सिर्फ पानी नहीं है बुंदेलखंड के लोगों की समस्या

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युवा व्यापारी राजऋषि त्रिपाठी कहते हैं, ‘खजुराहों में हम भविष्य की ओर नहीं देखते हैं, अपने अतीत को देखते हैं’। इस प्रतिष्ठित शहर को हिंदू और जैन मंदिरों के घर के रूप में जाना जाता है। इस शहर को यूनेस्को ने अपनी विरासत स्थल की सूची में रखा है। मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र की खजुराहों लोकसभा सीट पर मतदाताओं की शिकायतें हैं। उन्होंने अपनी सबसे बड़ी समस्या पानी को बताया, लोगों का मानना है कि राजनीति माहौल की कमी के कारण यहां विकास की गति बहुत धीमी है।

राजऋषि त्रिपाठी कहते हैं, ‘इस जगह के लिए कोई मायने नहीं रखता कि कौन-सी पार्टी सत्ता में है। इस जगह पर पहले से बहुत कुछ नहीं बदला है।’ मध्य प्रदेश में आने वाले बुंदेलखंड में 4 लोकसभा सीटें हैं- खजुराहो, टीकमगढ़, दमोह और सागर। इनमें से सागर लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है। जिस पर छठे चरण में 12 मई को मतदान किया जाएगा। जबकि बाकी तीन खजुराहो, टीकमगढ़ और दमोह में पांचवें चरण में 6 मई को मतदान किया जाएगा। इन चारों लोकसभा क्षेत्रों के गांवों में मुख्य समस्याएं पानी की कमी, कमजोर मकान, टूटी-फूटी सड़कें, बदतर स्वास्थ्य व्यवस्था और शिक्षा के संसाधनों की कमी है। वहीं शहरी क्षेत्र में लोगों ने रोजगार की कमी, कस्बों से शहरों का खराब संपर्क की शिकायतें समस्याओं में सबसे उपर रहीं। इंडियन नेशन टस्ट फाॅर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज के संयोजक नारायण सिंह ब्याल कहते हैं, ‘खजुराहो शहर को एयरपोर्ट के लिए योग्य बनाया और इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाया। इसके बावजूद यहां कितनी फ्लाइट्स लैंड करती हैं, सप्ताह में केवल तीन। इससे आप समझ सकते हैं कि जब इस जगह की रीढ़ पर्यटन है, इसके बावजूद ये हाल है।

800 घरों के इस गांव में एक ही कुएं से पूरा गांव पानी भरता है। इस क्षेत्र के एकमात्र स्कूल में पानी मुश्किल से पहुंच पाता है। पानी की कमी की वजह से शिक्षकों को पानी नहीं मिल पाता है। गांव वालों का कहना है कि गर्मियों में स्कूल मुश्किल से काम करता है। सागर जिले में बिला बांध बनाने से पहले इन गांव वालों को वायदा किया गया था कि आप लोगों को पानी की कमी नहीं होगी। बिला बांध तो कबका बन गया कि लेकिन यहां के लोग पानी का इंतजार आज भी कर रहे हैं। 

खजुराहों में जो लोग पर्यटन और होटल से ही अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं। वे पर्यटक की कमी में आई गिरावट के लिए प्राइवेट एयरलाइंस को जिम्मेदार ठहराते हैं। जिन्होंने पर्यटकों को खजुराहो ग्रिड से दूर कर दिया। नारायण सिंह कहते हैं, ‘जब एयर इंडिया की जगह एयरलाइन को इस मार्ग पर उड़ान भरने की जिम्मेदारी दी गई तो उन्होंने अपनी उड़ान का मार्ग बदल दिया। जिससे इस शहर में आने की लागत बहुत ज्यादा आने लगी। नतीजा ये हुआ कि पर्यटकों ने इस जगह पर आना ही बंद कर दिया, खासकर विदेशी पर्यटकों ने। इसी वजह से अब सप्ताह में एक ही फ्लाइट उड़ान भरती है। टूरिस्ट गाइड फेडरेशन के वाइस प्रेसीडेंट राजेश कुमार तिवारी कहते हैं कि यहां हर साल 35 प्रतिशत पर्यटक कम होते जा रहे हैं। कुछ चाइनीज और कोरयिन पर्यटक आते हैं और वे भी ट्रेन से ही आना बेहतर समझते हैं। योगेन्द्र चन्देल जो व्यापारी हैं और राजनेता बनना चाहते हैं। वे कहते हैं, बुंदेलखंड के इलाके में स्वास्थ्य और शिक्षा की स्थिति बेहद खराब है। बुंदेलखंड के खजुराहो में कोई हाॅस्पिटल नहीं है। यहां कोई बीमार हो जाता है, एक्सीडेंट हो जाता है तो एक घंटे की ड्राइव करके छतरपुर जाना पड़ता है। छतरपुर में भी अगर डाॅक्टर मना कर देता है, तो फिर भोपाल जाते हैं। जहां पहुंचने में लगभग 8 घंटे लगते हैं, ऐसे में अधिकतर मामलों में मरीज रास्ते में दम तोड़ देता है।

विकास की कमी

केन्द्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। जो सामाजिक सुरक्षा और प्रत्यक्ष लांभ हंस्तातरण जैसी योजनाओं को शुरू करने का श्रेय लेती है। लेकिन खजुराहो, टीकमगढ़ और सागर के ग्रामीण इलाकों में विकास की कमी साफ दिखती है। इन इलाकों में पानी की समस्या बहुत खतरनाक है जो सरकार के किसी भी योजना के लिए बाधा का काम कर रही है। यहां के गांव वालों का आरोप है कि अधिकारी सरकार की प्रधानमंत्री आवास योजना सहित बाकी योजनाओं को देने के लिए रिश्वत मांगते हैं। ग्रामीण इलाकों में बीपीएल परिवारों को घर के निर्माण के लिए 1.50 लाख, मजदूरी के लिए 15 हजार और टाॅयलेट बनाने के लिए 12 हजार मिलते हैं। लेकिन गांव वालों ने बताया यहां किसी को मजदूरी नहीं मिलती। जब ग्राम प्रधान से इस बारे में पूछते हैं तो वे बताते हैं कि मजदूरी के लिए कोई पैसा नहीं। लेकिन तथ्य ये है कि हर परिवार को बाकी पैसा पाने के लिए 15-20 हजार रूपये का भुगतान करना पड़ता है। अपना नाम न बताते हुए चत्तरौली गांव का ग्रामीण बताता है कि ज्यादातर घर पूरे नहीं बन पाये हैं क्योंकि अभी तक पूरा पैसा नहीं दिया गया है।

गांव वालों ने अपने वो बीपीएल कार्ड दिखाए जो एक पखवाड़े पहले ही उन्हें दिए गये थे। इन काॅर्ड पर जारी करने का साल 2013 है और ये 5 साल के लिए मान्य हैं। जो अब किसी काम के नहीं हैं। एक ग्रामीण व्यक्ति ने बताया, ‘जब मैं इसक काॅर्ड को लेकर बैंक गया, तो उन्होंने मुझे मूर्ख बताया और जाने को कहा’। यहां के अधिकतर ग्रामीणों का कहना है कि जीरो खाते की पहुंच उन तक नहीं है जो सीधे नगद हंस्तांतरण के लिए खोले गये थे। कुछ गांव वालों को बाद में पता चला कि उनकी जानकारी के बिना ही उनके नाम से सहकारी बैंक में खाते खोल दिये गये थे, जहां वे जाते भी नहीं थे। जीरो बैलेंस खाते से पैसा इन तक भेजा जाता है। भाजपा के स्थानीय नेता गोपाल सिंह का दावा है कि उन्होंने 2017 में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री कार्यालय को लिखा था कि जिसके मनरेगा के तहत काम कर रहे मजदूरों के पैसे ई-वाॅलेट में जमा हुये न कि  उनके नियमित खाते वाले बैंक में। वो कहते हैं कि इसके लिए जांच भी चल रही थी लेकिन ये निश्चित नहीं है कि उस समस्या का हल हुआ या नहीं। उन्होंने कहा कि 5 हजार तक की नकदी तो नकद ही मिल जाने चाहिए क्योंकि गरीब मजदूर बैंक कम ही जाते हैं।

ग्रामीणों की शिकायत उज्जवला गैस कनेक्शन को लेकर भी है। गांव वालों का कहना है कि उनको उज्जवला योजना के तहत कोई रसोई गैस मुफ्त नहीं मिला है। सागर के बेलग्राम के लोग कहते हैं कि गैस को भराने का एक बार का चाॅर्ज  1200 रुपये लिया जाता है। जबकि हर जगह यह लागत 600-700 रुपये के बीच होती है। 800 घरों के इस गांव में एक ही कुएं से पूरा गांव पानी भरता है। इस क्षेत्र के एकमात्र स्कूल में पानी मुश्किल से पहुंच पाता है। पानी की कमी की वजह से शिक्षकों को पानी नहीं मिल पाता है। गांव वालों का कहना है कि गर्मियों में स्कूल मुश्किल से काम करता है। सागर जिले में बिला बांध बनाने से पहले इन गांव वालों को वायदा किया गया था कि आप लोगों को पानी की कमी नहीं होगी। बिला बांध तो कबका बन गया कि लेकिन यहां के लोग पानी का इंतजार आज भी कर रहे हैं। स्थानीय व्यापारी राम शंकर का कहना है कि बीजेपी नेता पाकिस्तान और बालाकोट के बारे में बात करते रहते हैं। नरेन्द्र मोदी अच्छा काम कर रहे हैं लेकिन हमें जरूरत हैं अच्छी सुविधाओं की। यहां पीने के लिए पानी नहीं हैं प्रधानमंत्री को उनको दूर करने के बारे में सोचना चाहिए।

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