रास्ते कहाँ हैं?

इस पुल के निर्माण के पहले सोनबरसा में बागमती पर एक बहुत बड़ा घाट हुआ करता था। कोसी थोड़ा दूर उत्तर, लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर बहा करती थी। बागमती का लेवेल कोसी से नीचे है और इस जगह पर यह नदी कोसी से कोई 10 फुट नीचे बहती रही होगी। जब यह पुल बना तब बागमती और कोसी पर अलग-अलग पुल न बना कर एक ही पुल बनाया गया। ऐसा करने से सरकार को कुछ बचत जरूर हुई होगी। लेकिन इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि अब तो प्रभावी तौर पर यह पुल कोसी पर बना क्योंकि बागमती का मुहाना तो अप्रोच रोड ने बंद कर दिया।

समस्तीपुर के हसनपुर से खगड़िया जिले के अलौली तक की यात्रा बहुत ही दिलचस्प है। तमाम दावों के बावजूद आज भी सड़क यहाँ प्रायः नहीं है और वह इसलिए कि करेह का दायाँ तटबंध हायाघाट और करांची या भटबन तक कहीं भी टूटेगा तो वह सारा का सारा पानी इसी इलाके से गुजरेगा। बिथान से सोरहा चौक के बीच न तो कोई रास्ता है जिसे सड़क कहा जा सके और न ही कोई पुल या कलवर्ट सही सलामत है। कटौसी गाँव के पास सरकार के पराक्रम की पराकाष्ठा देखी जा सकती है जहाँ लगता है कि यहाँ की सारी बरबादी पिछली बरसात में हुई होगी। मगर गाँव वालों के अनुसार यह सब 1987 की बाढ़ में हुआ था और तब से गरीबों की मसीहाई करने वाली न जाने कितनी सरकार आईं और गईं मगर इस इलाके की तकदीर नहीं बदली। बरसात के मौसम में अगर किसी के साथ कोई चिकित्सा सम्बंधी आकस्मिकता आ जाए तो उसे ईश्वर के अलावा कोई नहीं बचा सकता।

आज से कोई 20 साल पहले तक खगड़िया और सहरसा के बीच में रेल मार्ग के अलावा कोई दूसरा संपर्क मार्ग नहीं था। खगडि़या से सहरसा जाने के लिए या तो पूर्णियाँ होकर जाना पड़ता था अन्यथा कुर्सेला के पास से देवीपुर-परसी मार्ग से नाव पर टीकापट्टी में कोसी को पार कर के जाना पड़ता था। 1991 में खगड़िया जिले में सोनबरसा घाट के पास कोसी-बागमती, दोनों नदियों को एक साथ समेटते हुए एक सड़क पुल का निर्माण पूरा किया गया जिससे सहरसा का कोसी-बागमती के दाहिने किनारे की जगहों से संपर्क में अप्रत्याशित और स्वागत योग्य सुधार हुआ। परिवहन व्यवस्था में इस सुधार की लेकिन एक बहुत बड़ी कीमत थी जिसकी अदायगी विशेष रूप से बागमती के इर्द-गिर्द बसे लोगों को करनी पड़ी और भविष्य में भी करनी पड़ेगी।

इस पुल के निर्माण के पहले सोनबरसा में बागमती पर एक बहुत बड़ा घाट हुआ करता था। कोसी थोड़ा दूर उत्तर, लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर बहा करती थी। बागमती का लेवेल कोसी से नीचे है और इस जगह पर यह नदी कोसी से कोई 10 फुट नीचे बहती रही होगी। जब यह पुल बना तब बागमती और कोसी पर अलग-अलग पुल न बना कर एक ही पुल बनाया गया। ऐसा करने से सरकार को कुछ बचत जरूर हुई होगी। लेकिन इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि अब तो प्रभावी तौर पर यह पुल कोसी पर बना क्योंकि बागमती का मुहाना तो अप्रोच रोड ने बंद कर दिया। जाहिर है कि जब तक बागमती के पानी का लेवेल इतना ऊपर नहीं उठेगा कि वह कोसी वाले पुल से होकर बह सके तब तक तो उसके पानी की निकासी नहीं होगी। बागमती के पानी को अगर इस पुल से निकलने के लिए पन्द्रह फुट ऊपर उठना पड़े तो यह पानी नदी में पीछे की ओर अपने तटबंधों के बीच भी लंबी दूरी तक फैलेगा। बागमती के पानी के इस ठहराव की वजह से एक तो नदी के करांची-बदलाघाट तटबंध पर दबाव बढ़ा है और उसके टूटने की घटनाओं में वृद्धि हुई है और दूसरी ओर तटबंधों के बीच बागमती के पानी को देर तक खड़ा रहने की वजह से नदी की तलहटी में बालू के जमाव में भी वृद्धि हुई। बागमती तटबंधों के बीच यहाँ बस्तियाँ आबाद हैं और बालू जमाव में बढ़ोतरी के कारण घर पानी में तो डूबते ही हैं, बरसात के बाद वह बस्तियाँ और उनके खेत-पथार नदी की उठती पेटी के बालू की चपेट में आते हैं। यहां से पश्चिम में खगड़िया सदर के सोनमनखी घाट तथा उसके और भी पश्चिम बागमती तटबंधों के बीच ऐसे-ऐसे घर देखने को मिल जायेंगे जिनकी पहली मंजिल अब बालू में दफन हो गयी है। ऐसी स्थिति में तटबंधों के बीच खेतों पर जब इतना बालू पड़ जायेगा तो खेती की क्या हालत होती होगी इसका अंदाजा आप आसानी से लगा सकते हैं।

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Post By: tridmin
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