अनिल प्रकाश
अनिल प्रकाश
जंगल नहीं तो जल नहीं
Posted on 09 Jun, 2017 03:36 PMराजधानी राँची से 165 किलोमीटर दूर गुमला जिले के बिशुनपुर प्रख
पुस्तक परिचय : 'जल, जंगल और जमीन - उलट-पुलट पर्यावरण'
Posted on 18 Apr, 2017 04:42 PMस्वतंत्र मिश्र की पुस्तक ‘जल, जंगल और जमीन : उलट पुलट पर्यावरण’ प्राकृतिक संसाधनों के अविवेकपूर्ण दोहन से उत्पन्न आपदाओं और खतरों को समझने और उसका विश्लेषण करने की एक गम्भीर कोशिश है। मनुष्य प्रकृति का अंश है, लेकिन पिछली एक-दो शताब्दी में मनुष्य ने खुद को प्रकृति का जेता समझ लिया। विकास के नाम पर प्रकृति के साथ एक प्रकार का युद्ध छेड़ दिया गया। जब प्रकृति का पलटवार शुरू हुआ तो पूरी धरती का
विनाशकारी है नदी जोड़ योजना
Posted on 11 Jun, 2015 01:38 PMहमारे देश में नदियों को जोड़ने का मसला लम्बे वक्त से जेरे-बहस है। नदियों को जोड़ने की वकालत करने वाली सरकारों, विशेषज्ञों के अपने-अपने दावे हैं। तमाम सारे फायदे गिनाए जा रहे हैं। मसलन, बिजली परियोजनाएँ आसानी से चल पाएंगी, सिंचाई की सहूलियत होगी, अकाल से निजात मिलेगी, बाढ़ की समस्या हल हो जाएगी- वगैरह-वगैरह। लेकिन इन दावों की हकीकत क्या है।गंगा और हिमालय के जलते सवाल
Posted on 28 Mar, 2015 12:35 PMआज हिमालय से लेकर गंगा सागर तक पूरी गंगा बेसिन संकटग्रस्त है। दसियों करोड़ लोगों की जीविका, उनका जीवन तथा जीव-जन्तुओं और वनस्पतियों तक के अस्तित्व पर खतरा मँडराने लगा है। गंगा की समस्या के समाधान की अब तक की कोशिशें ही उसकी बर्बादी और तबाही का सबब बनती जा रही हैं।एक समय राजीव गाँधी ने गंगा की सफाई की योजना बड़े जोर-शोर से शुरू की थी। बीस हजार करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद गंगा और उसकी सहायक नदियों का प्रदूषण बढ़ता ही गया। मनमोहन सिंह के समय तक गंगा सफाई के नाम पर पैंतीस हजार करोड़ रुपए विभिन्न मदों में खर्च हुए ऐसा भी कई लोग बताते हैं। उन्होंने तो गंगा को राष्ट्रीय नदी ही घोषित कर दिया था। लेकिन कुछ हुआ नहीं।
राष्ट्रीय संवेदना का सवाल
Posted on 12 Mar, 2015 12:51 PMबिहार की इस विनाशकारी बाढ़ को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर जिस प्रकार की संवेदनहीनता दिख रही है वह अत
पानी को मत बेचिए
Posted on 05 Mar, 2015 02:45 PMरेलगाड़ी का आविष्कार इंग्लैंड में ज़रूर हुआ था, लेकिन भारत में रेलों का विस्तार होने के बाद उसी की कमाई से ब्रिटेन में रेलों का विकास और विस्तार हुआ। शुरू में अंग्रेज रेलगाड़ी से अपनी फौज़ और सैनिक साज-सामान ढ़ोते थे। बाद में रुई तथा अन्य प्रकार के कच्चे माल को बन्दरगाहों तक पहुँचाने तथा ब्रिटिश मिलों में बने सूती कपड़ों तथा अन्य प्रकार के पक्के माल को भा
जल, जीवन और गंगा
Posted on 02 Aug, 2014 10:38 PMभारत में नदियों की पूजा भले की जाती हो, पर उनकी स्वच्छता की चिन्ता नहीं किए जाने से आज देश के 60 हजार गांव प्यासे हैं, और यदि पानी मिलता है तो बीमारियों के साथ। अंधाधुंध विकास की चाहत में भूजल स्तर जिस रफ्तार से कम हो रहा है, उससे भविष्य में पानी के लिये युद्ध होने की आशंकाएं भी कम नहीं हैं। जरूरत है कि हम नदियों से छेड़छाड़ रोककर उनके प्राकृतिक बहाव को महत्त्व दें, नहीं तो हमारी सभ्यता कभी भी तबाह हो सकती है। पेश है भविष्य के संकटों को परखती रिपोर्ट।राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में गंगा की सफाई की योजना पर बड़े शोर-शराबे के साथ काम शुरू हुआ था। गंगा एक्शन प्लान बना। अब तक लगभग बीस हजार करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद गंगा का पानी जगह-जगह पर प्रदूषित और जहरीला बना हुआ है।केंद्र की नई सरकार ने गंगा नदी से जुड़ी समस्याओं पर काम करने का फैसला किया है। तीन-तीन मंत्रालय इस पर सक्रिय हुए हैं। एक बार पहले भी राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में गंगा की सफाई की योजना पर बड़े शोर-शराबे के साथ काम शुरू हुआ था। गंगा एक्शन प्लान बना। मनमोहन सिंह सरकार ने तो गंगा को राष्ट्रीय नदी ही घोषित कर दिया। मानो पहले यह राष्ट्रीय नदी नहीं रही हो। अब तक लगभग बीस हजार करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद गंगा का पानी जगह-जगह पर प्रदूषित और जहरीला बना हुआ है। गंगा का सवाल ऊपर से जितना आसान दिखता है, वैसा है नहीं। यह बहुत जटिल प्रश्न है। गहराई में विचार करने पर पता चलता है कि गंगा को निर्मल रखने के लिए देश की कृषि, उद्योग, शहरी विकास तथा पर्यावरण संबंधी नीतियों में मूलभूत परिवर्तन लाने की जरूरत पड़ेगी। यह बहुत आसान नहीं होगा।
जल, जंगल, जमीन को बचाने की जद्दोजहद
Posted on 06 Dec, 2012 04:30 PMएक तरफ जल, जंगल और जमीन का बड़े पैमाने पर दोहन जारी है तो दूसरी तरफ इन्हें बचाने का संघर्ष भी तेज हुआ है। देश भर में इस संदर्भ में जगह-जगह आंदोलन हुए और हो रहे हैं। जल, जंगल, जमीन को लेकर चल रहे इन आंदोलनों का एक जायजा।22 अप्रैल को बागमती की व्यथा-कथा : एक संवाद
Posted on 17 Apr, 2012 11:41 AMमित्रों,बिहार शोध संवाद के बैनर तले मुजफ्फरपुर स्थित बिहार विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में 22 अप्रैल को सुबह 10 बजे से संध्या 5 बजे तक 'बागमती की व्यथा-कथा : एक संवाद' कार्यक्रम आयोजित होगा। इस कार्यक्रम में बिहार के कई जिलों से एवं उत्तर प्रदेश व दिल्ली से कलाकार, पत्रकार, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता, किसान व बागमती क्षेत्र के लोग सैकड़ों की संख्या में शामिल हो रहे हैं। कार्यक्रम में बागमती पर चल रहरासायनिक खेती का विकल्प
Posted on 12 Oct, 2011 12:59 AMहरित क्रांति की देन रासायनिक खेती के दुष्परिणाम देश भर से सामने आने लगे हैं। बिहार भी इससे अछू