राम नारायण मंडल समिति (कोसी सिंचाई समिति) का गठन

पूर्वी कोसी मुख्य नहर और उसके द्वारा पैदा की गई समस्याओं के अध्ययन और उनके निराकरण के लिये सुझाव देने के लिए बिहार सरकार ने 27 सितम्बर 1973 को राम नारायण मंडल की अध्यक्षता में एक सिंचाई समिति का गठन किया। इसे कोसी सिंचाई समिति के नाम से भी जाना जाता है। इस समिति के विचारणीय विषय थे-

1. कोसी नहरों से वास्तव में कितनी सिंचाई संभव है?
2. उससे अभी कितनी सिंचाई मिल रही है?
3. क्या उपाय किये जायें कि उनसे सुनिश्चित सिंचाई हो सके, और
4. कोसी कमाण्ड के किन क्षेत्रों को सुनिश्चित सिंचाई की कोटि में रखा जाय, इसका ग्राम तथा भूखण्ड स्तर पर निर्धारण।

कोसी सिंचाई समिति का निष्कर्ष


इस समिति ने पूर्वी कोसी नहर कमाण्ड क्षेत्र के नक्शे एक बार 1 इंच=300 फुट के पैमाने पर दुबारा बनवाये। इस नक्शे पर उन इलाकों को दिखलाया गया जो कि रिहायशी थे, जिन पर फलों के बाग थे, वह इलाके जहाँ नहर का पानी पहुँच ही नहीं सकता था, वह इलाके जहाँ पूरी क्षमता से बहती हुई नहर के पानी की सतह जरूरत से कम थी, वह इलाके जिन में जल-जमाव था और जिसे सिंचाई की जरूरत नहीं थी, और इसके साथ वह इलाके जो कि नीचे थे और जिन्हें सूखे के समय सिंचाई की जरूरत नहीं थी, इन सभी श्रेणियों को नक्शे पर अलग- अलग रंगों से दिखाया गया। इन नक्शों के आधार पर उस वास्तविक क्षेत्र का निर्धारण किया गया जिस पर खेती संभव थी और साथ ही उसे पूर्वी कोसी मुख्य नहर से पानी भी मिल सकता था। समिति ने अपनी रिपोर्ट 19 मार्च 1975 को सरकार को सौंपी। तब यह पाया गया कि पूर्वी कोसी मुख्य नहर और राजपुर नहर दोनों को मिला का पूर्वी कोसी मुख्य नहर के कमान क्षेत्र में 4.40 लाख हेक्टेयर (10.88 लाख एकड़) से ज्यादा क्षेत्र पर खेती मुमकिन ही नहीं है। सिंचाई की बात तो इसके बाद में आती है। हम पहले बता आये हैं कि मूल योजना में पूर्वी कोसी मुख्य नहर और राजपुर नहर का मिला-जुला यह क्षेत्र 6.12 लाख हेक्टेयर था जिसे बहुमौसमी कर के 7.12 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर फसल सींची जाने वाली थी। जैसे इतना ही काफी नहीं था, फसल और सिंचाई की व्यावहारिकता को देखते हुये समिति ने सुझाव दिया कि केवल अगहनी धान और गेहूँ की फसल को लेकर सिंचाई की योजना बनानी चाहिये। इसका मतलब यह होता था कि कुल खेती वाले क्षेत्र के 65 प्रतिशत पर धान के लिए और 20 प्रतिशत क्षेत्र पर गेहूँ के लिए सिंचाई की व्यवस्था करनी पड़ेगी और यही इन दोनों नहरों (पूर्वी मुख्य नहर और राजपुर नहर) का अधिकतम सिंचित क्षेत्र होगा। इस तरह समिति ने सिंचाई के लिए निम्नलिखित क्षेत्र का निर्धारण किया-

फसल

खेती के क्षेत्र

का प्रतिशत

वास्तविक रकबा-

लाख हेक्टेयर

फसल का रकबा-

लाख हेक्टेयर

अगहनी धान

65 प्रतिशत

4.40

2.86

गेहूं

20 प्रतिशत

,,

0.88

कुल योग

85 प्रतिशत

4.40

3.74



इस तरह रबी और खरीफ दोनों मिला कर पूर्वी कोसी मुख्य नहर और राजपुर नहर से 3.74 लाख हेक्टेयर से ज्यादा के फसल क्षेत्र पर सिंचाई होने वाली नहीं थी जबकि प्रारंभिक अनुमान 7.12 लाख हेक्टेयर का था। इस तरह कोसी सिंचाई समिति के परियोजना का लक्ष्य ही घटा कर करीब-करीब आधा (52.53 प्रतिशत) कर दिया। समिति ने इस कमी के पीछे तीन मुख्य कारण बताये। (1) वह इलाके जहाँ कोसी या गंगा नदी का पानी फैलता है, उन्हें नहर के कमान क्षेत्र से बाहर निकाल दिया गया है, (2) बड़े नगर और कस्बे जो कि किसी भी नहर के कमान क्षेत्र में नहीं आते, उन्हें बाहर निकाल दिया गया है और (3) कमान क्षेत्र में पड़ने वाली बहुत सी धारों के दोनों तरफ के फैलाव वाले इलाके को बाहर कर दिया गया है। समिति ने यह तय किया कि इस कमान की 82,270 हेक्टेयर जमीन रिहायशी या बाग-बगीचों वाली है। एक लाख हेक्टेयर जमीन नहरों से ऊँची है जिस पर पानी चढ़ ही नहीं सकता, 49,400 हेक्टेयर जमीन जल-जमाव में फंसी है, 57,300 हेक्टेयर जमीन पर कभी-कभार ही सिंचाई का इन्तजाम करना पड़ेगा और 16,300 हेक्टेयर जमीन को अन्य कारणों से सींचा नहीं जा सकता।13 स्पष्टतः 1953 में जो कोसी योजना का प्रारूप था उसके अनुसार दीयर (खादिर), शहर-नगर, बाग-बगीचे और नहर के तल के ऊपर की जमीनों को सींच लेने की भी योजना थी।

समिति ने यह भी बताया कि कोसी परियोजना में अब तक 2.53 लाख हेक्टेयर की सिंचाई क्षमता अर्जित की जा चुकी है और इस नहर से अब तक सर्वाधिक सिंचाई 1.85 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में हुई है। इस तरह से नहर की अर्जित सिंचाई क्षमता (2.53 लाख हेक्टेयर) में से 73.39 प्रतिशत क्षेत्र पर सिंचाई हो भी चुकी है। यद्यपि समिति द्वारा निर्धारित संभावित कुल सालाना सिंचाई के सन्दर्भ में यदि देखा जाय तो यह प्रतिशत 49.56 प्रतिशत बैठता है।

तालिका 5.1 देखने के लिए अटैचमेंट डाउनलोड करें

कोसी परियोजना में सिंचित क्षेत्र के निर्धारण में लापरवाही और सिंचाई की इस गैर -जिम्मेवाराना कमी के लिये कौन जवाबदार था, यह समिति के विचारणीय विषय में नहीं था। इसलिए समिति के निष्कर्ष और उसकी सिफारिशें ‘तुम्हारी भी जय-जय, हमारी भी जय-जय’ तक सीमित रह गईं। समिति ने यह नहीं बताया कि तब तक की सर्वाधिक सिंचाई, 1.85 लाख हेक्टेयर, वास्तव में मूल योजना में जनता से किये गये वायदों का सिपर्फ 26 प्रतिशत थी और लक्ष्य को आधा घटा कर के समिति ने सिंचाई विभाग और उसके इंजीनियरों को यह मौका दिया कि वह सीना तान कर कह सकें कि तमाम आलोचनाओं और गैर-तकनीकी लोगों द्वारा मीन-मेष निकालने के बाद भी कोसी नहर ने दस वर्षों के अन्दर लक्ष्य के आधे क्षेत्र में सिंचाई कर दी है। यही बात राजनीतिज्ञ भी कह सकते थे और अब इलाके के किसान अपना समझें।

सचमुच, आंकड़ों की फसल उगाने के लिए सिंचाईकी जरूरत नहीं पड़ती, न तो आंकड़ों में पानी लगता है कि उनका विकास रुक जाय और न ही आंकड़ों पर बालू की परत जमती है। समिति की रिपोर्ट सनसनीखेज होते हुये भी सूचनाओं की एक स्मारिका बन कर रह गई। इसे कहते हैं ‘भाड़ में जाये माधो-अपना काम साधो।’ 1975 में कोसी सिंचाई समिति की रिपोर्ट पर जब तक कोई बहस हो पाती तब तक देश में इंदिरा गांधी की सरकार ने आपातस्थिति लगा दी थी जिसकी वजह से जो कुछ भी इस विषय पर बहस की संभावनायें थीं वह समाप्त हो गईं। इसके बाद सारे सम्बद्ध पक्ष जनता को किये गये वायदों को सुविधापूर्वक भूल गये और कोसी सिंचाई समिति के आंकड़ों को मानक का दर्जा मिल गया।

तालिका 5.1 के आंकड़ों पर एक बार नजर डालने पर हम पाते हैं कि पिछले चार वर्षों में केवल पूर्वी कोसी मुख्य नहर से 2001-2002 में 1953 के मूल प्रस्ताव के मुकाबले 27.19 प्रतिशत सिंचाई उपलब्ध हो सकी है। बाकी के वर्षों में कथित उद्देश्य के संदर्भ में उपलब्धि 20 प्रतिशत से कम रही है। वर्ष 2004-2005 में रबी के मौसम में नहर मरम्मत की वजह से सिंचाई के लिए बंद थी। मरम्मत के बाद भी 2005-06 में नहर से सिंचाई की उपलब्धि मूल लक्ष्य की मात्रा 20.95 प्रतिशत ही रही।

यहाँ यह भी ध्यान देने की बात है कि वर्ष 1975 तक पूर्वी कोसी नहर योजना में मात्रा 2.53 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर सिंचाई क्षमता अर्जित की गई थी और जब लहटन चौधरी ने 28 मई 1970 को विधान सभा को यह बताया था कि कोसी परियोजना में 6.48 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई क्षमता का विकास हो गया है, वह सच नहीं बोल रहे थे। विधान सभा में गलत बयानी का मसविदा निश्चय ही उन्हें सिंचाई विभाग ने ही तैयार कर के दिया होगा और वह यह बयान दे कर बिना किसी टोका-टाकी के बहस से बच कर निकल भी गये।

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Post By: tridmin
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