राहत-राज्य की चौथी फसल

अप्रत्याशित वर्षा, नदियों के बढ़ते प्रवाह, नहरों और तटबन्धों के लगातार टूटते रहने के कारण खरीफ की फसल उत्तर बिहार के एक बड़े क्षेत्र पर मारी जाती है। जहाँ खरीफ की फसल नहीं उगती वहाँ रिलीफ की फसल अच्छी होती है। सरकारी अफसरान रिलीफ पैकेज के बारे में लोगों की जानकारी के अभाव, और अन्यथा भी, राहत सामग्री के बंटवारे में अपने विशेषाधिकार का प्रयोग जम कर करते हैं क्योंकि उनके कार्य कलापों पर न तो किसी तरह का नियंत्रण होता है और न ही जनता को चारों ओर से पानी से घिरे रहने के कारण कहीं फरियाद करने की कोई गुंजाइश। इसकी वजह से बहुत सी राहत सामग्री गलत हाथों में चली जाती है और सत्ता के दलालों की इस पूरे मौसम में पौ बारह रहती है। पूरे बरसात के मौसम में अखबार इस तरह की खबरों से पटे पड़े रहते हैं।

जानकार सूत्रों का कहना है कि पारम्परिक ठेकेदारी में थोड़ा बहुत काम करके ही बिल उठाना पड़ता है मगर राहत एक ऐसा ‘ठेका’ है जिसमें अगर आसामी मजबूत हो तो पूरी की पूरी रसद और रकम ऐसे चट कर सकता है कि उसकी किसी को भनक तक न लगे। यह वह फसल है जो लोगों की तकलीफों के साथ लहलहाती है और बाढ़ पीड़ितों की कीमत पर कटती है। राहत सामग्री के आपूत्र्तिकर्ता, ट्रान्सपोर्टर, सरकारी कर्मचारी और स्थानीय दलालों के पुण्य एक साथ उदय होने पर ही इलाके में बाढ़ आती है। बिहार का 2004 का बाढ़ राहत घोटाला, जिसकी सारी परतें अभी तक खुली नहीं हैं, इस पूरे और सतत कार्यक्रम की एक कड़ी पर है जो किसी तरह रोशनी में आ गया।

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Post By: tridmin
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