13.1 पृष्ठभूमि
अभी तक हमने बागमती, करेह और अधवारा नदी समूह के विभिन्न आयामों पर बहुत सी जानकारियां ली हैं जिनसे हमें इन नदियों के काम काज में मानवीय हस्तक्षेप की सीमा और उसके परिणाम का कुछ अंदाजा लगता है। लक्ष्य से परियोजनाओं का दूर-दूर भागना, परिणामतः लाभार्थियों का दुर्भोग और फिर उन्हें नई-नई तसल्लियाँ देकर शांत या गुमराह करना या उन्हें सही स्थिति न बताना आदि व्यवस्था के काम करने का हिस्सा होता है। जानकारी के अभाव में आम आदमी पिसता है और जानकारी होने के बावजूद किसी संगठन के अभाव में उसकी आवाज दब जाती है।
आम आदमी देश या राज्य के संवैधानिक मंच पर किसके माध्यम से अपने आप को अभिव्यक्त करता है, प्रजातंत्र में यह बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इन संवैधानिक संस्थाओं में जो लोग आम आदमी का प्रतिनिधित्व करते हैं, उनकी खुद की समझ कितनी है समझ होने के बावजूद उनकी कितनी बातें सुनी जाती हैं और कितनी अनसुनी हो जाती हैं, यह भी अपने आप में एक अनुत्तरित प्रश्न है। हमने देखा है कि आम जनता और उसके प्रतिनिधि मांग कुछ करते हैं, हो कुछ दूसरा ही जाता है और जो हो जाता है उसका कभी तथाकथित लाभार्थियों के साथ मिल-बैठ कर मूल्यांकन नहीं होता। ऐसी हालत में यथास्थिति बनी रहती है और सुधार की कोई गुंजाइश ही नहीं बनती।
व्यवस्था की स्थिति बैलगाड़ी के एक ऐसे गाड़ीवान की है जो उस पर माल लाद कर काठी में लालटेन टांग कर सो जाता है और उसके बैल अपनी रफ्तार से चलते रहते हैं। बीच-बीच में अगर कभी गाड़ीवान की नींद खुलती है तो वह बैलों पर दो एक चाबुक चला कर उन्हें अपनी मौजूदगी का एहसास दिला कर फिर सो जाता है। इस स्थिति को पीछे या सामने से आने वाली सभी गाड़ियाँ बड़े सहज भाव से स्वीकार करती हैं। यह इत्तिफाक है कि हम इसी दौर से गुजर रहे हैं। बिहार में सिंचाई और बाढ़ के मसले में तो इस निष्कर्ष पर शायद ही कोई विवाद होगा।
हमने बागमती और अधवारा समूह की नदियों पर बने तटबंधों, प्रस्तावित तटबंधों तथा उनके विकल्प के तौर पर प्रस्तावित नुनथर बांध की अद्यतन स्थिति का जायजा लिया है पर देश और राज्य में इनके अतिरिक्त भी बहुत कुछ हो रहा है। इनमें से जब कुछ आयामों और योजनाओं का हम यहाँ अध्ययन करेंगे तब हमारे हस्तक्षेप का दायरा और भी ज्यादा सीमित होता दिखायी पड़ेगा। उस मुकाम पर पहुँचने के बाद हमारे लिए कौन-कौन से रास्ते खुले मिलेंगे, इस अध्याय में उनपर हम चर्चा करेंगे। इस क्रम में पहला नाम भारत की प्रस्तावित नदी जोड़ योजना का आता है।
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