फसलों में सिंचाई के लिये अपशिष्टजल का उपयोग

फसलों में सिंचाई के लिये अपशिष्टजल का उपयोग, PC-organicawater
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प्रस्तावना

वर्तमान में बढ़ती वैश्विक आबादी के साथ जल की आपूर्ति और माँग के बीच का अंतर बहुत बढ़ता ही जा रहा है और यह एक ऐसे खतरनाक स्तर तक पहुँच गया है। कि दुनिया के कुछ हिस्सों में यह मानव अस्तित्व के लिये खतरा पैदा कर रहा है दुनिया भर में बहुत से वैज्ञानिक जल संरक्षण के नये और आधुनिक तरीकों पर अनुसंधान कर रहे हैं। लेकिन अभी भी इसमें उतनी प्रगति प्राप्त नहीं हुई है जितनी की होनी चाहिये। अतः अब समय आ गया है कि हमें शहरी अपशिष्ट जल को उपचारित करके इसके पुनः उपयोग के माध्यम से फसलों की सिंचाई और अन्य प्रयोजनों के लिये इसको उपयोग में लेना चाहिये। ऐसा करने से सीमित मात्रा में उपलब्ध ताजे जल को अन्य क्षेत्रों में उपयोग के लिये प्रयोग में लिया जा सकता है जिन्हें ताजेजल की अधिक जरूरत होती है और इसके अलावा सिंचाई तथा अन्य पारिस्थितिकी तंत्र को सेवाओं के लिये भी इस अपशिष्ट जल का उपयोग कर सकते है। शहरी क्षेत्रों में अपशिष्ट जल में सिचाई एक पुरानी विधि है। पूरे वर्ष भर ताजा जल आसानी से उपलब्ध नहीं होने के कारण यह अपशिष्ट जल विशेष रूप से जल की कमी वाले सूखे क्षेत्रों में फसलों की सिचाई के लिये और इसके अलावा पौषक तत्वों की उपलब्धता का एक प्रमुख स्रोत बनता जा रहा है। समान्यतया ऐसा जल जो मानव उपयोग से प्रभावित हुआ हो उसे अपशिष्ट जल कहते हैं। यह घरेलू, औद्योगिक, कृषि या किसी भी व्यावसायिक गतिविधियों, वर्षा जल या सीवर जल के किसी भी संयोजन से इस्तेमाल किया गया जल हो सकता है। विकसित देशों में इस अपशिष्ट जल का कृषि में उपयोग इसके समुचित उपचार के बाद ही किया जाता है लेकिन विकासशील और अविकसित देशों में कम पैसों की वजह से ज्यादातर लोग सीधे ही इसका कृषि में उपयोग करते हैं।

भारत में अपशिष्ट जल की स्थिति

पर्यावरण सूचना पद्धति (ENVIS) के अनुसार हमारे देश में कुल सीवेज 61754 मिलियन लीटर प्रतिदिन (MLD ) की मात्रा में उत्पन्न होता है जिसमें से केवल 22963 मिलियन लीटर प्रतिदिन का ही उपचार किया जा सकता है अर्थात 38% को उपचारित किया जा सकता है जबकि शेष 62% (38791 MLD) को सीधे पास के जल निकायों में अनुपचारित रूप में हो डाल दिया जाता है। देश में पाँच राज्य जैसे कि महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और गुजरात आदि कुल सीवेज के 50% हिस्से को उत्पादित करते हैं। वर्तमान में ऐसा प्रतीत होता है कि अपशिष्ट जल उत्पादन और इसके उपचार (तालिका 17 ) के बीच एक बड़ा अंतर मौजूद हैं। यहाँ तक कि अपशिष्ट जल के उपचार के लिये जो सुविधाएं उपलब्ध है उनका भी एक बहुत बड़ा हिस्सा इनके संचालन और इनकी रखरखाव लागत के कारण सही रूप से संचालित नहीं हो पाता है।

एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी (EPA) ने कुछ दिशा निर्देश तैयार किये हैं और नजदीकी नदी निकायों में उपचारित किये गये अपशिष्ट जल के निर्वहन के लिए नियम भी बनाए है लेकिन उपचार संयंत्र इनमें से अधिकांश मानकों को पूरा नहीं करते हैं। सामान्यतः अपशिष्ट जल की संरचना मुख्य रूप से जैविक और  अनैविक प्रकृति के निलंबित और विघटित ठोस के छोटे अनुपात के साथ जल (>99%) की है। ऑगिनिक्स में ज्यादातर कार्बोहाइड्रेट, वसा, लिग्निन, डिटर्जेंट, प्रोटीन आदि होते है। तालिका 18 में घरेलू अपशिष्ट जल के प्रमुख घटकों को दिखाया गया है 

तालिका 17: कुल जल आपूर्ति, सीवेज उत्पादन और उपचार सुविधा की उपलब्धता
तालिका 17: कुल जल आपूर्ति, सीवेज उत्पादन और उपचार सुविधा की उपलब्धता,स्रोत: सीपीसीबी 2009

नदियों और स्थानीय जल निकायों में अनुपचारित सीवेज जल का प्रत्यक्ष वितरण पोषक संवर्धन या यूट्रोफिकेशन करता है जो मीठे पानी की गुणवत्ता को कम कर देता है। इसलिये, नदी और आस-पास के जल निकायों में सीवेज जल के निर्वहन के लिये समुचित योजना और निष्पादन की अत्यंत आवश्यकता है। यह ही एक ऐसा तरीका है जिसके माध्यम से इसे सिंचाई के प्रयोजनों के लिये कृषि में उपयोग में लिया जा सकता है।

तालिका 18 घरेलू अपशिष्ट जल में प्रमुख घटक (मिलीग्राम / लिटर
तालिका 18 घरेलू अपशिष्ट जल में प्रमुख घटक (मिलीग्राम / लिटर, स्रोतः संयुक्त राष्ट्र विकास के लिए एकनी को सहयोग विभाग (1985)
कृषि में अपशिष्ट जल का उपयोग

देश में अपशिष्ट जल की बढ़ती मात्रा और इसकी अपर्याप्त उपचार क्षमता के साथ यह एक विशाल प्रबंधन चुनौती बन चुकी है। इस चुनौती का समाधान करने के लिये अपशिष्ट जल का कृषि भूमि में उपयोग एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है। हमारे देश में कई जगहों पर अपशिष्ट जल के उपयोग की विशेष रूप से कम जल की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में बहुत माँग है और आजकल किसानों को कुछ निश्चित मूल्य पर इसको उपलब्ध भी करवाया जा रहा है। वर्ष 1990 में स्ट्रॉस और ब्लुमेंथल द्वारा लगाये गये एक अनुमान के मुताबिक विश्व में लगभग 73,000 हेक्टेयर कृषि अपशिष्ट जल सिंचाई के अंतर्गत है। नीचे चित्र में यह दिखाया गया है कि कैसे किसान अपनी फसलों में अपशिष्ट जल का उपयोग कर रहा है? अपशिष्ट जल का कृषि में उपयोग करने के लिये किसानों की प्राथमिकता कई कारणों से होती है जैसे पहला यह जल स्रोत वर्ग भर उपलब्ध रहता हैं दूसरा ज्यादातर शहर के निकट क्षेत्रों में इसके कृषि में उपयोग द्वारा प्राप्त फसल उत्पादन के लिये अच्छी कीमत मिल जाती हैं, और तीसरा इस अपशिष्ट जल में कुछ ऐसे पौषक तत्व मौजूद रहते हैं जिसके कारण इसकी सिचाई से फसलों की अधिक पैदावार प्राप्त होती है (लेकिन यह अपशिष्ट जल के उपयोग के घटकों पर निर्भर करती है)।  इन्हीं कारणों की वजह से आजकल कृषि में अपशिष्ट जल की उपयोगिता दिन प्रतिदिन लोकप्रिय होती ही जा रही है।

अनुपचारित अपशिष्ट जल के साथ सिंचित फसलें
अनुपचारित अपशिष्ट जल के साथ सिंचित फसलें

लेकिन इन सब फायदों के बावजूद अपशिष्ट जल में कई रोगजनक सूक्ष्म जीवाणु (बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी) पाये जाते हैं और भारी धातुएं भी मौजूद रहती है जिसकी वजह से उपयोगकर्ताओं के लिये संभावित स्वास्थ्य संबंधी खतरा पैदा हो सकता है। इसलिये, इस संबंध में अपशिष्ट जल से सिंचाई के लिये फसलों का विवेकपूर्ण चुनाव करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस जल को सिंचाई के उपयोग से अधिकतर पत्तेदार (लाल साग, पालक आदि) और जड़ वाली सब्जियों (गाजर, चुकंदर, शलजम आदि) को उगाने से बचाना चाहिये जबकि फलों वाली फसलें अपशिष्ट जल की सिंचाई के लिये सुरक्षित होती हैं। कुछ फसलों (जैसे क्रूसीफेरी जाति) में भारी धातुओं और दूषित पदार्थों को जल और मृदा से कम करने की क्षमता होती है इसको बायो रेमेडियसन कहा जाता है। यह फसलें अपनी जड़ों में भारी धातुओं को जमा कर सकती हैं जिनको बाद में मुदा से आसानी से हटाया जा सकता है। अपशिष्ट जल की सिंचाई के लिये प्राथमिकता हमेशा गैर खाद्य फसलों और पेड़ों को ही दी जानी चाहिये।

भारतीय जल प्रबंधन संस्थान, भुवनेश्वर, ओडिशा द्वारा हाल ही में फसलों को सिंचाई में अपशिष्ट जल के सुरक्षित उपयोग के लिये एक अनुसंधान शुरू किया गया जहाँ तिलहन फसलों पर अपशिष्ट जल के दो स्तरों को ताजा जल के संयोजन के साथ उपयोग में लेकर इसके प्रभावों का अध्ययन किया गया। इस अनुसंधान के प्रारंभिक परिणामों से पता चला कि 4: 1 अनुपात में अपशिष्ट जल और मीठे जल का संयोजन उपयोग फसलों की अधिक उपज प्राप्त करने में मदद करता है साथ ही मुदा और फसलों में कोई भी गड़बड़ी और प्रदूषण की समस्या नहीं होती है। अधिक दीर्घकालिक अध्ययन इन परिणामों पर बेहतर और गहन रोशनी डाल सकता है।

तिलहन फसलों में अपशिष्ट जल एवंतजा जल का संयोजी उपयोग
तिलहन फसलों में अपशिष्ट जल एवंतजा जल का संयोजी उपयोग
निष्कर्ष

वर्ष 2050 में भी भारत में कृषि लोगों की जीविका का मुख्य आधार बनी रहेगी। हालांकि, स्पष्ट रूप से जी बदलेगा वह हैं अलग अलग क्षेत्रों द्वारा जल का उपयोग जो कि देश में हमारे प्रयास यानि 'प्रति जल बूंद-अधिक फसल उत्पादन' के मंत्र में परिलक्षित होता है। अपशिष्ट जल एक बहुमूल्य संसाधन है और इसको कृषि उपयोग किया जा सकता है, लेकिन यह तभी संभव है जब उचित फसल चयन और अपशिष्ट जल के साथ मीठे जल के सयोंजन  उपयोग से सुरक्षित समाधान प्रदान किया जाये ताकि बाजे जल की बचत प्राप्त हो सकेगा। 

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