ऋषि स्नान के लिए नर्मदा पहुँची 60 कि.मी. दूर

Narmada river
Narmada river

नर्मदा नदीहमारे यहाँ नदियों को लेकर कई तरह की किवदंतियाँ कही सुनी जाती है। इनमें कितनी सच्चाई है और कितनी कल्पना, यह तो कहा नहीं जा सकता पर ये कहानियाँ हजारों साल पहले के समाज में पानी की महत्ता को जरूर साबित करती है। शायद इसी के जरिये समाज को पानी के महत्व से आगाह किया गया हो। कुछ किवदंतियाँ तो बहुत ही रोचक है और अंचल के लोग इन्हें इतनी विश्वसनीयता के साथ बयान करते हैं कि हमारा तर्कशील मन भी इन्हें मानने को तैयार हो जाता है। ऐसी ही एक किवदंती है नर्मदा की सहायक नदी चन्द्रकेशर नदी के उद्गम से जुड़ी हुई।

मध्यप्रदेश के शहर इन्दौर से बैतूल राष्ट्रीय राजमार्ग पर करीब 65 कि.मी. दूर सागवान के घने पेड़ों से घिरा घाट सेक्शन पड़ता है। यह है विन्ध्याचल की पर्वत श्रृंखलाएँ। इसकी चढाई करने पर सड़क से ही एक छोटा सा द्वार नजर आता है। इससे करीब सवा कि.मी. की दूरी तय करने पर नजर आता है चन्द्रकेशर तीर्थ। पीछे के पहाड़ों से बहकर आता निर्मल पानी का कल–कल करता प्राकृतिक झरना सफर की थकान को दूर कर देता है। सूरज की धूप में चमकता साफ पानी का झरना तन–मन को जैसे एक नई ताजगी से भर देता है। बड़ी–बड़ी चट्टानों के बीच से बहता हुआ झरना जैसे उमंगित कर देता है मन को। यहाँ धूप में पानी काँच के टुकड़ों की तरह झिलमिलाता है। दोनों ओर छोटी–छोटी पहाड़ियाँ और उनके बीच से बहता झरना। आस-पास बड़े–बड़े पेड़ और झाड़ियाँ जैसे झरने में अपने प्रतिबिम्ब को देखने के लिए उतावले हुए जा रहे हों। यहाँ का परिवेश बहुत ही मनोहारी और चित्ताकर्षक है। यहाँ प्रकृति का वैभव देखते ही बनता है। सागवान के पेड़ों से घिरा, पानी के संगीत सुनाता और पक्षियों की उन्मुक्त चहचहाहट बरबस ही बाँध लेती है।

चन्द्रकेश्वर तीर्थपास के ही गाँव चापड़ा में रहने वाले नाथू सिंह सैन्धव बताते हैं कि सैकड़ों साल पहले यह जगह ऋषि च्यवन की तपस्यास्थली हुआ करती थी। तब यहाँ आस-पास घना जंगल हुआ करता था और जंगली जानवर घूमते रहते थे। विन्ध्याचल पहाड़ पर इसी जगह छोटी सी कुटिया बनाकर रहा करते थे च्यवन ऋषि। वे नियम के बहुत पाबन्द थे और हर दिन अलसुबह घोड़े से करीब 60 कि.मी. दूर नर्मदा नदी में स्नान करने जाते थे। लगातार ऐसा कई सालों तक चलता रहा इस पर एक दिन नर्मदा उनकी इस तपस्या से खुश होकर खुद यहीं आने का मन बनाया और इसी जगह गौमुख से प्रवाहित हो उठी। तब से अब तक यह लगातार प्रवाहित हो रही है। वे बताते हैं कि यही जगह चन्द्रकेशर नदी का उद्गम स्थान है। यहीं एक तरफ कुण्ड में गौमुख से पानी बहता है। अब तक यह पता नहीं चल सका है कि गौमुख में यहाँ इस पहाड़ी बियावान में पानी की यह धारा कहाँ से आती है। किसी को नहीं पता कि यहाँ कब से और कहाँ से यह पानी आ रहा है। पानी की यह धारा सतत बहती रहती है। जहाँ पानी की धारा गिरती है, वहीं बाद में एक शिवलिंग स्थापित की गई है जो हमेशा ही पानी में डूबी रहती है। कहते हैं इस तरह यहाँ इस शिवलिंग पर बारहों महीने जलाभिषेक होता रहता है। यही पानी आगे जाकर दो बड़े–बड़े कुण्डों में संग्रहित होता रहता है, लोग इन्हीं में स्नान करते हैं। हो सकता है किसी पहाड़ी सोते से ही यह जल रिसकर यहाँ आता हो पर अब तक की गई पड़ताल में ऐसा कुछ नहीं मिला है इसीलिए लोग अब भी इसे नर्मदा का ही पानी मानते हैं।

यह पानी इसी तरह बारहों महीने गौमुख से प्रवाहित होता रहता है। सवाल यह भी है कि यदि यह किसी पहाड़ी सोते से जुड़ा हुआ होता तो गर्मियों के मौसम में कैसे पानी आ सकता है। इलाके भर के जल स्रोत गर्मियों के दिनों में सूख जाते हैं। यहाँ तक कि इस पहाड़ के नीचे के गाँवों और खेतों के भी जल स्रोत सूख जाते हैं पर यह जल धारा चलती रहती है। यह भी हो सकता है कि नदी क्षेत्र से ही कोई सुरंगनुमा संरचना यहाँ तक पानी लाती हो, जो भी हो पर पानी आने का सिलसिला यहाँ कई सदियों से लगातार चला आ रहा है।

इसे ही चन्द्रकेश्वर तीर्थ के रूप में पहचाना जाता है। इस पर एक छोटा सा मन्दिर भी बना दिया गया है। इलाके के लोग बड़ी श्रद्धा और आस्था से यहाँ आते हैं और पूजा–अर्चना भी करते हैं। बताते हैं कि यहाँ वे मन्नत माँगते हैं और पूरी होने पर फिर यहाँ आते हैं। इलाके में इस जगह का बहुत महत्व है। बारहों महीने यहाँ पहुँचने वाले श्रद्धालुओं का कारवाँ चलता रहता है पर सावन के महीने में तो यहाँ खूब चहल–पहल होती है। दूर–दूर से लोग यहाँ आते हैं। शिवरात्री पर भी यहाँ बहुत भीड़ होती है। यहाँ सर्वपित्र अमावस्या पर हजारों लोग जुटते हैं। अब यहाँ श्रद्धालुओं के लिए धर्मशालाएँ भी बन गई है।

पानी की यही पतली सी धारा आगे चलकर चन्द्रकेशर नदी बनती है और करीब सौ कि.मी. से ज्यादा का रास्ता तय करते हुए नर्मदा में जा मिलती है। यहाँ से करीब 15 किमी दूर इसी नदी पर आगे चलकर चन्द्रकेशर बाँध भी बनाया गया है। यह काफी बड़ा बाँध है और कांटाफोड़ सहित आस-पास के कई गाँवों में फैली करीब दस हजार एकड़ खेतों की जमीन को सींचता है।

कमलापुर के श्याम चौधरी बताते हैं कि इस पानी का औषधीय महत्व भी है। यह पानी कई तरह के चर्म रोगों में भी फायदा करता है। इसी वजह से कई लोग यहाँ पहुँचते हैं और उन्हें इसका लाभ भी होता है। वे बताते हैं कि यह पानी कई मील दूर से बहकर यहाँ आ रहा है सम्भवतः इसीलिए इस पानी में कुछ औषधीय खनिज लवण या कुछ वनस्पतियाँ मिली हो सकती है तभी इसमें औषधीय प्रभाव पैदा हो जाता है। यह पानी वैसे भी बहुत मृदु और पीने में मीठा स्वाद देता है। इसके अलावा यहाँ स्थित अश्विनी कुण्ड में मानसिक और बाहरी बाधाओं से ग्रस्त रोगियों को स्नान करने पर लाभ मिलता है। कुछ सालों पहले यहाँ पानी को रोकने के लिए सिंचाई विभाग ने एक स्टॉप-डैम भी बनाया है।

इलाके के लोगों का मानना है कि इस जगह का अब तक शासकीय तौर पर समुचित विकास नहीं किया गया है। यदि पर्यटन के लिहाज से इस स्थान को विकसित किया जा सके तो यहाँ बड़ी तादाद में लोगों के आने का रास्ता साफ हो सकता है। यह पूरी जगह फिलहाल वन विभाग के अधीन है और दर्शनार्थियों के लिए इन्तजाम पास की करोंदिया पंचायत करती है।
 

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