पशुओं में प्रकाश प्रबंधन


जिन गायों व बछड़ियों को गर्भावस्था के दौरान लघु प्रकाश अवधि के दिनों में रखा जाता है वे प्रसवोपरांत अपेक्षाकृत अधिक दूध देती हैं। अत: दुधारू गायों को दीर्घावधि के प्रकाश दिवसों में ही रखना चाहिए ताकि इनमें आई. जी. एफ.-1 तथा प्रोलेक्टिन का स्तर बढ़ने से दूध का अधिक उत्पादन हो सके।

मानव को दिखाई देने वाला प्रकाश वस्तुतः विद्युत-चुम्बकीय तरंगों का एक स्पेक्ट्रम अथवा वर्णक्रम ही है। तरंगों की लम्बाई के घटने या बढ़ने से इनके रंग भी प्रभावित होते हैं। मानव आँख 440-700 नैनोमीटर के मध्य आने वाली नीली व लाल रोशनी को आसानी से देख सकती है। प्रकाश अथवा रोशनी की तीव्रता को ‘लक्स’ की इकाई द्वारा नापा जाता है। परोक्ष रूप से धरती पर पड़ने वाला सूर्य का प्रकाश एक लाख लक्स तथा आकाश में बादल होने पर इसकी तीव्रता लगभग 5000 लक्स तक हो सकती है। पशुओं की देखने की क्षमता मनुष्यों से भिन्न होती है। इनमें रोशनी के विभिन्न रंगों को पहचानने की क्षमता बहुत कम होती है। अनुसंधान द्वारा ज्ञात हुआ है कि रोशनी में रहने वाली गायों की शुष्क पदार्थ ग्राह्यता अधिक होती है जिससे इनका दुग्ध-उत्पादन बढ़ जाता है। उल्लेखनीय है कि रोशनी में रहने से गायों को सामाजिक व्यवहार प्रदर्शित करने हेतु अधिक समय मिलता है तथा ये चारा भी अधिक खाती हैं। यदि गायों को लगातार दिन जैसी रोशनी में रखा जाए तो इनकी दुग्ध-उत्पादन क्षमता कम हो जाती है। अतः दीर्घावधि दिवसों में लगभग आठ घंटे तक अँधेरा अथवा 50 लक्स से कम रोशनी में रखना आवश्यक होता है, जिससे इनकी पोषण ग्राह्यता, शारीरिक भार एवं ऊर्जा दक्षता बेहतर हो जाती है।

जलवायु संबंधी कारकों में फोटोपीरियड अर्थात प्रकाश-अवधि का बहुत महत्त्व है। गायों में प्रजनन से पूर्व शुष्क-काल के अंतर्गत लघु अवधि के प्रकाश दिवसों में दुग्ध-ग्रंथियों का विकास व रोग-प्रतिरोध क्षमता बढ़ती है जबकि प्रसवोपरांत दूध का उत्पादन अधिक होता है। इसके बाद दीर्घ-कालिक प्रकाश दिवसों के अंतर्गत दुग्ध-उत्पादन एवं इसकी दक्षता में सुधार होता है। लघु-अवधि प्रकाश के कारण प्रोलेक्टिन हार्मोन का स्राव कम होता है, जबकि जिगर तथा दूध ग्रंथियों में प्रोलेक्टिन ग्राहियों की संख्या बढ़ने लगती है। अतः प्रोलेक्टिन सिग्नल एवं जिगर की चयापचय क्रियाओं में परस्पर सम्बन्ध देखा गया है। गायों में प्रोलेक्टिन के स्राव में होने वाली कमी वसा के चयापचय के लिये लाभकारी होती है। दुग्ध-उत्पादन में लगभग 75 प्रतिशत परिवर्तन प्रकाश समेत जलवायु संबंधी विभिन्न कारकों से, जबकि शेष 25 प्रतिशत आनुवंशिक कारणों से प्रभावित होते हैं। प्रकाश गाय की विभिन्न दैहिक अवस्थाओं पर कई प्रकार से प्रभाव डालता है।

दुग्धावस्था पर प्रकाश का प्रभाव


जिन दुधारू गायों को दीर्घावधि के प्रकाश दिवसों में रखा जाता है, उनका दुग्ध उत्पादन बढ़ जाता है। अतः डेयरी गायों में प्रकाश-अवधि प्रबंधन द्वारा हम सरलता से दुग्ध-उत्पादन में वृद्धि कर सकते हैं। यदि शुष्क-काल के दौरान गायों को लघु-अवधि के प्रकाश दिवसों में रखा जाए तो अगले दुग्ध-काल में इनका उत्पादन बढ़ जाता है। लघु प्रकाश अवधि की तुलना में दीर्घावधि प्रकाश दिवस जो 16 घंटे या अधिक का हो सकता है, के अंतर्गत दूध का उत्पादन दो से तीन किलोग्राम प्रतिदिन तक अधिक हो सकता है। दुग्ध-उत्पादन में वृद्धि मूलतः आई. जी. एफ. 1 नामक हार्मोन के बढ़ने से सम्भव होती है जो ग्रोथ हार्मोन के स्तर से अप्रभावित रहती है। यदि दीर्घकालिक प्रकाश दिवसों के दौरान बोवाइन सोमेटोट्रोफिन भी दिया जाए तो दुग्ध-उत्पादन पर इसका प्रभाव अधिक पड़ता है। स्पष्टतः प्रकाश अवधि तथा ग्रोथ हार्मोन दोनों मिलकर दुग्ध-उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करते हैं। दुग्ध-काल के विपरीत शुष्क-काल के अंतर्गत दीर्घ प्रकाश अवधि का प्रभाव एकदम भिन्न होता है। लघु अवधि के प्रकाश दिवसों में शुष्क गायों का दुग्ध-उत्पादन दीर्घावधि प्रकाश दिवसों के दौरान रखी गई गायों से कहीं अधिक होता है। यह उत्पादन प्रकाशावधि के दिनों पर निर्भर करता है। शुष्क-काल के दौरान मुख्यतः दुग्ध-ग्रंथियों का विकास होता है जिससे दुग्ध उत्पादन क्षमता बेहतर होती है। दीर्घ-कालिक प्रकाश दिवसों के दौरान यौवनावस्था के आगमन से पहले ही दुग्ध-ग्रंथियों का विकास होने लगता है।

शारीरिक विकास पर प्रकाश का प्रभाव


प्रकाश अवधि बछड़ियों के शारीरिक विकास पर भी सकारात्मक प्रभाव डालती है। शारीरिक विकास का नियंत्रण स्पष्टतः प्रोलेक्टिन एवं ग्रोथ हार्मोनों द्वारा ही सम्भव होता है। दीर्घावधि प्रकाश दिवसों में प्रोलेक्टिन का स्तर तीन से सात गुणा तक बढ़ जाता है। प्रोलेक्टिन के बढ़ने से ग्रोथ हार्मोन का स्तर कम होता है, जिससे ऊर्जा ग्राह्यता एवं शारीरिक विकास की दर में वृद्धि होती है। लघु-कालिक प्रकाश दिवसों की तुलना में दीर्घ-कालिक प्रकाश के अंतर्गत रखी गई बछड़ियाँ भार एवं ऊँचाई में कहीं अधिक होती है। होलस्टीन बछड़ियों को दीर्घावधि प्रकाश दिवसों (16 घंटे) में चार माह तक रखने पर प्राकृतिक प्रकाश अवधि जो 9-12 घंटे तक होती है, की तुलना में 11-17 प्रतिशत अधिक शारीरिक विकास हुआ। यद्यपि ये बछड़ियाँ दीर्घावधि प्रकाश दिवस के अंतर्गत कुछ अधिक खाती हैं फिर भी इनकी चारे को शारीरिक विकास में बदलने की दक्षता में कहीं अधिक वृद्धि होती है।

गाय

प्रजनन पर प्रकाश का प्रभाव


ऋतुओं के कारण जनन पर पड़ने वाले कुछ प्रभावों का सम्बन्ध प्रकाश अवधि से भी होता है। पिनियल ग्रंथि तथा इससे स्रावित होने वाले मेलाटोनिन हार्माेन द्वारा पशु लघु एवं दीर्घावधि प्रकाश दिवस का अनुमान लगा सकते हैं। मेलाटोनिन का अधिकतम स्राव रात को तथा दिन के समय यह सामान्य स्तर पर होता है। लघु अथवा दीर्घावधि के प्रकाश दिवसों से प्रभावित होने वाले पशुओं में अनुकूलन द्वारा कुछ चयापचयी परिवर्तन होते हैं जो इन्हें कठिन परिस्थितियों में ऊर्जा के युक्तिसंगत उपयोग हेतु प्रेरित करते हैं।

दीर्घावधि तक प्रकाश में रहने से गायों की पिनियल ग्रंथि में मेलाटोनिन का उत्पादन लघु अवधि प्रकाश दिवस की तुलना में बहुत कम होता है जिससे ल्युटीनाइटिंग हार्मोन यानि एल. एच. अधिक मात्रा में स्रावित होता है। प्रोलेक्टिन के स्राव से बछड़ियों में परिपक्वता आती है जिसके कारण मद्काल चक्र प्रारम्भ होते हैं। यौवनारम्भ एवं पशु पोषण में परस्पर सम्बन्ध होता है। पर्याप्त पोषण द्वारा बेहतर शारीरिक विकास सम्भव है जो यौवनावस्था शीघ्र लाने में सहायक होता है। गर्मियों में प्रजनन करने वाली गायें सर्दियों वाली गायों की तुलना में अति-शीघ्र मद्काल चक्र प्रदर्शित करती हैं क्योंकि इनमें इस्ट्राडाइओल के प्रभाव से अधिक मात्रा में एल.एच. स्रावित होता है।

मेलाटोनिन हार्मोन प्रकाशीय उद्दीपन को स्नायु-सम्बन्धी अन्तःस्रावी सिग्नल में बदलने की क्षमता रखता है जिससे एल. एच. अर्थात ‘ल्युटीनाइजिंग हार्मोन’ के स्राव पर असर पड़ता है। प्रायः देखा गया है कि सर्दी में उत्पन्न हुई बछड़ियाँ बसंत-काल में जन्मी बछड़ियों की तुलना में जल्द यौवनावस्था में आ जाती हैं, क्योंकि दूसरी छमाही के दौरान दीर्घावधि प्रकाश दिवसों से शीघ्र यौवनावस्था प्राप्त होने में सहायता मिलती है।

रोग-प्रतिरोध क्षमता पर प्रकाश का प्रभाव


प्रोलेक्टिन के स्राव में परिवर्तन होने से गाय की रोग-प्रतिरोध प्रणाली भी प्रभावित होती है। अनुसंधान द्वारा ज्ञात हुआ है कि दीर्घावधि प्रकाश दिवसों की तुलना में लघु प्रकाश अवधि के अंतर्गत प्रसव के समय गाय की रोग-प्रतिरोध क्षमता अधिक बेहतर होती है। शुष्क-काल के दौरान इन गायों में कायिक कोशिकाओं की संख्या में भी कमी पाई गई है। गायों में बेहतर स्वास्थ्य एवं अधिक उत्पादन सुनिश्चित करने हेतु शुष्क-काल के अंतर्गत दुग्ध-ग्रंथियों में कीटाणुओं का संक्रमण रोकने के लिये प्रकाश-अवधि प्रबंधन का सहारा लिया जा सकता है।

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निष्कर्ष


दीर्घावधि प्रकाश दिवस के अंतर्गत दुग्ध-ग्रंथियाँ विकसित होती हैं तथा बछड़ियाँ जल्द ही यौवनावस्था में पहुँच जाती है। ऐसा कम मेलाटोनिन के कारण आई. जी. एफ.-1 तथा प्रोलेक्टिन का स्तर बढ़ने से होता है। यदि गर्भवती बछड़ियों व शुष्क गायों को लघु प्रकाश अवधि के दिनों में रखा जाए तो प्रोलेक्टिन का स्तर कम होता है जबकि दुग्ध-ग्रंथियों, रोग-प्रतिरोधी एवं जिगर के ऊतकों में प्रोलेक्टिन ग्राही अधिक सक्रिय हो जाते हैं। जिन गायों व बछड़ियों को गर्भावस्था के दौरान लघु प्रकाश अवधि के दिनों में रखा जाता है वे प्रसवोपरांत अपेक्षाकृत अधिक दूध देती हैं। अत: दुधारू गायों को दीर्घावधि के प्रकाश दिवसों में ही रखना चाहिए ताकि इनमें आई. जी. एफ.-1 तथा प्रोलेक्टिन का स्तर बढ़ने से दूध का अधिक उत्पादन हो सके।

सम्पर्क


अश्विनी कुमार रॉय एवं महेंद्र सिंह
डेयरी पशु शरीर क्रिया विज्ञान विभाग, राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल (हरियाणा), ई-मेल : royashwani@gmail.com


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