पुनर्वास के नाम पर 500 करोड़ का महाघोटाला

डूब क्षेत्रवासियों के साथ धोखधड़ी
डूब क्षेत्रवासियों के साथ धोखधड़ी

45 साल का केल्या पश्चिमी मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी के उन सैकड़ों आदिवासियों में शामिल है, जो विवादित सरदार सरोवर परियोजना के डूब क्षेत्र में आई जमीन के मुआवजे के लिए फर्जी रजिस्ट्री गिरोह के जाल में फंसे दिखाई देते हैं। केल्या बड़वानी जिले के घोंघसा गांव का रहने वाला है। फर्जी रजिस्ट्री गिरोह के बहकावे में आया अनपढ़ मजदूर अपनी पैतृक जमीन के मुआवजे की खातिर कथित तौर पर दलालों के तैयार दस्तावेजों पर अंगूठा लगाता चला गया। हालांकि, अब उसे अच्छी तरह पता चल गया है कि वह संगठित धोखाधड़ी का शिकार हुआ है। केल्या ने टूटी-फूटी हिन्दी में बताया कि बांध परियोजना के चलते डूब में आई जमीन का मुआवजा दिलाने के लिए कोई विजय जाट उसके गांव पहुंचा। कुछ दिन बाद यह शख्स उसे और गांव के चार अन्य लोगों को नजदीकी शहर खरगोन ले गया, जहां दो कमरों के मकान में कुछ कागजों पर उससे अंगूठा लगवा लिया गया। केल्या ने कहा कि जाट ने डूब में आई जमीन के मुआवजे की किश्त की रकम उनके बैंक खाते से निकलवाई। हम लोगों की पास बुक उसी के पास थी। उसने मुझे पहली बार केवल 50 हजार रुपये दिये, जबकि दूसरी बार 30 हजार रुपये दिये गये। इसके बाद उससे मेरी मुलाकात नहीं हुई।

नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) का आरोप है कि केल्या का मामला सरदार सरोवर बांध परियोजना के पुनर्वास में हुए ‘महाघोटाले’ का ‘ट्रेलर भर’ है, जिसमें सरकारी तंत्र की सीधी मिलीभगत वाले गिरोह ने धड़ाधड़ फर्जी रजिस्ट्रियां कराईं और इनके बूते करोड़ों रुपये का मुआवजा हड़प लिया। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश पर 21 अगस्त 2008 को गठित न्यायमूर्ति एसएस झा आयोग सरदार सरोवर परियोजना के राहत और पुनर्वास में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कर रहा है। उधर, प्रदेश सरकार ने भरोसा दिलाया है कि वह आयोग की रिपोर्ट की आधार पर जरुरी कार्रवाई सुनिश्चित करेगी। एनबीए की प्रमुख नेता मेधा पाटकर कहती हैं कि, “सरदार सरोवर परियोजना से मध्यप्रदेश में विस्थापित लोगों के पुनर्वास का यह महाघोटाला 500 करोड़ रुपये से ज्यादा का है, जो सरकारी कारिंदों और दलालों की मिलीभगत के बिना हो ही नहीं सकता था।” उनका आरोप है कि मोटे तौर पर वर्ष 2002 से वर्ष 2008 के बीच हुए फर्जी रजिस्ट्री महाघोटाले में पुनर्वास, राजस्व और पंजीयन विभाग के सरकारी कारिंदे शामिल हैं।

 

 

सरदार सरोवर परियोजना के डूब क्षेत्र में आयी जमीनों के मुआवजे की रकम दिलाने के नाम पर विस्थापितों को बहकाया। उन जमीनों की खरीदी के आधार पर भी मुआवजा हासिल कर लिया गया, जिनका भू-राजस्व रिकॉर्ड में कोई वजूद ही नहीं है।

मेधा ने कहा है कि बांध परियोजना के कथित महाघोटाले के खुलासे के बाद राहत और पुनर्वास संबंधी सरकारी दावे झूठे साबित हो गये हैं, क्योंकि बड़ी संख्या में विस्थापित परिवारों के जमीन खरीदी के कागज फर्जी निकले हैं। ऐसे भी मामले सामने आये हैं, जिनमें बांध परियोजना से विस्थापित लोगों को मिलने वाले मुआवजे की रकम हड़पने के लिये पेड़ के नीचे भी रजिस्ट्री कर दी गई। मेधा ने मांग की कि फर्जी रजिस्ट्री महाघोटाले में जिन अधिकारियों के नाम सामने आये हैं, उन्हें फौरन पद से हटाया जाना चाहिये। पद पर रहते हुए वे जांच को प्रभावित करने के लिये सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं। एनबीए से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता अमूल्य निधि ने बताया कि फर्जी रजिस्ट्री महाघोटाले में तीन हजार से ज्यादा रजिस्ट्रियां जांच के घेरे में हैं। उनका दावा है कि इनमें से अधिकांश रजिस्ट्रियां पहली नजर में फर्जी प्रतीत होती हैं। फर्जी रजिस्ट्रियों के मामले खरगोन, बड़वानी, धार और देवास समेत आठ जिलों से जुड़े हैं।सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, ‘फर्जी रजिस्ट्री महाघोटाला सुनियोजित और सुव्यवस्थित भ्रष्टाचार का नमूना पेश करता है, जिसमें सरकारी चपरासी से लेकर, बैंक अफसर, भू अर्जन अधिकारी, राजस्व तथा पंजीयन विभाग के अधिकारी और दस्तावेज लेखक शामिल हैं। अमूल्य के मुताबिक, फर्जी रजिस्ट्री के ऐसे मामलों की कमी नहीं है जिनमें जमीन खरीदने वाले व्यक्ति ने जमीन बेचने वाले व्यक्ति को पहचानने से इंकार कर दिया, जबकि दस्तावेजों पर दोनों के नाम और फोटोग्राफ हैं।

उन्होंने कहा कि फर्जी रजिस्ट्री गिरोह ने सरदार सरोवर परियोजना के डूब क्षेत्र में आयी जमीनों के मुआवजे की रकम दिलाने के नाम पर विस्थापितों को बहकाया। उन जमीनों की खरीदी के आधार पर भी मुआवजा हासिल कर लिया गया, जिनका भू-राजस्व रिकॉर्ड में कोई वजूद ही नहीं है। अमूल्य बताते हैं कि इस मामले में केंद्र सरकार के दखल के बाद नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण (एनवीडीए) ने अपनी जांच में सैकड़ों फर्जी रजिस्ट्रियों की बात खुद स्वीकारी है। उधर, कथित फर्जी रजिस्ट्री महाघोटाले के बारे में पूछे जाने पर प्रदेश के नर्मदा घाटी विकास राज्यमंत्री और एनवीडीए अध्यक्ष कन्हैयालाल अग्रवाल ने कहा कि हमने इस मामले की जांच के लिए उच्च न्यायालय के आदेश पर झा आयोग गठित किया है। आयोग की रिपोर्ट की प्रतीक्षा की जानी चाहिये। इस रिपोर्ट के आधार पर हम जरूरी कार्रवाई करेंगे।’ महाघोटाले से जुड़े अधिकारियों के पद पर बने रहने से जांच प्रभावित होने की आशंका पर अग्रवाल कहते हैं, ‘अगर इस बारे में हमारे पास तथ्यात्मक शिकायत आती है तो दोषी पाये जाने पर अफसरों को पद से हटा दिया जाएगा। सरकार ऐसे लोगों को कतई प्रोत्साहित नहीं करेगी।
 

 

 

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