9 जनवरी 2014, महोबा। जिला मुख्यालय से महज 12 किमी. पर बसे विकासखण्ड चरखारी के गांव ‘सूपा’ पलायन के लिए चर्चित है।
इस ग्राम में श्रमिकों के साथ बड़े किसानों का भी तेजी से पलायन हुआ है। लघुसीमान्त किसानों की तो बिसात ही क्या, जो गांव में अपनी खेती के भरोसे जीवनयापन कर सकते। पर इस साल गांव में तालाबों के बनने से पलायन के आंकड़ों में बदलाव आता दिख रहा है। महज घर-जमीन की रखवाली करने वाले बूढ़े मां-बाप की दबी जबानों पर पलायन कर गये बच्चों की वापसी का संकेत सुनाई देने लगा है।
इसी गांव के सीमान्त किसान जगमोहन की बरसाती नाले से सटी-कटी, भूमि का मालिक तो है, पर इससे कभी भी इतनी फसल नहीं ले सका जिससे वह अपने बच्चों को दिल्ली जाने से रोक पाता। अपने चार बच्चों में से जिन तीन के विवाह कर जगमोहन बड़े शौक से बहुओं को घर लाया था, वह सभी रोजी-रोटी की तलाश में एक-एक कर गांव छोड़ते गये। इस परिवार में ये सिलसिला 10-12 सालों से अनवरत जारी है। कभी शादी-विवाहों, त्यौहारों में आना-जाना होता था।
किन्तु इस वर्ष मई 2013 से महोबा जिले में किसानों के सदियों से सूखे खेतों को तर करने के मकसद से ‘अपना तालाब अभियान’ की शुरूआत होते ही कृषि, विकास, सहित जिले में कार्यरत एजेन्सियों के नजरिये में बदलाव का असर दिखने लगा। केन्द्र सरकार द्वारा संचालित ‘मनरेगा’ जो कार्यदायी संस्थाओं के लिए बोझ और गले की हड्डी बनकर अटकी थी, उसी मनरेगा को पानी पुनरुत्थान की साझी पहल अपना तालाब अभियान के अर्थशास्त्र ‘पानी बचाओ - लाभ कमाओ’, जैसा सूत्र मिला तो पंख लगना शुरू हो गया। बदलाव का माहौल बनने लगा।
जगमोहन अपने बहू-बेटों को दिल्ली से बुलाकर अपने बेकार पड़े खेत के निचले हिस्से में 45×25×3 मी गहरे जल भराव तालाब का निर्माण फावड़ा-कुदाल चलाकार मेहनत से पड़ोसी श्रमिकों को भी लगाकर किया तो परिवार के वापसी के आसार नजर आने लगे। इस परिवार को अच्छी-खासी मनरेगा की पूंजी भी हाथ लग गयी। आगे बरसात से अपने तालाब के भरने के भरोसे पर जगमोहन उत्साहित हैं। कहते हैं कि कि अब मेरा दूर देश में पड़ा परिवार भी एक-एक कर वापस आ सकेगा। जगमोहन अपने तालाब की अधिकतम गहराई के लिए जतन कर रहा है। बिन बताए किसान जगमोहन के मन मस्तिष्क में अपने तालाब की गहराई को लेकर जरूर कोई गहरी योजना का विस्तार होता दिख रहा है।
संपर्क - जगमोहन पुत्र श्री हीरालाल
ग्राम - सूपा, विकासखंड - चरखारी, महोबा
मो - (जगमोहन के पुत्र बालू का मोबाइल) 07607305747
इस ग्राम में श्रमिकों के साथ बड़े किसानों का भी तेजी से पलायन हुआ है। लघुसीमान्त किसानों की तो बिसात ही क्या, जो गांव में अपनी खेती के भरोसे जीवनयापन कर सकते। पर इस साल गांव में तालाबों के बनने से पलायन के आंकड़ों में बदलाव आता दिख रहा है। महज घर-जमीन की रखवाली करने वाले बूढ़े मां-बाप की दबी जबानों पर पलायन कर गये बच्चों की वापसी का संकेत सुनाई देने लगा है।
इसी गांव के सीमान्त किसान जगमोहन की बरसाती नाले से सटी-कटी, भूमि का मालिक तो है, पर इससे कभी भी इतनी फसल नहीं ले सका जिससे वह अपने बच्चों को दिल्ली जाने से रोक पाता। अपने चार बच्चों में से जिन तीन के विवाह कर जगमोहन बड़े शौक से बहुओं को घर लाया था, वह सभी रोजी-रोटी की तलाश में एक-एक कर गांव छोड़ते गये। इस परिवार में ये सिलसिला 10-12 सालों से अनवरत जारी है। कभी शादी-विवाहों, त्यौहारों में आना-जाना होता था।
किन्तु इस वर्ष मई 2013 से महोबा जिले में किसानों के सदियों से सूखे खेतों को तर करने के मकसद से ‘अपना तालाब अभियान’ की शुरूआत होते ही कृषि, विकास, सहित जिले में कार्यरत एजेन्सियों के नजरिये में बदलाव का असर दिखने लगा। केन्द्र सरकार द्वारा संचालित ‘मनरेगा’ जो कार्यदायी संस्थाओं के लिए बोझ और गले की हड्डी बनकर अटकी थी, उसी मनरेगा को पानी पुनरुत्थान की साझी पहल अपना तालाब अभियान के अर्थशास्त्र ‘पानी बचाओ - लाभ कमाओ’, जैसा सूत्र मिला तो पंख लगना शुरू हो गया। बदलाव का माहौल बनने लगा।
जगमोहन अपने बहू-बेटों को दिल्ली से बुलाकर अपने बेकार पड़े खेत के निचले हिस्से में 45×25×3 मी गहरे जल भराव तालाब का निर्माण फावड़ा-कुदाल चलाकार मेहनत से पड़ोसी श्रमिकों को भी लगाकर किया तो परिवार के वापसी के आसार नजर आने लगे। इस परिवार को अच्छी-खासी मनरेगा की पूंजी भी हाथ लग गयी। आगे बरसात से अपने तालाब के भरने के भरोसे पर जगमोहन उत्साहित हैं। कहते हैं कि कि अब मेरा दूर देश में पड़ा परिवार भी एक-एक कर वापस आ सकेगा। जगमोहन अपने तालाब की अधिकतम गहराई के लिए जतन कर रहा है। बिन बताए किसान जगमोहन के मन मस्तिष्क में अपने तालाब की गहराई को लेकर जरूर कोई गहरी योजना का विस्तार होता दिख रहा है।
संपर्क - जगमोहन पुत्र श्री हीरालाल
ग्राम - सूपा, विकासखंड - चरखारी, महोबा
मो - (जगमोहन के पुत्र बालू का मोबाइल) 07607305747
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