प्रतिबंध के बाद भी जारी है सिर पर मैला ढोने की प्रथा

मैला प्रथाराष्ट्रीय गरिमा अभियान, मध्य प्रदेश एवं ह्यूमन राइट्स वॉच ने भोपाल में एक अध्ययन रिपोर्ट जारी कर बताया कि मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने के लिए बनाए गए कानूनों के बाद भी देश के लाखों लोग सिर पर मैला ढो रहे हैं।

अध्ययनकर्ता ह्यूमन राइट्स वॉच की शिखा सिलिमन भट्टाचार्जी का कहना है कि ‘‘मानव मल की सफाई : भारत में ‘सिर पर मैला ढोना’, जाति और छुआछूत’’ नाम से जारी अध्ययन रिपोर्ट में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात और राजस्थान में इस प्रथा में लगे और छोड़ चुके 100 लोगों के साक्षात्कार लिए गए हैं। राष्ट्रीय गरिमा अभियान के संस्थापक आशिफ शेख का कहना है कि मैला ढोने की प्रथा गुलामी की तरह है। यह दलितों के साथ भेदभाव के सबसे प्रचलित रूपों में से एक है। ह्यूमन राइट्स वॉच की दक्षिण एशिया निदेशक मीनाक्षी गांगुली का कहना है कि यह मानव अधिकारों का उल्लंघन है।

भारत के विभिन्न हिस्सों में आज भी निम्न जाति समुदाय की महिलाएं (पुरुष बहुत ही कम संख्या में) घरेलू शौचालयों, सामुदायिक शौचालयों और खुले में शौच त्यागने वाले क्षेत्रों से टोकरी या टीन के कनस्तर में मल इकट्ठा कर उसे सिर पर रखकर रहवासी क्षेत्र से बाहर फेंकते हैं।

कुछ खास जातियों में सिर पर मैला ढोने की प्रथा सदियों से चली आ रही है, इसमें बहुत ही अस्वच्छ तरीके में उपलब्ध शौचालयों से मल को इकट्ठा कर उसे बाहर फेंकवाने का काम करवाया जाता रहा है। जनगणना 2011 के अनुसार देश में 26 लाख से ज्यादा शुष्क शौचालय हैं, जिनमें से अधिकतर शौचालयों में मैला ढोने की प्रथा जारी है। यह अमानवीय एवं भेदभावपूर्ण तो है ही, साथ ही यह पानी को प्रदूषित करने का एक बड़ा कारण है।

यह रिपोर्ट इस बात की समीक्षा करती है कि सिर पर मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने में पूर्व की नाकामियां क्या रही हैं और इससे जुड़े कानूनों को लागू करने में क्या कमियां रही हैं।

इस अमानवीय प्रथा को छोड़कर सामान्य मजदूरी करने जाने पर उनके साथ की जाने वाली हिंसा और विस्थापन के भय को रोकने के लिए अपर्याप्त सुरक्षा की स्थिति को भी रिपोर्ट में शामिल किया गया है।

रिपोर्ट इस बात की पैरवी करती है कि इन समुदायों के अधिकारों की बेहतर गारंटी देने के लिए भारत सरकार विशेष कदम उठाए, जिसमें बच्चों को छात्रवृत्ति, आवास, आजीविका संबंधी योजनाओं का लाभ एवं वित्तीय सहायता शामिल हो और मैला ढोने की प्रथा खत्म करने के लिए बने 2013 के कानून को लागू करे।

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Post By: Shivendra
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