सफाई व्यवस्था का सबसे अहम तत्व है सीवेज व्यवस्था। शिमला का वर्तमान सीवेज सिस्टम सन् 1880 में 16000 की आबादी के लिए बनाया गया था, जो कि आज लगभग ढाई लाख की आबादी का सीवेज ढो रहा है।
बर्फ की चादर से ढकी पहाड़ की चोटियां, धुंध में घिरी वादियां, कोहरे में छिपे देवदार के पेड़, बादलों में छिपकर झांकता सूरज, तकरीबन डेढ़ सौ साल पहले अंग्रेजों ने जब हिमालय का रुख किया होगा, तब शायद उन्हें यही सब शिमला खींच लाया होगा। अंग्रेजों द्वारा उस दौरान शिमला को तमाम सुख-सुविधाओं से लैस किया गया, ताकि गर्मियों में अंग्रेज यहां आकर प्राकृतिक नजारों का भरपूर लुत्फ़ उठा सकें। इसी दौरान शहर में कई भवनों का निर्माण किया गया, जो कि आज भी शिमला शहर को खास पहचान देते हैं। शिमला का कैनेडी हाउस, एडवांस स्टडी, गेयटी थियेटर, चर्च और टाउन हाल इत्यादि ऐतिहासिक इमारतें इसे अन्य शहरों से खास बनाती हैं। इन्हीं ऐतिहासिक इमारतों में से एक है शिमला का टाउन हाल जहां से नगर-निगम शिमला द्वारा शिमला शहर की सफाई व्यवस्था, पेयजल और बिजली व्यवस्था की सारी योजनाएं पिछले 131 वर्षों से बनती आ रही हैं। भारत की सबसे पुरानी म्युनिसिपेलिटी कार्पोरेशन में से एक, नगर-निगम शिमला की स्थापना सन् 1851 में हुई थी। सफाई व्यवस्था का सबसे अहम तत्व है
सीवेज व्यवस्था शिमला का वर्तमान सीवेज सिस्टम सन् 1880 में 16000 की आबादी के लिए बनाया गया था, जो कि आज लगभग ढाई लाख की आबादी का सीवेज ढो रहा है और जाहिर है कि 131 वर्ष पुराना और अपनी क्षमता से कई हजार गुना अधिक आबादी का सीवेज ढोना किसी भी सीवेज व्यवस्था के लिए नामुमकिन है और नतीजा हमारे सामने है, शिमला की चरमराई हुई सीवेज व्यवस्था। वर्तमान में शिमला में पांच सीवेज डिस्पोजल साइट्स हैं। लालपानी, कुसुम्पटी, नार्थ डिस्पोजल, स्नोडन और समरहिल में मौजूद इन सीवेज लाइन की कुल लंबाई 49, 564 मीटर है। यह सीवेज नेटवर्क सेंट्रल शिमला, ब्राक्हस्ट, खलीनी, नाभा इस्टेट, फागली, टूटीकंडी, चक्कर, बालूगंज, समरहिल, अनाडेल, कैथू और भराड़ी क्षेत्रों को कवर करता है। यह सीवेज 225 मिलीमीटर से 1000 मिलीमीटर डायामीटर की सीआई पाइप से ले जाया जाता है, जबकि कुछ अन्य क्षेत्रों को सीवर लाइन हाल ही में दी गई है। यह 150 मिलीमीटर डायामीटर की पाइप की लंबाई 694 मीटर और 100 मिलीमीटर डायामीटर की 4459 मीटर की लंबाई की सीवेज लाइन बिछाई गई है। वर्तमान में सभी सीवेज डिस्पोजेबल साइट पर सिवेज को कोई भी ट्रीटमेंट नहीं दिया जा रहा है, जो कि शिमला में प्रदूषण का मुख्य कारण बन रहा है। नतीजतन डिस्पोजल साइट और इसके डाउन स्ट्रीम में रहने वाले लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। कई जगहों पर सीवेज टैंक क्षतिग्रस्त हैं, जिसकी वजह से बदबू और गंदगी का वातावरण बना हुआ है।
बरसातों के दौरान तो स्थिति और भी भयावह हो जाती है, जब सीवेज का पानी पेयजल में मिल जाता है। इस दौरान शिमला के सभी अस्पतालों में पीलिया के मरीजों का हुजूम उमड़ पड़ता है, जो कि एक प्रदूषित जल-जनित रोग है। शहरीकरण के कारण म्युनिसिपेलिटी बाउंड्री के आसपास के क्षेत्र शिमला शहर में मिला दिए गए हैं। नगर-निगम शिमला छह वार्डों से बढ़कर 20 वार्डों का निगम बन चुका है, जिसके अधिकतर नई वार्डों में अभी तक भी अंडर-ग्राउंड सीवेज नेटवर्क की व्यवस्था नहीं दी गई है। वाइल्ड फ्लावर हाल, कुसुम्पटी, संजौली के कुछ क्षेत्र टुटू, जतोग, तारादेवी, शोघी और शिमला शहर की परिधि के साथ लगते अन्य क्षेत्र इस सुविधा से महरूम हैं। इसके अलावा शिमला शहर की भौगोलिक स्थिति के मद्देनजर पूरे शहर के सीवेज वेस्ट को एक जगह पर इकट्ठा करना संभव नहीं है। कार्पोरेशन के नए एरिया जैसे मशोबरा, कुफरी, जतोग और 14 अन्य डिस्पोजल साइट, सीवेज इंप्रूवमेंट स्कीम के तहत आईपीएच विभाग द्वारा बनाई जानी प्रस्तावित है। इससे पहले कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाए निगम को इनका हल ढूंढना होगा। योजनाएं कागजों पर तो बन रही हैं, उन्हें जल्द से जल्द लागू भी करना होगा। कमजोर वित्तीय स्थिति और मानव संसाधन की कमी शिमला नगर-निगम की सबसे बड़ी चुनौती है। शिमला की बढ़ती आबादी और पर्यटकों की बढ़ती तादात के मद्देनजर नगर निगम शिमला को सीवेज व्यवस्था को सुधारने और सुचारू बनाने के लिए शीघ्र-अतिशीघ्र कारगर कदम उठाने होंगे, ताकि लोग शिमला को इसकी खूबसूरती के लिए याद रखें न कि बदहाल सीवेज व्यवस्था के लिए।
(डा. देवकन्या ठाकुर, लेखिका, शिमला से स्वतंत्र लेखन करती हैं)
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