पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखण्ड)

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उत्तराखंड में जल संरक्षण एवं संवर्धन की प्रासंगिकता
किसी भी राष्ट्र की सामाजिक, आर्थिक समृद्धि के लिये घरेलू उपयोग के समान ही स्वच्छ जल जरूरी होता है, तभी उसका समुचित लाभ मिल पाता है। जहां तक उत्तराखण्ड राज्य की बात है, यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि एक समय था जब यहां अनेक प्राकृतिक जल स्रोत उपलब्ध थे, नदियां, गाड़-गधेरे, घारे, कुंए, नौले, झरने चाल-खाल, झील, ताल आदि बहुतायत से उपलब्ध थे, इन प्राकृतिक जल संसाधनों की अधिकता एवं बहुत बड़े भू-भाग में फैले सघन वन क्षेत्र को मध्यनजर रखते हुये लकड़ी और पानी की कमी की कल्पना तक भी नहीं की जाती थी, तभी तो गढ़वाली जनमानस में एक लोकोक्ति प्रचलित वी कि- "हौर घाणि का त गरीव हूह्वया-ह्ह्वया पर लाखडु-पाणि का भि गरीब ह्वया"। अर्थात अन्य वस्तुओं की कमी (गरीबी) तो सम्भव है लेकिन लकड़ी और पानी की भी गरीबी हो सकती है? असम्भव ।
Posted on 20 Jun, 2024 10:10 AM

जल प्रकृति का अनुपम उपहार है। मान्यता है कि पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति जल से ही हुई। जीवनदाता जल की मानव ही नहीं अपितु समस्त जीव-जंतु, वनस्पतियों के लिये कितनी अधिक उपयोगिता है, यह बात किसी से छिपी नहीं है, तभी तो कहते हैं- "जल ही जीवन है"। जल के बिना जीवन की कल्पना तक नहीं की जा सकती, जल और जीवन का अटूट सम्बन्ध है। जल तत्व वाष्प और बादल के रूप में आकाश में विद्यमान रहता है, वे बादल बरसकर पृथ्व

प्रतिकात्मक तस्वीर
पौड़ी गढ़वाल के सुमाड़ी के गौरीकुंड पुनर्जीवन का एक भगीरथ प्रयास
Posted on 12 Jun, 2024 06:30 PM

रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून पानी गये न ऊबरे, मानुष मोती चून ।।

पौड़ी गढ़वाल के सुमाड़ी के गौरीकुंड की एक प्रतिकात्मक तस्वीर
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