उम्र से ज्यादा, उम्रदार शहर


विस्थापितों के लिये बसाया गया नई टिहरी इक्कीसवीं सदी में देश के नक्शे में शामिल होने वाला पहला शहर है। अपनी बसावट के दस सालों में ही यह सैलानियों की पसंदीदा जगह के तौर पर भी उभर आया है।

दस साल की उम्र यूँ तो कोई ज्यादा नहीं होती है। लेकिन उत्तराखण्ड की गढ़वाल पहाड़ियों में दस साल पुराना यह शहर अपनी उम्र के मुकाबले ज्यादा प्रौढ़ नजर आता है। जी हाँ, पहाड़ियों की गोद में बसे नई टिहरी की उम्र तो महज दस साल ही है, लेकिन इस एक दशक में ही इस शहर और यहाँ के वाशिन्दों ने अपने पैरों पर खड़े होकर चलना सीख लिया है। यहाँ रहने वाली करीब 40 हजार की आबादी के जेहन में पनबिजली परियोजना के लिये बने टिहरी बाँध के खिलाफ एक दशक पुराने आन्दोलन की यादें तो अब भी ताजा है। लेकिन अपने पुरखों की जमीन छोड़कर यहाँ बसे लोगों ने अब इसे ही अपना घर मान लिया है।

टिहरी का जिक्र होते ही जेहन में कोई एक दशक पहले सुंदर लाल बहुगुणा की अगुवाई में लम्बे अरसे तक चले बाँध-विरोधी आन्दोलन का ख्याल आता है। देश-विदेश में सुर्खियाँ बटोरने वाले इस आन्दोलन के बावजूद पुरानी टिहरी और उसके आस-पास बसे कई गाँव बाँध की वजह से बनी झील में समा गए। अब वहाँ मोटरबोट के जरिये सैलानियों को झील की सैर कराई जाती है।

उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून से करीब सौ किलोमीटर की दूरी पर गढ़वाल की पहाड़ियों पर बसा टिहरी देश ही नहीं बल्कि दुनिया का पहला ऐसा शहर है। जिसे समुद्रतल से 1600 से 1950 मीटर की ऊँचाई तक योजनाबद्ध तरीके से बसाया गया है। टिहरी बाँध से इसकी दूरी करीब 12 कि.मी. है। देहरादून से यहाँ तक पहुँचने के दो रास्ते हैं। पहला रास्ता मसूरी और धनौल्टी होकर जाता है तो दूसरा ऋषिकेष और नरेंद्र नगर होकर। लेकिन धनौल्टी वाला रास्ता बेहद नयानाभिराम और प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है। रास्ते में जगह-जगह पहाड़ की बर्फीली चोटियाँ बरबस ही अपनी ओर खींचती है। लेकिन चाहे जिस रास्ते को चुनें, वह जाता है चंबा होकर। चंबा इस इलाके में एक बड़ा शहर है। वहीं से उत्तरकाशी, गंगोत्री और यमुनोत्री के लिये सड़क निकलती है। मसूरी से चल कर हम जब धनौल्टी के रास्ते टिहरी झील तक पहुँचे तो शाम के करीब तीन बजे थे। बीच में चंबा में कुछ ठहर कर चाय पीने के साथ कमर सीधी की थी।

टिहरी झील के किनारे कार रूकते ही तीन-चार लोग हमारी ओर लपके। झील में बोटिंग के प्रस्ताव के साथ। लेकिन हमें बोटिंग करनी नहीं थी। सो, हमने नीचे तक जाकर झील को देखने का फैसला किया। एक दशक पहले जिस आन्दोलन के बारे में रोजाना अखबारों में पढ़ती और टीवी पर देखती आई थी, हम ठीक उसी जगह पर खड़े हैं, यह सोचकर ही रोमांच हो आया था। बोटिंग के लिये झील के किनारे एक तैरता हुआ प्लेटफार्म बनाया गया है। ऊपर कुछ चाय-नाश्ते की दुकानें भी खुल गईं हैं। ऐसी एक दुकान चलाने वाले धर्मेंद्र नेगी बताते हैं, ‘अभी सैलानी कम हैं। लेकिन सीजन में काफी लोग यहाँ आते हैं।’ झील के किनारे से ही दूर 260 कि.मी. की ऊँचाई पर बने टिहरी बाँध की झलक मिलती है। कुछ देर झील के किनारे ठहरने के बाद हम नई टिहरी की ओर रवाना होते हैं। मन में इस बात की उत्सुकता थी कि आखिर अपनी जड़ों से उखड़ने वाले हजारों लोग अपने नए घरों में अब तक पूरी तरह बस गए हैं या नहीं।

पुराना टिहरी शहर भागीरथी और भीलंगना नदियों के संगम पर बसा था। तब नदी पार के गाँवों तक जाने के लिये वहाँ एक ब्रिज भी हुआ करता था। हिन्दू धर्म में मान्यता है कि राजा भागीरथ ही गंगा को धरती पर लाये थे। उनके नाम के आधार पर ही इस नदी का नाम भागीरथी पड़ा था। टिहरी बाँध-विरोधी आन्दोलन में पर्यावरण को होने वाला नुकसान तो एक वजह थी ही, इस धार्मिक भावना की भी उसमें अहम भूमिका रही थी। बाँध के दूसरी ओर भागीरथी की धारा बेहद पतली हो गई है। वह इस विशालकाय बाँध से सहमी-सी नजर आती है। नई टिहरी जाते हुए शहर के कुछ पहले ही एक जगह सड़क के किनारे से इस बाँध का विहंगम दृश्य नजर आता है। बाँध के दूसरी ओर उस पार जाने के लिये सड़कों पर हेयरपिन बैंड्स बने हैं। जो ऊँचाई से बेहद लुभावने लगते हैं। उसी रास्ते यहाँ से एक सड़क श्रीनगर और रुद्रप्रयाग की ओर निकलती है। वही रास्ता आगे बदरीनाथ और केदारनाथ तक जाता है। यह बाँध देश का सबसे ऊँचा और दुनिया का तीसरा सबसे ऊँचा राक-फिल बाँध है।

नई टिहरी का सौंदर्य मन को मोहता है। ढलावदार पहाड़ियों पर बसे इस शहर की ऊँचाइयों से देखने पर महसूस होता है। मानों टिहरी झील इसी की तलहटी से निकली है। यहाँ के ज्यादातर बाशिंदे पुरानी टिहरी के अलावा भागीरथी और भीलंगना घाटी के उन 40 गाँवों से आए हैं। जो टिहरी झील में जलसमाधि ले चुके हैं। दो नदियों के संगम पर बसा टिहरी शहर कभी इस इलाके का प्रमुख व्यापारिक केन्द्र था। इन सब लोगों ने अपने घर और पुरखों की जमीन को तिल-तिल कर अपनी आँखों के सामने झील में डूबते देखा है। यहाँ रहने वाले मनीश रावत को अब भी वह मंजर इसी तरह याद है, जैसे वह कल की बात हो। वे कहते हैं ‘अपने पुरखों की जमीन से उजड़ने का दुख तो बहुत हुआ था। लेकिन अब हमने इस नए शहर को ही अपना घर मान लिया है।’ इस नए शहर में सैकड़ों बच्चे ऐसे भी हैं। जिनको पुरानी टिहरी के बारे में इतिहास से ही पता चला है। उनका जन्म यहीं हुआ है। उनके लिये तो यही पुरखों की जमीन है।

विस्थापितों के लिये बसाया गया नई टिहरी इक्कीसवीं सदी में देश के नक्शे में शामिल होने वाला पहला शहर है। अपनी बसावट के दस सालों में ही यह आधुनिक और व्यवस्थित शहर सैलानियों की पसंदीदा जगह के तौर पर भी उभर आया है। एक जैसे मकान और कालोनियों को ऊँचाई से देखने पर लगता है कि यह हकीकत नहीं, बल्कि कोई तस्वीर है जिसे कहीं से उठा कर इन हरी-भरी पहाड़ियों पर चिपका दिया गया है। तमाम मकान और इमारतें एक जैसे रंग में रंगी हैं। नई टिहरी के निचले इलाके से टिहरी झील की भव्यता साफ नजर आती है। यहाँ दो-दो विश्वविद्यालय भी खुल गए हैं। इनमें से एक है हेमवंती नंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय और दूसरा उत्तराखण्ड औद्योगिकी और वानिकी विश्वविद्यालय। शहर में जगह-जगह मंदिर और गुरुद्वारे हैं। सड़कों की चौड़ाई और खूबसूरती भी देखने लायक है।

शाम को डूबते सूरज की रोशनी में तो नई टिहरी को निहारना अपने-आप में एक अनूठा अनुभव है। यह कहना ज्यादा सही होगा कि नई टिहरी प्रकृति और आधुनिकता का अनूठा संगम है। यहाँ के लोग अपने साथ पुराने शहर की धरोहरों, अपनी विरासत और यादों को सहेज कर साथ ले आये हैं। लेकिन अब उन्होंने अपनी जमीन से विस्थापन के बावजूद नई टिहरी को अपना घर मान लिया है। मखमली-अनछुई हरियाली के बीच घुमावदार साफ-सुथरी सड़कें, जगह-जगह बने सीढ़ीनुमा रास्ते, दूर-दूर तक पसरी पहाड़ियाँ और हरे-भरे जंगल बरबस ही यहाँ आने वाले सैलानियों का मन मोह लेते हैं। यहाँ पूरे साल मौसम बेहद खुशगवार रहता है। एकांत की तलाश में यहाँ पहुँचने वाले सैलानियों के लिये सबसे ऊँची पहाड़ी पर बना पिकनिक स्पाट सबसे मुफीद जगह है। यहाँ बैठकर घंटों पहाड़ियों की खूबसूरती को निहारा जा सकता है। उसके ठीक सामने एक पहाड़ी पर एक बेहद भव्य मंदिर भी बना है।

इसी के पास एक छोटा लेकिन खूबसूरत स्टेडियम बनाया गया है। यहाँ से टिहरी बाँध जाने वाले रास्ते पर ही भागरथीपुरम बसा है। टिहरी पनबिजली परियोजना की भव्य इमारत शहर में घुसते ही सैलानियों का स्वागत करती है। वहीं बने उसके गेस्ट हाउस के कमरे की खिड़की से इस शहर की आधुनिकता, प्राकृतिक खूबसूरती और टिहरी झील के सौन्दर्य को निहार सकते हैं। दूरदराज से आने वाले सैलानियों के लिये ठहरने की कोई समस्या नहीं है। गढ़वाल मंडल विकास निगम के होटल के अलावा कई नए होटल और गेस्टहाउस भी यहाँ खुल गए हैं।

हम जब नयी टिहरी पहुँचे तो शाम का अंधेरा फैलने ही वाला था। पहले हमने डूबते सूरज की रोशनी में इस शहर के सौंदर्य को निहारा और कुछ देर बाद जब शहर के मकानों और सड़कों के किनारे लगी बिजली की बत्तियाँ जल उठीं तो इसका एक नया ही रूप देखने को मिला।

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