्वों के बीच असंतुलन पैदा हो जाता है। इसी असंतुलन के चलते हरियाणा की सोना उपजाने वाली जमीन पर बंजर होने के खतरे मंडराने लगे हैं।

एग्रीकल्चर प्रोडक्शन के मामले में हरियाणा देश भर में पहले नंबर पर है। हरित क्रांति में स्टेट का अव्वल स्थान रहा है। पर अब स्टेट के फार्मर बिना मिट्टी की जांच कराए केमिकल फर्टिलाइजर का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति व पोषक तत्व खत्म होते जा रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली रीजन से सटे पलवल, फरीदाबाद, गुड़गांव व मेवात जिले में हालात विषम होते जा रहे हैं। स्थिति यह बनी है कि इन इलाकों की भूमि से उपजाऊ जिंक तत्व समाप्ती की ओर हैं। जिससे भविष्य के खतरे बढ़ रहे हैं। एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के स्रोतों ने बताया कि पलवल जिले की 70 हजार हेक्टेयर भूमि में पोषक तत्व जिंक की कमी हो गई है। इसी तरह फरीदाबाद जिले में 46 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में, गुड़गांव में 1 लाख 12 हेक्टेयर क्षेत्र में और मेवात जिले में 40 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में जिंक की कमी हो गई है। यह सब अंधाधुंध इस्तेमाल किए जा रहे केमिकल फर्टिलाइजर के उपयोग से हो रहा है। एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के प्रवक्ता आनंद ने बताया कि हरित क्रांति के दौरान गेहूं के उत्पादन ने रिकॉर्ड कायम किया। इसके अलावा सफेद सोने के नाम से मशहूर कपास और नरमा उत्पादन में भी राज्य पीछे नहीं रहा। यह सब किसानों की मेहनत का ही परिणाम था। पर किसानों ने भूमि की उर्वरा शक्ति की चिंता किए बिना केमिकल फर्टिलाइजर डालने की होड़ बन गई। इसी होड़ के चलते आज कृषि वैज्ञानिक भविष्य के खतरों के संकेत देने लगे हैं।
 

केमिकल फर्टिलाइजर की खपत में बेतहाशा वृद्धि


एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के प्रवक्ता के मुताबिक पूरी स्टेट में 35 लाख हेक्टेयर एग्रीकल्चर लैंड है। रबी के सीजन में ज्यादातर एग्रीकल्चर लैंड पर गेहूं और सरसों की बिजाई की जाती है। खरीफ के सीजन में 11 लाख हेक्टेयर पर धान, 5 लाख हेक्टेयर पर नरमा कपास, कुछ भूमि पर बाजरा, ज्वार व अन्य फसलों की कास्त की जाती है। चिंताजनक बात यह है कि पिछले एक दशक में केमिकल फर्टिलाइजर की खपत बेहद बढ़ी है। कृषि से जुडे़ अधिकारी रणवीर का कहना है कि गेहूं की कास्त के वक्त एक बैग डी.ए.पी. फर्टिलाइजर डालना चाहिए। जबकि किसान इससे ज्यादा मात्रा में इसका उपयोग करते हैं। उन्होंने बताया कि बिना टेस्टिंग किए किसान विभिन्न प्रकार के खादों का प्रयोग करते हैं। पलवल जिले में कुछ इलाकों में पोटास, व नाइट्रोजन की कमी है तो कुछ इलाकों में जिंक की कमी है। जबकि किसान भूमि में बिना जांच कराए खादों का ही प्रयोग कर लेते हैं। जिससे खाद का प्रयोग करने से पोषक तत्वों के बीच असंतुलन पैदा हो जाता है। इसी असंतुलन के चलते हरियाणा की सोना उपजाने वाली जमीन पर बंजर होने के खतरे मंडराने लगे हैं।

 

 

जमीन में जिंक, आयरन की कमी पाई गई।


एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट से डिस्ट्रिक्ट वाइज आंकडे़ लिए गए तो यह रहस्य उजागर हुआ पंचकुला में 2000, अंबाला में 14000, यमुनानगर में 33000, कुरूक्षेत्र में 25000, कैथल में 34000, करनाल में 30000, पानीपत में 14000, सोनीपत में 40000, रोहतक में 68000, रेवाड़ी में 22000, भिवानी में 60000 और झज्जर में 1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में जिंक की कमी है। इसी प्रकार सिरसा जिले में एक लाख 95 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में आयरन , महेंद्रगढ़ में 1 लाख 85 हजार हेक्टेयर क्षेत्र व रेवाड़ी में 90 हजार हेक्टेयर क्षेत्र मे आयरन की कमी पाई गई है। कृषि वैज्ञानिक रणवीर का कहना है कि इसके लिए फसलों के क्रम में बदलाव, टेस्टिंग के बाद फर्टिलाइजर के उपयोग पर ध्यान देना होगा। जिलावार केमिकल फर्टिलाइजर के विवरण के मुताबिक गुड़गांव जिले में साल 2007 के दौरान 13 हजार 685 मीट्रिक टन एवं फरीदाबाद जिले में 62 हजार 313 मीट्रिक टन केमिकल फर्टिलाइजर का उपयोग किया गया। इन आंकड़ों में पलवल और मेवात जिले के आंकडे़ भी जुडे़ हुए हैं। केमिकल फर्टिलाइजर के उपयोग के मामले में करनाल जिला सर्वाधिक 1 लाख 27 हजार 912 मीट्रिक टन खाद उपयोग करता पाया गया। वहीं सिरसा जिले के किसानों ने भी एक लाख 5 हजार 482 मीट्रिक टन केमिकल फर्टिलाइजर का उपयोग किया।

 

 

 

 

कृषि विभाग किसानों को कर रहा है जागरूक


इस बारे में जब एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट के डायरेक्टर अशोक यादव से बात की गई तो उनका कहना था कि कृषि विभाग केमिकल फर्टिलाइजर के बारे में किसानों को जागरूक कर रहा है। आने वाले खतरों के प्रति वे पूरी तरह सजग हैं। इसी के चलते कृषि विविधीकरण का सूत्र अपनाया गया। उन्होंने बताया कि फसल विविधीकरण के तहत किसानों को गेहूं और धान की बजाय तिलहन दलहन फल व सब्जियों की खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इसके अलावा मिट्टी व जल की परीक्षण सुविधा किसानों को मुफ्त 30 प्रयोगशालाएं स्थापित की गई हैं।

 

 

 

 

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