शौचालय नहीं तो दुल्हन नहीं

ग्रामीण भारत में शौचालय महिला के अधिकार का मुद्दा बन गया है. कईं घरों में शौचालय की सुविधा नहीं है क्योंकि पुरुष विशेष रूप से शौचालय की आंतरिक व्यवस्था पर सवाल खडे करते हैं.

हालांकि हरियाणा में यह मनोवृति तेजी से बदल रही है. जहां सरकार धन मुहैया करवा रही है, गाँव की महिलाएं पुरुषों पर इस कार्यक्रम का लाभ उठाने का दबाव डाल रही है. उनका नारा है: ' शौचालय नहीं तो दुल्हन नहीं.' इस संयुक्त प्रयास की बदौलत गांव में शौचालय वाले घरों की संख्या बढ़कर 60 प्रतिशत हो गई है, जो 4 साल पहले तक सिर्फ 5 प्रतिशत थी. यह जानकारी सुलभ इंटरनेशनल हरियाणा के स्थानीय अध्यक्ष काशी नाथ झा ने दी है.

दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से एक घंटे की ड्राइव पर स्थित गांव लडरावण जो खेतिहरों और ईंट के भट्टे चलाने वालों का गांव है. एक स्थानीय ग्रामीण नेता अनिल कुमार छिकारा बताते हैं कि एक दुल्हन अपने पति से इस कारण तलाक ले चुकी है कि उसे शादी से पहले शौचालय के बारे में गलत जानकारी दी गई थी. एक अन्य युवती मोनिका ने अपने होने वाले पति से शौचालय बनवा लेने के लिए कहा है. मोनिका का कहना है कि अगर उसने बात न मानी तो वह उससे शादी नहीं करेगी.

छिकारा कहते हैं कि गांवों में आजकल युवतियों का महत्व बढ गया है क्योंकि कन्या भ्रूण हत्या के कारण विवाह योग्य पुरुषों की संख्या महिलाओं की तुलना में काफी अधिक हो गई है.

कमला देवी अपने नये घर के सामने बरामदे पर बैठती है, यह घर उन्होंने अपने बेटे और उसकी मंगेतर के लिए बनवाया है. इस घर का शौचालय सबसे पहले तैयार हुआ. अब तक, कमला देवी के घर में शौचालय नहीं था, दूसरों की तरह वह भी गोपनीयता के लिए रात तक इंतजार करती थीं. 'कई बार काफी शर्मनाक स्थिति पैदा हो जाती थी जब मैं बाहर जाती और देखती कि कार की रोशनी मुझ पर पड रही है.'
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