योजनाओं का सच क्या होता है, इसे समझने के लिए एक घटना का ज़िक्र करना बहुत ज़रूरी है। नेहरू जी ने विनोबा भावे को पंचवर्षीय योजना के बारे में अपनी राय देने के लिए आमंत्रित किया था। विनोबा जी ने पूछा कि इस योजना से ग़रीबों को रोटी कितने दिनों के अंदर मिलने लगेगी? नेहरू जी ने कहा, बीस साल। तब विनोबा जी ने कहा कि क्या ग़रीब रोटी के लिए 20 साल इंतज़ार करेगा? ज़ाहिर है, ग़रीबों का वह इंतज़ार आज भी ख़त्म नहीं हुआ है। और, हो भी कैसे? इसका एक उदाहरण है सरदार सरोवर परियोजना। इसके बारे में यह प्रचारित किया जाता रहा है कि इस योजना से करोड़ों लोगों को पीने एवं खेतों की सिंचाई के लिए पानी और हज़ारों मेगावाट बिजली मिलेगी। कहा गया कि इस परियोजना के तहत नहरों का एक लंबा-चौड़ा जाल बिछा दिया जाएगा। 66 हज़ार किलोमीटर लंबी नहर का नेटवर्क खड़ा करने वाली यह योजना पूरी होने से 18 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई संभव हो सकती है, जिससे लगभग तीन हज़ार पांच सौ गांवों को फायदा पहुंच सकता है।
कमेटी ने भरूच, जामनगर, राजकोट, पाटन और हलवाड जैसी जगहों पर जब जनसुनवाई आयोजित की तो उसमें हज़ारों किसानों ने भागीदारी की। किसान इस बात से नाराज़ थे कि सरकार ने पानी देने का जो वायदा उनसे किया था, वह अब तक पूरा नहीं हो सका है। ग़ौरतलब है कि पिछले साल गुजरात सरकार ने बिना किसी बहस और विमर्श के उद्योगों को नर्मदा का पांच गुना ज़्यादा पानी आवंटित कर दिया था। कैग ने इस पर अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकार के इस फैसले से गांवों में सूखे की समस्या और बढ़ेगी।
लेकिन, हाल में एक जांच रिपोर्ट ने इन दावों की पोल खोलकर रख दी है। गुजरात उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश डी जी कजारिया की अध्यक्षता में गठित पीपुल्स इंक्वायरी कमेटी ने आठ महीनों तक जगह-जगह घूमकर, लोगों से बात कर और आंकड़े एकत्र करने के बाद जो रिपोर्ट तैयार की है, उसके निष्कर्ष वास्तव में इस परियोजना के क्रियान्वयन पर सवाल खड़े करते हैं। 49 साल और 29 हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च करने के बाद भी सरदार सरोवर परियोजना के तहत नहर बनाने की योजना महज़ 29 फीसदी ही पूरी हो पाई है। 2001 से 2010 के बीच नहर बनाने का काम महज़ तीन फीसदी सालाना की दर से ही हो पाया है।
दूसरी ओर नहर बनाने की इस योजना को पूरा करने के लिए अभी भी दस हज़ार करोड़ रुपये की और ज़रूरत है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सौराष्ट्र और कच्छ के लोगों को इन नहरों से पीने का पानी अब तक नहीं मिल सका है। दरअसल इन क्षेत्रों में पानी की आपूर्ति के लिए अब तक कोई ठोस योजना नहीं बनाई जा सकी है। इस क्षेत्र के लोग अब ख़ुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। और इतना ही नहीं, सौराष्ट्र और कच्छ के किसानों पर पानी की तथाकथित चोरी का आरोप लगाकर सरकार क़ानूनी कार्रवाई भी कर रही है। पीपुल्स इंक्वायरी कमेटी ने अपनी जांच के दौरान यह भी पाया कि गुजरात सरकार ने भूकंप प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्निर्माण के लिए एशियन डेवलपमेंट बैंक से मिला पैसा भी नर्मदा पाइप लाइन योजना में लगा दिया। कमेटी ने इसे गंभीर वित्तीय अनियमितता बताया है। कमेटी ने भरूच, जामनगर, राजकोट, पाटन और हलवाड जैसी जगहों पर जब जनसुनवाई आयोजित की तो उसमें हज़ारों किसानों ने भागीदारी की। किसान इस बात से नाराज़ थे कि सरकार ने पानी देने का जो वायदा उनसे किया था, वह अब तक पूरा नहीं हो सका है। ग़ौरतलब है कि पिछले साल गुजरात सरकार ने बिना किसी बहस और विमर्श के उद्योगों को नर्मदा का पांच गुना ज़्यादा पानी आवंटित कर दिया था।
कैग ने इस पर अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सरकार के इस फैसले से गांवों में सूखे की समस्या और बढ़ेगी। कैग की इस रिपोर्ट के मुताबिक़, सरकार के इस क़दम से पानी की औद्योगिक खपत अधिक होगी और घरेलू ज़रूरतों के लिए पानी की उपलब्धता कम होगी, जिसकी वजह से सौराष्ट्र एवं कच्छ क्षेत्र के लोगों के लिए पेयजल में भारी कमी हो जाएगी। इस परियोजना के तहत गुजरात के 16 ज़िलों के 8215 गांवों में रहने वाले दो करोड़ लोगों को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराया जाना है। साथ ही यह योजना थी कि मार्च 2009 तक गुजरात की लगभग साढ़े छह लाख हेक्टेयर कृषि भूमि तक नर्मदा का पानी पहुंचाया जाना था। लेकिन जनवरी 2010 तक भी यह योजना काग़ज़ से निकल कर खेतों तक नहीं पहुंच सकी है। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट के साथ कुछ अनुशंसाएं भी राज्य सरकार को भेजी हैं। मुख्य अनुशंसाओं के मुताबिक़, नहर योजनाओं को पूरा करने के लिए राज्य सरकार को अंतिम समय सीमा निर्धारित करनी चाहिए। साथ ही एक ऐसा मॉनिटरिंग सिस्टम भी बनाए जाने की ज़रूरत है, जिसमें आम लोगों की भागीदारी हो। कमेटी ने अपनी यह रिपोर्ट केंद्रीय जल संसाधन मंत्री पवन कुमार बंसल को भी सौंपी है। अब देखना यह है कि राज्य एवं केंद्र सरकार इस रिपोर्ट को कितनी अहमियत देती है और इसकी अनुशंसाओं पर कितना अमल कर पाती है, ताकि किसानों एवं खेतों की प्यास बुझ सके।
• 49 साल में 29 हज़ार करोड़ रुपये खर्च, लेकिन नहर निर्माण महज़ 29 फीसदी।
• पिछले दस वर्षों में तीन फीसदी सालाना दर से ही हुआ नहर निर्माण।
• गुजरात के 8215 गांवों को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराया जाना है।
• मार्च 2009 तक साढ़े छह लाख हेक्टेयर कृषि भूमि तक पहुंचना था पानी।
• जनवरी 2010 तक पानी खेतों और घरों तक नहीं पहुंच सका।
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