सम्मिलित प्रयासों से ही संभव है गांव में पानी एवं स्वच्छता

मध्य प्रदेश में पेयजल, साफ-सफाई एवं व्यक्तिगत स्वच्छता की स्थिति बेहतर नहीं है इसीलिए कई तरह की बीमारियां पनप रही हैं। पेयजल की उपलब्धता के आंकड़ों के द्वारा 50 फीसदी से ज्यादा परिवारों को प्रतिदिन 40 लीटर पानी प्रति व्यक्ति नहीं मिल पाता है। प्रदेश के कई क्षेत्रों के भूजल में फ्लोराइड, नाइट्रेट, आयरन आदि की मात्रा मानक से बहुत ज्यादा है। पीने का पानी गंदा होने एवं स्वच्छता के अभाव के कारण बहुत सारे बच्चों का मानसिक एवं शारीरिक विकास नहीं हो पाता है। गांव में सुरक्षित पेयजल का अभाव भारत में इन दिनों एक बड़ी समस्या के रूप में सामने हैं। इसी से जुड़ी हुई जो समस्या गाँवों में कम पर शहरी झुग्गी बस्तियों में है, वह है - स्वच्छता का अभाव। शहरों में जहां इसकी ज़िम्मेदारी नगरीय निकायों को है, तो गाँवों में इसकी ज़िम्मेदारी ग्रामीण विकास विभाग को है। निःसंदेह पेयजल एवं स्वच्छता को लेकर जो योजनाएं बन रही है, उनकी ज़िम्मेदारी इन्हीं विभागों के पास है, पर क्या जिस अनुपात में धनराशि खर्च की जा रही है, उस अनुपात में परिणाम दिखाई पड़ रहा है? इसका जवाब सकारात्मक नहीं है। ऐसी स्थिति में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि फिर किया क्या जाए? जब हम मुद्दे को समग्रता से आकलन करते हैं, तो यह पाते हैं कि सुरक्षित पेयजल एवं स्वच्छता की ज़िम्मेदारी कई विभाग अलग-अलग अपने-अपने तरीके से निभा रहे हैं, पर उनमें समन्वय और सम्मिलित प्रयासों के अभाव के कारण सार्थक परिणाम नहीं निकल रहा है।

मध्य प्रदेश के संदर्भ में देखा जाए, तो यहां पेयजल, साफ-सफाई एवं व्यक्तिगत स्वच्छता की स्थिति बेहतर नहीं है और यही वजह है कि मध्य प्रदेश में यह कई बीमारियों के लिए कारण बन गया है। मध्य प्रदेश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या 37.43 फीसदी है, जिन्हें आजीविका, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, भोजन एवं पेयजल की अनुपलब्धता की समस्याओं से रोज़ाना जूझना पड़ता है। मध्य प्रदेश के जिलों में पेयजल की उपलब्धता के आंकड़ें को देखें, तो पता चलता है कि कई ऐसे जिले हैं, जहां के 50 फीसदी से ज्यादा परिवारों को 40 लीटर पानी प्रतिदिन प्रति व्यक्ति नहीं मिल पाता है। प्रदेश के कई क्षेत्रों के भूजल में फ्लोराइड, नाइट्रेट, आयरन आदि की मात्रा मानक से बहुत ही ज्यादा है, जो कई गंभीर बीमारियों के कारण बन जाते हैं। भारत की जनगणना 2011 के अनुसार प्रदेश के 86.42 फीसदी ग्रामीण आबादी खुले में शौच करती है एवं प्रदेश की कुल 69.99 फीसदी आबादी खुले में शौच करती है। इसमें भी अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के परिवारों की संख्या दूसरों की तुलना में बहुत ही ज्यादा है। पीने का पानी गंदा होने एवं स्वच्छता के अभाव के कारण बहुत सारे बच्चे का मानसिक एवं शारीरिक विकास नहीं हो पाता है। इसके कारण बच्चों को बार-बार डायरिया से जूझना पड़ता है एवं जिसकी वजह से वे कुपोषित एवं बीमार रहते हैं। जल जनित बीमारियों के कारण लाखों बच्चे अकाल मौत के शिकार हो जाते हैं।

.मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में बच्चों के बाल स्वच्छता अधिकारों के दावा के लिए स्वैच्छिक संस्था समर्थन द्वारा सेव द चिल्ड्रेन एवं वाटर एड के सहयोग से चलाए जा रहे कार्यक्रम की प्रबंधक सीमा जैन कहती हैं, ‘‘हमने इस क्षेत्र में संस्थागत उत्तरदायित्व, समुदाय का उत्तरदायित्व एवं बच्चों की अर्थपूर्ण सहभागिता को विकसित करने का कार्य किया है। इसमें विभिन्न विभागों - ग्रामीण विकास, पंचायत, महिला एवं बाल विकास, स्कूल, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, जल संसाधन विभाग आदि को गांव में समुदाय एवं स्वैच्छिक संस्था की सम्मिलित भागीदारी के साथ गांव में सुरक्षित पेयजल एवं स्वच्छता पर कार्य करने का प्रयास कर रहे हैं। इसके कुछ सार्थक परिणाम दिख रहे हैं, पर इस दिशा में गंभीरता के साथ कार्य करने की जरूरत है एवं साथ ही इस मुद्दे पर कार्यरत सभी संस्थाओं, संगठनों एवं व्यक्तियों के बीच नेटवर्क विकसित किया जाना चाहिए, तभी सार्थक परिणाम दिखाई पड़ेगा।’’

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