संसाधन की परिभाषा मुख्य रूप से तीन कारकों पर आधारित है- मानव, पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी तत्व एवं उनका समुचित उपयोग। भूगोल में मुख्य तौर पर शोध का विषय भौतिक एवं मानव भूगोल पर आधारित होता है। हम्बोल्ट महोदय ने जहाँ एक ओर भौतिक भूगोल पर अपना पक्ष रखा वहीं रिटर महोदय ने मानव भूगोल पर अपना शोध प्रकट किया। इन दोनों शाखाओं को जोड़ने का श्रेय पर्यावरणीय अध्ययन को जाता है। जिसके परिणाम स्वरूप निश्चयवाद एवं सम्भववाद का उद्गम हुआ।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विश्व के सभी भूगोलवेत्ता पर्यावरण एवं पृथ्वी पर उपस्थित संसाधनों का शोध करते रहे हैं तथा यह बताया कि संसाधन (खासतौर से परम्परागत संसाधन) दिन-प्रतिदिन समाप्त होने के कगार पर है जबकि अपरम्परागत संसाधन का समुचित ढंग से उपयोग ना होने के कारण उनके क्षय (Loss) की मात्रा बढ़ती जा रही है।
जल संसाधन एक अपरम्परागत है जिसके समुचित उपयोग के लिये वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तकनीकी का पूर्ण उपयोग हो रहा है। तकनीकी के अभाव में जहाँ कुछ वर्षों पहले जल संसाधन की प्राप्ति एक चुनौती बनी हुई थी, आज उन्नत तकनीक ने इन चुनौतियों को सम्भवतः समाप्त कर दिया है। इसके परिणाम स्वरूप जो जल एक तत्व था, वह संसाधन में बदल गया है। विश्व के विकास एवं विकसित क्षेत्रों ने, उन्नत तकनीक के द्वारा पहुँच से बाहर के जल को भी संसाधन में बदल दिया है। आज दुर्गम स्थान पर स्थित जल को बड़े से बड़े जल संग्रहण क्षेत्र में बदलकर उसका घरेलू एवं सिंचाई में उपयोग होने लगा है। सैकड़ों मीटर की गहराई पर स्थित भूजल उन्नत तकनीकों के द्वारा ट्यूबवेल से बाहर निकाला जा रहा है। हमारी तकनीकी जहाँ संसाधन को बढ़ाने में सहयोग प्रदान कर रही है, वहीं बढ़ती जनसंख्या एवं कमजोर प्रबन्धन से इन संसाधनों का अति दोहन हो रहा है। जल जो कि एक प्रमुख संसाधन है वह भी अव्यवस्था के कारण काफी व्यर्थ हो रहा है। यह अव्यवस्था नगरीय क्षेत्रों में अधिक गम्भीर है।
इसके विपरीत अच्छी व्यवस्था होने के बावजूद भी नगरीय क्षेत्रों में जल की काफी कमी आई है जिसका मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या की माँग रही है। जनसंख्या की बढ़ती जल-आपूर्ति की माँग मुख्य रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में देखी गयी है जिसमें भारत प्रमुख देश है। भारतीय शहरों में पिछले 50 दशक से जिस गति से नगरीय जनसंख्या की बढ़ोत्तरी हुई है उससे जल संसाधन में कमी आना स्वाभाविक है। भारत में जल संसाधन को प्राप्त करने की तकनीकों पर काफी विकास हुआ है, परन्तु जनसंख्या के अप्रत्याशित वृद्धि के कारण संसाधनों की व्यवस्था में त्रुटि रह गई। यह त्रुटि नगरीकरण एवं औद्योगीकरण के कारण होनी स्वाभाविक थी क्योंकि तकनीकी की विकास गति और जनसंख्या की विकास गति में काफी अन्तर देखा गया है।
विकासशील देश होने के कारण तकनीकी विकास की गति धीमी रही जबकि जनसंख्या वृद्धि काफी तीव्र थी जो कि किसी भी व्यवस्था को चरमरा देती है। भारतीय शहरों में संसाधनों की कमी का मुख्य कारण भी यही रहा है।
वर्तमान शोध में इसी दृष्टिकोण को रखते हुए राजस्थान के एक प्रमुख प्रथम श्रेणी शहर अलवर को चुना गया है। जहाँ राजस्थान के अन्य शहर की तुलना में नगरीकरण के साथ-साथ औद्योगीकरण भी तीव्र गति से हुआ है। अलवर नगरीय क्षेत्र में जल संसाधन की दो आवश्यकताएँ उभरकर आती हैं- प्रथम नगरीय पेयजल सुविधा एवं दूसरी औद्योगिक जल व्यवस्था। औद्योगीकरण ने इस शहर को जहाँ एक ओर नया आकार दिया वहीं नगरीकरण की गति तथा जनसंख्या वृद्धि दर भी काफी तीव्र रही है। राजस्थान के अन्य बड़े शहरों की तुलना में इस शहर में पेयजल-आपूर्ति की सुविधा अधिक उन्नत नहीं रही है जिसके कारण नगरीय क्षेत्र में जल आपूर्ति व्यवस्था एक चुनौतियों के रूप में उभरकर सामने आई है।
वर्तमान शोध में इन्हीं चुनौतियों का चित्रण, जल की मात्रा एवं गुणवत्ता का अध्ययन तथा वर्तमान एवं भविष्य में जल की बढ़ती माँग का मानचित्रण किया गया है तथा नगरीय क्षेत्र में सुव्यवस्थित जलापूर्ति किस तरह उपलब्ध करवाई जाए पर भी विशेष बल दिया गया है।
घटते जल संसाधन के कारण प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता में भी कमी आई है। इसका मूल कारण बढ़ती जनसंख्या तथा जल की मात्रा का गुणात्मक एवं मात्रात्मक ह्रास है। प्रकृति में उपलब्ध जल की मात्रा में कभी-भी कमी या वृद्धि नहीं होती है केवल समय के साथ इसके स्वरूप बदलते रहते हैं। लेकिन जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ इसकी माँग में निरन्तर वृद्धि हुई है। जनसंख्या वृद्धि से नगरीकरण तथा औद्योगीकरण में वृद्धि के साथ जलापूर्ति व्यवस्था में असन्तुलन व जल संकट गहराता जा रहा है। बढ़ते नगरीकरण से जल की माँग में वृद्धि के कारण जल में गुणात्मक ह्रास हुआ है, जिससे जल मानवीय उपयोग के योग्य नहीं रहा।
वर्तमान जल संकट परिदृश्य से स्पष्ट होता है कि विश्व की 1.1 बिलियन जनसंख्या (2001) को पर्याप्त जलापूर्ति नहीं हो पा रही है अर्थात प्रति छह व्यक्तियों में से एक जल संकट से त्रस्त है। जल की आपूर्ति के अतिरिक्त इसके गुणात्मक पक्ष की दृष्टि से स्पष्ट है कि विश्व में 2.5 बिलियन जनसंख्या पर्याप्त स्वच्छ जल सुविधाओं से वंचित है तथा विश्व में प्रतिवर्ष जलजनित बीमारियों से बीस हजार बच्चों की मौत हो जाती है।
जल संकट की स्थिति का आकलन प्रति व्यक्ति होने वाली जलापूर्ति के आधार पर किया जाता है। यदि किसी प्रदेश में स्थानीय जलापूर्ति प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष एक हजार घनमीटर से कम है तो उस क्षेत्र को जल संकट से ग्रस्त माना जाता है। वर्तमान में इस वर्ग में लगभग 26 से अधिक देश आते हैं। इस प्रकार विश्व में जल संकट का आविर्भाव प्रारम्भिक रूप में तो इसके विषय वितरण एवं जनसंख्या की बढ़ती माँग द्वारा उद्भूत हुआ था, लेकिन वर्तमान समय में जल-संकट मात्रात्मक पक्ष के साथ ही गुणात्मक पक्ष से भी जुड़ गया है। किसी नगर की जलापूर्ति व्यवस्था उस नगर की अवस्थिति, धरातलीय बनावट, भूमिगत जल-स्तर, जनसंख्या घनत्व व अन्य सामाजिक भौगोलिक कारकों की समाकलित निष्पत्ति होती है जिसका प्रबन्धन सरकारी व निजी दोनों स्तरों पर किया जाता है। जलापूर्ति के लिये सरकारी स्तर पर जल वितरण बोर्ड की स्थापना की जाती है तथा भूमिगत पाइप लाइनों द्वारा उसकी आपूर्ति उद्योगों व आवासीय क्षेत्रों में की जाती है।
नगरीय जलापूर्ति व्यवस्था का स्वरूप जल-स्रोत पर भी निर्भर करता है जहाँ पर भूमिगत जल-स्तर ऊपर होता है वहाँ नलकूपों द्वारा, नदी किनारे स्थित नगरों में नदियों पर बाँध बनाकर, शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में वर्षाजल को तालाबों, टाँकों में संचित कर जलापूर्ति की जाती है।
अध्ययन क्षेत्र के विशेष सन्दर्भ में अरावली श्रेणी की अलवर की पहाड़ियों के मध्य वर्षाजल को संचित करने के लिये बाँध बनाकर सिलीसेढ़ झील का निर्माण किया गया था जिससे नगरीय क्षेत्र को जलापूर्ति होती थी। वर्तमान में इसका उपयोग उद्योगों हेतु एवं अन्य विविध कार्यों में किया जा रहा है। पेयजल आपूर्ति हेतु जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग द्वारा नलकूपों की सहायता ली जा रही है। बढ़ते नगरीकरण एवं उद्योगों में जल की बढ़ती माँग का प्रभाव वर्तमान जल संसाधन की सन्तुलित उपलब्धता पर दो तरह से पड़ता है -
प्रथम इसकी बढ़ती माँग की सुव्यवस्थित आपूर्ति को बरकरार रखना तथा दूसरा जल की गुणवत्ता को प्राकृतिक रूप से बनाए रखना। यह सन्तुलित उपलब्धता नगरीकरण के कारण क्षीण प्रतीत हो रही है जबकि उद्योगों में प्रयुक्त जल दोहरी धार वाली तलवार सिद्ध होकर दोहरी मार कर रहा है।
इस प्रकार जल की मात्रा व गुणवत्ता को बरकरार रखना चिन्ता का विषय बना हुआ है। इसके लिये विभिन्न उद्योगों में श्रेणीकरण कर जल को पुनः चक्रीकरण द्वारा उपयोग में लिया जाए ताकि उद्योगों की उपयोगिता के अनुरूप उसे उचित श्रेणी की जलापूर्ति उपलब्ध हो सके।
1.1 अध्ययन क्षेत्र का परिचय
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दिल्ली से लगभग 160 किलोमीटर एवं राजस्थान की राजधानी जयपुर से 150 किलोमीटर की दूरी पर अरावली पर्वत शृंखला की नैसर्गिक वादी में खूबसूरत झीलों एवं घने जंगलों से आच्छादित अलवर नगरीय क्षेत्र राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल एवं वाणिज्यिक केन्द्र है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के विकास की नीतियों के क्रियान्वयन में इसकी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
राजस्थान प्रदेश का गठन होने से पूर्व यह शहर अलवर रियासत की राजधानी रहने के कारण अपने अतीत काल में भी प्रशासनिक एवं वाणिज्यिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।
अलवर की महत्ता को देखते हुए इसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रीय योजना 2021 के अन्तर्गत एक क्षेत्रीय शहर के रूप में चिन्हित किया गया है तथा यहाँ पर भौतिक, आर्थिक एवं जनसुविधा सम्बन्धित आधारभूत संरचना का समुचित विकास कर इसे अधिक सक्षम बनाने का सुझाव है। सत्तर के दशक में यहाँ मत्स्य औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया गया जिससे अनेक वृहत्त उद्योगों की स्थापना हुई और नगरीय क्षेत्र के विकास को एक नया आयाम मिला।
अलवर नगरीय क्षेत्र की वर्तमान (2011) जनसंख्या 381400 है जबकि वर्ष 2001 में इसकी जनसंख्या 266203 थी। पिछले दशक में इस नगरीय क्षेत्र की जनसंख्या वृद्धि 34.6 प्रतिशत रही। वर्तमान समय में इस नगरीय क्षेत्र में 746 औद्योगिक इकाइयाँ हैं। वर्ष 2011 में इस नगरीय क्षेत्र 68625 देशी पर्यटक एवं 16240 विदेशी पर्यटकों ने भ्रमण किया इस नगरीय क्षेत्र में कुल 136 कार्यालय हैं जिसमें 13063 व्यक्ति कार्यरत हैं। नगर नियोजन से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार नगरीय क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 5807 हेक्टेयर है जो कि भविष्य में (2031) 11760 हेक्टेयर होने की सम्भावना है।
1.2 शोध क्षेत्र की समस्या
शोध के अध्ययन अलवर नगरीय क्षेत्र में वर्तमान समय की प्रमुख समस्या नगरीय जल आपूर्ति व्यवस्था व बढ़ते जल संकट से सम्बन्धित हैं। विगत कुछ वर्षं में अलवर नगरीय क्षेत्र में बढ़ती जनसंख्या एवं औद्योगीकरण के कारण जल संसाधन की माँग में अत्यधिक वृद्धि हुई है लेकिन तदनुरूप जलापूर्ति न होने के कारण जलसंकट की स्थिति बनी रहती है। नगरीय क्षेत्र में जहाँ 2001 में जनसंख्या 266203 थी वहीं 2011 में 34.06 प्रतिशत की वृद्धि से 381400 हो गई।
इस समस्या को स्थानीय भौगोलिक व मानसून की अनिश्चित प्रवृत्ति में बहुगुणित किया है। साथ ही जल पुनर्भरण की यथोचित व्यवस्था न होने के कारण भूमिगत जल-स्तर निरन्तर नीचे गिर रहा है जो औसतन 0.9 मीटर प्रतिवर्ष (1984 से 2004) की दर से दर्ज किया गया है। अलवर नगरीय क्षेत्र की प्रमुख नदी रूपारेल की मौसमी प्रवृत्ति एवं वर्ष-दर-वर्ष उसके कम होते जल प्रवाह के कारण जल संकट की स्थिति बढ़ रही है। कम वर्षा एवं अत्यधिक भूजल दोहन के फलस्वरूप शहर का भूमिगत जल-स्तर निरन्तर गिरता जा रहा है। वर्तमान में क्षेत्रीय दृष्टिकोण से पूरे जिले में स्थिति चिन्ताजनक है।
जिले के 17 पोटेन्शियल जोन अति दोहित व दो जोन संवेदनशील श्रेणी में है। मात्र दो जोन सुरक्षित श्रेणी के हैं वह भी खारे पानी के हैं। बढ़ती जनसंख्या एवं जल के अत्यधिक घरेलू एवं औद्योगिक उपयोग के कारण नगरीय एवं औद्योगिक अपशिष्ट जल की मात्रा में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। विभिन्न अध्ययनों से यह पता लगाया गया है कि यह अपशिष्ट जल सतही एवं भूजल की गुणवत्ता के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्र के मृदा संसाधनों को भी प्रदूषित करता है। जहाँ एक ओर नगरीकरण के फलस्वरूप कंक्रीट संरचना में बढ़ोत्तरी के कारण वर्षाजल के भूमिगत रिसाव में कमी आई है वहीं दूसरी ओर अपशिष्ट जल का नालियों एवं सतही प्रवाह तंत्र के द्वारा आस-पास के ग्रामीण एवं कृषिगत क्षेत्रों में मृदा एवं भूजल में रिसाव हुआ है। अतः यहाँ के जल संसाधन में मात्रात्मक एवं गुणात्मक कमी आई है।
1.3 शोध परिकल्पना
परिकल्पना अनुसन्धान में अध्ययन को निर्देशित, नियंत्रित एवं संचालित करती है। प्रस्तुत शोध अध्ययन निम्न परिकल्पनाओं से निहित है :
(क) गिरते भूजल स्तर के कारण जल आपूर्ति की समस्या उत्पन्न हो रही है।
(ख) जल की गुणवत्ता एवं मानव बीमारियाँ अन्तर्सम्बन्धित हैं।
(ग) नगरीकरण और औद्योगीकरण के कारण जल की माँग निरन्तर बढ़ रही है।
1.4 शोध के उद्देश्य
(क) अलवर नगरीय क्षेत्र की जलापूर्ति व्यवस्था की वर्तमान में प्रासंगिकता का अध्ययन करना।
(ख) नगरीय क्षेत्रों में जल संरक्षण के उपाय सुझाना।
(ग) भूजल गुणवत्ता पर पड़ने वाले औद्योगीकरण के प्रभावों का अध्ययन करना।
(घ) अलवर में बढ़ती नगरीय जनसंख्या के सन्दर्भ में भविष्य की जलापूर्ति व्यवस्था की रणनीति तैयार करना।
(य) क्षेत्र के विकास मार्ग की बाधाओं को इंगित करना तथा अध्ययन क्षेत्र के लिये ऐसे प्रस्ताव तैयार करना जो भविष्य में जल संसाधनों के विकास हेतु नई दिशा प्रदान कर सकें।
(र) पारम्परिक जल-स्रोतों के पुनरुद्धार को महत्व प्रदान करना।
(ल) भू-उपयोग के अनुसार नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करना।
(व) ऐसे भूजल स्रोत जो सूख चुके हैं या सूखने के कगार पर हैं, की देखभाल एवं उन्हें पुनर्जीवित करना।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विश्व के सभी भूगोलवेत्ता पर्यावरण एवं पृथ्वी पर उपस्थित संसाधनों का शोध करते रहे हैं तथा यह बताया कि संसाधन (खासतौर से परम्परागत संसाधन) दिन-प्रतिदिन समाप्त होने के कगार पर है जबकि अपरम्परागत संसाधन का समुचित ढंग से उपयोग ना होने के कारण उनके क्षय (Loss) की मात्रा बढ़ती जा रही है।
जल संसाधन एक अपरम्परागत है जिसके समुचित उपयोग के लिये वर्तमान परिप्रेक्ष्य में तकनीकी का पूर्ण उपयोग हो रहा है। तकनीकी के अभाव में जहाँ कुछ वर्षों पहले जल संसाधन की प्राप्ति एक चुनौती बनी हुई थी, आज उन्नत तकनीक ने इन चुनौतियों को सम्भवतः समाप्त कर दिया है। इसके परिणाम स्वरूप जो जल एक तत्व था, वह संसाधन में बदल गया है। विश्व के विकास एवं विकसित क्षेत्रों ने, उन्नत तकनीक के द्वारा पहुँच से बाहर के जल को भी संसाधन में बदल दिया है। आज दुर्गम स्थान पर स्थित जल को बड़े से बड़े जल संग्रहण क्षेत्र में बदलकर उसका घरेलू एवं सिंचाई में उपयोग होने लगा है। सैकड़ों मीटर की गहराई पर स्थित भूजल उन्नत तकनीकों के द्वारा ट्यूबवेल से बाहर निकाला जा रहा है। हमारी तकनीकी जहाँ संसाधन को बढ़ाने में सहयोग प्रदान कर रही है, वहीं बढ़ती जनसंख्या एवं कमजोर प्रबन्धन से इन संसाधनों का अति दोहन हो रहा है। जल जो कि एक प्रमुख संसाधन है वह भी अव्यवस्था के कारण काफी व्यर्थ हो रहा है। यह अव्यवस्था नगरीय क्षेत्रों में अधिक गम्भीर है।
इसके विपरीत अच्छी व्यवस्था होने के बावजूद भी नगरीय क्षेत्रों में जल की काफी कमी आई है जिसका मुख्य कारण बढ़ती जनसंख्या की माँग रही है। जनसंख्या की बढ़ती जल-आपूर्ति की माँग मुख्य रूप से दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों में देखी गयी है जिसमें भारत प्रमुख देश है। भारतीय शहरों में पिछले 50 दशक से जिस गति से नगरीय जनसंख्या की बढ़ोत्तरी हुई है उससे जल संसाधन में कमी आना स्वाभाविक है। भारत में जल संसाधन को प्राप्त करने की तकनीकों पर काफी विकास हुआ है, परन्तु जनसंख्या के अप्रत्याशित वृद्धि के कारण संसाधनों की व्यवस्था में त्रुटि रह गई। यह त्रुटि नगरीकरण एवं औद्योगीकरण के कारण होनी स्वाभाविक थी क्योंकि तकनीकी की विकास गति और जनसंख्या की विकास गति में काफी अन्तर देखा गया है।
विकासशील देश होने के कारण तकनीकी विकास की गति धीमी रही जबकि जनसंख्या वृद्धि काफी तीव्र थी जो कि किसी भी व्यवस्था को चरमरा देती है। भारतीय शहरों में संसाधनों की कमी का मुख्य कारण भी यही रहा है।
वर्तमान शोध में इसी दृष्टिकोण को रखते हुए राजस्थान के एक प्रमुख प्रथम श्रेणी शहर अलवर को चुना गया है। जहाँ राजस्थान के अन्य शहर की तुलना में नगरीकरण के साथ-साथ औद्योगीकरण भी तीव्र गति से हुआ है। अलवर नगरीय क्षेत्र में जल संसाधन की दो आवश्यकताएँ उभरकर आती हैं- प्रथम नगरीय पेयजल सुविधा एवं दूसरी औद्योगिक जल व्यवस्था। औद्योगीकरण ने इस शहर को जहाँ एक ओर नया आकार दिया वहीं नगरीकरण की गति तथा जनसंख्या वृद्धि दर भी काफी तीव्र रही है। राजस्थान के अन्य बड़े शहरों की तुलना में इस शहर में पेयजल-आपूर्ति की सुविधा अधिक उन्नत नहीं रही है जिसके कारण नगरीय क्षेत्र में जल आपूर्ति व्यवस्था एक चुनौतियों के रूप में उभरकर सामने आई है।
वर्तमान शोध में इन्हीं चुनौतियों का चित्रण, जल की मात्रा एवं गुणवत्ता का अध्ययन तथा वर्तमान एवं भविष्य में जल की बढ़ती माँग का मानचित्रण किया गया है तथा नगरीय क्षेत्र में सुव्यवस्थित जलापूर्ति किस तरह उपलब्ध करवाई जाए पर भी विशेष बल दिया गया है।
घटते जल संसाधन के कारण प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता में भी कमी आई है। इसका मूल कारण बढ़ती जनसंख्या तथा जल की मात्रा का गुणात्मक एवं मात्रात्मक ह्रास है। प्रकृति में उपलब्ध जल की मात्रा में कभी-भी कमी या वृद्धि नहीं होती है केवल समय के साथ इसके स्वरूप बदलते रहते हैं। लेकिन जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ इसकी माँग में निरन्तर वृद्धि हुई है। जनसंख्या वृद्धि से नगरीकरण तथा औद्योगीकरण में वृद्धि के साथ जलापूर्ति व्यवस्था में असन्तुलन व जल संकट गहराता जा रहा है। बढ़ते नगरीकरण से जल की माँग में वृद्धि के कारण जल में गुणात्मक ह्रास हुआ है, जिससे जल मानवीय उपयोग के योग्य नहीं रहा।
वर्तमान जल संकट परिदृश्य से स्पष्ट होता है कि विश्व की 1.1 बिलियन जनसंख्या (2001) को पर्याप्त जलापूर्ति नहीं हो पा रही है अर्थात प्रति छह व्यक्तियों में से एक जल संकट से त्रस्त है। जल की आपूर्ति के अतिरिक्त इसके गुणात्मक पक्ष की दृष्टि से स्पष्ट है कि विश्व में 2.5 बिलियन जनसंख्या पर्याप्त स्वच्छ जल सुविधाओं से वंचित है तथा विश्व में प्रतिवर्ष जलजनित बीमारियों से बीस हजार बच्चों की मौत हो जाती है।
जल संकट की स्थिति का आकलन प्रति व्यक्ति होने वाली जलापूर्ति के आधार पर किया जाता है। यदि किसी प्रदेश में स्थानीय जलापूर्ति प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष एक हजार घनमीटर से कम है तो उस क्षेत्र को जल संकट से ग्रस्त माना जाता है। वर्तमान में इस वर्ग में लगभग 26 से अधिक देश आते हैं। इस प्रकार विश्व में जल संकट का आविर्भाव प्रारम्भिक रूप में तो इसके विषय वितरण एवं जनसंख्या की बढ़ती माँग द्वारा उद्भूत हुआ था, लेकिन वर्तमान समय में जल-संकट मात्रात्मक पक्ष के साथ ही गुणात्मक पक्ष से भी जुड़ गया है। किसी नगर की जलापूर्ति व्यवस्था उस नगर की अवस्थिति, धरातलीय बनावट, भूमिगत जल-स्तर, जनसंख्या घनत्व व अन्य सामाजिक भौगोलिक कारकों की समाकलित निष्पत्ति होती है जिसका प्रबन्धन सरकारी व निजी दोनों स्तरों पर किया जाता है। जलापूर्ति के लिये सरकारी स्तर पर जल वितरण बोर्ड की स्थापना की जाती है तथा भूमिगत पाइप लाइनों द्वारा उसकी आपूर्ति उद्योगों व आवासीय क्षेत्रों में की जाती है।
नगरीय जलापूर्ति व्यवस्था का स्वरूप जल-स्रोत पर भी निर्भर करता है जहाँ पर भूमिगत जल-स्तर ऊपर होता है वहाँ नलकूपों द्वारा, नदी किनारे स्थित नगरों में नदियों पर बाँध बनाकर, शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में वर्षाजल को तालाबों, टाँकों में संचित कर जलापूर्ति की जाती है।
अध्ययन क्षेत्र के विशेष सन्दर्भ में अरावली श्रेणी की अलवर की पहाड़ियों के मध्य वर्षाजल को संचित करने के लिये बाँध बनाकर सिलीसेढ़ झील का निर्माण किया गया था जिससे नगरीय क्षेत्र को जलापूर्ति होती थी। वर्तमान में इसका उपयोग उद्योगों हेतु एवं अन्य विविध कार्यों में किया जा रहा है। पेयजल आपूर्ति हेतु जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग द्वारा नलकूपों की सहायता ली जा रही है। बढ़ते नगरीकरण एवं उद्योगों में जल की बढ़ती माँग का प्रभाव वर्तमान जल संसाधन की सन्तुलित उपलब्धता पर दो तरह से पड़ता है -
प्रथम इसकी बढ़ती माँग की सुव्यवस्थित आपूर्ति को बरकरार रखना तथा दूसरा जल की गुणवत्ता को प्राकृतिक रूप से बनाए रखना। यह सन्तुलित उपलब्धता नगरीकरण के कारण क्षीण प्रतीत हो रही है जबकि उद्योगों में प्रयुक्त जल दोहरी धार वाली तलवार सिद्ध होकर दोहरी मार कर रहा है।
इस प्रकार जल की मात्रा व गुणवत्ता को बरकरार रखना चिन्ता का विषय बना हुआ है। इसके लिये विभिन्न उद्योगों में श्रेणीकरण कर जल को पुनः चक्रीकरण द्वारा उपयोग में लिया जाए ताकि उद्योगों की उपयोगिता के अनुरूप उसे उचित श्रेणी की जलापूर्ति उपलब्ध हो सके।
1.1 अध्ययन क्षेत्र का परिचय
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में दिल्ली से लगभग 160 किलोमीटर एवं राजस्थान की राजधानी जयपुर से 150 किलोमीटर की दूरी पर अरावली पर्वत शृंखला की नैसर्गिक वादी में खूबसूरत झीलों एवं घने जंगलों से आच्छादित अलवर नगरीय क्षेत्र राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल एवं वाणिज्यिक केन्द्र है। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के विकास की नीतियों के क्रियान्वयन में इसकी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
राजस्थान प्रदेश का गठन होने से पूर्व यह शहर अलवर रियासत की राजधानी रहने के कारण अपने अतीत काल में भी प्रशासनिक एवं वाणिज्यिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।
अलवर की महत्ता को देखते हुए इसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रीय योजना 2021 के अन्तर्गत एक क्षेत्रीय शहर के रूप में चिन्हित किया गया है तथा यहाँ पर भौतिक, आर्थिक एवं जनसुविधा सम्बन्धित आधारभूत संरचना का समुचित विकास कर इसे अधिक सक्षम बनाने का सुझाव है। सत्तर के दशक में यहाँ मत्स्य औद्योगिक क्षेत्र विकसित किया गया जिससे अनेक वृहत्त उद्योगों की स्थापना हुई और नगरीय क्षेत्र के विकास को एक नया आयाम मिला।
अलवर नगरीय क्षेत्र की वर्तमान (2011) जनसंख्या 381400 है जबकि वर्ष 2001 में इसकी जनसंख्या 266203 थी। पिछले दशक में इस नगरीय क्षेत्र की जनसंख्या वृद्धि 34.6 प्रतिशत रही। वर्तमान समय में इस नगरीय क्षेत्र में 746 औद्योगिक इकाइयाँ हैं। वर्ष 2011 में इस नगरीय क्षेत्र 68625 देशी पर्यटक एवं 16240 विदेशी पर्यटकों ने भ्रमण किया इस नगरीय क्षेत्र में कुल 136 कार्यालय हैं जिसमें 13063 व्यक्ति कार्यरत हैं। नगर नियोजन से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार नगरीय क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 5807 हेक्टेयर है जो कि भविष्य में (2031) 11760 हेक्टेयर होने की सम्भावना है।
1.2 शोध क्षेत्र की समस्या
शोध के अध्ययन अलवर नगरीय क्षेत्र में वर्तमान समय की प्रमुख समस्या नगरीय जल आपूर्ति व्यवस्था व बढ़ते जल संकट से सम्बन्धित हैं। विगत कुछ वर्षं में अलवर नगरीय क्षेत्र में बढ़ती जनसंख्या एवं औद्योगीकरण के कारण जल संसाधन की माँग में अत्यधिक वृद्धि हुई है लेकिन तदनुरूप जलापूर्ति न होने के कारण जलसंकट की स्थिति बनी रहती है। नगरीय क्षेत्र में जहाँ 2001 में जनसंख्या 266203 थी वहीं 2011 में 34.06 प्रतिशत की वृद्धि से 381400 हो गई।
इस समस्या को स्थानीय भौगोलिक व मानसून की अनिश्चित प्रवृत्ति में बहुगुणित किया है। साथ ही जल पुनर्भरण की यथोचित व्यवस्था न होने के कारण भूमिगत जल-स्तर निरन्तर नीचे गिर रहा है जो औसतन 0.9 मीटर प्रतिवर्ष (1984 से 2004) की दर से दर्ज किया गया है। अलवर नगरीय क्षेत्र की प्रमुख नदी रूपारेल की मौसमी प्रवृत्ति एवं वर्ष-दर-वर्ष उसके कम होते जल प्रवाह के कारण जल संकट की स्थिति बढ़ रही है। कम वर्षा एवं अत्यधिक भूजल दोहन के फलस्वरूप शहर का भूमिगत जल-स्तर निरन्तर गिरता जा रहा है। वर्तमान में क्षेत्रीय दृष्टिकोण से पूरे जिले में स्थिति चिन्ताजनक है।
जिले के 17 पोटेन्शियल जोन अति दोहित व दो जोन संवेदनशील श्रेणी में है। मात्र दो जोन सुरक्षित श्रेणी के हैं वह भी खारे पानी के हैं। बढ़ती जनसंख्या एवं जल के अत्यधिक घरेलू एवं औद्योगिक उपयोग के कारण नगरीय एवं औद्योगिक अपशिष्ट जल की मात्रा में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। विभिन्न अध्ययनों से यह पता लगाया गया है कि यह अपशिष्ट जल सतही एवं भूजल की गुणवत्ता के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्र के मृदा संसाधनों को भी प्रदूषित करता है। जहाँ एक ओर नगरीकरण के फलस्वरूप कंक्रीट संरचना में बढ़ोत्तरी के कारण वर्षाजल के भूमिगत रिसाव में कमी आई है वहीं दूसरी ओर अपशिष्ट जल का नालियों एवं सतही प्रवाह तंत्र के द्वारा आस-पास के ग्रामीण एवं कृषिगत क्षेत्रों में मृदा एवं भूजल में रिसाव हुआ है। अतः यहाँ के जल संसाधन में मात्रात्मक एवं गुणात्मक कमी आई है।
1.3 शोध परिकल्पना
परिकल्पना अनुसन्धान में अध्ययन को निर्देशित, नियंत्रित एवं संचालित करती है। प्रस्तुत शोध अध्ययन निम्न परिकल्पनाओं से निहित है :
(क) गिरते भूजल स्तर के कारण जल आपूर्ति की समस्या उत्पन्न हो रही है।
(ख) जल की गुणवत्ता एवं मानव बीमारियाँ अन्तर्सम्बन्धित हैं।
(ग) नगरीकरण और औद्योगीकरण के कारण जल की माँग निरन्तर बढ़ रही है।
1.4 शोध के उद्देश्य
(क) अलवर नगरीय क्षेत्र की जलापूर्ति व्यवस्था की वर्तमान में प्रासंगिकता का अध्ययन करना।
(ख) नगरीय क्षेत्रों में जल संरक्षण के उपाय सुझाना।
(ग) भूजल गुणवत्ता पर पड़ने वाले औद्योगीकरण के प्रभावों का अध्ययन करना।
(घ) अलवर में बढ़ती नगरीय जनसंख्या के सन्दर्भ में भविष्य की जलापूर्ति व्यवस्था की रणनीति तैयार करना।
(य) क्षेत्र के विकास मार्ग की बाधाओं को इंगित करना तथा अध्ययन क्षेत्र के लिये ऐसे प्रस्ताव तैयार करना जो भविष्य में जल संसाधनों के विकास हेतु नई दिशा प्रदान कर सकें।
(र) पारम्परिक जल-स्रोतों के पुनरुद्धार को महत्व प्रदान करना।
(ल) भू-उपयोग के अनुसार नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति सुनिश्चित करना।
(व) ऐसे भूजल स्रोत जो सूख चुके हैं या सूखने के कगार पर हैं, की देखभाल एवं उन्हें पुनर्जीवित करना।
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