रोचक है हमारा सौरमंडल


आकाश तथा खगोलीय पिंड आदि काल से मानव सभ्यता के लिये कौतूहल का विषय रहे हैं। पहले के जमाने में ऐसा विश्वास किया जाता था कि आसमान धरती का छत है। लोगों का यह भी यकीन था कि आकाश पहाड़ों पर टिका हुआ है। कई लोगों का यह भी मानना था कि आकाश में कोई छेद है।

जिससे स्वर्गलोक का प्रकाश नीचे आता है। लोगों की यह धारणा थी कि पृथ्वी चपटी है, तथा सूरज, चाँद और तारे इसके चारों ओर घूमते हैं। इस तरह के विचार तथा मत तकरीबन हर प्राचीन सभ्यता में मिलते हैं। लेकिन सोलहवीं सदी में पोलैंड के एक पादरी निकोलस कोपर्निकस ने इन विचारों का विरोध किया। उन्होंने बताया कि पृथ्वी और अन्य ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं सूर्य के इर्द- गिर्द परिक्रमा करने के साथ ही धरती अपनी धुरी पर भी घूमती है। चंद्रमा धरती का उपग्रह है जो इसके चारों ओर घूमता है। कोपर्निकस ने विचारों पर आधारित एक पुस्तक लिखी। बाद में महान खगोलविज्ञानी कार्ल ब्रूनो और गैलीलियों ने कोपर्निकस की कही हुई बातों को सही ठहराया।

.भारत के प्राचीन विद्वान आर्यभट ने पाँचवीं शताब्दी में ही यह बता दिया था कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। खगोलीय पिंडों के बारे में प्राचीन विद्वानों ने पता कर लिया था कि आकाश में सूरज, चाँद और सितारों के अलावा सौरमंडल के ग्रह भी हैं। उन्होंने सौरमंडल के पाँच प्रमुख ग्रहों- मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि की पहचान भी कर ली थी। सूर्य हमारे खगोलमंडल का मुख्य तारा है। इस समय सूर्य के 8 ग्रह हैं। पहलेग्रहों की कुल संख्या 9 थी। लेकिन कुछ वर्ष पहले अन्तरराष्ट्रीय खगोल संगठन ने प्लूटो का दर्जा घटाकर उसे सिर्फ छुद्र ग्रह का स्थान दिया। इससे ग्रहों की संख्या कम होकर 8 रह गई है। सूरज सहित 8 ग्रहों, छुद्र ग्रहों तथा उपग्रहों के समूचे परिवार को सौरमंडल या सौरपरिवार कहा जाता है। सूर्य आग के धधकते गोले की तरह है। यह गर्म गैसों से बना है।

सूरज में सबसे अधिक हाइड्रोजन गैस और पाँचवा हिस्सा हीलियम गैस है। इसकी सबसे बाहरी परत प्रकाश की परत है जो हमें चमकती हुई दिखाई देती है। इस परत का तापमान 6000 डिग्री सेल्सियस है। सूरज की तुलना एक विशाल परमाणु भट्टी से की जा सकती है। सूरज के अंदर का तापमान लगभग दस लाख डिग्री सेल्सियस होता है। इतने अधिक तापमान पर हाइड्रोजन के परमाणु परस्पर नाभिकीय संलयन से हीलियम में बदलने लगते हैं। इस क्रिया में बहुत अधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है। सूरज से उठने वाले चुंबकीय तूफानों का असर हमारी पृथ्वी पर पड़ता है। सूरज के केंद्र में तापमान डेढ़ करोड़ डिग्री सेल्सियस होता है तथा हर सेकेण्ड 42.5 लाख टन हाइड्रोजन हीलियम में बदल रही है। खगोल विज्ञानियों का मानना है कि हमारा सूरज करीब 5 अरब वर्षों से चमक रहा है और आगे भी लगभग 8-9 अरब वर्षों तक चमकता रहेगा।

.सूर्य के सबसे नजदीक का ग्रह है बुध। इसे सुबह-सुबह सूर्योदय के पहले पूरब दिशा में देखा जा सकता है। इसीलिये इसे अक्सर भोर का तारा भी कहा जाता है। शाम को सूर्यास्त के ठीक बाद पश्चिम के आकाश में भी बुध ग्रह को देखा जा सकता है। तब यह सांध्य तारा भी बन जाता है। वैसे बुध कोई तारा नहीं बल्कि एक ग्रह है। लेकिन चूँकि उसे भोर और संध्या काल में देखा जाता है इसलिये इंसान ने उसे तारा मान लिया है। वैसे आम आदमी के लिये तो बुध सुबह के आकाश में टिमटिमाने वाला भोर का तारा ही है। सूरज के सबसे नजदीक होने के कारण बुध का दिन का तापमान 470 डिग्री सेल्सियस तक हो जाता है। सूरज से बुध ग्रह की दूरी करीब 5 करोड़ 79 लाख किमी. है। बुध की सतह पर दूसरी ओर घना अंधेरा रहता है और बहुत ठंड पड़ती है। बुध के अंधेरे वाले भाग का तापमान शून्य से भी 170 डिग्री सेल्सियस नीचे तक चला जाता है।

.बुध ग्रह का व्यास 4878 किमी. है। बुध की धरती ठोस तथा बहुत रूखी-सूखी है। इसकी सतह पर काली चट्टानों की धूल और रेत बिखरी हुई है। उल्का पिंडों के टकराने के कारण मैदानी सतह पर बड़े-बड़े गड्ढे बन गए हैं। बुध एक छोटा ग्रह है इसलिये वह गैसों को अपने चारों ओर गुरुत्वाकर्षण से बाँधकर नहीं रख सका। इसलिये वहाँ वायुमंडल नहीं है जिसके कारण वहाँ किसी भी प्रकार का जीव नहीं है। वहाँ न हवा है और न पानी। बुध ग्रह 88 दिनों में सूरज का एक चक्कर लगाता है। यह अपनी धुरी पर बहुत धीरे-धीरे घूमता है।

.शुक्र ग्रह सूर्य का दूसरा नजदीकी ग्रह है। यह सूर्य से 10 करोड़ 82 लाख किमी. दूरी पर है। शुक्र ग्रह चमकदार होता है क्योंकि वह गैस के बादलों से घिरा है। ये बादल सूरज की ज्यादातर रोशनी वापस लौटा देते हैं। इसलिये वे चमकदार दिखाई देते हैं। शुक्र को प्राय: पृथ्वी का जुड़वाँ ग्रह भी कहते हैं क्योंकि यह आकार में करीब पृथ्वी के बराबर ही है। इसका व्यास 12,104 किमी. है जबकि हमारी पृथ्वी का व्यास 12,756 किमी. है। यह सूर्य की परिक्रमा 225 दिनों में पूरी करता है। शुक्र अपनीधुरी पर भी घूमा है। लेकिन यह अपनी धुरी पर उल्टी दिशा में घूमता है और 243 दिनों में एक चक्कर पूरा करता है। शुक्र ग्रह पर वायुमंडल भी है। लेकिन यहाँ के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस सबसे ज्यादा है। करीब 96 प्रतिशत तो कार्बन डाइऑक्साइड गैस ही है और 3.5 प्रतिशत नाइट्रोजन गैस है। वायुमंडल में ऑक्सीजन बहुत नाममात्र ही है। शुक्र ग्रह पर आज भी ज्वालामुखी धधक रहे हैं। वहाँ ऊँचे-ऊँचे पहाड़ मौजूद हैं। शुक्र ग्रह का पर्वत धरती के माउंट एवरेस्ट से भी ऊँचा है तथा उसकी ऊँचाई 9.5 किमी. है। शुक्र की धरती पर लंबी-चौड़ी दरारों का भी पता लगा है। शुक्र ग्रह पर परिस्थितियाँ जीवन के प्रतिकूल हैं अत: वहाँ किसी जीव के पाए जाने की संभावना नहीं है।

हमारा अपना ग्रह पृथ्वी है। यह सूरज से आगे बढ़ते हुए तीसरा ग्रह है। वैसे पृथ्वी भी गोल है लेकिन ध्रुवों पर थोड़ी चपटी है। सौरमंडल का यही एक मात्र ग्रह है जहाँ जीवन है। प्राणी, पेड़-पौधे, सूक्ष्मजीव, रंगबिरंगे फूल, हरे-भरे वन, चिड़िया, तितलियाँ, मछलियाँ और असंख्य प्रकार के जीवधारी हमारे इस ग्रह के निवासी हैं।

पृथ्वी और उसकी कक्षा में चन्द्रमापृथ्वी का एक उपग्रह भी है- चाँद। सूरज से पृथ्वी की दूरी 14 करोड़ 88 लाख किलोमीटर है। दूसरे ग्रहों की तरह यह भी सूरज के चारों ओर चक्कर लगाती है। सूर्य की एक परिक्रमा करने में पृथ्वी को 365 दिन, 5 घंटे 56 मिनट लगता है। पृथ्वी अपनी धुरी पर 23.5 अंश झुकी हुई है। अपनी धुरी पर यह करीब 24 घंटे में एक चक्कर लगाती है। पृथ्वी के अपनी धुरी पर घूमने के कारण दिन और रात होते हैं। पृथ्वी गोल है इसलिये इसके आधे हिस्से में ही सूर्य का प्रकाश पड़ता है। बाकी आधे हिस्से में अंधेरा रहता है। जिस भाग में सूर्य की रोशनी पड़ती है वहाँ पर दिन होता है और जिस भाग में नहीं पड़ती वहाँ रात होती है। चूँकि हमारी पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है, इसलिये यहाँ सूर्य पूरब में उगता तथा पश्चिम में अस्त होता दिखाई देता है। पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर घूमने के कारण धरती पर मौसम बदलते हैं।

पृथ्वी के धरातल का करीब दो-तिहाई हिस्सा पानी से ढ़का है। पृथ्वी पर हवा होने के कारण ही जीवन संभव हुआ है। हवा में करीब 78 प्रतिशत नाइट्रोजन और 21 प्रतिशत ऑक्सीजन गैस होती है। बाकी गैसें मिलाकर केवल 1 प्रतिशत होती हैं। पृथ्वी से ऊपर आकाश में धीरे-धीरे हवा कम होने लगती है और तापमान भी कम होने लगता है। हमारे ग्रह के जिन हिस्सों में जीवन के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ हैं, वह ‘जैवमंडल’ कहलाता है। धरती पर जल, थल तथा नभ, तीनों में जीवन संभव है इसीलिये ये सभी जैवमंडल हैं।

चंद्रमा हमारी पृथ्वी का एक प्राकृतिक उपग्रह है। यह पृथ्वी से 3 लाख 84 हजार किलोमीटर दूर है। चंद्रमा लगभग गेंद की तरह गोल है। उसके गोले का व्यास करीब 3,476 किलोमीटर है। इंसान 21 जुलाई 1969 को चाँद पर उतर चुका है। वहाँ की धरती पथरीली तथा सूखी है जिसमें गहरे खड्डे हैं। चंद्रमा जितने समय में पृथ्वी का एक चक्कर लगाता है करीब उतने ही समय में अपनी धुरी पर भी एक बार घूमता है। इस कारण हमें चंद्रमा का एक ही भाग दिखाई देता है। चन्द्रमा का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की तुलना में छह गुना कम है। इसलिये चंद्रमा का कोई वायुमंडल नहीं है। पृथ्वी पर ज्वार-भाटा का कारण चाँद और सूरज दोनों हैं। लेकिन चूँकि चाँद पृथ्वी के नजदीक है, इसलिये समुद्र पर चंद्रमा का खिंचाव अधिक होता है। जैसे पृथ्वी चाँद को अपनी ओर खींचती है वैसे ही चाँद भी पृथ्वी को अपनी ओर खींचता है। इस खिंचाव से समुद्र का पानी चाँद की ओर खिंच जाता है। तब `ज्वार' आता है। पृथ्वी के घूमने के कारण जब दूसरे हिस्से में सागर का पानी चाँद की ओर खिंचता है तो समुद्र में पानी के उतरने से ‘भाटा’ आता है।

.मंगल ग्रह लाल रंग का दिखायी देता है। प्राचीनकाल में रोम के निवासी इसे ‘युद्ध का देवता’ मानते थे। इसलिये उन्होंने इसका नाम ‘मार्स’ रख दिया। मंगल ग्रह आदिकाल से मानव के लिये कौतूहल का विषय रहा है। आज हम मंगल के बारे में काफी कुछ जान चुके हैं। वहाँ पर मानवनिर्मित यान उतर चुके हैं। वहाँ की धरती तथा वायुमंडल के बारे में हमें काफी जानकारी मिल चुकी है। मंगल की धरती लाल-गेरुये रंग की तथा रेतीली है। वहाँ की जमीन एकदम वीरान है जिसमें बड़े-बड़े गड्ढे तथा दरारें हैं। मंगल ग्रह के दो चाँद हैं- फोबोस और डेमोस। मंगल ग्रह पर ऋतुएँ भी होती हैं। वहाँ वसंत, ग्रीष्म, शरद और शीत ऋतुएँ होती हैं। यह हमारी पृथ्वी से छोटा है। इसके गोले का व्यास पृथ्वी से करीब आधा यानी करीब 6,800 किलोमीटर है। यहाँ का सबसे बड़ा ज्वालामुखी पर्वत ‘ओलिंपस मोंस’ 27 किलोमीटर ऊँचा है। यानी, एवरेस्ट पर्वत से तिगुना ऊँचा है ‘ओलिंपस मोंस’। मंगल ग्रह पर धूल भरी आंधियाँ चलती रहती हैं।

भारत ने भी मंगलयान नामक एक मिशन मंगल ग्रह पर भेजा है जो पिछले सौ दिन से मंगल की कक्षा में परिक्रमा कर रहा है। भारत दुनिया का चौथा तथा एशिया का पहला देश है जिसने मंगल पर कोई मिशन सफलतापूर्वक भेजा है। मंगलयान ने हमें वहाँ के धरातल तथा वायुमंडल के बारे में बेहद उपयोगी जानकारियाँ दी हैं। मंगल को लेकर वैज्ञानिक बहुत उत्साहित हैं। उनका मानना है कि आज से करीब 5-6 करोड़ वर्ष पहले मंगल के धरातल पर पानी था। लेकिन किन्हीं कारणों से बाद में वह जलराशि वहाँ से गायब हो गई। अब तक भेजे गये यानों से कुछ ऐसे संकेत मिले हैं जिससे लगता है कि मंगल पर कभी जीवन रहा होगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि मंगल ग्रह को इंसान के रहने लायक बनाया जा सकता है। लेकिन इस काम में कई वर्ष लगेंगे। वैज्ञानिक मंगल पर मानव बस्तियाँ बसाने की योजना पर काम कर रहे हैं।

.बृहस्पति सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। यह हमारी पृथ्वी से 64 करोड़ किलोमीटर दूर है। बृहस्पति इतना बड़ा है कि उसमें पृथ्वी के समान 1300 ग्रह समा सकते हैं। बृहस्पति ग्रह का व्यास 1 लाख 42 हजार किलोमीर है। यह सूर्य की एक परिक्रमा 11 वर्ष 9 माह में पूरा करता है। अपनी धुरी पर यह बहुत तेज घूमता है तथा 19 घंटे 55 मिनट में एक चक्कर लगा लेता है। यहाँ दिन-रात मिलाकर एक दिन का समय करीब 10 घंटे का होता है। बृहस्पति बाहर से तो ठंडा है पर भीतर से बहुत गर्म है। उसे सूरज से जितनी गर्मी मिलती है उससे अधिक गर्मी वह बाहर फेंकता है। इसका मतलब यह है कि बृहस्पति के भीतर ऊर्जा पैदा होती है। बृहस्पति के सतह का तापमान तो शून्य से 130 डिग्री नीचे रहता है लेकिन उसके केन्द्र का तापमान 30,000 डिग्री सेल्सियस तक माना गया है। बृहस्पति के भीतर भारी दबाव के कारण द्रव हाइड्रोजन ठोस रूप में बदल गई है। उसी के कारण गर्मी पैदा होती है। अब तक बृहस्पति के कुल 67 उपग्रहों का पता लग चुका हैं। सन 1610 में गैलीलियो ने अपनी दूरबीन से बृहस्पति के 4 उपग्रहों- आयो, यूरोपा, गनीमिडे और कैलिस्‍टो को देखा था।

शनि गर्हशनि हमारे सौरमंडल के ग्रहों में बृहस्पति के बाद सबसे चमकदार ग्रह है। यह हल्के पीले रंग का दिखाई देता है। बेबीलोन के लोगों ने इसे 6500 वर्ष पहले ही देख लिया था। रोम के निवासी इसे सैटर्न देवता मानते थे। इसी तरह हमारे देश में भी यह शनि देवता मान लिये गए। यह आँखों से दिखाई देने वाला सौरमंडल का सबसे दूरस्थ ग्रह है। यह पृथ्वी से करीब 1 अरब 19 करोड़ किलोमीटर दूर है। इसका व्यास 1 लाख 20 हजार किलोमीटर है। यह बहुत खूबसूरत ग्रह है। शनि के चारों ओर सुंदर वलय हैं। शनि करीब साढ़े 29 वर्षों में सूर्य की एक परिक्रमा पूरा करता है। लेकिन अपनी धुरी पर यह बड़ी ही तेजी से घूमता है तथा 10 घंटे 40 मिनट में एक चक्कर लगा लेता है।

अब तक शनि के 62 उपग्रहों का पता चला है। उसका सबसे बड़ा उपग्रह टाइटन है। वह बुध ग्रह से भी बड़ा है और मंगल ग्रह से बस थोड़ा ही छोटा है। शनि ग्रह से वह करीब 12 लाख किलोमीटर दूर है। टाइटन का व्यास 5,150 किलोमीटर है और वह लगभग 16 दिनों में शनि का एक चक्कर लगाता है। सौरमंडल का यह अकेला उपग्रह है जिस पर घना वायुमंडल है। इसके वायुमंडल में अधिकांश तो नाइट्रोजन है लेकिन कुछ मात्रा में मीथेन और साइनाइड भी हैं। टाइटन की सतह का तापमान शून्य से 200 डिग्री सेल्सियस कम है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यहाँ जीवन को जन्म देने वाले तत्व मौजूद हैं और इसलिये इस पर गहराई से अध्ययन करने की जरूरत है।

.यूरेनस हमारे सौरमंडल का सातवाँ ग्रह है। इसकी खोज विलियम हर्शल ने 1781 में की थी। यूरेनस सूर्य से करीब 2 अरब 87 करोड़ किलोमीटर दूर है। पहले-पहल जब हर्शेल ने इसे अपनी दूरबीन से देखा तो उन्हें लगा कि यह कोई तारा या फिर धूमकेतु है। लेकिन फिर बाद में यह पाया गया कि यह एक नया ग्रह है। यूरेनस नीले-हरे गोले की तरह दिखाई देता है। इसका व्यास 51,118 किलोमीटर है। यूरेनस हमारे सौरमंडल का तीसरा बड़ा ग्रह है। इसका द्रव्यमान पृथ्वी से 14.5 गुना ज्यादा है। यह 84 वर्षों में सूर्य का एक चक्कर लगा पाता है। अपनी धुरी पर यह करीब 17 घंटे में एक चक्कर लगाता है। यह अपनी धुरी पर इतना झुका हुआ है कि लेटा हुआ लगता है। सबसे खास बात यह है कि यह अन्य ग्रहों की तुलना में उल्टा घूमता है। यूरेनस मुख्यरूप से हाइड्रोजन और हीलियम गैसों से बना है। इसके वायुमंडल में मीथेन गैस का भी पता लगा है। वायुमंडल की गैसों का भीतर की ओर इतना दबाव है कि हाइड्रोजन वहाँ द्रव रूप में मौजूद है। भारी दबाव के कारण बृहस्पति और शनि की तरह यूरेनस के भीतर भी ऊर्जा बनती है। यूरेनस का तापमान शून्य से 215 से 220 अंश तक नीचे होता है इसलिये यहाँ बहुत ठंड पड़ती है। अब तक यूरेनस के 27 उपग्रहों का भी पता लगा है।

.नेप्च्यून सूर्य का आठवाँ ग्रह है जो सबसे दूर है। यह सूर्य से करीब साढ़े चार अरब किलोमीटर दूर है। इसलिये यह ग्रह भी बहुत ठंडा है। इसके सतह का तापमान शून्य से 220 डिग्री कम होता है। सूर्य का एक चक्कर लगाने में इसे 165 वर्ष लग जाते हैं। इसके गोले का व्यास वायुमंडल सहित करीब 49,500 किलोमीटर है। हमारी पृथ्वी की तरह यहाँ भी चुंबकीय क्षेत्र होता है। इसके वायुमंडल की परत करीब 3000 किलोमीटर मोटी है। उसमें मीथेन गैस काफी मात्रा में है। इसके 14 उपग्रह भी हैं जिनमें मुख्य है ‘ट्राइटन’। यह मीथेन की बर्फ से पूरी तरह ढका हुआ है। उस पर नाइट्रोजन की विशाल झीलें और सागर हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ट्राइटन का भीतरी हिस्सा चट्टानों का बना है।

.प्लूटो हमारे सौरमंडल का छुद्र ग्रह है। इसकी खोज 1930 में हुई थी। रोमन पौराणिक कथा के अनुसार मृत्यु के देवता को प्लूटो कहा जाता है। इसलिये इसका नाम प्लूटो रख दिया गया। यह हमारे चाँद से भी छोटा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है। कि प्लूटो के गोले का व्यास करीब 2200 किलोमीटर है। प्लूटो सूर्य की एक परिक्रमा 248 वर्षों में कर पाता है। प्लूटो के अब तक 5 चंद्रमाओं का पता लगा है। इसके एक उपग्रह का नाम शेरॉन है। शेरॉन का व्यास 1,172 किलोमीटर है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि शेरॉन शायद पानी की बर्फ से ढका हुआ है। नासा द्वारा भेजे गये यान ‘‘न्यू होराइजन’’ ने जुलाई 2015 में प्लूटो के करीब से लिये गए चित्र भेजे हैं जिनसे उसके बारे में जानकारी मिली है।

इन सभी ग्रहों और उपग्रहों के अलावा सौरमंडल में क्षुद्र ग्रह और धूमकेतु भी होते हैं। क्षुद्र ग्रह सूरज की बौनी संताने हैं। विशाल ग्रहों की तुलना में ये चट्टानों और धातुओं से बने होते हैं। इनका आकार कुछ मीटर से लेकर कई किलोमीटर तक हो सकता है। मंगल और बृहस्पति के बीच हजारों क्षुद्र ग्रहों की एक विशाल पट्टी है। उसीमें ये सूरज के चारों ओर घूम रहे हैं। अब तक ऐसे कई हजार क्षुद्र ग्रहों का पता लग चुका है।

अंतरिक्ष में अनेक धूमकेतु भी होते हैं। इन्हें ‘पुच्छलतारा’ भी कहते हैं। ये सौरमंडल में प्रवेश करते हैं और सूरज का चक्कर लगाकर वापस लौट जाते हैं। सच पूछा जाए तो धूमकेतु अंतरिक्ष के यात्री हैं। लेकिन सौरमंडल की सैर करते-करते उनकी पूँछ बन जाती है। ये आकाश में विचरण करने वाली धूल तथा गैसों की बर्फीली गेंदे हैं। असल में धूमकेतु का पहले केवल सिर होता है जो बर्फ की गेंद के रूप में सौरमंडल में प्रवेश करता है। फिर सूर्य की गर्मी से जमी हुई गैसें और बर्फ पिघलती है जिससे पूँछ बन जाती है जिनकी लम्बाई कुछ किलोमीटर से लेकर लाखों किलोमीटर तक हो सकती है। हैली धूमकेतु हर 76 वर्ष बाद लौटकर सौरमंडल में आता है तथा पृथ्वी से दिखायी देता है। सन 1986 में इसे आखिरी बार देखा गया था। ऐसे कई धूमकेतु अंतरिक्ष में सैर कर रहे हैं। इस तरह हम देखते हैं कि हमारा सौरमंडल बेहद खूबसूरत तथा रोचक है जिसमें अनेक तरह के खगोलीय पिंड हैं।

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