फेज-2 का पुनर्वास

तटबंध निर्माण का दूसरा दौर 1971 में शुरू हुआ जब बागमती पर सीतामढ़ी में ढेंग से रुन्नी सैदपुर तक तटबंध बनाये गए। तटबंध निर्माण के इस दौर में आते-आते आम लोगों में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कुर्बानी देने का जज्बा समाप्ति पर था। नेताओं की नई जमात सामने आ रही थी जो भावुक तथा जुझारू कम और व्यावहारिक ज्यादा थी। ब्रिटिश शासन काल के इंजीनियरों की पीढ़ी भी धीरे-धीरे आंखों से ओझल हो रही थी और अब इन लोगों ने अपनी गलतियों और जिम्मेवारियों से दामन झाड़ लेने की कला सीख ली थी। कोसी परियोजना में भ्रष्टाचार की कहानियाँ प्रायः हर बिहारवासी की जबान पर चढ़ी हुई थीं और वहाँ विस्थापितों के साथ शासकों की डांड़ा-मेंड़ी के किस्से भी हवा में खूब तैर रहे थे। यह किस्सा दूसरी जगह उपलब्ध है इसलिए यहाँ हम उसके विस्तार में नहीं जायेंगे। इन्हीं परिस्थितियों में बागमती परियोजना की दूसरी किस्त के तटबंधों के विस्थापितों के पुनर्वास का काम शुरू होता है।

बागमती नदी पर दूसरी किस्त के तटबंधों, ढेंग से रुन्नी सैदपुर तक के निर्माण के समय तक बिहार में कोसी तटबंधों का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया था। कोसी तटबंधों के विस्थापितों के पुनर्वास के लिए बिहार सरकार ने विधान सभा 1958 में जो नीतिगत वक्तव्य दिया था उसे यहाँ दिया जा रहा है-

‘‘1. तटबंधों के आस-पास बाढ़ मुक्त जमीन में पुनर्वास किये जाने वाले गाँवों के समीप ही घर बनाने के लिए पर्याप्त भूमि उपलब्ध।
2. सामुहिक सुविधाओं जैसे विद्यालय, सड़क आदि के लिए अतिरिक्त भूमि का प्रबंध।
3. पुनर्वास किये गए स्थानों में तालाब, जलकूप, कुएं आदि द्वारा जलापूर्ति की व्यवस्था।
4. गृह निर्माण के लिए अनुदान।
5. तटबंध के बीच जहाँ कृषिकार्य होगा वहाँ आने जाने के लिए यथेष्ट संख्या में नौकाओं का प्रबंध।’’

यह बात सरकार की तरफ से 1958 में कही गयी थी जबकि वहाँ तटबंधों का निर्माण कार्य 1955 में शुरू हुआ था। 1972-73 आते-आते तक कोसी परियोजना में पुनर्वास की चर्चा बहुत ही विवादित स्तर तक पहुँच गयी थी क्योंकि वहाँ विस्थापित हुए लोग दर-दर की ठोकरें खा रहे थे और पुनर्वास की गति बहुत धीमी थी। पुनर्वास योजनाओं में टाल-मटोल का काम अब दस्तूर बन चुका था और इसी दस्तूर के मुताबिक बागमती परियोजना में भी पुनर्वास की सुधि सरकार ने तब ली जब योजना पर काम शुरू हुए 3-4 साल का समय बीत चुका था।

बिहार सरकार की एक अधिसूचना (बाढ़- 1/तट-205/75/अश/3129 दिनांक 11 जुलाई 1975) के अनुसार नए तटबंधों के निर्माण के फलस्वरूप विस्थापितों के पुनर्वास पर सरकार के निर्णय को रेखांकित करते हुए कहा गया था कि,

‘‘1. तटबंध के बीच बसने वाले प्रत्येक परिवार को सुरक्षित क्षेत्र में तटबंध से यथासंभव निकट उनकी बासडीह के बराबर जमीन दी जाए,
2. सड़क, विद्यालय, कुआँ आदि सार्वजनिक सुविधाओं के लिए अतिरिक्त भूमि दी जाए तथा उसकी मात्रा आवश्यकतानुसार निर्धारित की जाए,
3. प्रत्येक विस्थापित परिवार को तटबंध के अंदर मकान की सामग्री पुनर्वास स्थल पर लाने हेतु 300/- रु. ढुलाई के रूप में दिया जाए, परन्तु जो मकान फूस के नहीं हैं, बल्कि खपरैल तथा पक्के के हैं, उनकी एक श्रेणी बनाकर उनके लिए क्षतिपूर्ति की दर कुछ बढ़ा कर निर्धारित की जाए,
4. पुनर्वासित ग्राम में प्रत्येक 40 पुनर्वासित परिवारों के लिए एक हैंडपम्प दिया जाए तथा उस ग्राम के समस्त पुनर्वासित परिवारों के लिए एक कुआँ की व्यवस्था की जाय। यदि पुनर्वास स्थल काफी बड़ा हो तो एक और कुआँ दिया जाय।

परिवारों की गणना, विस्थापितों के लिए भूमि के रकबे की आवश्यकता, जिला पदाधिकारी की राय से पुनर्वासित स्थल का चयन करना, सड़क, कुएं तथा हैंडपम्प के निर्माण आदि का कार्य संबंधित कार्यपालक अभियंता के जिम्में सुपुर्द रहेगा। इन कार्यों के संपादन का पूर्ण दायित्व संबंधित अधीक्षण अभियंता का होगा।’’

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Post By: tridmin
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