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अपनी भौगोलिक बनावट विपरीत जलवायुविक परिस्थितियों के चलते बुंदेलखंड कृषि के लिहाज से बहुत मुफीद नहीं रहा है। लिहाजा लोग अन्य विकल्पों की तलाश में रहते हैं। ऐसे में कुछ लोगों ने बाग़वानी को अपनाकर एक नई शुरुआत की है, जो क्षेत्र को हरा-भरा कर एक नई शुरुआत की है। यह क्षेत्र को हरा-भरा रखने के साथ ही आजीविका का साधन भी रही है।
ललितपुर के विकास खंड जखौरा का ग्राम नदनवार मुख्यतः आदिवासियों की बस्ती है, जहां लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती एवं मजदूरी है। उबड़-खाबड़ जमीनें व सिंचाई के साधनों का अभाव तो यहां है ही, विगत दशक से कम होती जा रही वर्षा ने छोटी जोत के किसानों के सामने और भी संकट खड़ा किया है। यहां खेती पूर्णतः वर्षा आधारित होने के कारण सिर्फ एक ही फसल हो पाती है। ऐसी स्थिति में लोगों को आजीविका के अन्य विकल्पों की तलाश करनी पड़ती है, जिसमें सबसे मुफीद स्रोत पलायन है।
जंगल और पहाड़ शुरू से ही बुंदेलखंड की पहचान रहे हैं और लोगों ने इसका संरक्षण परंपरागत तौर पर किया। पर बीच के कुछ वर्षों में विकासोन्मुख प्रवृत्ति तेजी से पनपने के कारण लोग जंगलों, पेड़ पौधों से विमुख होते गए। उनका संरक्षण तो दूर, उन्हें काटने, विनष्ट करने में भी लोगों को हिचकिचाहट नहीं हुई और नतीजतन बुंदेलखंड सूखे से सुखाड़ की तरफ बढ़ने लगा। जब लोगों की खेती पर संकट आया तो लोगों ने सुध ली और थोड़े-थोड़े परिक्षेत्र में बाग़वानी के तौर पर हरियाली को जिंदा रखने की कवायद शुरू हुई।
इस कवायद में ग्राम नदनवार के आदिवासी भी शामिल हुए, जिन्होंने फलदार वृक्षों को लगाकर न सिर्फ पर्यावरण सुरक्षा के प्रति अपनी आस्था जताई, वरन् इसे अपनी आजीविका से भी जोड़ा।
खेत की तैयारी
फलदार वृक्षों को लगाने के लिए मई माह में ही खेत की तैयारी की जाती है, जिसके तहत् गड्ढे खोद दिये जाते हैं। गड्ढा 60 सेमी. गहराई व 60 सेमी. व्यास का तथा गड्ढों व पौधों के बीच में 6-8 मीटर का अंतर रखा जाता है ताकि बड़े होने पर जड़ों को पूरी तह फैलने का स्थान मिल सके।
फलदार वृक्षों में मुख्यतः आम, आंवला, अमरूद के पौधों को प्राथमिकता देते हैं।
एक एकड़ भूमि में 50-55 पौधे लगाए जाते हैं। पौध से पौध की दूरी 6 मी. होती है।
पौधरोपण का उपयुक्त समय जून के अंतिम सप्ताह से अगस्त तक होता है। जब गड्ढे में भरपूर नमी हो, तभी उपरोक्त पौध को गीला करके लगा देना चाहिए।
पौधों में पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है। अतः पौध लगाने के बाद तीन दिनों तक लगातार उसमें पानी डालना चाहिए ताकि जड़ मिट्टी में जकड़ जाए।
गोबर की सड़ी खाद का प्रयोग पौध लगाने से पहले किया जाता है।
यदि किसी पौध में रोग के लक्षण दिखें अथवा उस पर कीटों का प्रकोप हो, तो तुरंत वांछित उपचार करते हैं।
वैसे तो सभी फलदार वृक्षों के फल देने का समय उसकी प्रजाति पर निर्भर करता है। फिर भी औसतन एक पौधा ढाई से तीन वर्षों में फल देने लगता है।
![](/sites/default/files/hwp/import/images/Sukhai mai bagwani table.jpg)
ललितपुर के विकास खंड जखौरा का ग्राम नदनवार मुख्यतः आदिवासियों की बस्ती है, जहां लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती एवं मजदूरी है। उबड़-खाबड़ जमीनें व सिंचाई के साधनों का अभाव तो यहां है ही, विगत दशक से कम होती जा रही वर्षा ने छोटी जोत के किसानों के सामने और भी संकट खड़ा किया है। यहां खेती पूर्णतः वर्षा आधारित होने के कारण सिर्फ एक ही फसल हो पाती है। ऐसी स्थिति में लोगों को आजीविका के अन्य विकल्पों की तलाश करनी पड़ती है, जिसमें सबसे मुफीद स्रोत पलायन है।
जंगल और पहाड़ शुरू से ही बुंदेलखंड की पहचान रहे हैं और लोगों ने इसका संरक्षण परंपरागत तौर पर किया। पर बीच के कुछ वर्षों में विकासोन्मुख प्रवृत्ति तेजी से पनपने के कारण लोग जंगलों, पेड़ पौधों से विमुख होते गए। उनका संरक्षण तो दूर, उन्हें काटने, विनष्ट करने में भी लोगों को हिचकिचाहट नहीं हुई और नतीजतन बुंदेलखंड सूखे से सुखाड़ की तरफ बढ़ने लगा। जब लोगों की खेती पर संकट आया तो लोगों ने सुध ली और थोड़े-थोड़े परिक्षेत्र में बाग़वानी के तौर पर हरियाली को जिंदा रखने की कवायद शुरू हुई।
इस कवायद में ग्राम नदनवार के आदिवासी भी शामिल हुए, जिन्होंने फलदार वृक्षों को लगाकर न सिर्फ पर्यावरण सुरक्षा के प्रति अपनी आस्था जताई, वरन् इसे अपनी आजीविका से भी जोड़ा।
प्रक्रिया
खेत की तैयारी
फलदार वृक्षों को लगाने के लिए मई माह में ही खेत की तैयारी की जाती है, जिसके तहत् गड्ढे खोद दिये जाते हैं। गड्ढा 60 सेमी. गहराई व 60 सेमी. व्यास का तथा गड्ढों व पौधों के बीच में 6-8 मीटर का अंतर रखा जाता है ताकि बड़े होने पर जड़ों को पूरी तह फैलने का स्थान मिल सके।
पौध
फलदार वृक्षों में मुख्यतः आम, आंवला, अमरूद के पौधों को प्राथमिकता देते हैं।
पौध की मात्रा
एक एकड़ भूमि में 50-55 पौधे लगाए जाते हैं। पौध से पौध की दूरी 6 मी. होती है।
पौधरोपण
पौधरोपण का उपयुक्त समय जून के अंतिम सप्ताह से अगस्त तक होता है। जब गड्ढे में भरपूर नमी हो, तभी उपरोक्त पौध को गीला करके लगा देना चाहिए।
सिंचाई
पौधों में पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है। अतः पौध लगाने के बाद तीन दिनों तक लगातार उसमें पानी डालना चाहिए ताकि जड़ मिट्टी में जकड़ जाए।
खाद
गोबर की सड़ी खाद का प्रयोग पौध लगाने से पहले किया जाता है।
रोग व कीट नियंत्रण
यदि किसी पौध में रोग के लक्षण दिखें अथवा उस पर कीटों का प्रकोप हो, तो तुरंत वांछित उपचार करते हैं।
फसल उत्पादन
वैसे तो सभी फलदार वृक्षों के फल देने का समय उसकी प्रजाति पर निर्भर करता है। फिर भी औसतन एक पौधा ढाई से तीन वर्षों में फल देने लगता है।
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