राजस्थान में जल संसाधन संरक्षण एवं विकास

राजस्थान में जल संसाधन संरक्षण एवं विकास
राजस्थान में जल संसाधन संरक्षण एवं विकास

सारांश

राजस्थान राज्य एशिया महाद्वीप के दक्षिण में स्थित भारत देश के उत्तर-पश्चिम में स्थित है जो क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा राज्य माना जाता है। राजस्थान का अंक्षाशीय विस्तार 23°30" उत्तरी अंक्षाश से 30°12" उत्तरी अक्षाश एवं देशान्तरी विस्तार 69°30" पूर्वी देशान्तर से 78°17" पूर्वी देशान्तर के मध्य है। राज्य की दक्षिणतम सीमा बोरकुण्ड (बाँसवाडा) से प्रारम्भ होकर उत्तर में कोणा गाँव (श्रीगंगानगर) एवं पूर्व में सिलाना (धौलपुर) से प्रारम्भ होकर पश्चिम में कटरा गाँव (जैसलमेर) तक विस्ताररित है। राज्य के पश्चिम में अन्तराष्ट्रीय सीमा रेडक्लिफ रेखा जो पाकिस्तान से लगती है। इस सीमा की राज्य में कुल लम्बाई 1070 कि.मी. है। राज्य के बीचों-बीच दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर अरावली पर्वतमाला विद्यमान है जो विश्व की प्राचीनतम पर्वतमाला है इस पर्वतमाला के पश्चिम में भारत का सबसे बड़ा उष्ण थार मरुस्थल पाया जाता है जो राज्य के 61: भू-भाग पर पाया जाता है जहाँ ग्रीष्म ऋतु का अधिकतम तापमान कई बार 50° सेल्सियस को भी पार कर जाता है इसी कारण यहाँ ग्रीष्म ऋतु में जीवन लीला समाप्त कर देने वाली पवन लू चलती हैं। मरूस्थल की विकट समस्या का एक मात्र समाधान जल की उपलब्धता है जो केवल और केवल जल संसाधन से ही सुलभ हो सकती है।

मुख्य शब्द: भौतिक प्रदेश, जल-संसाधन राजस्थान, अल-नीनो, जलसंरक्षण, भौमज

प्रस्तावना

दोहा रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून । पानी गए उबरे, मोती, मानुष, चुन।।

राजस्थान का कुल क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग किलोमीटर है जहाँ वर्ष भर प्रवाहित होने वाली नदियों प्रायः कम मिलती है। इसका प्रमुख कारण पश्चिमी भाग में देश का सबसे बड़ा थार मरूस्थल का पाया जाना माना जाता है। मरूस्थल प्रदेश में अन्त प्रवाह की नदियाँ पाई जाती है। भौगोलिक दृष्टि से राज्य को चार भौतिक प्रदेशो में बांटा जाता है।

राजस्थान का भौगोलिक स्वरुप 

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स्त्रोत: राजस्थान का यूर्गोल पेज संख्या -BR Bhalia

राजस्थान के भौतिक प्रदेश 

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स्त्रोत:  राजस्थान का भूगोल
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स्त्रोत: राजस्थान का यूर्गोल पेज संख्या -BR Bhalia

चूंकि राज्य में औसत वार्षिक वर्षा 58 से. मी. पाई जाती है जो कि देश की औसत वार्षिक वर्षा से बहुत कम है। इसी के विपरित थार के मरूस्थल में औसत वार्षिक वर्षा 25 से.मी. से भी कम पाई जाती है जो जल के अभाव एवं जल की अनउपलब्धता तथा भौम जल स्तर का नीचे पाया जाना प्रमुख कारक माने जाते है इसीलिए इस प्रदेश में जल को बहुमुल्य माना जाता रहा है।

अध्ययन क्षेत्र

राजस्थान में जल-संसाधनों का संरक्षण

यह तथ्य सर्व विदित है कि पृथ्वी के 71:  भू-भाग पर जल हैं एवं 29 : भू-भाग धरातयिल हैं जिसमे पर्वत, पठार, मैदान एवं मरुस्थल है किन्तु इस 71 सम्पूर्ण जलिय भाग का लगभग 02: जल ही पीने योग्य स्वच्छ जल है। राजस्थान राज्य की विकट परिस्थितियाँ जल के महत्व को और भी अधिक बढ़ा देती है। इसी के साथ राज्य में मानसून की परिस्थितियों भी विकट पाई जाती है। इसी के अन्तर्गत राज्य में तीन से चार वर्षों में अल-नीनो का प्रभाव भी पाया जाता हैं जो राज्य में अकाल का पर्याप्य माना जाता है।

कहावत :- तीजो तिरयों चौथो अकाल

राज्य की इन विकट जलवायवीय एवं भौतिक परिस्थितियों के कारण ही प्राचीन काल से ही जल के महत्व को समझकर इस के संरक्षण हेतु कई प्रकार के उपाय किए गए  जिनके परिणामतः ही थार का मरूस्थल आज सम्पूर्ण विश्व में घना मानव आबाद मरूस्थल माना जाता है।

जल संसावधन जल ही जीवन है।

जल सम्पूर्ण जैवजगत का आधार है मानव जीवन को जल प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों ही रूप से प्रभावित करता है। मानव जीवन में जल पेयजल एवं कृषि के रूप में प्रयुक्त होता है। जल विद्युत कारखानों आदि कार्यों में प्रयुक्त होता है जल भौतिक रूप से मृदा अपरदन निक्षारण तथा जलयोजन किया में भी प्रयुक्त होता है।  

जल सरंक्षण:

प्राचीन काल से ही जल के महत्व को वेदो-पुराणों में उल्लेखित किया गया है जिसके परिणाम स्वरूप ही थार का मरूस्थल विश्व में सर्वाधिक जनसंख्या वाला मरूस्थल माना जाता है। थार के मरुस्थल में जलसंरक्षण की प्राचीनतम तकनीक पाई जाती है जो निम्न है।

टाँका:

 मकान की छत के वर्षा जल को पाइप द्वारा धरातल पर बने टैंक में एकत्रित करना ही थार के मरूस्थल में टाँका कहलाती है।

खड़िनः

राज्य में थार के मरूस्थल विशेषता बाड़मेर में वर्षा के मीठे जल का प्राकृतिक स्त्रोत जो निम्न भूमि में विकासित होता है खडीन कहलाता है यह तिथि बाड़मेर में पालीवाल ब्राह्मणों द्वारा जल सरंक्षण हेतु कृषि एवं पेयजल के लिए अपनाई गई उचित तकनीक है।

झीले एवं तालाबः 

राजस्थान में प्राकृतिक एवं मानव निर्मित झीले ही इसे विश्व के अन्य मरूस्थलों से अलग जन आबाद मरूस्थल बचाती है राज्य में नक्की झील, पुष्कर झील, कोलायत झील आदि प्राकृतिक झीले तथा मानव निर्मित झीलों में राजसमंद झील (ठेबर झील) पिछोला झील, राजसमंद झील आनासागर झील, फॉयसागर झील, आदि झीले सिंचाई एवं पेयजल हेतु विकासित की गई है। राजस्थान में तालाबों द्वारा 0.6: सिंचाई की जाती है।

कुए / नलकूपः

राजस्थान में कुए / नलकूप द्वारा सर्वाधिक सिचाई जयपुर जिले में की जाती है। दूसरे स्थान पर अलवर जिला आता है जैसलमेर का चांदना नलकूप पुरे राज्य में प्रसिद्ध है। राज्य में 86: सिंचाई कुए / नलकूप द्वारा की जाती है।

एनीकट / जोहड 

कृषि क्षेत्रों में मुख्यतः सिंचाई की सुविधा हेतु राज्य में एनीकट एवं शेखावाटी में जोहड़ का निर्माण किया जाता है जो राज्य में सिंचाई के प्रमुख साधन है।

नहरे 

थार के मरूस्थल में खुशहाली प्रदान करने वाली गंगनहर एवं इंदिरा गाँधी नहर प्रणाली विकासित अवस्था में है। नहर प्रणाली से राजस्थान में 33: सिंचाई की जाती है। इसके अतिरिक्त राज्य में यमुना नहर, नर्मदा नहर, चम्बल की बॉई नहर सिंचाई की दृष्टि से प्रमुख है।

अन्य 

राज्य में कुल सिंचाई के 0.3 : भाग पर नदियों, नालों, टाँका, खड़िन, जोहड़ एनीकेटो, नहरों आदि साधनों द्वारा भी सिंचाई की जाती है।

राजस्थान में सिंचाई के साधन

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टाँका,खड़िन
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झीले एवं कुए
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जोहड़ एवं नहरे 

स्त्रोत:- पुस्तक कक्षा 40, मा. शि. बोर्ड अजमर

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स्त्रोत: Hydrogeological atlas of  Rajasthan - 2011

आधुनिक राजस्थान में जल सरंक्षण के उपाय 

बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली

खेतो में फसलों की सिंचाई हेतु धोरो या पाईप के स्थान पर बूँद-बूंद सिंचाई प्रणाली का विकास किया जाना चाहिए। जिससे जल के अधिकतम उपयोग के साथ ही भविष्य के लिए भी जल सुरक्षित रहेगा।

नदियों पर बाँध एव एनीकट का विकास

प्रमुख नदियों पर बाँध एवं छोटी या सहायक नदियों पर एनीकट बनाकर जल को संरक्षित किया जा सकता है जिससे कि भूजल स्तर भी ऊपर उठेगा। इसी संदर्भ में तत्कालीन पी एम नेहरू जी ने बाँध परियोजनाओं का अधुनिक भारत के मंदिर की संज्ञा दी थी।

औद्योगिक जल का पुनः चक्रण

कारखानों से निकले गन्दे जल का पुनः शुद्धि करण की क्रिया द्वारा पुनः उपयोग में लाया जा सकता है।

अधिकाधिक वृक्षारोपण

जन-जागृती के माध्यम से अधिकाधिक वृक्षारोपण करवाया जाना चाहिए / इससे मानसून द्वारा प्राप्त होने वाला जल सर्वाधिक प्राप्त होगा / जो नदियों बांधो तालाबो एवं भौम जल आदि के लिए महत्वपूर्ण होगा।

नदी जोड़ो परियोजना

इस योजना की राजस्थान राज्य एवं थार के मरूस्थल में अति आवश्यकता है जिससे सम्पूर्ण राज्य एवं विशेषतः थार मरुस्थलीय भागो में जल की कमी को पूरा किया जा सकता है। इसी योजना के माध्यम से मरूस्थलीय अभिशाप को वरदान बनाया जा सकता है। 

जल स्वावलम्बन अभियान

जनता को विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से जल की उपयोगिता बताते हुए इसके उचित सरंक्षण का ज्ञान करवाया जा सकता है।

रेनवाटर हार्वेस्टींग सिस्टम प्रणाली

नगर नियोजन निकाय द्वारा भवन निर्माण स्वीकृत जारी किए जाने से पूर्व उक्त भुखण्ड में टांका होज का निर्माण अनिर्वाय रूप से करवाया जाए यह नियम सम्पूर्ण राज्य में सख्ती से लागू किया जाये।  

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भौम जल का उचित दोहन

भूमिगत जल का दोहन अधिकतम होने के कारण वर्तमान समय में राज्य के भौम जल का स्तर लगातार गिरता जा रहा है जो एक चिन्ता का विषय है। अतः इसके उचित दोहन हेतु कठोर सरकारी नीति लागू होनी आवश्यक है।

जल संरक्षण के प्रभाव

अनुकूल प्रभाव

  • जल संरक्षण करने से राज्य एवं मरूस्थलीय प्रदेश में जल अभाव नही रहेगा।
  • मरूस्थलीय मृदा जो जल के अभाव के कारण अनुपयोगी मानी जाती रही है उसमे कृषि उत्पाद एवं उद्योगों का विकास राजस्थान आर्थिक उन्नति प्रदान कर सकता है।
  • जल संरक्षण से मरूस्थल प्रदेशो में होने वाली मृदा अपरदन को रोका जा सकता है एवं वनस्पति का प्रसार किया जा सकता है।
  • जल संरक्षण से जलवायु पर अनुकूल प्रभाव देखने को मिलेगा।
  • जल संरक्षण प्रकृति के सन्तुलन में सहायक सिद्ध होगा ।
  •  जल संरक्षण से भौम जल स्तर उठेगा।
  • जल संरक्षण से वायु मण्डल के औसत तापमान में कमी आयेगी जिसके परिणामस्वरूप ग्लेशियर के पिघलने की दर में कमी आकर ग्लोबल वार्मिंग की समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।

प्रतिकूल प्रभाव

  • अत्यधिक जल संरक्षित करने एवं बड़े बड़े बाँधो के निर्माण से भूकम्प आने की सम्भावना बढ जाती है।
  • जल संरक्षण से अधिकाधिक नहरी सिंचाई प्रणाली से जल भराव या मृदा लिंचिंग की समस्या बढ़ जाती है जो प्राणी जगत के लिए हानिकारक है।
  • नदियों  के जल स्तर में कमी आना जिससे नवीन जलाक मैदानो का निर्माण नही हो पाता है।
  •  जल के एक ही जगह पर एकत्रण से उसमें अशुद्वियाँ  या हानिकारक शैवाल पनप जाते है जो जीवन के लिए खतरा है

जल दोहन के प्रतिकूल प्रभाव 

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स्त्रोत: Rajasthan patrika,17dec 2015  

चर्चा 

यहाँ जल संचयन को लेकर हम सतर्क नहीं हुए तो देश के 21 शहरों को अगले साल 2020 से भयंकर भूजल संकट से गुजरना होगा। इन शहरों में से कई शून्य भूजल स्तर को छूलेंगे। इसका सीधा असर देश के करीब 10 करोड़ लोगों पर होगा। इनमें से 6 करोड़ को पानी की एक-एक बूंद के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। नीति आयोग ने इसका खुलासा कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स' नाम की रिपोर्ट में किया है। नीति आयोग की कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स रिपोर्ट में राजस्थान के 5 और मध्यप्रदेश का एक शहर समेत दिल्ली, हैदराबाद, बेंगलूरु जैसे शहर शामिल हैं। रिपोर्ट में जल संकट को 2050 तक जीडीपी में 6 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। भूजल दोहन को लेकर राजस्थान के ये पांच शहर खतरे में है।

  • जैसलमेर
  • जयपुर
  • जोधपुर
  • बीकानेर
  • अजमेर

निष्कर्ष

इसी वाक्य को आदर्श मानकर अमृतम जालम अभियान राज्य में चलाया जा रहा है जो राजस्थान पत्रिका द्वारा संचालित है। राज्य में मानव सभ्यता का विकास 3250 ई पू सिंधु घाटी सभ्यता के तहत काली बंगा आहड बैराठ आदि स्थलो में पाया जाता है जो विभिन्न नदी घाटीयों के किनारे विकसित हुई। वर्तमान समय मे भी अदिकांश नगर नदी किनारे ही विकसित हुए है किन्तु प्राचीन काल से लेकर वर्तमान काल तक जहाँ भी जल का दुरूपयोग हुआ वही प्रकृति ने विनाशकारी रूप दिखाया है। आज वर्तमान समय की माँग भी यही है कि पृथ्वी पर उपलब्ध जल संसाधन का उचित उपयोग एवं भविष्य को ध्यान में रखकर ही किया जाए। जिससे कि प्रकृति का संतुलन बना रहे और  समस्त जैविक जगत जैव विविधता बनी रहे जो मानव जीवन के लिए अति आवश्यक मानी जाती है। जल संरक्षण हेतु सरकारी प्रयासों के साथ साथ आम जन की भागीदारी अति आवष्यक है।

सन्दर्भ ग्रंथ सूची

1. डॉ बी आर भल्ला - राजस्थान का भूगोल पेज नं. 1 से 3 तक 
2. गुर्जर आर. के. (2001)- जल प्रबंधन विज्ञान पोइन्टर पब्लिशर्स, एस.एम.एस. हाइवे, जयपुर
3. मिश्र, अनुपम (1995) राजस्थान की रजत बूंदे, पर्यावरण कक्ष, गांधी भान्तिप्रतिष्ठान, नई दिल्ली
4. जाट, बी.सी. (2000)- जल संसाधन प्रबंधन पोइन्टर पब्लिशर्स एस. एम. एस. हाइवे, जयपुर
5. Jat B.C. (2000)-Water Resource Manag Publishers, Jaipur (Rajasthan).
6. Gautam Mahajan (1993)-Groundwater re Publishing House, New Delhi.
7. Gurjar. R.K. & Jat. B.C. (2001)-Wateer Mangement Science,pointer Pulishers, Jaipur Rajasthan 
8. आर्थिक समीक्षा- 2015 -2016-2017-2018 
9. Hydrogeological atlas of  Rajasthan - 2011
10. Rajasthan patrika,17dec 2015   

लेखक परिचय :-  श्रवण गौर, एस्सिटेंट प्रोफेसर, बाबा नर्सिंग दास पीजी कॉलेज,नेचवा, राजस्थान इंडिया ,डॉक्टर अजय विक्रम सिंह चंदेला, एसोसिएट प्रोफेसर ( जियोग्राफी) गवर्नमेंट आर्ट्स कॉलेज, कोटा, राजस्थान, इंडिया   

स्रोत;- इंटरनेशनल जर्नल ऑफ जियोग्राफी, जियोलॉजी एंड एनवायरनमेंट

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Post By: Shivendra
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