सद्यः स्नाता

पानी
छूता है उसे
उसकी त्वचा के उजास को
उसके अंगों की प्रभा को-

पानी
ढलकता है उसकी
उपत्यकाओं शिखरों में से-

पानी
उसे घेरता है
चूमता है

पानी सकुचाता है
लजाता गरमाता है
पानी बावरा हो जाता है

पानी के मन में
उसके तन के
अनेक संस्मरण हैं

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