संगम से समृद्धि

प्रतिमत


नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी ने देश भर में तीस नदियों को नहरों के माध्यम से जोड़ने की योजना बनाई है जिनमें से छह बिहार के हिस्से हैं। इस योजना से बिहार को बाढ़ से राहत मिलेगी और किसानों को सिंचाई के लिए पानी भी मिलेगा। नदियां जुड़ेगीं तो बिहार जुड़ाएगा (तृप्त होगा)।

हर साल बाढ़ और सूखा। आपदाएं झेलना बिहार की नियति बन गई है। बाढ़ से निपटने के लिए योजनाएं बनती हैं। हर साल करोड़ों रुपए खर्च होते हैं लेकिन नतीजा वही; ‘ढाक के तीन पात’। कुछ नेताओं और अफसरों के लिए आपदाएं ही वरदान होती हैं। बाढ़ हो या सूखा। आम लोगों के लिए विपदाओं का पहाड़ लाने वाली प्राकृतिक आपदाएं हुक्मरानों की एक जमात के लिए अभिनंदनीय बनती रही हैं। आपदा राहत के नाम पर घोटाले दर घोटाले परंपरा के रूप में स्थापित हो चुके हैं। अब विश्व बैंक ने बाढ़ प्रबंधन में सहयोग की योजना को मंजूरी दे दी है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के भ्रष्टाचार विरोधी मुहीम से उम्मीदें जगी हैं। ऐसे में नदियों को जोड़ने की योजना भी खुशहाली का संदेश लेकर आई है। नीतीश का सपना है कि हर हिंदुस्तानी की थाली में कोई न कोई बिहारी व्यंजन जरूर हो। इसके लिए बिहार को दूसरी हरित क्रांति का अगुआ बनाने की कवायद चल रही है। इसके मद्देनजर नदियों को जोड़ने की महत्वाकांक्षी योजना से लोगों की उम्मीदें बंधी हैं।

नेशनल वाटर डेवलपमेंट एजेंसी ने देश भर में तीस नदियों को नहरों के माध्यम से जोड़ने की योजना बनाई है जिनमें से छह बिहार के हिस्से हैं। इस योजना के तहत नहरों के माध्यम से सरप्लस जल वाले बेसिन से पानी को उस बेसिन में भेजा जा सकेगा जहां जल स्तर कम है। इस योजना पर पांच लाख 60 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाने की योजना है। इस राशि में से 4 लाख 25 हजार करोड़ सिंचाई और जलापूर्ति पर लगेंगे जबकि एक लाख 35 हजार करोड़ रुपए बिजली उत्पादन के लिए हैं। गंडक-गंगा लिंक के प्रस्तावित संगम से बिहार में बाढ़ का प्रकोप घट सकता है। इस नदी जोड़ योजना के तहत नेपाल के बराहक्षेत्र में बहु-उद्देश्यीय बड़ा बांध बनाया जाना प्रस्तावित है। बांध में जल भंडारण की क्षमता 9370 मिलियन क्यूबिक मीटर होगी जिससे तीन हजार मेगावाट पनबिजली का उत्पादन किया जा सकेगा। बांध के अलावा कोसी नदी पर छतरा गांव के पास बैराज भी प्रस्तावित है जिससे कोसी-मिही लिंक नहर से पानी को मिही नदी में स्थानांतरित किया जा सकेगा। इससे बरसात में कोसी पर जल दबाव घटेगा। कोसी ही प्रलयंकारी बाढ़ का कारण बनती रही है। प्रोजेक्ट के तहत कोसी और सोन नदी पर दो और बांध बनाने का प्रस्ताव है। सोन पर झारखंड के गढ़वा के पास कदवां में बांध प्रस्तावित है।

बाढ़ से जलमग्न इलाकाः प्रायः हर वर्ष बिहार का बड़ा इलाका इन स्थितियों से जूझता हैबाढ़ से जलमग्न इलाकाः प्रायः हर वर्ष बिहार का बड़ा इलाका इन स्थितियों से जूझता हैजल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी कहते हैं कि नदियों को जोड़ने की योजना से बिहार को बाढ़ और सूखे से निजात पाने में मदद मिल सकती है। वैसे नदी लिंक योजना शुरू होने से पहले ही इस पर सवाल भी खड़े किए जा रहे हैं। मैग्सैसे पुरस्कार से सम्मानित और जल-पुरुष के रूप में विख्यात राजेंद्र सिंह को नदी जोड़ योजना का वर्तमान स्वरूप अच्छा नहीं लगता है। एक सेमिनार में शिरकत के लिए पटना आए राजेंद्र सिंह ने कहा कि वर्तमान में जो योजनाएं बनी हैं वे ठेकेदार केंद्रीत हैं। इन योजनाओं से बड़े पैमाने पर विस्थापन भी होगा। बिहार को अपनी अलग नदी नीति बनानी चाहिए। नदियों को जोड़ने की योजना में इसकी असल धारा को नजरअंदाज किया जा रहा है। बूढ़ी गंडक और गंगा को जोड़ने के लिए 60 किलोमीटर लंबा रास्ता चुना गया है जबकि इन नदियों को 7 किलोमीटर के रास्ते से भी जोड़ा जा सकता है। योजना की विस्तृत रिपोर्ट (डीपीआर) को ठेकेदार हित के बजाय समुदाय हित पर केंद्रित करना चाहिए। नदी जोड़ योजना के विकल्प पर उनका मानना है कि नदियों से समाज को जोड़ने का प्रयास जरूरी है। बिहार में जल संस्कृति विकसित करने की जरूरत है। यहां पर्याप्त भूजल भंडार है लेकिन उपयोग की विधि ठीक नहीं है। छोटी नदियों को जोड़कर बड़ा रिजर्वायर बनाया जा सकता है। जिससे सिंचाई समस्या का हल संभव है। नदी जोड़ योजना में सांस्कृतिक विविधता को अक्षुण्ण रखने का प्रयास होना भी जरूरी है। बिहार को लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण मंत्री चंद्रमोहन राय कहते हैं कि इस साल सूबे की जल नीति तैयार हो जाएगी। नीति में परंपरागत संसाधनों के संरक्षण पर जोर रहेगा।

बिहार सरकार और राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी द्वारा प्रस्तावित कोसी-घाघरा लिंक योजना में 428.76 किलोमीटर लंबी नहर बनाए जाने का प्रस्ताव है। यह नहर चतरा बैराज से शुरू होकर गौरा नदी में समाप्त होगी जो घाघरा की सहायक नदी है। यह लिंक योजना तिलजुगा, खनरो, बागमती और लालबकेया से होकर गुजरेगी। इस योजना में नेपाल की लालबकेया और बिहार की गंडक नदी भी जुड़ेगी। यह नहर भी कोसी का पानी घाघरा तक पहुंचाएगी। योजना से 10.58 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो सकेगी जिससे सूखे से निपटने के आसार बढ़े हैं । नेपाल में 1.74 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में सिंचाई सुविधा मुहैया कराने वाली इस लिंक योजना से उत्तर प्रदेश और बिहार के 8.17 और 0.67 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में फसलें लहलहाएंगी। घरेलू और औद्योगिक उपयोग के लिए भी पानी मिल सकेगा।

नेपाल के तराई इलाके में कोसी-मिही लिंक की लंबाई 112.55 किलोमीटर होगी। यह नदी जोड़ चतरा बैराज से शुरू होगा। कोसी का पानी मिही नदी में गिराया जा सकेगा। इस दौरान लिंक योजना तीन छोटी नदियों बकरा, रतुआ और कंकई से होकर भी गुजरेगी। इस लिंक नहर की रिसीविंग क्षमता 1407.80 क्यूबिक मीटर प्रति सेकेंड होगी जबकि निस्तारण क्षमता 97.6 क्यूमेक अनुमानित है। इस व्यवस्था से 4.74 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में सिंचाई हो सकेगी। नेपाल के 1.77 लाख हेक्टेयर को भी यह योजना सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराएगी। दोनों नदियों को जोड़ने वाली, नहर के किनारे वाले शहरों के घरेलू और औद्योगिक उपयोग के लिए भी पानी उपलब्ध हो सकेगा। प्रस्ताव के अनुसार यह लिंक योजना कोसी से मिही नदी में पानी पहुंचाएगी ताकि कोसी का जलस्तर जरूरत से अधिक नहीं बढ़े और इस डिस्चार्ज से जल की मात्रा बढ़ेगी।

नदियां जुड़ेगी तो बाढ़ और सूखे की जगह सिंचाई के लिए उपलब्ध होगा पर्याप्त जलनदियां जुड़ेगी तो बाढ़ और सूखे की जगह सिंचाई के लिए उपलब्ध होगा पर्याप्त जलसोन और गंगा के दक्षिणी भाग को जोड़ने वाली योजना में 339 किलोमीटर लंबी नहर बनाए जाने का प्रस्ताव है। नहर कदवां से शुरू होकर मोरहर, लीलाजन, धर्मजयी, सकरी और किउल नदियों से होते हुए बदुआ नदी तक जाएगा। सकरी नदी के संगम पर 3.5 मेगावाट और 1.5 मेगावाट के दो बिजली प्रोजेक्ट प्रस्तावित हैं। इससे पटना, नालंदा, गया, जहानाबाद, मुंगेर, भागलपुर, नवादा, जमुई, औरंगाबाद और पलामू के 3.7 लाख हेक्टेयर में सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो सकेगी। नदियों को जोड़ने की चौथी योजना चुनार-सोन बैराज लिंक कैनाल है जिसकी लंबाई 149.10 किलोमीटर होगी। उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर के पास चुनार से शुरू होकर यह नहर बिहार के रोहतास जिले में इंद्रपुरी के पास समाप्त होगी। इससे उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर, वाराणसी, गाजीपुर और बिहार के रोहतास, बक्सर और भोजपुर जिलों में 66793 हेक्टेयर भूमि के लिए सिंचाई व्यवस्था किए जाने का प्रस्ताव है। पांचवीं योजना के तहत ब्रह्मपुत्र-गंगा लिंक कैनाल की लंबाई 457 किलोमीटर लंबी होगी। इससे मानस, संकोश, तीस्ता नदियां भी जुड़ेंगी। इसके तहत भूटान में मानस और संकोश नदियों पर बांध और बैराज बनाए जाने की योजना है। इसमें सात निकास होंगे जिनमें से चार बिहार क्षेत्र में आते हैं। झरने की शक्ल में इस निकास से 718 मेगावाट बिजली बनाई जा सकेगी। बिहार को 393 मेगावाट बिजली प्रोजेक्ट का फायदा मिल सकता है। कुल 6.53 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो सकेगी जिसमें बिहार के 2.64 लाख हेक्टेयर भूभाग शामिल हैं।

गंडक-गंगा लिंक की महत्वाकांक्षी योजना में 639 किलोमीटर लंबी नहर के लिए नेपाल में बांध बनाए जाने का प्रस्ताव है। बिहार को इस योजना से सिंचाई सुविधा तो नहीं मिल सकेगी लेकिन गंडक का पानी स्थानांतरित होने से बाढ़ की समस्या से निजात मिल सकती है। गंडक में नेपाल द्वारा पानी छोड़े जाने से बिहार में बाढ़ की स्थिति भयावह होती रही है।

राज्य की नदियों को जोड़ने की योजनाओं को राज्य सरकार ने मंजूरी दे दी है। जल संसाधन विभाग ने संबंधित विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाना शुरू कर दिया है। इसके तहते बूढ़ी गंडक, गंडक, नोन और गंगा नदियों का जोड़ा जाना है जिससे सिंचाई की समस्या का समाधान होगा और बाढ़ का खतरा घटेगा। प्रदेश सरकार ने तेरहवें वित्त आयोग से इस महत्वाकांक्षी योजना में सहायता की मांग की है।

नदी की धारा से कटती गांव की भूमिनदी की धारा से कटती गांव की भूमिनदियों को जोड़ने की योजनाओं में से पांच योजनाएं बाढ़ शमन से संबंधित हैं। इनमें कोहरा-चंद्रावत लिंक (बूढ़ीगंडक-गंडक), बागती-बूढ़ी गंडक लिंक (बेलवाधार), बूढ़ी गंडक-नोन-बाया गंगा लिंक, कोसी-गंगा लिंक (बागमती-मुसराधार-कसरैया), कोसी-घघवारा-बागमती लिंक योजनाएं शामिल हैं। अन्य तीन योजनाओं में से दो योजनाओं कोसी-मिही लिंक, सकरी-नाटा लिंक का मुख्य उद्देश्य सिंचाई क्षमता में वृद्धि है। धनारजैय जलाशय-फुलवरिया जलाशय लिंक का मुख्य उद्देश्य ऊर्जा उत्पादन से जुड़ा है। इसका डीपीआर बनाया जा रहा है। अतिरिक्त सिंचाई क्षमता के सृजन के उद्देश्य से राज्य के अंदर की नदियों को जोड़ने की योजना के तहत तैयार की जा रही ‘सकरी नदी पर बकसौती बराज का निर्माण तथा नाटा नदी पर नाटा वीयर को नाटा बराज में रूपांतरित करते हुए नाटा नदी एवं सकरी नदी को लिंक करने की योजना’ का डीपीआर राज्य सरकार को प्राप्त हो चुका है। जिसमें लगभग 110 आहर-पईन को समेकित कर जल की उपलब्धता में वृद्धि करने का कार्यक्रम है। प्रस्ताव स्वीकृति के लिए केंद्रीय जल आयोग और केंद्र सरकार से स्वीकृति के लिए भेजा गया है। अन्य योजनाओं का डीपीआर के तैयार करने का कार्य राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण, वाल्मी तथा परामर्शी द्वारा किया जा रहा है। हालांकि राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण को केंद्र के जल संसाधन मंत्रालय द्वारा डीपीआर बनाने की अनुमति अब तक नहीं मिली है। बूढ़ी गंडक-नोन-बाया-गंगा लिंक का सर्वेक्षण कार्य प्रारंभ हो गया है। राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण के अधीक्षण अभियंता का कार्यालय वाल्मी परिसर में डीपीआर तैयार करने के कार्य में तीव्रता लाने के लिए खोला गया है।

राज्य सरकार ने सिंचाई के क्षेत्र में अब ध्यान केंद्रित किया है। छह साल पहले 2005-05 में सिंचाई के लिए 551 करोड़ 80 लाख रुपए का बजट प्रावधान किया था। अब इस साल यह बजट बढ़ाकर 2112 करोड़ 38 लाख रुपए किया गया है। बीते वित्तीय वर्ष में 31 मार्च, 2010 तक कुल सिंचाई क्षमता 53.53 हेक्टेयर के विरुद्ध 28.80 लाख हेक्टेयर में ही सिंचाई क्षमता सृजित की जा सकी। बाद में यह क्षमता भी घटकर 16.66 लाख हेक्टेयर ही रह गई। इसे फिर से स्थापित करना सरकार के लिए चुनौती है। इसके लिए राज्य सरकार ने सात सिंचाई परियोजनाएं शुरू की हैं। कोसी नहर प्रणाली पर 84 करोड़ 30 लाख, पूर्वी गंडक नहर प्रणाली पर 684 करोड़ 78 लाख, दारा नदी उदवह सिंचाई प्रणाली पर 37 करोड़ 70 लाख, ताराकोल जलाशय योजना पर 9.77 लाख, सोन नहर आधुनिकीकरण के अवशेष कार्यों पर 280 करोड़ पश्चिम नहर प्रणाली पर 130 करोड़ और नेपाल हितकारिणी योजना पर 171 करोड़ 84 लाख खर्च किए जा रहे हैं। इस योजना से सिंचाई समस्या के समाधान की आस जगी है।

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