पृथ्वी की उत्पत्ति 3.5 खराब वर्ष पूर्व हुई थी। शुरुआती वातावरण आॅक्सीजनरहित था एवं वायुमंडल भी मौजूद नहीं था। अत: धरा लगातार पराबैंगनी विकिरण के संपर्क में थी। 2.2 खरब वर्ष पूर्व नील-हरित शैवालों का पदार्पण हुआ और उन्हीं के द्वारा सर्वप्रथम प्रकाशसंश्लेशण की शुरुआत हुई। पराबैंगनी विकिरण से बचाव हेतु एवं अपने उत्तरजीविता के लिये नील-हरित शैवालों ने अनेक प्रकार के बचाव पद्धतियों को विकसित किया। धीरे-धीरे वायुमंडल का निर्माण हुआ। प्रकृति के विभिन्न घटकों में एक सामंजस्य स्थापित हुआ, तत्पश्चात जीवन का संचार प्रारंभ हुआ एवं विभिन्न जीवों का प्रादुर्भाव हुआ।
फिर मनुष्य की उत्पत्ति हुई और समय के साथ प्रकृति द्वारा निर्मित मनुष्य ने प्रकृति को ही चुनौती देना शुरू कर दिया एवं मनमाने तरीके से पृथ्वी के संसाधनों का दोहन करना शुरू किया। परिणामस्वरूप, पर्यावरण के विभिन्न घटकों का आपस में जो सुनियोजित सामंजस्य था, वह बिगड़ता चला गया। विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों से वातावरण में बदलाव आते गए। मनुष्यों द्वारा उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैसें, उदाहरणत: क्लोरोफ्लोरोकार्बन, क्लोरोकार्बन तथा ऑर्गेनोब्रोमाइड आदि का स्तर तय मानक के ऊपर पहुँच गया, जिसके कारण धरती की सुरक्षा कवच ‘‘ओजोन परत’’ क्षरित हो रही है। ओजोन परत हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों को धरती पर आने से रोकती है। इसके क्षरण से पराबैंगनी विकिरण, विशेषत: पराबैंगनी-बी (280-315 नैनोमीटर) में वृद्धि दर्ज की गयी है।
बढ़ते प्रदूषण से अंटार्कटिक एवं आर्कटिक क्षेत्र में ओजोन छिद्र लगातार बढ़ रहा है जिसके कारण पराबैंगनी-बी किरणों की वृद्धि धरती पर 1.5-2.0 वाट प्रति वर्ग मीटर तक पहुँच गई है। पराबैंगनी-बी किरणों की उच्च ऊर्जा आसानी से प्रोटीन, डीएनए एवं अन्य जैविक प्रासंगिक अणुओं को नष्ट कर देती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, इन हानिकारक पराबैंगनी विकिरणों से प्रतिवर्ष लगभग 60,000 लोगों की मृत्यु होती है। उनमें से 48,000 लोग घातक मेलानोमा एवं 12,000 लोगों की अन्य प्रकार के त्वचा कैंसर से मृत्यु होती है।
परंतु कुछ ऐसे प्रकाशसंश्लेषक जीव, उदाहरणत: नील-हरित शैवाल, भी प्रकृति में मौजूद हैं जो इन घातक पराबैंगनी विकिरणों के कुप्रभाव से बचने के लिये प्रतिक्रिया तंत्र विकसित कर लेते हैं। उदाहरणत:, डीएनए की मरम्मत प्रक्रिया, पराबैंगनी परिहार व्यवहार एवं विकिरण अवशोषित करने वाले वर्णकों (उदाहरणत:, माइकोस्पोरिन एवं माइकोस्पोरिन सदृश अमाइनों एसिड तथा साइटोनेमीन जैसे यौगिक) का संश्लेषण। यह शोध-पत्र मुख्यत: पराबैंगनी विकिरण की विषाक्तता कम करने वाले प्राकृतिक रंगद्रव्य ‘‘साइटोनेमीन’’ तथा उसकी उपयोगिता पर केंद्रित है।
परिचय
साइटोनेमीन एक भूरे एवं पीले रंग का लिपिड में घुलनशील वर्णक है, जो सिर्फ कुछ गिने-चुने नील-हरित शैवालों के वाह्यकोशिकीय बहुशर्कराइड की परत में स्थित होता है (चित्र 1)। नील-हरित शैवालों के कुल कोशिकीय भार का 5 प्रतिशत हिस्सा साइटोनेमीन होता है। साइटोनेमीन आॅक्सीकृत (हरा) एवं अपचयित (लाल) रूपों में पाया जाता है जिन्हें हम क्रमश: फुसकोक्लोरिन एवं फुसकोरोडिन कहते हैं। इन दो रूपों का अस्तित्व निकासी की प्रक्रिया के दौरान रेडॉक्स एवं अम्ल तथा क्षार की स्थितियों पर निर्भर करता है।
संरचना
साइटोनेमीन एक डाईमर है, जो कि इंडोलिक एवं फिनोलिक सबयूनिटों से मिलकर बना है (चित्र 2)। इसका आणविक भार 544 डाल्टन है। ये दो सबयूनिट एक ओलिफीनिक कार्बन से जुड़े होते हैं, जो कि प्राकृतिक उत्पादों में अद्वितीय है। प्रकृति में पाई जाने वाली इस संरचना को ‘‘साइटोनेमैन स्कैलेटन’’ की संज्ञा दी गयी है। हाल ही में नील-हरित शैवाल साइटोनीमा के जैविक अर्क से ‘‘साइटोनेमैन स्कैलेटन’’ द्वारा ही संश्लेषित होने वाले तीन नए रंगद्रव्य पाए गए हैं। इनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं -
1. डाईमिथौक्सीसाइटोनेमीन
2. टेट्रामिथौक्सीसाइटोनेमीन
3. साइटोनिन
साइटोनेमीन की अन्य प्रमुख संरचनीय विशेषताएँ हैं :
- काईरल कार्बन की अनुपस्थिति
- अनेक विच्छेदन बिंद एवं फिनोलिक समूह, जो आसानी से संशोधित हो जाते हैं।
साइटोनेमीन की जीनोमिक संरचना एवं जैवसंश्लेषण
साइटोनेमीन जीन समूह में 18 ओपेन रीडिंग फ्रेम पाए गए हैं जिनमें 8 जीन ट्रिप्टोफान एवं टाईरोसीन अमाइनों अम्ल की संश्लेषण के अग्रदूत बनते हैं। साइटोनेमीन का संश्लेषण ऐरोमैटिक अमाइनो अम्ल, जैसे ट्रिप्टोफान एवं टाईरोसीन के मेटाबोलाइट्स द्वारा होता है। पराबैंगनी विकिरण-ए साइटोनेमीन के संश्लेषण के उत्प्रेरण में बहुत सहायक होती है।
प्रकाश संरक्षण में साइटोनेमीन
साइटोनेमीन पराबैंगनी विकिरण के सनस्क्रीन के रूप में कार्य करता है। इसका अधिकतम अवशोषण पराबैंगनी विकिरण-ए के वर्णक्रमीय सीमा में पाया जाता है। अत: इसे सनस्क्रीन के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। शुद्ध साइटोनेमीन का अधिकतम अवशोषण 386 नैनोमीटर पर होता है, लेकिन इसके अतिरिक्त यह 252, 278 और 300 नैनोमीटर पर भी अवशोषित होता है।
पर्यावरण तनाव से सुरक्षा में साइटोनेमीन
साइटोनेमीन अत्यधिक स्थायी होता है एवं बिना किसी चयापचय निवेश के अपनी सनस्क्रीन गतिविधि प्रदर्शित करता है। लंबे समय की कोशिकीय निष्क्रियता की स्थिति में, जब अन्य सुरक्षा तंत्र अप्रभावी होते हैं, ऐसी स्थिति में भी साइटोनेमीन कोशिकीय बचाव का कार्य करते हैं। यह शुष्कन, पोषण तत्व (उदाहरणत: लौह, मैग्नीशियम एवं नाईट्रोजन स्रोत) की कमी की स्थिति, तापयी तनाव एवं ऑक्सीकृत तनाव की स्थिति में संश्लेषित होते हैं एवं कोशिका की सुरक्षा में सहायक होते हैं।
पारिस्थितिक महत्त्व
नील-हरित शैवालों द्वारा पत्थरों एवं इमारतों पर निर्मित जैवझिल्ली, इन इमारतों एवं पत्थरों की जैविक अपक्षय का कारण होती हैं। इन इमारतों एवं पत्थरों पर साइटोनेमीन संश्लेषण करने वाले नील-हरित शैवाल मुख्य रूप से पाए जाते हैं। साइटोनेमीन, भू-वैज्ञानिक नमूनों में, सूक्ष्मजीवीय प्रसार पर पराबैंगनी विकिरण के प्रभाव के विषय में, एक मार्कर के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। जब शुष्कता बढ़ती है तो उन क्षेत्रों में भी मरुस्थल का विस्तार होने लगता है जहाँ पूर्व में सनस्पतियाँ होती थीं, ऐसी स्थिति में साइटोनेमीन का संश्लेषण बढ़ जाता है। इसका प्रयोग मरुस्थल के विस्तार के संकेत के रूप में भी किया जा सकता है। बायोम परिवर्तन का पता लगाना पैलिओक्लाईमैटोलॉजी विषय का महत्त्वपूर्ण कार्य है। साइटोनेमीन उत्पादन के संरक्षित रिकॉर्ड जलवायु पुनर्निमाण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है। साइटोनेमीन संश्लेषण करने वाले नील-हरित शैवालों को रेगिस्तानी इलाकों में असंघटित रेत मिट्टी में जैव संचार हेतु प्रयोग में लाया जा सकता है। साइटोनेमीन के दूसरे रूप, डाईमिथौक्सीसाइटोनेमीन एवं टेट्रामिथौक्सीसाइटोनेमीन और उनके लौह (III) कांप्लेक्स लौह बहुल क्षेत्रों में पाए गए हैं। इन काम्प्लेक्सों का प्रयोग अंतरिक्ष एवं अन्य ग्रहों, उदाहरणत: मंगल आदि ग्रहों पर जीवन की उपस्थिति को खोजने में प्रयोग किया जा सकता है।
साइटोनेमीन की संरचना नौसटोडाईओन-ए से मिलती है। अन्य एंटीप्रोलिफिरेटिव एवं एंटीइन्फ्लामेट्री यौगिकों से इसकी समानता, इसको एक महत्त्वपूर्ण औषधीय यौगिक बनाती है। साइटोनेमीन में प्राकृतिक सनस्क्रीन एवं अन्य चिकित्सकीय अवयवों की संभावित भूमिका की अपार संभावनाएं हैं। इसका प्रयोग पराबैंगनी विकिरण से सुरक्षा के अलावा एंटीइन्फ्लामेट्री एवं एंटीऑक्सीडेंट के रूप में सौंदर्य प्रसाधन तथा दवा उद्योगों में किये जाने की संभावना है। साइटोनेमीन को जस्ता, चांदी एवं लौह के साथ संयुग्मित करके नैनोंकण बनाये जा सकते हैं एवं इन नैनोंकणों की सनस्क्रीन क्षमता एवक औषधीय उपयोगों पर शोध किया जा सकता है।
साइटोनेमीन दोहरी काईनेस की निषेधात्मक गतिविधि दर्शाता है एवं इसका प्रयोग अत्यधिक सूजन और इसके प्रसार संबंधी विकार के उपचार में किया जा सकता है। मानव में टी-सेल ल्यूकेमिया की कोशिकाओं में प्रसार को साइटोनेमीन धीमा कर अपोप्टोसिस को प्रेरित करता है और यह कोशिका-चक्र को भी नियमित करने में सहायक है। अत: यह कर्क रोग को रोकने में सहायक हो सकता है।
साइटोनेमीन की डाईमेरिक संरचना को हाईपरइन्फ्लामेट्री विकारों के उपचार के लिये प्रयोग किया जाता है और यह अधिक शक्तिशाली एवं चुनिंदा काइनेस निरोधों के विकास के लिये एक मूल्यवान टेम्पलेट हो सकता है।
उपरोक्त सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि विभिन्न प्राकृतिक उत्पादों के बीच अद्वितीय, साइटोनेमीन एक बहुउद्देश्यीय यौगिक है। इस अनोखे रंगद्रव्य का विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में जैसे - प्रकाश संरक्षण, पर्यावरण तनाव से सुरक्षा, पारिस्थितिक विज्ञान, भूविज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, सौंदर्य प्रसाधन एवं औषधि उत्पादन आदि के क्षेत्रों में सफलता से हो सकता है (चित्र 3)। अत: साइटोनेमीन के उपयोग पर व्यापक शोध की आवश्यकता है।
Path Alias
/articles/saaitaonaemaina-bahauudadaesayaiya-vaahayakaosaikaiya-rangadaravaya
Post By: Hindi