यहां गांव वाले बताते हैं कि जब तक नहर पर यह पुल और उसका साइफन नहीं बना था तब तक भुतही बलान के तटबन्धों से उनको कोई खास परेशानी नहीं हुई थी। साइफन और पुल बन जाने के बाद उन पर उत्तर से आने वाले पानी का खतरा बढ़ा है। ‘एक बांस पानी लगता है इस गांव में और अगर पहले से पता होता कि ऐसा होगा तो यहां हम कुछ भी बनने नहीं देते, पहले ही सब काट दिया होता।’ थोड़ा पश्चिम चल कर झांझपट्टी गांव पड़ता है जिसे नहर नें दो भाग में बांट दिया है।
पश्चिमी कोसी नहर की सबसे बड़ी समस्या है प्राकृतिक कारणों से उसका खुद का असुरक्षित रहना। इस क्षेत्र की जमीन का ढलान प्रायः उत्तर से दक्षिण की ओर थोड़ा पूरब की ओर झुका है जबकि मुख्य नहर पूरब से पश्चिम की ओर जाती है। यह नहर पानी के स्वाभाविक प्रवाह के सामने एक बांध का काम करने लगती है। इस नहर की पूरी लगभग 90 किलोमीटर की लम्बाई में उत्तर दिशा से धौरी, सोनी, बलान, हनुमना, सुगरवे, भुतही बलान, बिहुल, खड़क, पाँची, धोकरा, घोरदह, तिलयुगा, महुली, खाण्डो और कमला जैसी नदियाँ प्रायः लम्बवत पार करती हैं। छोटे-मोटे नालों की तो कोई गिनती ही नहीं है। यह सारे नदी-नाले अपने प्रवाह के साथ भारी मात्रा में गाद लेकर आते हैं और यह सारी की सारी गाद नहर के उत्तर में जमा होकर वहाँ जमीन की आकृति को बनाती बिगाड़ती रहती है जिससे नहर पर खतरा बढ़ता है। जहाँ-जहाँ यह धाराएं नदी को पार करती हैं वहाँ-वहाँ नहर के उत्तर में पानी खड़ा हो जाता है और ऊपरी इलाकों में पानी भर जाता है। अगर इस पानी की वजह से नहर नहीं टूटी तो ऊपर वाले लोग, उनके खेत और घर-बार डूबेंगे और अगर नहर टूट गई तो नहर समेत नहर के दक्षिण वाले इलाके काम से गये। बरसात के मौसम में इन दो के अलावा तीसरी गति नहीं है। आम तौर पर या तो नहर खुद टूट जाती है या फिर ऊपर के लोग उसे काट देते हैं और यह ठीक उसी तरह से होता है जैसा हमने पूर्वी कोसी मुख्य नहर में अनुभव किया है। इन नदी-नालों के बहाव में बाधा पड़ने पर नहर के उत्तर में बुरी तरह बालू का जमाव होता है जिससे खेत खराब होते हैं और जमीन के लेवेल में बेतरह वृद्धि होती है। बालू में फंस कर बहुत से पेड़ जिन्दा नहीं रह पाते हैं और सूख जाते हैं। इस नहर के उत्तर में भारत-नेपाल सीमा के दोनों तरफ के गाँवों में इस तरह की बरबादियों के किस्से भरे पड़े हैं।1998-99 वाले वर्ष में भुतही बलान का दायाँ तटबन्ध नहर के उत्तर वाले भाग में खरहुरिया के पास टूट गया था और उसने पश्चिमी नहर के उत्तरी बांध को तोड़ कर नहर में राह बना ली। इस पानी ने पश्चिम की ओर बहते हुये छर्रापट्टी के पास नहर के सरप्लस एस्केप को तोड़ दिया। कुछ पानी जोकि पूरब की तरफ बहा उसने मुख्य नहर को बालू से पाट दिया। तब से भुतही बलान के पश्चिम नहर से सिंचाई लगभग बन्द है। सरप्लस एस्केप की मरम्मत 22 लाख रुपये के ठेके पर हुई है और जो बालू नहर में पट गया है उसे निकालने का ठेका करोड़ों का है। काम कुछ इसलिए नहीं हो पा रहा है क्योंकि किसी को पता ही नहीं है कि यह बालू कहाँ फेंका जायेगा।
नहर के उत्तरी बांध पर लौकही प्रखण्ड के नारी गाँव से, जहां यह नहर भारत में प्रवेश करती है, मधवापुर तक, जहाँ यह नहर धौस नदी में समाप्त होती है, की यात्रा बड़ी शिक्षाप्रद है और इससे नहर के भविष्य में झांकने का एक मौका मिलता है। भुतही बलान जहाँ पश्चिमी कोसी नहर को पार करती है उस गांव का नाम एकम्मा है। यहां गांव वाले बताते हैं कि जब तक नहर पर यह पुल और उसका साइफन नहीं बना था तब तक भुतही बलान के तटबन्धों से उनको कोई खास परेशानी नहीं हुई थी। साइफन और पुल बन जाने के बाद उन पर उत्तर से आने वाले पानी का खतरा बढ़ा है। ‘एक बांस पानी लगता है इस गांव में और अगर पहले से पता होता कि ऐसा होगा तो यहां हम कुछ भी बनने नहीं देते, पहले ही सब काट दिया होता।’ थोड़ा पश्चिम चल कर झांझपट्टी गांव पड़ता है जिसे नहर नें दो भाग में बांट दिया है। बीच में पुल नहीं है। ऊपर वाला हिस्सा ऊपर और नीचे वाला नीचे। यहीं उत्तरी बांध में एक कटाव भी है जिससे बारिश का पानी नहर में आता है। इस स्थान पर पश्चिमी कोसी मुख्य नहर लगभग पूरी गहराई में बालू से पटी पड़ी है और यहाँ इससे कोई सिंचाई सम्भव नहीं है।
टेंगरार के सियाराम यादव (35) बताते हैं कि एकम्मा के 6-7 किलोमीटर दक्षिण और परसाही के पूरब से एक छोटी नहर निकली है और टेंगरार के बीचो-बीच से जाती है। ‘ एक पैसे का फायदा नहीं है इस नहर से। गांव वालों ने दो-तीन बार 10-20-50 रुपये चन्दा करके नहर को चिरवाया मगर कुछ नहीं हुआ। थोड़ा बहुत पानी परसाही वालों को मिल जाता है। इधर कुछ काम नहर में हो रहा है। चतुरानन मिश्र जब केन्द्रीय कृषि मंत्री थे तब पश्चिमी कोसी नहर के पुनरुद्धार के लिए कुछ पैसे का आवंटन करवाया था और यह पैसा इस शर्त पर आया था कि यहीं इसी नहर पर खर्च होगा वरना यह कब का सोन नहर में चला गया होता। आप तो जानते ही होंगे कि सोन कमाण्ड क्षेत्र अपने सिंचाई मंत्री का इलाका है। (यह बात-चीत 2004 की है- ले.) दस साल तक कोई काम नहीं हुआ तो सबकी रुचि खत्म हो गई। अब हो या न हो, क्या फकऱ् पड़ता है। वैसे भी आप पूरे इलाके में घूम लीजिये, इस नहर के भरोसे कोई खेती की योजना बनाता हो ऐसा एक भी आदमी आप को नहीं मिलेगा। जहाँ भुतही बलान इस नहर को पार करती है, आर.डी. 37.85 पर वहां नहर में 7 मीटर बालू भर गया है। कहाँ से आयेगा पानी?’
69.00 आर.डी. पर बरैल चैक के पास झंझारपुर शाखा नहर निकलती है। इसके पहले 66.52 आर. डी. पर झंझारपुर-लौकहा रेल लाइन नहर को पार करती है। रेल-लाइन के ठीक पूरब में नहर का उत्तरी भाग टूटा पड़ा हुआ है। रेल-लाइन और नहर के बांध के कारण बरसात के समय यहाँ एक बड़ा सा तालाब बन जाता है और उत्तर में करीब 100 हेक्टेयर जमीन पर हर साल पानी लग जाता है। नहर टूट गई तो ठीक वरना गाँव वाले इसे काट देते हैं। हर साल इसकी मरम्मत कर दी जाती है मगर खेती तो चौपट हो ही गई। गांव के लोग बताते हैं कि मुख्य नहर में केवल बरसात का पानी आता है जिससे कपड़ा धोने और बरतन मांजने का काम चल जाता है। इतने साल हो गये, इस नहर से न तो सिंचाई हुई और आगे हो भी पायेगी या नहीं, पता नहीं। गांव वालों ने अब सिंचाई के लिए दमकल (डीजल पम्प) खरीद लिया है। जिनके पास अपना दमकल नहीं है उन्हें यह सुविधा 80 रुपये से 85 रुपये प्रति घन्टे पर किराये में मिल जाती है। इतने दामों पर जिसे खेती में फायदा दिखाई पड़े वह खेती कर ले या फिर दिल्ली, पंजाब चला जाय। वैसे भी सिंचाई की इतनी कीमत देने के लिए घर का एक आदमी तो दिल्ली, पंजाब में रहने के लिए मजबूर ही होगा। उन किसानों की जिनकी जमीन नहर में चली गई है, बड़े हताश हो गये हैं।
नहर के पूरा कर लिए जाने की स्थिति में अगर कमला का पूर्वी तटबन्ध टूटता है तो वहां से निकलता पानी जरूर नहर के कारण रुक जायेगा जिसकी निकासी के लिए ग्रामीणों को इस नहर को काटना पड़ेगा। अगर कभी नहर टूटती है तो उसके पानी की निकासी के लिए कमला के पूर्वी तटबन्ध को काटना पड़ सकता है। दोनों ही परिस्थितियों में बीच के किसान हाशिये पर चले जायेंगे। वैसे भी यह पूरा इलाका जल-जमाव से परेशान रहता है और नहर यहाँ की जि़न्दगी को और अधिक दुश्वार बनायेगी।
यहाँ से दक्षिण की ओर झंझारपुर के रास्ते पर एक गाँव है हर्री। बाहर से बड़ा समृ( लगता है, अन्दर से भी कोई बहुत बुरी हालत नहीं है। इस गाँव से होकर झंझारपुर-लौकहा रेल लाइन, मधुबनी जिला परिषद की सड़क और पश्चिमी कोसी नहर की उप-शाखा नहर निकलती है। बरसात के मौसम में कभी सड़क टूटेगी तो कभी रेल लाइन। बची-खुची कसर नहरों ने पूरी कर दी। अब अगर खेतों में पानी भर जाय तो जिम्मेवारी किसकी होगी? गांव के मुखिया योगेन्द्र सिंह बताते हैं, ‘ इस इलाके में किसान छोटे ही हैं? किसी की जोत चैंकाने वाली नहीं है। इस जमीन पर अब नहरें निकल रही हैं। इससे छोटा और सीमान्त किसान तो बर्बाद हो जायेगा। उसकी जो कुछ भी जमीन है वह नहर में चली जायेगी और जब जमीन ही नहीं रहेगी तो वह सींचेगा क्या? जिसकी जमीन बच जायेगी वह डूबेगी। यह नहर यहाँ की अर्थ-व्यवस्था को पूरी तरह से चौपट कर देगी।’हर्री के दक्षिण में पश्चिमी कोसी नहर की एक शाखा नहर का विस्तार किया जा रहा है जोकि मधेपुर प्रखण्ड के लक्ष्मीपुर चौक तक जायेगी। लखनौर पूर्वी पंचायत के किसान इस नहर के विस्तार का पुरजोर विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें नहर में जमीन चले जाने का और बची खुची जमीन पर जल-जमाव का खतरा है। यह नहर कमला के पूर्वी तटबन्ध के समानान्तर चलेगी जो कि बरसात के मौसम में हर साल टूटने के लिए बदनाम है। नहर के पूरा कर लिए जाने की स्थिति में अगर कमला का पूर्वी तटबन्ध टूटता है तो वहां से निकलता पानी जरूर नहर के कारण रुक जायेगा जिसकी निकासी के लिए ग्रामीणों को इस नहर को काटना पड़ेगा। अगर कभी नहर टूटती है तो उसके पानी की निकासी के लिए कमला के पूर्वी तटबन्ध को काटना पड़ सकता है। दोनों ही परिस्थितियों में बीच के किसान हाशिये पर चले जायेंगे। वैसे भी यह पूरा इलाका जल-जमाव से परेशान रहता है और नहर यहाँ की जि़न्दगी को और अधिक दुश्वार बनायेगी।
ग्राम पचही, प्रखंड मधेपुर जि. मधुबनी के महाबीर प्रसाद महतो बताते हैं कि 1987 की बाढ़ में पश्चिमी कोसी नहर तहस-नहस हो गई थी और उत्तर से बहता हुआ सारा पानी पश्चिमी कोसी तटबन्ध और कमला के पूर्वी तटबन्ध के बीच की वुफप्पी में घुसा। अब कहाँ नारी से कमला तक चैड़ा इलाका और कहाँ इन दोनों तटबन्धों के बीच की डेढ़-दो किलोमीटर का फासला। बीच के सारे गाँवों की बरसात और नदी-नालों के पानी से शामत आ गई। खरीफ की फसल तो यहाँ वैसे भी बाढ़ के कारण नहीं हो पाती है मगर रबी की संभावनाएं रहती हैं। लगभग इसी समय पश्चिमी कोसी नहर से सिंचाई शुरू हुई। छर्रापट्टी के पास इस नहर का एक सरप्लस एस्केप है जिससे अतिरिक्त पानी की निकासी के लिए रबी के मौसम में खुला छोड़ देते हैं। अब यह सारा पानी हमारे इलाके में रबी की फसल को डुबाता है। इस तरह खरीफ और रबी दोनों फसलें साफ हो गईं। 1987 में हम लोगों ने नहर के खिलाफ आन्दोलन किया। सौभाग्य से सरकार के पास पैसा ही नहीं था सो कई साल काम बन्द रहा। इधर 2-3 साल से फिर शुरू हुआ है तो लोगों ने विरोध किया पर प्रचार यह किया गया कि जो मुआवजा मिलता है ले लो वरना उससे भी हाथ धोना पड़ेगा। झगड़ा-झंझट, धरना-जलूस सब हुआ कितने लोग जेल गये मगर हार कर लोगों ने आन्दोलन वापस ले लिया। पिछले दो साल से यहाँ पानी बहुत कम बरसा है और बाढ़ नहीं है अतः नहर का पानी सबको तसल्ली देता है पर बुनियादी तौर पर हमारा इलाका बाढ़ और जल-जमाव वाला है और हमारा यह निश्चित तौर पर मत है कि नहर का यह पानी भविष्य में हमारे लिए समस्या बनेगा और तब कोई युक्ति काम नहीं आयेगी। पूर्वी कोसी मुख्य नहर में तो यही हो रहा है न?”
बरैल चैक से थोड़ा और आगे चलने पर नहर के आस-पास पीढ़ी और सलखनियाँ आदि गाँव पड़ते हैं। यहाँ बलान नदी मुख्य नहर को पार करती है जिसके लिए यहां एक साइफन का निर्माण हुआ है और यह लगभग तैयार है। पीढ़ी के राम परीक्षण पाण्डेय ने कभी कमला-बलान के तटबन्धों के विरुद्ध 1950 के दशक में आन्दोलन का नेतृत्व किया था और यहां तटबन्ध बनने नहीं दिया था। कमला-बलान के तटबन्धों से जितनी तबाहियां हुईं उनसे यह क्षेत्र बचा रहा क्योंकि यहां नदी के पानी को फैलने की आजादी थी। सरकार को दबाव में आन्दोलनकारियों की बात तो मान लेनी पड़ी थी मगर उसने हमेशा यही कहा कि भकुआ गैप नाम की इस जगह से बलान, धौरी और सोनी नदियां कमला-बलान में प्रवेश करती हैं इसलिए यह गैप रखना जरूरी हो गया था। अगर यह गैप सरकार ने ही छुड़वा दिया था तो फिर गैप छुड़वाने के लिए किसानों ने आन्दोलन क्यों किया? पीढ़ी, सलखनियाँ के पास से ही बलान, सोनी, धौरी और कमला पर बनने वाले साइफनों की श्रृंखला शुरू होती है। यहाँ कंक्रीट के कामों पर लगे लोगों को छोड़ कर बाकी के इंजीनियर से लेकर ठेकेदार और मजदूर जैसे लोग बड़े निर्विकार भाव से मिलते हैं। उनका कहना है कि कंक्रीट वाला काम तो एक बार पूरा हो जायगा मगर नहर से जुड़े मिट्टी और लाइनिंग के काम कभी खत्म नहीं होंगे क्योंकि नहर हमेशा टूटती रहेगी और वह लोग इसे बनाते रहेंगे। यहाँ बहुत से ठेकेदार कई वर्षों से यही काम कर रहे हैं।
उधर कमला साइफन का शिलान्यास 1992 में लालू प्रसाद यादव (तत्कालीन मुख्य मंत्री) ने किया था और तब यह कहा गया था कि इस काम के लिए पैसे की कमी नहीं होने दी जायेगी और 1996 तक नहर कमला नदी को पार कर जायेगी तथा पूरे इलाके में सिंचाई होने लगेगी। 14 करोड़ रुपयों की अनुमानित लागत से बनने वाली इस संरचना का काम अभी भी (जून 2006) पूरा नहीं हुआ है और इसलिए कमला के पश्चिम सिंचाई का भी प्रश्न नहीं उठता।
कमला नदी पार करने के बाद थोड़ा दक्षिण में खजौली प्रखण्ड का बरदेपुर गांव है जो दरभंगा-मधुबनी-जयनगर मार्ग पर पड़ता है। यहां भी नहर की वही हालत है। इस नहर के उत्तर में बसे रमगढ़ा, लक्ष्मीपुर, कालिकापुर, बरदेपुर-परमेश्वरी टोला, कोरिया पट्टी, मइया पट्टी और मन मोहन आदि गांवों में नहर के कारण प्रचण्ड जल-जमाव होता है और अक्सर इन गांवों के लोग नहर को काट दिया करते हैं। कालिकापुर गांव के किसान बताते हैं कि ‘‘... सरकार के लोग, राजनेता, अफसर और इंजीनियर यह नहीं चाहते कि इस नहर का काम कभी पूरा हो क्योंकि अगर यह नहर ठीक से काम करने लगे तो यहाँ तीन-तीन फसल होगी और यह इलाका पूरी तरह से खुशहाल हो जायेगा। वैसी हालत में यहाँ से लोग मजदूरी करने बाहर नहीं जायेंगे उस समय पंजाब, हरियाणा की खेती कौन संभालेगा? दिल्ली, मुम्बई में मजदूर कहाँ मिलेंगे और उनके होटलों में जूठन कौन साफ करेगा? हम लोगों अपनी तरफ से लिखा-पढ़ी से लेकर मार-पीट तक सब कुछ करके देख लिया मगर नहर का काम आगे खिसकता ही नहीं है। यह नहर साक्षात घोटाला है जिसके आगे बड़े-बड़े घोटालों की साख गिर जायेगी। बस एक बार एन्क्वायरी तो हो जाये।’’
उधर खजौली के पास कन्हौली ग्राम के पास नहर का एक रेगुलेटर है जहाँ से उग्रनाथ शाखा नहर और बिदेश्वर नाथ उप-शाखा नहर निकलती है। इन दोनों शाखा नहरों के निर्माण की वजह से पहले उग्रनाथ नहर से लगने वाला हिस्सा डूबा और बाद में बिदेश्वर स्थान वाली नहर से लगा हुआ क्षेत्र, क्योंकि खजौली-बाबू बरही सड़क इन दोनों नहरों को काटती है और वहाँ जल-जमाव होता है। पश्चिमी कोसी नहर के बड़े नक्शे को, जिसमें सड़कें और रेल लाइनें दिखाई गई हों देख कर कोई भी सामान्य बुद्धि वाला आदमी ऐसे स्थानों पर गये बिना बता सकता है कि कहाँ-कहाँ भविष्य में जल-जमाव की समस्या होने वाली है या हो चुकी है। ऐसी ही स्थिति रहिका के नीचे सकरी शाखा नहर और काकर घट्टी शाखा नहर के बीच के क्षेत्रों में देखने को मिलेगी। बस नहर के चालू होने भर की देर है। खजौली से करमली होते हुये मधुबनी वाले रास्ते पर दायीं तरफ सकरी शाखा नहर गुजरती है। इस नहर में करमली के नीचे भलनी गांव के पास नहर सड़क के बहुत नजदीक आ जाती है और वहीं नहर में एक चन्द्रकार मोड़ है। नहर से घिरे हुये इलाके की जल-निकासी के लिए नहर के नीचे कंक्रीट के पाइप कलवर्ट लगे हुये हैं जिनको देखते ही यह अंदाजा लग जाता है कि इनसे पानी की निकासी नहीं हो सकती। नहर पर खड़ा होने के बाद तो यह एक दम साफ हो जाता है। यहाँ भलनी, मधेपुर और दोस्तपुर गांवों का पानी इकट्ठा हो कर अभी से इन गांवों की खेती को डुबाने में लगा है जबकि सिंचाई के लिए एक बूंद भी पानी अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ है। जिस दिन नहर में पानी आयेगा उस दिन इन गांवों की स्थिति और भी ज्यादा बदतर होगी।
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