पौड़ी गढ़वाल के सुमाड़ी के गौरीकुंड पुनर्जीवन का एक भगीरथ प्रयास

पौड़ी गढ़वाल के सुमाड़ी के गौरीकुंड की एक प्रतिकात्मक तस्वीर
पौड़ी गढ़वाल के सुमाड़ी के गौरीकुंड की एक प्रतिकात्मक तस्वीर

रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून पानी गये न ऊबरे, मानुष मोती चून ।।

वर्तमान समय में जल की बढ़ती मांग के मददेनजर जल संरक्षण परम आवश्यक है। जल से ही जुड़ा है मनुष्य का जीवन-मरण, आज दुर्भाग्य से अत्यधिक दोहन के कारण कुछ ही फीट पर मिलने वाला पानी कई सौ फीट नीचे चला गया है। जमीन के अन्दर की उथल-पुथल के कारण भूमिगत जल भण्डार घटते जा रहे हैं। जल संकट क्या होता है उन लोगों से पूछो जो अपने निवास से कई किलोमीटर पैदल चलकर दरियाओं, पोखरों से ढोकर पानी लाते हैं। यहां तक कि अपने मवेशियों को बचाने के लिए दूर दरियाओं, पोखरों के तटों पर झोपड़ी बना कर रह रहे हैं। इतिहास में उदाहरण है कि पानी की कमी के कारण ही अकबर की फतेहपुर सीकरी वीरान हो गई थी।

अगर हम चाहें तो अपनी जीवन शैली बदल कर पचास प्रतिशत पानी बचा सकते हैं। उदाहरण के लिए एक टपकते नल से एक बूंद प्रति सेकंड पानी की बर्बादी एक माह में सात सौ साठ लीटर पानी के बराबर होती है।

हमें वर्षा जल को गहरे गड्ढे खोदकर, वर्षा जल को रोक कर जल स्रोतों के पानी को बढ़ाना होगा। हर मकान की छतों का पानी पाईप से सीमेन्ट के बने रिजर्व टैंकों में जमा करके अपने दैनिक कार्य किये जा सकते हैं। इसका इस्तेमाल कपड़े धोने, मवेशियों को पिलाने, शौचालयों के प्रयोग के लिये किया जा सकता है। दूसरा विकल्प जल संग्रहित करने वाले पहाड़ी वॉज, उतीस आदि पौधों का रोपण करना चाहिए।

जल संरक्षण का प्राचीन उदाहरण देखियेः-उत्तराखंड में बसे सुमाड़ी ग्राम का, यह ग्राम सन् पन्द्रह में आदि पुरुष स्व. राजविलोचन काला ने गौलक्ष पर्वत के ईशान कोण पर बसाया था, यह गौलक्ष की भूमि गढ़ नरेश अजय पाल ने श्री राजविलोचन काला को दान में दी थी। स्कंद पुराण के अनुसार सन् पंद्रह सी से पहले यहां पर कोई स्थाई बसावट नहीं थी। केवल वास पात तथा अधिक ऊँचाई में पाई जाने वाले झाड़ीनुमा बुरांस की प्रजाति थी। 8वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य जी ने इस गौलक्ष पर्वत पर मंदिर समूह का निर्माण किया था।

स्कंद पुराण के प्रथम खण्ड, महेश्वर के केदारखंड, के संस्करण में 172वें अध्याय में वर्णित है कि इस गौलक्ष पर्वत पर जब कोई बसावट नहीं थी उस समय यहां घुमंतू पशु पालक रहा करते थे उन्हीं में महायश नामक ग्वाला अपनी एक लाख गायों को चुगाया करता था उसे शिवजी ने दर्शन दिये थे और कहा था कि महायश में गौक्षमेश्वर नाम का शिव हूं, पानी के स्रोत के पास तुम मेरी स्थापना करो, तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी, मुझे यह गोलक्ष पर्वत अत्यन्त प्रिय है में यहां से पलभर भी कहीं अन्यत्र नहीं जा सकता। तुम्हारी गायों का गोमूत्र जो इस धरती में समा रहा है वह धारा बन कर बहेगा, जो भी इस जल का एक आचमन भी करेगा, वह सामुज्य मरणोपरान्त वैकुण्ठ धाम को जायेगा, उसके सम्पूर्ण पापों का क्षय होगा।

जल के संदर्भ में एक किवदति के अनुसार गौरा देवी ने अपनी वाक शक्ति से शिवालय समूह के समीप जल स्रोत को पैदा किया था। इसी जल स्रोत के समीप पश्चिम दिशा की तरफ श्री राजविलोचन काला ने एक कोठे का निर्माण करवाया था। इस कोटे के मुख्य प्रवेश द्वार (खोली) का मुंह पूरब दिशा की ओर था। कोठे के उत्तर दिशा में यह जल स्रोत था तथा दूसरा जल स्रोत पूरब दिशा की ओर कोठे की दीवार से सात फीट दूरी पर था। इन दोनों जल स्रोतों का पानी जमीन के नीचे से बड़ी तीव्र गति से फव्वारे की तरह ऊपर उछल कर आता था। सन् 1500 में अपनी सुविधानुसार उत्तर दिशा के स्रोत का पानी, आठ इंच गहरी व आठ इंच चौड़ी पत्थरों की चिनाई करवा कर एक सौ फीट दक्षिण दिशा की ओर ले जाकर कटुवा पत्थरों से 6'x6' का चौकोर जल कुण्ड तीन फीट गहरा बनवा दिया गया। और उसमें जल संग्रह किया। इस कुण्ड की तीन दीवारें पुरव, उत्तर और पश्चिम दिशा में कटुवां पत्थरों से बनवाकर ऊपर से बड़े कटुवां पत्थरों की स्लेटों से उसे ढक दिया गया, इस कुण्ड को गौरी कुंड कहा जाने लगा। कुंड इस प्रकार बनवाया गया कि ओवर फ्लो का पानी, 10 फीट की दूरी पर बने एक छोटे 2'x2' तथा 2 फुट गहरे सीमेंट के टैंक तक पहुंच सके। तत्पश्चात् टैंक के पानी को लोहे के 2 इंज डाया के पाइप द्वारा मंदिर समूह के चबूतरे की सतह पर ले जाकर वहां पर एक स्टैंड पोस्ट बनवा दिया गया। इसके समीप ही लगभग बीस फीट लम्बी तथा तीन फीट चौड़ी और तीन फीट गहरी कटुवां पत्थरों की वाँवड़ी बना दी गई जिसको चौर कहा जाने लगा, यह पशुओं के लिए थी इस चौर के पानी से गाय, भैंसों को नहलाया जाता था।

सन् 1991 में चौर लीक होने लगी। इस लेख के लेखक ने इस चौर का जीर्णोद्धार किया। तेईस वर्ष बाद फिर चौर के कटुवा पत्थर लीक करने लगे। सन् 2013 में फिर दोबारा चौर का जीर्णोद्धार किया गया। इसमें स्टैण्ड पोस्ट की जगह संगमरमर का गौमुख भव्यता के लिये लगाया गया और चौर के अन्दर बाहर से टाईल लगाई गई और चौर के ऊपर टिन की छत लगाई गई। गी मुख से पहले दो इंच डाया वाले पाईप से कील वॉल्व पानी को बन्द करने के लिए लगाया गया और टी लगा कर आधा इंच हाया के पाईप से पानी चौर के पास बने सीमेन्ट टैंक तक पहुंचाया गया। इसी टैंक का पानी नहाने, कपड़ा धोने के इस्तेमाल आने लगा, इसी टैंक से वर्तमान में एक पाईप से एन.आई.टी. सुमाडी (श्रीनगर) परिसर तक पेयजल पहुंच रहा है। इस टैंक से जो नहाने धोने का पानी बहता है वह सीमेंट की नाली द्वारा नीचे खेतों में बने टैंकों तक पहुंच कर सिंचाई के प्रयोग में लाया जाता है।

कोठे के समीप दूसरे स्रोत का पानी अलकाथिन के दो इंच डाया वाले पाईप से मंदिर से सटी छोटी बाँबड़ी तक 83 फीट तक पहुंचाया गया। तथा इसका भी ओवर फ्लो पानी चौर के अन्दर पहुंचाया गया। प्राचीन काल से ही बड़ी बावड़ी को कोठे के समीप दूसरे स्रोत का पानी अलकाथिन के दो इंच डाया वाले पाईप से मंदिर से सटी छोटी बाँबड़ी तक 83 फीट तक पहुंचाया गया। तथा इसका भी ओवर फ्लो पानी चौर के अन्दर पहुंचाया गया।

प्राचीन काल से ही बड़ी बावड़ी को "गौरी कुंड" कहा जाता है। इस कुंड में पानी की शुद्धता बनी रहे इसमें नन्ही प्रजाति की मछलियां पूर्व काल से देखी जाती रही हैं। ये मछलियां दाई-तीन इंच लम्बी देखी जाती हैं ये बड़ी होकर कहां चली जाती हैं ईश्वर ही जाने, बरसात के समय जब अलकनन्दा का पानी मटमैला हो जाता है तब गीरी कुंड का पानी भी मटमैला होकर अपने साथ रेत बहाकर लाता है।

अत्यधिक दोहन व प्राकृतिक आपदाओं ने भी इस गौलक्ष पर्वत को अपनी चपेट में लिया था जिसका प्रभाव सुमाड़ी गांव के डांग मौहल्ले में पानी की बड़ी बाँवड़ी का स्रोत, वेरखंडों तोक का धारे का स्रोत, खांडो तोक के जल स्रोत अवरूद्ध होकर सूख गये, इतना ही नहीं मन्दिर समूह के मंदिर भी जमीन में घुस गये कोई पैतालीस डिग्री दाहिने, बाये व पीछे झुक गये, यह गांव के लिये चिन्ता का विषय था।

सन 1979 में कुछ साहसिक नवयुवकों ने एक समिति बनाई, इसके अध्यक्ष श्री श्रीथर प्रसाद काला पुत्र रव. रामचन्द्र काला, उपाध्यक्ष श्री गणेश प्रसाद बहुगुणा, सचिव श्री इन्द्र मोहन काला, सदस्यों में स्व. विरेन्द्र काला मोहल्ला डांग, श्री चन्द्रप्रकाश प्रसाद काला, श्री ललित मोहन घिल्डियाल थे। इस समिति ने अपने मार्गदर्शन के लिए स्व. नरोत्तम प्रसाद काला (पतरोल) च स्व. रतनमणी काला वैद्य को चुना, इनके मार्ग दर्शन में कार्य शुरू हुआ गौरी कुंड की नाली दस फीट गहरी व चार फीट चौड़ी व एक सी फीट लम्बी नाली खोदी गयी। नाली की चिनाई करके पानी सुचारू किया गया। इस लेख के लेखक ने स्व. नरोत्तम प्रसाद जी को कहा था कि अभी भगीरथ प्रयत्न कर नाली की खुदाई की गयी है। तो इस बार इस नाली के स्थान पर हमें सीमेन्ट के बने पाईप डाल देने चाहिये। तब उन्होंने कहा था कि वेटे। अभी हमारी आर्थिक समस्या है। भविष्य में सोचा जा सकता है। आखिर में नाली बनवा कर पूर्ववत् ढक दिया गया और खेत समतल कर दिया गया। समय गुजरता गया। सोलह वर्ष बाद सन् 1994 में बड़ी बाँवड़ी के स्रोत से पेड़ों की जड़े पानी के साथ वाँवड़ी के अन्दर आने लगी, तब फिर लेखक ने गौरी कुंड की तीनों दीवारों की सतह तक पीछे से खुदाई करवाई, पानी के अवरोधक हटाये गये, खेत में खड़े पेड़ काटे गये, नालियों की सफाई की गई। आंगन के ऊपर सीढ़ियां तथा दीवार बना कर लोहे की रेलिंग लगाई गई ताकि मैदान में खेलने वाले बच्चों की गेंद बाँवड़ी के अन्दर न जा जाये। इस कार्य में लेखक का सहयोग श्री केशवानन्द काला, श्री उद्धव प्रसाद काला व श्री शशि कुमार कगड़ियाल ने दिया। सन् 2020 में श्री मोहन चन्द्र काला (दिनेश) ने गौरी कुंड के मुख्य द्वार पर सजीला चैनल गेट दाहिने-बांचे स्लाईड होने वाला अपने व्यय पर लगवा दिया।

ईश्वरीय कृपा है कि जब उत्तराखंड में भयंकर सूखा पड़ा तो सब जगह के स्रोत सूख गये, अन्य गांवों के लोग दूर-दूर पानी के लिये भटकते रहे। तब गीरी कुंड का पानी मनुष्यों और पशुओं के लिये पर्याप्त था। अव प्रश्न यह भी उठता है कि जब गांव के ऊपर जल संचय करने वाला जंगल ही न हो तो इस खरमुण्डे पहाड़ पर गौरी कुंड का पानी किस प्रकार सही सलामत है? प्रश्न यह भी उठता है कि श्रीगनर से अलकनन्दा का पानी किस विधि से इतनी ऊंचाई पर गौरी कुंड तक आ रहा है?

सुना गया है और देखा भी जा रहा है कि गौलक्ष पर्वत रहस्यों का पिटारा है। यह यदा-कदा ऐसी घटनाओं को जन्म देता है जिन्हें स्थूल बुद्धि से समझ पाना नामुमकिन है। अगर परोक्ष जगत के गुहा विज्ञान को समझना है तो उसके लिये साधारण बुद्धि और लौकिक ज्ञान से ऊपर उठना होगा। तभी उसके वास्तविक निमित्त को समझ पाना सम्भव है, अन्यथा नहीं। आध्यात्म जगत के घटना क्रम इसी तथ्य की पुष्टि करते हैं। गीलक्ष पर्वत की ऐसी घटनाओं के विषय में दिवंगत वृद्ध जनों के मुंह से भी बातें सुनी जाती रही हैं।

जल संरक्षण को मध्यनजर रखते हुये सन् 1980 में श्री गणेश प्रसाद काला पुत्र स्व. ब्रह्मी दत्त काला ने गांव के ऊपर मनीपुरी वॉज की पौघ का रोपण किया। इन पेड़ों को जीवित रखने के लिये लेखक ने अकेले बीड़ा उठाया और उन पर थाले बना कर उनके ऊपर छोटे-छोटे पत्थर रख दिये ताकि बरसात के बाद थालों के अन्दर नमी बनी रहे। इस कार्य में उनका साथ दिया श्री श्रीचरण काला पुत्र स्व. श्री गोविन्द राम डिप्टी कलेक्टर ने, 82 वर्ष की आयु में उनके द्वारा जन हित के कार्य में दिया गया सहयोग सराहनीय है।

दूसरा अभियान सन् 2016 में श्री नेत्र मणी मलासी जी ने पौधा रोपण का चलाया। उन्होंने पांच सौ पेड़ पहाड़ी बाँज, बुँरास, देवदार व बेलपत्र के रोपित - करवाये। इसमें गांव के नवयुवक, महिला मंगल दल व श्री मोहन चन्द्र काला (दिनेश), श्री मुकेश मास्टर, श्री मनोज मास्टर डॉ. राजाराम नौटियाल व उनकी माता पद्‌द्मा देवी (82 वर्ष) तथा श्री राजमोहन चमोली ने सहयोग दिया।

शायद गौलक्ष पर्वत के पौराणिक व आध्यात्मिक महत्व के कारण क्षेत्रीय श्रद्धालुओं के दल भाद्रपद माह में गौलक्ष की परिक्रमा करने आते हैं। परिक्रमा के बाद गौरी कुंड के जल से पंच स्नान कर गौरी कुंड का पानी पी कर अपने को धन्य मानते हैं।

लेखक का इस गोलक्ष पर्वत के अदृश्य देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों को कोटि-कोटि प्रणाम जिनकी कृपा से गौरी कुंड का पानी पर्याप्त रहता है।

संपर्क करें:
विमल चन्द्र काला (गोपी)
ग्राम व पत्रालय सुमाड़ी जनपद-पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)

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Post By: Kesar Singh
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