सरयू नदी भी खतरे में

नदियों में लगातार बढ़ते प्रदूषण के कारण आज तमाम नदियों का अस्तित्व खतरे में है। गंगा यमुना जैसी बड़ी नदियों के साथ ही छोटी नदियों की हालत तो और भी खराब है। इन छोटी नदियों की साफ सफाई की तरफ तो किसी का ध्यान भी नहीं है। इन्हीं नदियों में ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण सरयू नदी का अस्तित्व भी अब खतरे में है। रामायण के अनुसार भगवान राम ने इसी नदी में जल समाधि ली थी। सरयू नदी का उद्गम उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले से हुआ है। बहराइच से निकलकर यह नदी गोंडा से होती हुई अयोध्या तक जाती है। पहले यह नदी गोंडा के परसपुर तहसील में पसका नामक तीर्थ स्थान पर घाघरा नदी से मिलती थी। पर अब यहां बांध बन जाने से यह नदी पसका से करीब 8 किलोमीटर आगे चंदापुर नामक स्थान पर मिलती है। अयोध्या तक ये नदी सरयू के नाम से जानी जाती है, लेकिन उसके बाद यह नदी घाघरा के नाम से जानी जाती है। सरयू नदी की कुल लंबाई लगभग 160 किलोमीटर है। हिंदुओं के पवित्र देवता भगवान श्री राम के जन्म स्थान अयोध्या से हो कर बहने के कारण हिंदू धर्म में इस नदी का विशेष महत्व है। सरयू नदी का वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है। पर अब यह ऐतिहासिक नदी अपनी महत्व खोती जा रही है। लगातार होती छेड़छाड़ और मानवीय दखल के कारण इस नदी का अस्तित्व अब खतरे में है। इस नदी में लगातार अवांछित तरीके से होते जलीय जीव-जंतुओं का शिकार और यहां के चीनी मीलों से निकलने वाला कचरा और प्रदूषित पानी बिना किसी रोक-टोक के इस नदी में बहाया जाता है। इस नदी में प्रदूषण कर आलम यह है कि इसमें जीव-जंतु भी जीवित नहीं रह पाते।

रामायण के अनुसार भगवान राम ने इसी नदी में जल समाधि ली थी। सरयू नदी का उद्गम उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले से हुआ है। बहराइच से निकलकर यह नदी गोंडा से होती हुई अयोध्या तक जाती है। पहले यह नदी गोंडा के परसपुर तहसील में पसका नामक तीर्थ स्थान पर घाघरा नदी से मिलती थी। अयोध्या तक यह नदी सरयू के नाम से जानी जाती है, लेकिन उसके बाद यह नदी घाघरा के नाम से जानी जाती है। सरयू नदी की कुल लंबाई लगभग 160 किलोमीटर है। हिंदुओं के पवित्र देवता भगवान श्री राम के जन्म स्थान अयोध्या से हो कर बहने के कारण हिंदू धर्म में इस नदी का विशेष महत्व है।ऐसा माना जाता है कि इस नदी के पानी में चर्म रोगों को दूर करने की अद्भुत शक्ति है। इस नदी में विभिन्न प्रकार के जीव जंतुओं के साथ ही ऐसी वनस्पतियाँ भी हैं, जो नदी के पानी को शुद्ध कर पानी में औषधीय शक्ति को भी बढ़ाती हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से इस नदी के साथ लगातार होते छेड़-छाड़ के कारण इस नदी का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ गया है। जहां इस नदी में नहाने को पवित्र माना जाता है, और मान्यता है कि इस नदी में नहाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। पर आज इस नदी का यह हाल है कि इस नदी के आस-पास रहने वाले लोगों कि शिकायत है कि इस नदी में नहाने से शरीर में खुजली हो जाती है। यहां आस-पास के चीनी मीलों का कचरा और चीनी बनाने कि प्रक्रिया में प्रयोग होने वाले केमिकल इस नदी में सीधा-सीधा बहा दिया जाता है। इसमें बहाए जाने वाले केमिकल का असर सिर्फ इंसानों पर ही नहीं होता, बल्कि जानवरों पर भी देखा गया है। प्रदूषण के कारण इस नदी में रहने वाले जीव जंतु बड़ी संख्या में मर रहे हैं। नदियों को समितियों में बांटा गया है, जिस समिति के हिस्से में जो क्षेत्र आया है वो उसी का दोहन करने में लगा है। सरकार ने नदी से मछली पकड़ने के लिए कुछ मापदंड बनाया है। पर सारे कायदे कानून को ताक पर रखकर लोग मछलियां पकड़ते हैं। नियम कानून तो बना दिए जाते हैं, पर सरकार यह देखने कि जहमत नहीं उठाती कि उन नियमों का पालन हो भी रहा है या नहीं। यही वजह है कि लोग नियमों को ताक पर रखकर खुलेआम गैरकानूनी तरीके से मछलियां पकड़ते हैं। जहां नदियों में एक छोर से दूसरे छोर तक बांध बनाना गैरकानूनी है, वहीं यहां यह नजारा आम है। यहां हर दस से पंद्रह किलोमीटर की दूरी पर बांध बना हुआ देखा जा सकता है। यहां कई तरीके से बांध बंधे हुए हैं। इन बांधों के कारण नदी के पानी का बहाव अवरूद्ध हो रहा है, जिससे मछलियां, कछुए और अन्य जीव जंतु नदी के दोनों बांधों के बीच फंस जाते हैं। जिससे नदी के जीव मर जाते हैं।

बरसात के मौसम में मछलियां नदी के बहाव के ठीक विपरीत दिशा की तरफ अंडे देती है। लेकिन बरसात के खत्म होते ही जब ये मछलियां नदी के बहाव की तरफ वापस जाती हैं तो उस समय नदी पर पुन: बांध बंधना शुरू हो जाता है। ऐसे में मछलियां दो बांधों के बीच में फंस जाती हैं। फिर ये पूरे नदी में नहीं घूम पातीं, जिससे किसी क्षेत्र में ज्यादा मछलियां मिल जाती हैं, तो किसी क्षेत्र के लोगों को कुछ नहीं मिलता। इन बांधों के कारण जगह-जगह से बहकर आने वाली गंदगी भी इन बांधों के बीच फंस जाती है, जो सड़कर पूरे पानी को प्रदूषित करती है। इस प्रदूषित पानी में कई विषैले जीवाणु उत्पन्न होते हैं, जो कई बिमारियों के वाहक होते हैं। ये विषैले जीवाणु इंसानों ही नहीं जानवरों को भी नुकसान पहुंचाते हैं।
 

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