ताकि काम चलता रहे और योजना भी बनती रहे

फरवरी 1980 में प्राक्कलन का जो स्वरूप था उसके अनुसार सिंचाई योजना में बराज, नहरों तथा जल निकासी पर 75.21 करोड़ रुपये और बाढ़ नियंत्रण के लिए 51.88 करोड़ रुपये की योजना बनी और इस प्रकार कुल खर्च 127.48 करोड़ रुपये आँका गया। इतना होने के बाद रमनगरा वाले बराज स्थल को लेकर फिर विवाद शुरू हुआ और अन्ततः इसका अनुमोदन अपने पुराने स्थल पर ही ढेंग रेल पुल के तीन कि. मी. नीचे तय हुआ।

बराज के निर्माण स्थल को देवापुर से हटा कर रमनगरा ले जाने का फैसला केवल तकनीकी नहीं था। उसके पीछे और भी कारण थे जिनके ऊपर रोशनी डालते हैं बिहार सरकार के पूर्व मंत्री रघुनाथ झा, जिनका कहना है, ‘‘...मूलतः योजना यह थी कि नुनथर में, जहाँ बागमती पहाड़ों से उतरती है, वहीं उस पर बांध बना दिया जाय। लेकिन इस बांध का मसला दो देशों की रजामन्दी पर निर्भर करता था और यह रजामन्दी जब नहीं हुई तब देवापुर (पूर्वी चम्पारण) के पास एक बराज बनाने की बात उठी। इस साइट के लिए स्थानीय जनता का जबर्दस्त विरोध था क्योंकि उनकी जमीन डूबती और सिंचाई उन्हें मिलती नहीं। उनका कहना था कि अगर बराज बनना ही है तो वह भारत-नेपाल सीमा के पास किसी ऐसी जगह बने जहाँ से देश में (बिहार में) अधिक से अधिक सिंचाई हो सके। इरादा था कि सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर और दरभंगा तक सिंचाई की व्यवस्था हो जाए मगर बराज की साइट अगर नीचे दक्षिण की ओर ले जायी जाती है तो सिंचाई कम ही क्षेत्रों पर होगी। तब तय हुआ कि बराज का निर्माण उत्तर में गम्हरिया गांव के पास किया जाय। इस बराज का शिलान्यास तत्कालीन मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर ने 1984 में किया और उस समय तक बाढ़ नियंत्रण पर काम तो पूरा हो चुका था मगर सिंचाई की योजना पिछड़ती गयी। तटबन्ध निर्माण के बाद जब बाढ़ आयी तो पहले उसने ढेंग पुल के ऊपर तटबन्धों पर हमला करना शुरू किया और तटबन्धों को तोड़ने के साथ-साथ रेलवे लाइन को भी तहस-नहस करना शुरू किया। यह नदी कभी हम लोगों के गाँव अम्बा और बेलवा के पास से गुजरती थी, वह धारा भी बदल गयी और बाद में वह पिपराही, बेलसंड होकर बहने लगी। इधर तटबन्ध में बहुत से स्लुइस गेट बने हुए हैं पर वह इस तरह से बने हैं कि उनसे सिंचाई होती नहीं है। सरकार की कभी इच्छाशक्ति ही नहीं थी कि वह इस योजना को पूरा करती या इन स्लुइस गेटों को ठीक करती। स्लुइस गेटों को और नीचा बनाना चाहिये था ताकि उनसे होकर पानी नदी में जाता और जरूरत पड़ने पर नदी के पानी को सिंचाई के लिए भी उपयोग में लाया जाता।’’

दरअसल, 1956 में एम. पी. मथरानी ने बागमती योजना का जो स्वरूप प्रस्तुत किया था उसमें समय-समय पर सुधार होते रहे। 1965 में जब योजना को मूर्त रूप देने का प्रयास किया गया तो इसे बाढ़ नियंत्रण तथा सिंचाई के दो विभिन्न अंशों में विभाजित किया गया। तब बाढ़ नियंत्रण तथा सिंचाई के लिए क्रमशः 3.17 करोड़ रुपये तथा 5.78 करोड़ रुपयों की लागत की दो अलग-अगल योजनाएँ सिंचाई विभाग, बिहार सरकार द्वारा बनायी गयीं। बाढ़ नियंत्रण वाली योजना 1969 में जब केन्द्रीय जल तथा विद्युत आयोग द्वारा स्वीकृत हुई तब तक विभिन्न परिवर्तनों तथा लागत मूल्य बढ़ने की वजह से यह 6.54 करोड़ रुपयों की हो गयी। सिंचाई वाली योजना का अनुमोदन तब उसी प्रस्तावित लागत पर कर दिया गया था।

मूल सिंचाई योजना में बागमती तथा लालबकेया नदी के संगम के नीचे देवापुर गाँव के पास एक बराज बनाने का प्रस्ताव था। परन्तु 1969 की बाढ़ में बागमती अपनी पुरानी धारा कोला धार से बहने लगी और तब यह आवश्यक हो गया कि उस योजना को, जिसके लिए स्वीकृति मिल चुकी थी, छोड़ कर नए सिरे से सारी योजना का निर्धारण किया जाय। 1974-75 में बाढ़ नियंत्रण की एक और योजना का प्रारूप तैयार हुआ जिसकी तत्कालीन लागत 26.72 करोड़ रुपये आँकी गयी जिसका 1976 में पुनर्मूल्यांकन करके 36.20 करोड़ रुपये कर दिया गया। बागमती नदी के कोसी के माध्यम से गंगा में पानी निस्सरित करने के कारण बागमती पर कोई भी बाढ़ नियंत्रण की योजना नव-गठित गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग के दायरे में आ जाती थी अतः 1974-75 में गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग को प्रेषित बागमती योजना को उसके द्वारा किये गए संशोधनों से गुजरना पड़ा।

इसी प्रकार सिंचाई योजना में भी परिवर्तन हुए और 1973 में 22.55 करोड़ रुपयों की एक नई योजना बनी और क्योंकि यह प्राक्कलन अपने मूल प्राक्कलन 5.78 करोड़ रुपये से लगभग चार गुना अधिक था, बिहार सरकार ने एक पाँच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति बना कर 1973 में ही सिंचाई योजना के प्राक्कलन तथा उसके रूपांकन पर समिति की राय माँगी जिसने बागमती के धारा-परिवर्तन, नहरों की बढ़ी हुई लम्बाई, बराज के डिजाइन में परिवर्तन तथा मूल्य वृद्धि आदि कारणों का वास्ता देकर बढ़े हुए प्राक्कलन का अनुमोदन कर दिया। इसके बाद सिंचाई योजना को लेकर चार वर्षों तक केन्द्रीय जल आयोग तथा बागमती परियोजना से पत्राचार का एक लम्बा सिलसिला चल निकला और 1977 के अन्त में 45.05 करोड़ रुपयों की एक सिंचाई योजना प्रकाश में आयी। आने वाले दो वर्षों में केन्द्रीय जल आयोग, बागमती परियोजना तथा गंगा बाढ़ नियंत्रण आयोग ने मिल कर यह ‘महत्वपूर्ण’ निर्णय लिया कि बागमती परियोजना में बाढ़ नियंत्रण तथा सिंचाई को अलग-अलग न रख कर एक साथ एक बहुद्देशीय प्रकल्प के रूप में देखा जाय। फलतः फरवरी 1980 में प्राक्कलन का जो स्वरूप था उसके अनुसार सिंचाई योजना में बराज, नहरों तथा जल निकासी पर 75.21 करोड़ रुपये और बाढ़ नियंत्रण के लिए 51.88 करोड़ रुपये की योजना बनी और इस प्रकार कुल खर्च 127.48 करोड़ रुपये आँका गया।

इतना होने के बाद रमनगरा वाले बराज स्थल को लेकर फिर विवाद शुरू हुआ और अन्ततः इसका अनुमोदन अपने पुराने स्थल पर ही ढेंग रेल पुल के तीन कि. मी. नीचे तय हुआ। तब तक प्राक्कलन का एक बार फिर मूल्यांकन हुआ और 1981 में परियोजना में सिंचाई पर, बराज तथा तत्संबंधी कार्यों और नहरों को लेकर 125.21 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान किया गया। बाढ़ नियंत्रण पर इस योजना में 60.48 करोड़ रुपयों का प्रावधान था अर्थात कुल मिलाकर 185.69 करोड़ रुपयों की योजना बनी। केन्द्रीय जल आयोग ने इस तथाकथित अंतिम योजना को योजना आयोग की तकनीकी सलाहकार समिति के पास स्वीकृति के लिए भेजा जिस पर तीन शर्तें लगाकर इस समिति ने मार्च 1982 में अनुमोदन कर दिया। यह शर्तें थीं

1. बराज स्थल पर निर्भर योग्य नदी में उपलब्ध पानी के तीन चौथाई के 60 प्रतिशत अंश को ही नहर प्रणाली हेतु उपलब्ध मानते हुए सिंचाई योजना संशोधित हो।
2. सिंचन हेतु पानी की आवश्यकता की तुलना में नदी में उपलब्ध पानी की जो कमी है उसे पूरा करने के लिए नलकूपों का जो प्रावधान है उनकी संख्या तथा उनके हेतु भूमिगत जल की उपलब्धि के विषय में केन्द्रीय ग्राउण्ड वाटर कमीशन से विचारोपरान्त निर्णय लिया जाय।
3. भूमिगत जलस्तर अगर अवांछनीय रूप से ऊँचा है तो उक्त समस्या के समाधान हेतु कार्यों की रूपरेखा केन्द्रीय भूमिगत जल परिषद की सहमति से तैयार की जाय।

इस प्रकार बागमती परियोजना में अब सिंचाई, जल-निकासी और बाढ़ नियंत्रण की सभी योजनाएं शामिल हो गयीं। इस योजना का जो नक्शा उपलब्ध करवाया गया था वह चित्र-1.3, अध्याय-1 में दिखाया गया है। इस योजना के अनुसार निम्न काम किये जाने थे।

(क) सिंचाई प्रक्षेत्र इसमें जल-निकासी योजनाएं भी शामिल हैं।


1. 1960 फीट लम्बाई वाले बराज के निर्माण के साथ एक 2,67,529 क्यूसेक प्रवाह क्षमता वाले, स्पिल-वे का निर्माण।
2. बराज के प्रति प्रवाह में बायीं तरफ 2250 क्यूसेक और दाहिनी तरफ 1450 क्यूसेक क्षमता वाले हेड-वर्क्स का निर्माण
3.

नदी के दोनों तरफ निम्नांकित बांध


बराज के उत्तर तरफ

बायां बांध

24 कि.मी.

दायाँ बांध

7.2 कि.मी.

बराज के दक्षिण तरफ

बायां बांध

26.4 कि.मी.

दायाँ बांध

32.0 कि.मी.



4. मुख्य नहर एवं शाखा नहर प्रणाली- 162.42 कि.मी.
5. 1.75 क्यूसेक क्षमता वाले 454 नल कूपों का निर्माण
6. 311 कि.मी. लम्बी ट्रंक चैनेल द्वारा क्षेत्र की जल-निकासी की व्यवस्था का निर्माण

(ख) बाढ़ नियंत्रण प्रक्षेत्र


1.

बायां तटबन्ध

79.30 कि.मी.

2.

दायाँ तटबन्ध

77.60 कि.मी.

3.

दोआब तटबन्ध (बैरगनियाँ)

21 कि.मी.

4.

मीनापुर से बागमती नदी की पुरानी धार तक लिंक चैनेल की खुदाई का काम

5.50 कि.मी.

5.

सुरमार घाट एवं एक्जि़ट के बीच समस्तीपुर-दरभंगा मार्ग से नियंत्रण एवं आवश्यक द्वार का निर्माण

6.

दुधवा धार एवं मसौदा नाला को बन्द करने का कार्य

7.

सिरसिया रिंग बांध का निर्माण

8.

बेलवा के मुहाने पर 50,000 क्यूसेक क्षमता वाले रेगुलेटर का निर्माण

9.

मनुवातार नहर पर 1500 क्यूसेक क्षमता वाले एक निरोधक फाटक का निर्माण

10.

कनौजर घाट में 9500 क्यूसेक क्षमता वाले बाढ़ निरोधक फाटक का निर्माण

11.

बेलवा चैनेल की ओर मार्जिनल तटबन्ध का निर्माण कार्य

12.

लखनदेई नदी के दोनों तरफ 24 मील लम्बे मार्जिनल बांध का निर्माण कार्य

13.

बेलवा धार की बायीं ओर 36 कि.मी. लंबे तटबन्ध का निर्माण कार्य

14.

बेलवा धार की दायीं ओर 52 कि.मी. लंबे तटबन्ध का निर्माण। इन सारे कार्यों का आर्थिक पक्ष नीचे दिया जा रहा है।

इकाई-1

बराज तथा सम्बन्धित काम

49.7608 करोड़ रुपये

इकाई-2

नहर

75.4545 करोड़ रुपये

इकाई-3

बराज एवं बाढ़ सम्बन्धी काम

60.4804 करोड़ रुपये

कुल योग

185.6957 करोड़ रुपये

अथवा

185.70 करोड़ रुपये



यदि इस योजना को पूरा कर लिया जाता तो इससे 1,21,000 हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई तथा 2,900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर बाढ़ से सुरक्षा देने का अनुमान किया गया था।

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Post By: tridmin
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