तालाबों का कोई विकल्प नहीं : उमाकांत उमराव

जल संरक्षण को अपने जीवन का ध्येय बना चुके मध्य प्रदेश कैडर के आइ.ए.एस. उमाकांत उमराव ने जल संरक्षण का मॉडल खड़ा कर देवास जिले को सूखे से निजात दिलाने में सफलता हासिल की। उनके इस कार्य को मॉडल मानते हुए यू.एन. ने सम्मानित भी किया है। उमाकांत उमराव प्रदेश के विभिन्न जिलों में कलेक्टर रहने के बाद संचालक, राजीव गांधी वाटरशेड मिशन के पद पर भी कार्य कर जल संरक्षण को लेकर कई महत्वपूर्ण कार्य किए। जल संरक्षण के प्रति उनके खास जुड़ाव को लेकर राजु कुमार ने बातचीत की थी, जो संक्षिप्त रूप में 'गवर्नेंस वॉच' में प्रकाशित हुई थी। कुछ संशोधन के बाद पूरी बातचीत प्रस्तुत है -

आपके जीवन में जल संरक्षण पर काम करने का विचार कब आया?
प्रशासन अकादमी में प्रशिक्षण के बाद मैं 8 जून 1997 को मध्य प्रदेश में आया। प्रदेश में मेरा पहला वास्ता जल समस्या से पड़ा। उस समय मुझे सागर जिले में पोस्टिंग हुई थी। वहां मैंने सभी को पानी को लेकर चिंतित देखा। पहले ही दिन अधिकारियों के साथ मैं वाटरशेड का काम देखने गया। एक तरह से वह मेरे लिए संकेत था कि एक अधिकारी के रूप में मेरे कैरियर का मोड़ किस ओर जाएगा। यद्यपि मेरा बहुत ज्यादा झुकाव स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के प्रति था, पर विभिन्न जिलों में कलेक्टर रहने के बाद सतना से जब मेरा तबादला देवास हुआ, तो मैंने जाना कि जल समस्या क्या होती है? सतना में ही कई लोगों ने मुझे समझाया कि देवास में तबादला को रुकवा लूं, क्योंकि वहां पानी ट्रेन से सप्लाई होती है। पर मैं देवास गया और देखा कि पानी को लेकर इतना हाहाकार मचा हुआ है कि पेयजल के साथ-साथ खेती-किसानी चौपट हो चुकी है। सौ-सौ एकड़ वाले किसान कर्ज में डूबे हुए थे। देवास के लोगों ने बताना शुरू किया कि मालवा विदर्भ बन जाएगा। मेरे लिए वह बहुत ही मुश्किल समय था। सभी कलेक्टर एक मुख्य मुद्दे को लेकर जिला में काम करते हैं। मैंने जल संरक्षण को मुख्य मुद्दा बनाकर काम करना शुरू कर दिया।

खेतों में तालाब बनाने का विचार कैसे आया और क्या किसान इसके लिए आसानी से तैयार हो गए?
समस्या का हल ढूंढने के लिए मैंने विभिन्न गाँवों का दौरा किया। मुझे मालूम था कि विभिन्न प्रायोजनों के लिए तालाब का निर्माण हमारी संस्कृति में था, पर खेती के लिए खेत में तालाब बनाना सार्थक हो सकता है या नहीं और इसकी लागत स्वयं किसान वहन करेंगे या नहीं, जैसे सवाल थे। जब मैंने इस पर चर्चा कि तो मेरे जिले के अधिकारी इस अवधारणा पर तैयार नहीं दिखे। फिर जिले में कुछ ऐसे किसान मिले, जिनके तालाब थे और उन्होंने पिछले कुछ सालों से जल समस्या का सामना नहीं किया था। इसके साथ ही फसल में पानी के उपयोग की मात्रा एवं मिट्टी, लागत निकालने की अवधि आदि का अध्ययन शुरू किया। जिन लोगों के तालाब थे, उनको रोल मॉडल बनाकर 10 बड़े किसानों को उनके खेत में तालाब बनवाने के लिए राजी किया। गर्मी के दिनों में छुट्टी के समय दोपहर में गाँवों में दौरा कर लोगों को तैयार करता था। मैंने जल संरक्षण के नारे ‘‘जल बचाओ, जीवन बचाओ’’ को ‘‘जल बचाओ, लाभ कमाओ’’ में तब्दील कर दिया। इसका व्यापक असर हुआ और जब उन 10 किसानों ने हमारी बात मान ली, तो उन्हें अगले बारिश में इसका बहुत ज्यादा फायदा हुआ और फिर देखते ही देखते सैकड़ों लोगों ने इस मॉडल पर काम करना शुरू कर दिया। इसमें ज़मीन के 10 फीसदी हिस्से पर तालाब बनाना होता है और उसका टेक्निकल सहयोग सरकार की ओर से था एवं लागत किसान को वहन करना होता था। किसानों को प्रोत्साहित करने एवं उन्हें प्रेरणास्रोत बनाने के लिए उनका सार्वजनिक सम्मान करने लगे। जो किसान तैयार हो जाते थे, उनका भी सम्मान करते थे, ताकि वे सार्वजनिक सम्मान के चलते बाद में तालाब बनाने से इनकार न कर दें।

फिर यह अभियान आगे कैसे बढ़ा और क्या यह अभी भी चल रहा है?
दो साल बाद ही जब इसकी सफलता से लोग रूबरू हुए, तो किसान स्वयं आगे बढ़कर तालाब की संस्कृति में शामिल हो गए। इसमें बड़े पैमाने पर तालाबों का निर्माण हुआ। इस अभियान का नाम ‘‘भागीरथ कृषक अभियान’’ दिया गया और किसानों को ‘‘भागीरथ कृषक’’ का सम्मान दिया गया। यह अभियान आज भी चल रहा है और देवास में हज़ारों तालाब बन गए। वहां का ईको सिस्टम बेहतर हो गया है। गांव की आर्थिक स्थिति में बहुत ज्यादा सुधार आया है। पलायन रुक गया है। जिले के जल संरक्षण को लेकर केंद्र सरकार का 5 बार ‘‘भूजल संवर्धन अवार्ड’’ मिल चुका है। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, इटली सहित कई देशों के एवं अन्य राज्यों के 25 हजार से ज्यादा लोग इस मॉडल को देखने के लिए देवास का दौरा कर चुके हैं। कई डॉक्यूमेंट्री एवं शोध हुए हैं।

तो क्या आपके इस काम को देखते हुए सरकार ने प्रदेश में वाटरशेड मिशन की ज़िम्मेदारी सौंपी थी?
मुझे तो ऐसा नहीं लगता, पर उस पद होने से जल संरक्षण के प्रति मैं ज्यादा समर्पित होकर काम कर पाया। वहाँ मैंने जल संरक्षण के लिए नदी पुनर्जीवन पर काम किया। इसके तहत प्रदेश के सभी जिले के कुछ नदियों का चयन कर उनके पुनर्जीवन का काम लिया गया था।

एक आइ.ए.एस. अधिकारी के रूप में जल संरक्षण के प्रति इतना लगाव के पीछे क्या कारण है? क्या अन्य पदों पर कार्य करते हुए भी जल संरक्षण के प्रति जुड़ाव आगे तक बना रहेगा?
मैंने शुरू में ही बताया था कि स्वास्थ्य के मुद्दे पर काम करने का मेरा रुझान था। पर जब जल संरक्षण पर काम शुरू किया और इसके परिणाम आए, तो देखा कि गांव में खुशहाली लौट आई और वहां न केवल जीविकोपार्जन एवं रोज़गार में सुधार हुआ है, बल्कि शिक्षा एवं स्वास्थ्य का स्तर भी बढ़ गया है। मैं कहीं भी और किसी पद पर रहूं, जल संरक्षण के प्रति मेरा लगाव बना रहेगा और मैं खुद आगे बढ़कर इस काम को पूरे समाज में फैलाने का प्रयास करुंगा।

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