रेतीली जमीन पर बसा जंगल

इटानगर में ‘मुलई’ नाम से मसहूर जादव पायेंग (50) ने 30 सालों तक 550 हेक्टेयर इलाके में जंगल उगाने का काम किया है। इन्होंने 1980 में जंगल लगाने का काम शुरू किया था। जब गोलाघाट जिले के सामाजिक वानिकी प्रभाग के अरूण चपोरी ने इलाके में 200 हेक्टेयर की भूमि पर वृक्षारोपण की एक योजना शुरू की थी। यहां अर्जुन, वालकोल, इजर, गुलमोहर, कोरोई, मोज और हिमोलु के पेड़ लगाए जाते हैं। 300 हेक्टेयर भूमि में बांस के पेड़ है। प्रकृति के प्रेमी मुलई अपने छोटे से परिवार के साथ इसी जंगल के पास रहते हैं। गाय और भैस को पालकर इन्हीं से अपनी अजीविका भी चलाते हैं।

इतना ही नहीं यहां हाथी, बाघ, गेंडे, हिरन, लंगूर, खरगोश और चीड़ियों की काफी प्रजातियों को देखा जा सकता है। ब्रह्मपुत्र नदी की इस रेतीली जमीन को वन बनाने के बाद आगे भी इसी प्रकार का काम मुलई जारी रखना चाहते हैं। अगर वन विभाग इस जंगल की सही देखभाल करता है। एक मिसाल ही है कि एक अकेला इंसान जंगल उगा सकता है। जिसके लिए राज्य की तरफ से भी कोई कवायद नहीं की गई। अब सरकार पर्यटक और फिल्मकारों का आकर्षण इस मानवीय जंगल की ओर बढ़ रहा है।

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