फसल अवशेष प्रबन्धन क्यों और कैसे

फसल अवशेष प्रबन्धन क्यों और कैसे।
फसल अवशेष प्रबन्धन क्यों और कैसे।

विभिन्न फसलों की कटाई के बाद बचे हुए डंठल तथा गहराई के बाद बचे हुए पुआल, भूसा, तना तथा जमीन पर पड़ी हुई पत्तियों आदि को फसल अवशेष कहा जाता है। विगत एक दशक से खेती में मशीनों का प्रयोग बढ़ा है। साथ ही खेतीहर मजदूरों की कमी की वजह से भी यह एक आवश्यकता बन गई है। ऐसे में कटाई व गहराई के लिए कंबाईन हार्वेस्टर का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ा है, जिसकी वजह से भारी मात्रा में फसल अवशेष खेत में पड़ा रह जाता है। जिसका समुचित प्रबन्धन एक चुनौती है। किसान अपनी सहुलियत के लिए इसे जलाकर प्रबन्धन करते हैं। इसके पीछे किसानों के अपने तर्क हैं। उनका कहना है कि कुछ फसलें जैसे कि धान-गेहूँ के फाने जल्दी मिट्टी में गलते नहीं हैं। साथ ही धान की रोपाई के समय खेत के किनारों पर इकट्ठे होने से मजदूरों के पैरों में चुभते हैं। अलग से अवशेष प्रबन्धन में धन, मजदूर, समय आदि की आवश्यकता होती है और दो फसलों के बीच उपयुक्त समय के अभाव की वजह से भी वे ऐसा करने के लिए बाध्य हैं। उनका यह भी कहना है कि फसल अवशेषों को जला देने से खेत साफ होता है। परन्तु इस तरह फसल अवशेष प्रबन्धन, खेत की मिट्टी, वातावरण व मनुष्य एवं पशुओं के स्वास्थ्य के लिए कितना घातक है इसका अंदाजा आज भी किसानों को नहीं है।
 
हमारे देश में सालाना 630-635 मि. टन फसल अवशेष पैदा होता है। कुल फसल अवशेष उत्पादन का 58 प्रतिशत धान्य फसलों से 17 प्रतिशत गन्ना, 20 प्रतिशत रेशा वाली फसलों से तथा 5 प्रतिशत तिलहनी फसलों से प्राप्त होता है। सर्वाधिक फसल अवशेष जलाने की रिपोर्ट पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश से हैं परन्तु आन्ध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, पूर्वी उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में फसल अवशेष जलाने की प्रथा चल पड़ी है और बदस्तुर जारी है। फसल अवशेष प्रबन्धन की विधियों की जानकारी न होने व होते हुए भी किसान अनभिज्ञ बने हुए हैं। आज कृषि के विकसित राज्यों में मात्र 10 प्रतिशत किसान ही अवशेषों का प्रबन्धन कर रहे हैं।

तालिका-1 विभिन्न फसलों का अवशेष उत्पादन

फसल

वार्षिक उत्पादन (मि.टन/वर्ष)

अवशेष उत्पादन (मि.टन/वर्ष)

धान

103.06

154,59

गेहूँ

94.04

159.86

मक्का

21.02

31.53

जूट

9.92

21.32

कपास

30.52

91.56

मूँगफली

6.89

13.78

गन्ना

346.72

138.68

सरसों

6.85

20.55

मिलेट्स (मोटे अनाज)

2.29

3.63

कुल

621.31

635.32

(गैड व सहयोगी 2009, बायोमास बायो एनर्जी 33ः 1532-1546 के आधार वर्ष 2015-16 के लिए गणना की गई है)

फसल अवशेष जलाने से मृदा में होने वाली हानियाँ

  • भूमि की उर्वराशक्ति में ह्रासः अवशेष जलाने से 100 प्रतिशत नत्रजन, 25 प्रतिशत फास्फोरस, 20 प्रतिशत पोटाश और 60 प्रतिशत सल्फर का नुकसान होता है।
  • भूमि की संरचना में क्षति होने से जब पोषक तत्वों का समुचित मात्रा में स्थानान्तरण नहीं हो पाना तथा अत्यधिक जल का निकासी न हो पाना।
  • भूमि के कार्बनिक पदार्थों का ह्रास।
  • फसल अवशेषों से मिलने वाले पोषक तत्वों से मृदा वंचित रह जाती है।
  • जमीन की ऊपरी सतह पर रहने वाले मित्र कीट व केंचुआ आदि भी नष्ट हो जाते हैं।
     

तालिका-2 अवशेष जलाने से पोषक तत्वों का नुकसान

फसल अवशेष

नत्रजन का नुकसान मि.टन/वर्ष

फास्फोरस का नुकसान मि.टन/वर्ष

पोटाश का नुकसान मि.टन/वर्ष

कुल मि.टन/वर्ष

धान

0.236

0.009

0.200

0.45

गेहूँ

0.079

0.004

0.061

0.14

गन्ना

0.079

0.001

0.033

0.84

कुल

0.394

0.14

0.295

0.143

स्रोतः जैन निवेदिता व सहयोगी एरोजोल एंड एयर क्वालिटी रिसर्च 14-422-430, 2014

मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव

  • अस्थमा और दमा जैसी सांस से सम्बन्धित बीमारियों के मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है साथ ही इन रोगों के मरीजों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है।
  • सल्फर डाईऑक्साइड व नाइट्रोजन ऑक्साइड के कारण आँखों में जलन।
  • चर्म रोग की शिकायत बढ़ जाती है।
  • हाल के वर्षों में फसल अवशेष जलाने के वजह से कैंसर जैसी बिमारी के मरीजों की संख्या में वृद्धि हुई है।

पर्यावरण सम्बन्धी दुष्परिणाम

  • यह वैश्विक तपन (ग्लोबल वार्मिंग) को बढ़ाता है।
  • स्मॉग जैसी स्थिति पैदा हो जाती है जिससे सड़क पर दुर्घटना होती है।
  • फसल अवशेष के साथ-साथ खेत के किनारे के पेड़ों को भी आग से नुकसान पहुँचता है।
  • ओजोन परत का ह्रास।
  • अत्यधिक मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन से नुकसान।
  • ग्रीन हाउस गैसों का अधिक मात्रा में उत्सर्जन से वैश्विक तपन को बढ़ावा।

अवशेष प्रबन्धन विकल्प

अभी तो मुख्यतः पशुचारा के लिए कुछ अवशेष इकट्ठा करने के उपरान्त शेष को जलाया जा रहा है जिससे पर्यावरण, मनुष्य एवं पशु स्वास्थ्य की हानि हो रही है। अवशेष प्रबन्धन विकल्प इस प्रकार हो सकते हैः

  • अवशेषों को पशुचारा अथवा औद्योगिक उपयोग के लिए इकट्ठा करना।
  • अवशेषों को मिट्टी में मिश्रित करना।
  • अवशेष के भूमि के सतह पर रखना।

1. अवशेषों को पशुचारा अथवा औद्योगिक उपयोग के लिए इकट्ठा करना

  • धान के पुआलध् पराल क पशु चारे के रूप में प्रयोग (यद्यपि इसमें सिलिका की मात्रा काफी अधिक हैं) धान के पुआल का यूरियाध्कैल्शियम हाइड्रोऑक्साइड से उपचार या फिर प्रोटीन द्वारा संवर्धन कर पशु चारे के रूप में उपयोग।
  • पुआल को भूराध् सफेद तथा मुलायम सड़न कवकों के प्रयोग द्वारा उपचार से गुणवत्ता में सुधार कर चारे के रूप में उपयोग।
  • पुआल को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर वाष्प से उपचारित कर चारा के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है।
  • स्ट्रों बेलर द्वारा खेत में पड़े फसल अवशेषों का ब्लॉक बनाकर कम जगह में भंडारित कर चारे में उपयोग।
  • रीपर का प्रयोग कर भूसा बनाना।
  • फसल अवशेषों का मशरुम की खेती में सार्थक प्रयोग किया जा सकता है।
  • धान के अवशेषों का गैसीकरण कर ऊर्जा का उत्पादनः कई सारी कम्पनियाँ धान के पुआल से बिजली पैदा कर रही है। यह फसल अवशेष का एक प्रभावी प्रबन्धन है। देश के मुख्य चावल उत्पादक राज्यों में बड़े पैमाने पर इसे प्रसारित करने की आवश्यकता है।
  • फसल अवशेषों के प्रभावी प्रयोग जैसे, गत्ता बनाना आदि नए-नए वैकल्पिक उपयोगों का पता लगाने की नितान्त आवश्यकता।

2. अवशेषों को खेत में जलाना

किसी भी दृष्टिकोण से फसल अवशेषों को जलाना उचित नहीं है अतः किसानों को फसल अवशेष प्रबन्धन के इस विकल्प पर अमल करने की जरूरत नहीं है। संरक्षण कृषि प्रणाली का अंगीकरण व फसल विविधीकरण द्वारा अवशेष जलाने की समस्या से निजात मिल सकता है।
 
3. अवशेषों को मिट्टी में मिश्रित करना

  • फसल की कटाई के उपरांत रोटावेटर से जुताई कर एक पानी लगा देने से फसल अवशेष मिट्टी में मिल जाते हैं फिर बाद में अगली फसल की बिजाई या रोपाई आसानी से की जा सकती है।
  • धान व गेहूँ के अवशेषों की जुताई कर पानी लगा देने से प्रबन्धन सम्भव है। साथ ही 20-35 कि.ग्रा. यूरियाध् हे. की दर से डाल देने से अवशेषों के विगलन की प्रक्रिया तीव्र हो जाती है।बायोचार, कार्बनीकृत धान के अवशेषों द्वारा मृदा का बायोचार करने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ने के साथ-साथ उत्पादन दक्षता भी बढ़ जाती है।
  • खेतों में ही रासायनिक विधियों द्वारा कम्पोस्ट बनाने की तकनीकें विकसित कर किसानों को मुहैया कराई जाए।

4. अवशेष के भूमि के सतह पर रखना

  • गेहूँ की कटाई के बाद खड़े फानो में जीरो टिलेज मशीन या टबों हैप्पी सीडर से मूँग या ढैंटा की बुआई कर फसल अवशेष प्रबन्धन सम्भव है।
  •  धान की कटाई के बाद गेहूँ की जीरो टिलेज तकनीक से बुआई द्वारा प्रभावी ढंग से फसल अवशेष प्रबन्धन किया जा सकता है।
  • गन्ने की कटाई के बाद रोटरी डिस्क ड्रिल से गेहूँ की बीजाई को बड़े पैमाने पर प्रचलित कर गन्ना फसल में प्रभावी अवशेष प्रबन्धन किया जा सकता है।
  • खड़ी कपास की फसल में गेहूँ की रीले क्रापिंग तथा खड़ी गेहूँ का फसल में मूँग की रीले क्रापिंग द्वारा फसल अवशेष का प्रभावी प्रबन्धन किया जा सकता है। यह विधि अवशेषों को जलाने की प्रथा को रोकने में सहायक होगी।
  • अवशेषों से पलवारध् मल्च को खेती में प्रयोग कर विभिन्न फसलों में खरपतवार के प्रकोप को भी कम किया जा सकता है साथ ही मृदा के सेहत में सुधार किया जा सकता है।
  • फसल अवशेषों को सतह पर रखने से कम पानी की आवश्यकता होती है।
  • मृदा में पानी के प्रवेश की क्षमता में सुधार होता है।
  • मृदा के अपरदन में कमी।
  • तापमान का अनुकूलन अर्थात गर्मी में तापमान को कम रखता है तथा सर्दी में तापमान को बढ़ाता है।
  • फसल के कैनोपी को ठंडा रखता है जिसकी वजह से अस्तस्थ ताप का प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • संरक्षण कृषि के लिए एक तिहाई फसल अवशेषों का मृदा के सतह पर रखना एक अनिवार्य आवश्यकता है।

 
फसल अवशेष प्रबन्धन परियोजना (इन सीटू) हेतु उन्नत कृषि यन्त्र मशीनरी

  • सुपर एस.एम.एस या स्ट्रा चोपर से फसल अवशेषों को बारीक टुकड़ों में काटकर भूमि पर फैलाएँ। तत्पश्चात हैप्पी सीडर द्वारा गेहूँ की सीधी बिजाई करें।
  • फसल अवशेषों को मल्चर द्वारा मिट्टी में मिलाएँ। उल्टा हल द्वारा फसल अवशेषों को मिट्टी में दबाएँ।
  • स्ट्रा चोपर, हे-रैक, स्ट्रा बेलर का प्रयोग करके फसल अवशेष की गांठें बनाएँ और आमदनी बढ़ाएँ।
  • जीरो ड्रिल, रोटोवेटर, रीपर-बाईन्डर व स्थानीय उपयोगी व सस्ते यन्त्रों को भी फसल अवशेष प्रबन्धन हेतु अपनाएँ।

 
निष्कर्षः देश के किसानों को अपनी मृदा की सेहत, अपनी व पशुओं की सेहत का ख्याल रखने और सामाजिक व राष्ट्रीय दायित्व के निर्वाह के लिए फसल अवशेषों के प्रबन्धन का समुचित उपाय करना चाहिए।

 

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Post By: Shivendra
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