आपको कैसा लगेगा, यदि कोई आपसे पूछे कि क्या आप गला तर करने के लिये समुद्र के ताजे पानी का एक गिलास लेंगे? ज़ाहिर है कि आप इसे मजाक समझेंगे, क्योंकि समुद्र का पानी पीने के लायक नहीं होता… लेकिन निकट भविष्य में यह सम्भव होने जा रहा है। न सिर्फ़ तकनीक और विज्ञान के जरिये इसे सुलभ और आसान बनाया जायेगा, बल्कि कुछ देशों में इस दिशा में काम हो चुका है जबकि कुछ देशों में प्रगति पर है।
समुद्र के पानी को खारेपन से मुक्त करने की प्रक्रिया को Desalination (डीसेलिनेशन) कहा जाता है, अर्थात नमक-लवण और खारेपन से मुक्त शुद्ध पानी। संयुक्त राज्य अमेरिका में पीने हेतु शुद्ध पानी की कमी नहीं है और यह आसानी से बहुत बड़ी मात्रा में उपलब्ध भी है, लेकिन देश के कुछ भागों में इसकी बेहद कमी है। यही हाल समूचे विश्व का है, जहाँ पर कहीं-कहीं तो प्रचुर मात्रा में शुद्ध जल है, जबकि कहीं-कहीं रेगिस्तान से भी बुरी हालत है। जैसे-जैसे विश्व की जनसंख्या बढ़ती जायेगी, कुछ देशों में पेयजल और शुद्धजल की कमी भी होती जायेगी। इसलिये कुछ देशों में समुद के खारे पानी को साफ़ करके उसे शुद्ध पेयजल में बदलने की प्रक्रिया शुरु की जा चुकी है।
समुद्र के पानी को 'डी-सेलिनेट' करने का सबसे प्रभावशाली तरीका है 'रिवर्स ओस्मोसिस (RO) तकनीक'। फ़िलहाल समुद्री पानी को खारेपन से मुक्त करने की तकनीक अपनाना बहुत महंगा है, अर्थात इसकी लागत 1000 डालर प्रति एकड़-फ़ुट आती है, जबकि साधारण तरीके से पानी के स्रोत से जल को शुद्ध बनाने की प्रक्रिया पर 200 डालर प्रति एकड़-फ़ुट का खर्च आता है। डी-सेलिनेशन की तकनीक धीरे-धीरे उन्नत हो रही है, विभिन्न देशों के वैज्ञानिक इसका समाधान ढूंढने और इसे कम लागत वाला बनाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं और कीमतें कम होने भी लगी हैं। अमेरिका के फ़्लोरिडा में टम्पा खाड़ी के पानी को शुद्ध बनाने में अभी 650 डालर प्रति एकड़-फ़ुट की लागत आ रही है, और जिस प्रकार शुद्ध पेयजल की माँग तथा डी-सेलिनेशन की तकनीक का विस्तार हो रहा है, जल्दी ही अमेरिका के कई हिस्सों और मध्य-पूर्व के खाड़ी देशों में यह एक आम बात हो जायेगी।
'खारे पानी' की परिभाषा क्या है? सामान्य परिभाषा के अनुसार ऐसा पानी जिसमें घुले हुए नमक की मात्रा अत्यधिक हो। पानी में नमक के घुले होने का मापदंड 'पार्ट्स पर मिलियन' (PPM) में नापा जाता है। यदि पानी में 10,000 ppm के बराबर नमक घुला हुआ है, इसका मतलब वह पानी 'खारा' पानी कहलाएगा, जो कि पीने योग्य नहीं है।
पानी के खारेपन हेतु कुछ मापदण्ड नीचे दिये गये हैं -
शुद्ध जल = 1000 ppm से कम घुला नमक
हल्का खारा पानी - 1000 से 3000 ppm घुला नमक
सामान्य से अधिक खारा पानी - 3000 से 10,000 ppm नमक घुला हुआ।
अत्यधिक खारा पानी - 10,000 से 35,000 ppm से तक नमक घुला हुआ।
(सामान्यतः समुद्र के पानी में लगभग 35,000 ppm नमक घुला होता है)।
(स्रोत - सलाइन वाटर रिसोर्सेज़ ऑफ़ नॉर्थ डकोटा, USGS, 1958)
दुनियाभर में शुद्ध जल की मांग -
विश्व के कई भागों में शुद्ध पानी के संसाधन और स्रोत कम होते जा रहे हैं, जबकि जनसंख्या के दबाव की वजह से इसकी मांग बहुत तेजी से बढ़ रही है। दुनिया के कई देशों में सूखे की वजह से स्थिति पहले ही गम्भीर है और इसके और भी भीषण होने की पूरी सम्भावना है। आने वाले समय में दुनिया की आर्थिक और राजनैतिक स्थिति को स्थिर रखने में 'पानी' एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा, ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार आज की स्थिति में पेट्रो-संसाधन करते हैं। दुनिया के कई सूखे इलाकों में पानी के स्रोत खत्म होते जायेंगे, नदियाँ, झील-तालाब आदि में पानी नहीं बचेगा। सिर्फ़ भूमिगत जल पर ही दुनिया के एक बड़े हिस्से को निर्भर रहना होगा, और वह भी खत्म तो होगा ही। साथ ही दुनिया में ऊर्जा के नये-नये स्रोतों और बढ़ती उन्नत तकनीक की वजह से यह सम्भव होगा कि खारे पानी के संयंत्रों यानी डी-सेलिनेशन प्लाण्ट को आपस में जोड़कर दुनिया के उस हिस्से को राहत पहुँचाई जा सके, जहाँ पानी एकदम समाप्त हो चुका हो।
प्रकृति द्वारा सूर्य की किरणों से प्राकृतिक रूप से समुद्र का डीसेलिनेशन किया जाता है और वही वापस बारिश के रूप में धरती पर वापस आता है। मानव द्वारा निर्मित डिस्टिलेशन (आसवन) प्रणाली भी एक तरह से इस प्राकृतिक प्रणाली की छोटी नकल ही है। हाल ही में दूरस्थ इलाकों में डीसेलिनेशन के लिये अक्षय (प्राकृतिक या सौर) ऊर्जा का उपयोग काफ़ी बढ़ा है क्योंकि इन द्वीपों और इलाकों में परम्परागत जीवाश्म ईंधन उपलब्ध नहीं होता, उसे प्राप्त करने में कठिनाई भी होती है, इस ईंधन की बचत भी करना होती है, वायु प्रदूषण भी कम रखना पड़ता है और बिजली की भी कमी रहती है।
डीसेलिनेशन कोई आधुनिक विज्ञान नहीं है -
डीसेलिनेशन (अ-लवणीकरण) अथवा डिस्टिलेशन (आसवन) की प्रक्रिया या तकनीक मानव के आदिकाल से ही चली आ रही है, और यह कम पानी वाले सूखे इलाकों में आज भी सबसे अधिक प्रसिद्ध है। प्राचीन काल में लोग समुद्र यात्रा के समय अपने जहाजों पर यही डिस्टिलेशन तकनीक अपनाकर समुद्री पानी को पीने लायक बनाते थे। यही तकनीक अपनाकर कई सूखे इलाकों में आज भी लोग पीने का पानी बनाते हैं। आसवन (डिस्टिलेशन) ही शायद पानी में शामिल प्रदूषण को कम करने का सबसे बेहतरीन उपाय है, क्योंकि वाष्पीकरण के दौरान पानी एकदम साफ़ हो जाता है। प्रकृति का हाईड्रोलॉजिकल चक्र भी इसी पर आधारित है। सूर्य की गरमी से झीलों, तालाबों और नहरों-नदियों का पानी वाष्पीकृत होकर ऊपरी वातावरण में ठण्डी हवा के सम्पर्क में आने से घनीभूत हो जाता है और बारिश के रूप में धरती पर शुद्ध जल बनकर वापस आ जाता है। इसी प्रक्रिया की नकल करके समुद्री पानी को विभिन्न तरीकों से गरम और ठण्डा करके शुद्ध पानी प्राप्त किया जाता है (देखें चित्र)।
डीसेलिनेशन बहुत महंगा है -
अमेरिका के केलिफ़ोर्निया प्रांत के सांता बारबरा और एवलॉन नामक क्षेत्रों ने सबसे पहले समुद्री पानी को डीसेलिनेशन करके शुद्ध पेयजल बनाने की तकनीक अपनाई। समुद्री पानी में नमक के स्तर को कम करने और खारे पानी को स्वच्छ बनाने में सबसे अधिक उपयोगी तकनीक है 'रिवर्स ओस्मोसिस' तकनीक, जबकि दूसरी तकनीक आसवन वाली है जिसमें पानी की वाष्प बनाकर उसे ठण्डा करने पर पानी प्राप्त होता है। 1998 में भी डीसेलिनेशन की लागत बहुत अधिक थी, जबकि 1992 में ही इस तकनीक को उपयोग करने पर 1000 से 2200 डालर प्रति एकड़-फ़ुट का खर्च आता था, जबकि सामान्य भूजल को साफ़ करके पीने योग्य बनाने का खर्च सिर्फ़ 200 डालर प्रति एकड़-फ़ुट है। लेकिन धीरे-धीरे डीसेलिनेशन की तकनीक आधुनिक होती जा रही है इसीलिये इसकी कीमत भी कम होती जा रही है। आज की तारीख में अमेरिका के फ़्लोरिडा में डीसेलिनेशन की लागत 650 डालर प्रति एकड़ फ़ुट हो गई है। जैसे-जैसे शुद्ध पेयजल की मांग के साथ-साथ तकनीक भी आधुनिक और समृद्ध होती जायेगी, हमें दुनिया के कई इलाकों जैसे कैलिफ़ोर्निया तथा मध्य-पूर्व खाड़ी देशों में अधिकाधिक डीसेलिनेशन प्लांट देखने को मिलेंगे।
डीसेलिनेशन सम्बन्धी कुछ तथ्य -
ऐसा अनुमान है कि विश्व की लगभग 30% सिंचित भूमि पर सेलिनिटी (लवणता) की समस्या अधिक है, और इसके उपचार और उपाय बेहद महंगे हैं।
सन् 2002 में पूरे विश्व में समुद्री पानी को साफ़ करने के लगभग 12500 डीसेलिनेशन प्लाण्ट लगे थे, जो सब मिलाकर लगभग 14 मिलियन मीट्रिक क्यूब प्रतिदिन पानी को साफ़ करके पीने योग्य बनाते हैं, और यह मात्रा पूरे विश्व के कुल जल उपयोग का सिर्फ़ एक प्रतिशत है।
डीसेलिनेटड (अ-लवणीकृत) पानी के सबसे अधिक उपयोगकर्ता सऊदी अरब, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, बहरीन आदि हैं जो कि डीसेलिनेटड पानी का लगभग 70% हिस्सा उपयोग कर लेते हैं। जबकि उत्तरी अफ़्रीका में (लीबिया और अल्जीरिया) यह खपत पूरे विश्व के उत्पादन की 6 प्रतिशत है।
औद्योगिक देशों में डीसेलिनेटेड पानी का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता देश अमेरिका है, जो कि इसकी कुल खपत का 6.5% हिस्सा उपयोग करता है, खासकर कैलिफ़ोर्निया और फ़्लोरिडा के इलाके के लिये।
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