सौर ऊर्जा की रोश्नी से नहाने वाला गाँव देखना हो, तो धरनई आएँ। यह बिहार का पहला सौर ऊर्जा गाँव है। इस गाँव के पास अपना पावर ग्रिड है। गाँव के हर रास्ते और गली में थोड़ी-थोड़ी दूर पर सोलर लाइट के खंभे हैं। उन पर दुधिया रोशनी देने वाले लाइट लगे हैं। अब इस गाँव में अंधेरे का नहीं, उजाले का डेरा है। इस गाँव में 100 किलोवाट पावर का उत्पादन सौर ऊर्जा से हो रहा है। 70 किलोवाट बिजली लोगों के घरेलू उपयोग के लिये और 30 किलोवाट सिंचाई के लिये तय है। इतने बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा के उत्पादन वाला यह पहला गाँव है। यह भारत का पहला गाँव है, जहाँ 24 घंटे सौर ऊर्जा से बिजली मिलती है। गाँव को चार कलस्टर विशुनपुर, धरनई, धरमती और डिटकोरिया में बाँट कर चार सोलर माइक्रो ग्रिड पावर स्टेशन लगाए गए हैं। पिछले दो माह से यहाँ बिजली का उत्पादन, वितरण और उपयोग हो रहा है। यह प्रयोग सफल है। जल्द ही इसे कलस्टर स्तर पर गठित ग्राम समितियों को सौंपने दिया जायेगा। अब भी इसकी देख-रेख का काम ग्राम समितियाँ ही कर रही हैं, लेकिन तकनीकी रूप से हस्तांतरण नहीं हुआ है। बिहार के लिये यह पायलट प्रोजेक्ट है। यह प्लांट पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली अन्तरराष्ट्रीय संस्था ग्रीनपीस ने तैयार किया है। इस पर करीब सवा दो करोड़ की लागत आयी है। अब इसे राज्य के दूसरे वैसे गाँवों में लगाने का राज्य सरकार को प्रस्ताव दिया जाना है, जहाँ अब तक बिजली नहीं पहुँची है या बिजली की आधारभूत संरचना किसी कारण से नष्ट हो चुकी है।
सौर ऊर्जा से 35 साल बाद मिली ग्रामीणों को रोशनी
धरनई जहानाबाद जिले के मखदुमपुर प्रखण्ड में पड़ता है। यह राष्ट्रीय राज मार्ग 83 पर पटना-गया मुख्य सड़क के ठीक बगल में बसा हुआ है। इसके दूसरी ओर बराबर रेलवे हॉल्ट है। बराबर की पहाड़िया दुनिया भर में मशहूर हैं। इसके बाद भी इस गाँव में 35 सालों से बिजली नहीं थी। चार दशक पहले यहाँ बिजली आयी थी, लेकिन कुछ ही सालों में उसकी पूरी संरचना नष्ट हो गयी। गाँव में बिजली के खंभे अब भी हैं, लेकिन न तो उनके सिरों से गुजरता तार है, न ट्रांसफॉर्मर। गाँव के बुजुर्ग उसे याद करते हैं। युवा पीढ़ी बिजली की बस कहानी सुनते रहे। यहाँ कई ऐसी औरतें और लड़कियाँ हैं, जिन्होंने बिजली से जलता बल्ब और घूमता पंखा नहीं देखा था। बिजली नहीं रहने के कारण ज्यादातर परिवार के लोग शहर में रह रहे हैं। बच्चों को बाहर भेज दिया गया है। गाँव में खेत-खिलहान है। घर-द्वार है। लिहाजा बड़े-बुजुर्ग यहाँ रह कर खेती-गृहस्थी की रखवाली करते हैं। कुछ संपन्न परिवार हैं, जिन्होंने वैकिल्पक ऊर्जा के लिये अपने घरों में सोलर प्लेट लगा रखा है, लेकिन ऐसे परिवारों की संख्या बहुत कम है। ज्यादातर परिवार अंधेरे में रात बिताते थे। शाम होते ही गाँवों में अंधेरा पसर जाता था।
अब रात हुई रोशन
सौर ऊर्जा की बदौलत अब यह गाँव रात भर जगमग रोशनी में नहा रहा है। गाँव चार टोलों में बंटा है। मुख्य सड़क से गाँव के अंतिम छोर तक हर टोले के हर गली-रास्ते में सोलर लाइट के 40 खंभों पर ट्यूब लाइट लगे हुए हैं। शाम होते ही गाँव दुधिया रोशनी से नहा उठता है। गाँव में 450 घर हैं। इन सभी घरों को बिजली देने का प्रस्ताव है। अभी 300 घरों को बिजली मिली है। लोग बल्ब जलाने के साथ-साथ बिजली के पंखे भी चला रहे और मोबाइल चार्ज कर रहे हैं। पहले मोबाइल चार्ज कराने उन्हें दूसरे गाँव या बाजार जाना होता था। जब भीषण गर्मी पड़ रही थी, तब इस गाँव के लोगों ने 24-24 घंटे बिजली के पंखे चलाये थे।
अनुसूचित जनजातियों के टोले में 75 घर हैं। वहाँ अब तक 44 घरों में कनेक्शन दिया गया है। गाँव में छोटे-बड़े दो सौ से अधिक किसान हैं, जो डीजल से खेती करते हैं। गाँव में थ्री-एचपी के दस सोलर पंप लगाने की योजना है। अब तक दो-तीन पंप लग चुके हैं, जिसका उपयोग गाँव के लोग सिंचाई और नहाने-धुलाने में कर रहे हैं।
धरनई प्रोजेक्ट की पाँच बड़ी खासियत
धरनई प्रोजेक्ट की पाँच बड़ी खासियत है। पहली खासियत यह कि इसमें जमीन का इस्तेमाल का नहीं किया गया है। सभी फोटो वोल्टैक (सोलर प्लेट) मकानों की छातों पर लगे गए हैं। इससे गाँव की जमीन बेकार नहीं हुई है। दूसरी कि यहाँ 100 किलोवाट क्षमता का प्लांट है। तीसरी कि इस प्रोजेक्ट के लिये कोई भवन नहीं बनाया गया है। किसान प्रशिक्षण भवन, सामुदायिक भवन और पैक्स भवन के एक-एक कमरे और उनकी छतों का ही इस्तेमाल हुआ है। चौथी कि इसमें समुदाय की भागीदारी अधिक है और अंतिम रूप से इसका संचालन गाँव के लोगों को ही समिति बना कर करना है। पाँचवीं खासियत कि पूरे प्रोजेक्ट का 30 प्रतिशत ऊर्जा खेती के लिये सुरक्षित किया गया है। इसके लिये अलग से ग्रिड स्टेशन की व्यवस्था है।
समुदाय आधारित प्रबंधन
पूरे प्रोजेक्ट का प्रबंधन समुदाय आधारित है। अभी प्रत्येक उपभोक्ता परिवार से पाँच-पाँच सौ रुपये सुरक्षित राशि लेकर कनेक्शन दिया गया है। जल्द ही सभी को मीटर दिया जायेगा और खपत के आधार पर प्रति यूनिट की दर से उनसे बिजली बिल वसूला जायेगा। यह काम कलस्टर स्तर पर गठित समितियाँ करेंगी। पूरे प्लांट की सुरक्षा, रख-रखाव, कर्मचारियों के वेतन भुगतान और बिजली चोरी को रोकने की जवाबदेही इस समिति की होगी। अभी समिति की हर माह बैठक होती है।
हरिजन टोले की बदली तसवीर
गाँव में 77 घर हरिजनों के हैं। इनमें से किसी भी घर में बिजली नहीं थी। जब गाँव में सौर ऊर्जा से बिजली के आने की बात हुई, तो टोले के लोग उत्साह से भर उठे। आज 44 लोगों ने बिजली का कनेक्शन लिया है। बाकी लोग भी यह लाभ लेने की तैयारी में हैं। टोले के युवक पप्पु मांझी बताते हैं : सोलर लाइट से अब हमारा गाँव रोशन है। बिजली के तार भी नंगे नहीं हैं।
सिंचाई सुविधा कुछ तो बढ़ेगी
अशोक कुमार गाँव के बड़े किसान हैं। उनका कहना है कि सौ घंटे डीजल पंप चलाते हैं, तो पूरे खेत की सिंचाई होती है। सोलर पंप से हम इतनी सिंचाई कर सकेंगे, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता, लेकिन कुछ तो मदद मिलेगी। जो छोटे किसान हैं, वे इसका ज्यादा लाभ ले सकेंगे।
बिटिया अब देर तक पढ़ती है
हरिजन टोले की वीणा कुमारी पाँचवीं कक्षा की छात्र है। गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ती है। वह कभी गाँव से बाहर नहीं निकली। उसने कभी बिजली से चलते बल्ब या बिजली से चलते पंखे को नहीं देखा। वह ढिबरी की रोशनी में पढ़ती थी। अब उसके घर में भी बिजली है। वह अब देर रात तक सोलर लाइट में पढ़ पा रही है।
गाँव को मिली पहचान
अखिलेश कुमार बेहद उत्साहित हैं। पूरी उम्र गाँव में बितायी। बिजली के बगैर जिंदगी चल रही थी। अब उसका गाँव रात में दूर से ही दिखायी देती है। जगमग गाँव को इस सिस्टम से नई पहचान मिली है। बकौल, अखिलेश गाँव की वैसी पीढ़ी, जिसकी उम्र 35 सालों तक की हैं, उसने बिजली के बल्ब की रोशनी को अब तक जाना ही नहीं था। गाँव के अंतिम छोर से गुजरने वाली पटना - गया रेल लाइन को दिखाते हुए वह कहते हैं, रात में जब कोई ट्रेन गुजरती थी, तब हम गाँव वाले उसके डिब्बे में जलते बल्बों को देख कर बातें करते थे कि रात में बल्ब का प्रकाश ऐसा होता है।
बदल रहा है गाँव
बिजली से जगमग हो रहे गाँव को लेकर ग्रामीण कहते हैं, अब तो हमारा गाँव रात में दूर से ही पहचान में आ जाता है। उनकी बातों से खुशी स्पष्ट झलकती है, वो कहते हैं, आस-पास के गाँवों में जब बिजली नहीं रहती है तब भी हमारा गाँव दूधिया रोशनी में नहाया रहता है।
कहते हैं संस्था के अधिकारी
हमारा जो मॉडल है उसे धरनई में शुरू करने का जो कारण था, ऐसे गाँव में ही सौर ऊर्जा का प्रदर्शन। संस्था के अधिकारी मनीष राम टी कहते हैं कि प्रोजेक्ट के लिये राज्य भर में करीब 20 गाँवों को देखा गया, अंत में धरनई का चुनाव हुआ। गाँव में बिजली नहीं थी, लेकिन यहाँ के लोग काफी जागृत थे। हमने इस बात का भी ख्याल रखा कि बिजली किसी दूर दराज के गाँव में नहीं बनाया जाए। एक ऐसे डेवलप गाँव को चुना जाए जो थोड़ा बहुत विकिसत होकर कैसे रेवेन्यू दे सकता है? जब हमने काम शुरू किया तब लोगों को यकीन नहीं हो रहा था कि गाँव में बिजली आयेगी। हमने सोचा अगर हम यहाँ काम करेंगे तो लोगों को काफी खुशी होगी। हमे उम्मीद यही थी कि हमारा कार्य सफल होगा और ऐसा हुआ भी।
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