राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर को स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भी मोदी अपनी लगभग हर सभा में सफाई पर जोर देते थे और सत्ता में आने के बाद अपने मिशन को आगे बढ़ा रहे हैं। उनके विरोधी इसे एक चुनावी स्टंट करार दे रहे हैं जो महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के मद्देनजर किया जा रहा है। प्रधानमंत्री का निशाना चाहे जो हो उन्होंने जन-स्वास्थ्य और देश की प्रतिष्ठा से जुडे। एक ऐसे विषय को चर्चा के केंद्र में ला दिया जो महात्मा गांधी के बाद पृष्ठभूमि में चला गया था। मोदी के इरादे नेक हो सकते हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या सफाई अभियान महज एक दिन का प्रतीकात्मक कार्यक्रम बनकर रह जाएगा या उसका सिलसिला चलता रहेगा।
सफाई हमारे देश की गंभीर समस्याओं में से एक है। सार्वजनिक स्थलों, गली-मोहल्लों और घरों में पर्याप्त साफ-सफाई के अभाव में ढेरों बीमारियां फैलती हैं व उनसे हर वर्ष बड़ी संख्या में लोगों खासकर मासूम बच्चों की मौत हो जाती है। साफ-सफाई हालांकि स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी है लेकिन आम आदमी भी इस संबंध में अपनी जवाबदेही से नहीं बच सकता। हमें यह सोचना होगा कि हम अपने घर को कितना साफ रखते हैं, अपने घर के आस-पास के क्षेत्र को गंदगी से बचाने में हम कितना योगदान देते हैं, हम जब अपने शहर या गांव से बाहर जाते हैं, तो ट्रेन या बस में सफाई का कितना ध्यान रखते हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि हम सफाई को समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी के रूप में क्यों स्वीकार नहीं करते हैं। राष्ट्रपिता ने स्वतंत्रता संग्राम को महज एक राजनीतिक आंदोलन नहीं समझा। इसके जरिए उन्होंने अस्पृश्यता, आर्थिक असमानता और गंदगी जैसी समस्याओं के प्रति जनचेतना भी जगाई। गांधीजी और उनके नेतृत्व में लाखों लोगों और कांग्रेसजनों की सुबह देश के कोने-कोने में सफाई अभियान से शुरू होती थी। ये लोग अपने शहर, कस्बे और गांव की उन बस्तियों में विशेष रूप से जाते थे जहां नागरी सुविधाओं के अभाव में भीषण गंदगी फैली रहती थी। सड़कों के साथ-साथ नालियों की सफाई ज़रूर होती थी।
सत्तर के दशक से जब स्वतंत्रता सेनानियों की पीढ़ी धीरे-धीरे लुप्त होने लगी, सफाई अभियान पृष्ठभूमि में जाने लगा। राजनेताओं की नई पीढ़ी ने खुद को पूरी तरह राजनीतिक मसलों तक केंद्रित कर लिया जिससे सामाजिक मुद्दों की उपेक्षा होने लगी। मोदी सरकार द्वारा शुरू किया गया अभियान निश्चित रूप से सकारात्मक पहल है, लेकिन पिछले कुछ दिनों से उनकी सरकार के मंत्री, नेता, कार्यकर्ता सिर्फ मुख्य सड़कों पर ही झाड़ू मारते दिखाई दे रहे हैं। दो अक्टूबर को भी भाजपा कार्यकर्ता, मंत्री, सरकारी अफ़सर व कर्मचारी विशिष्ट स्थानों पर ही कुछ देर के लिए सफाई करते नजर आए।
वस्तुत: यह अभियान मेन रोड या संभ्रांत बस्तियों के बदले झोपड़ियों और निम्न मध्यमवर्गीय बस्तियों में चलाया जाना था। सड़कों के साथ-साथ नालियों की सफाई भी बेहद जरूरी थी, लेकिन यह क्षेत्र उपेक्षित रहा। बहरहाल एक अच्छी शुरुआत को उसी तरह से सामाजिक आंदोलन में तब्दील करने की जरूरत है, जैसा महात्मा गांधी ने किया था। गंदगी को लेकर दुनिया में देश की छवि बहुत खराब है। अगर हम सफाई अभियान को अपनी नियमित दिनचर्या बना लें तो स्वच्छता के लिए विश्वभर में भारत की नई छवि बनेगी।
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