विश्व जल दिवस पर विशेष
विन्ध्य क्षेत्र में दैत्याकार पाँच ताप बिजली घरों से होगी भारी तबाही
स्वराज की लड़ाई के दौरान महात्मा गाँधी एक बार इलाहाबाद आए हुए थे। उन्हें दातून करना था। वह एक लोटा पानी लेकर एक पेड़ के पास चले गए। जिससे दातुन करते समय जो भी पानी गिरे वह पेड़ की जड़ में चला जाए। यह देखकर जवाहर लाल नेहरू ने कहा-ये आप क्या कर रहे है? यहाँ तो पानी की कोई कमी नहीं है। पास में ही गंगा-यमुना का संगम है। तब गाँधी ने कहा गंगा-यमुना का पानी हम लोगों के लिये नहीं है, उसे अविरल बहने दो।
इस बात पर विचार करने की जरूरत है कि 70 साल पहले गाँधी एक लोटा पानी भी बर्बाद नहीं करना चाहते थे और आज, उसी प्रयाग में ताप बिजली घरों के लिये करोड़ो लीटर पानी गंगा-यमुना से खींचकर प्रयाग को बंजर बनाने की तैयारी चल रही है। अफसोस होता है कि आज नई-नई टेक्नोलॉजी विकसित होने के बाद भी कोयले से बिजली बनाने की होड़ मची हुई है।
जीवनदायिनी गंगा-यमुना के जल को सुखाने की भी परवाह नहीं। सरकारें चुप्पी मारे विकास का ढोल पीटकर जीवन व जल की महत्ता की अनदेखी कर रही हैं। जिस गाँधी को पानी की चिन्ता 70 साल पहले सता रही थी, वह चिन्ता की लकीरें सरकार के माथे पर क्यों नहीं दिखती? क्या सरकार के पास जल का भी कोई विकल्प है? यदि है तो, जनता को बताए।
बुन्देलखण्ड क्षेत्र बाँदा में ‘बजाज’ द्वारा लग रहा ताप विद्युत घर, बारा में जेपी समूह, करछना में प्रस्तावित विद्युत घर के लिए यमुना से पानी लिया जाएगा। निर्माणाधीन मेजा में एनटीपीसी व विन्ध्याचल विद्युत घर के लिए गंगा से भारी मात्रा में पानी निकालने की तैयारी चल रही है। कोयले से बिजली बनाने के लिए एक ताप विद्युत परियोजना को 12 करोड़ लीटर प्रतिदिन पानी चाहिये। जरा सोचिए, प्रत्येक बिजली घर जब 12-12 करोड़ लीटर पानी उठाएँगे, तब नदियों और इलाहाबादवासियों का क्या होगा।
जेपी की हैवी मशीनें करछना व बारा में बिजली बनाने के लिए पानी खींचना शुरू करेंगी तो यमुना की क्या हालत होगी? क्या सिंचाई के सभी पम्प कैनाल एक साथ चल पाएँगे? क्या पानी कम होने पर नाव से हो रही उतरवाई का काम हो पाएगा? उस समुदाय के लाखों परिवार का क्या होगा, जिनकी जीविका यमुना से चल रही है। क्या पानी कम होने पर नाव से बालू का कारोबार हो पाएगा? क्या शहर में यमुना नदी पर करेला बाग में लगे ड्रिकिंग वाटर पम्प से पूरे शहर को पानी उपलब्ध कराया जा सकेगा?
पानी कम होने पर क्या यमुना को प्रदूषित होने से बचाया जा सकता है? यमुना का जलस्तर पेटे में घुस जाने पर क्या इलाके का भूगर्भ जल सैकड़ों फिट नीचे नहीं चला जाएगा? यह तो सभी जानते हैं कि भूगर्भ जल के स्रोत यहीं नदियाँ हैं। क्या होगा जब बारा तहसील की ज्यादातर नहरें सूख जाएँगी? क्या होगा जब कोहड़ार से सटी स्वच्छ, पवित्र टौंस नदी का पानी प्रदूषित हो जाएगा? क्या होगा जब कोहड़ार में लगा 104 गाँवों को पेयजल उपलब्ध कराने वाला पम्प बन्द हो जाएगा? अनेकों सवाल हैं?
अभी तक सिंचाई पम्प, सीजन में चलते हैं। मार्च के बाद खेती के लिए बहुत कम पानी की जरूरत पड़ती है। इसलिये यमुना नदी में थोड़ा-बहुत पानी बचा रहता है। बावजूद इसके आलम यह है कि मई, जून तक यमुना में कहीं-कहीं इतना कम पानी हो जाता है कि नावें संचालित करने में कठिनाई होती है।
यदि यमुना में 7 फीट से कम पानी होगा तो नाव चल ही नहीं पाएगी। इसकी भरपाई कैसे की जाएगी? कछार में बोई जानी वाली गर्मी की सब्जी व ककड़ी, खीरा व तरबूज पर भी विपरीत असर पड़ेगा। नाव की उतरवाई से होने वाली आय भी प्रभावित होगी। दरसअल बरसात का मौसम छोड़कर यमुना व टौंस नदी में पानी काफी कम हो जाता है। इस स्थिति में पावर प्लांट को पानी देने के बाद स्थानीय लोगों की क्या स्थिति होगी, सोचकर रूह काँप उठता है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि बाँदा से विन्ध्याचल तक स्थापित किए जा रहे पाँच ताप विद्युत घरों से न केवल इस इलाके का पर्यावरण दूषित हो जाएगा बल्कि भारी मात्रा में पानी निकालने से गंगा और यमुना का हरा-भरा कछार रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगा।
इस सम्बन्ध में अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा के राष्ट्रीय सचिव डॉ. आशीष मित्तल कहते हैं कि ताप बिजलीघर से भारी तबाही और बर्बादी होगी। यमुना का पानी कम होगा, जिससे यमुना नदी पर निर्भर जन-जीवन उजड़ेगा। इसके विरूद्ध इस इलाके में जन आन्दोलन शुरू हो गया है।
जमीन कौड़ियों के दाम लेकर गाँव के लोगों से जीवन की सबसे ज़रूरतमन्द ‘पानी’ छीना जा रहा है। जल के अभाव में जीवन का कोई मायने नहीं रह जाता। जिसके पास पैसा है वह तो बोतलबन्द पानी पीकर प्यास बुझा लेगा लेकिन अन्य लोग तो मटमैला पानी पीकर मौत के साथ ही अपनी प्यास बुझा लेंगे। भविष्य में जल संकट से कैसे बचा जाए, इस पर और आवाज बुलन्द करने व मन्थन करने की जरूरत है।
Path Alias
/articles/parayaaga-maen-gangaa-yamaunaa-kao-raegaisataana-banaanae-kai-taaiyaarai
Post By: RuralWater