सन्यास ग्रहण करने के बाद स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के नए नामकरण वाले प्रो. जी डी अग्रवाल एक ख्यातिनाम शख्सियत हैं। आई आई टी, कानपुर के सिविल इंजीनियरिंग और पर्यावरण विभाग में एक ज्ञानी और निष्ठावान अध्यापक के रूप में, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में प्रथम सचिव के रूप में और राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय के सलाहकार के रूप में उनकी सेवाएं सर्वविदित हैं। चित्रकूट के एक छोटे से कमरे में एक स्टोव, एक बिस्तर और एक अटैची में दो-चार जोड़ी कपड़ों की सादगी और स्वावलंबन को संजोकर ज्ञान बांटने वाले ग्रामोदय विश्वविद्यालय में मानद प्रोफेसर के रूप में भी प्रो. अग्रवाल ने सराहना कम नहीं पाई।
एक सन्यासी और एक गंगापुत्र के रूप में प्रो. अग्रवाल ने जिस दृढ़ संकल्प का परिचय दिया, उसके नतीजे से भी हम वाक़िफ़ हैं: परिणामस्वरूप सरकार उत्तरकाशी के ऊपर तीन बांध परियोजनाओं को रद्द करने को विवश हुई और भगीरथी उद्गम क्षेत्र को पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील घोषित करना पड़ा। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि सतही और भूगर्भ जल विज्ञान के क्षेत्र में प्रो. अग्रवाल देश के सर्वोच्च विज्ञानियों में से एक हैं। प्रो. अग्रवाल के इस ज्ञान के बल पर अलवर समेत इस देश के कई इलाकों ने ‘डार्क जोन’ को वापस ‘व्हाइट जोन’ में बदलने में सफलता पाई है। यह बात भी बहुत कम लोग जानते हैं कि प्रो. जी डी अग्रवाल के लिए गंगा की निर्मलता और अविरलता विज्ञान का विषय नहीं, बल्कि आस्था का विषय है।
वह कहते है कि गंगा उनकी मां है। वह मां के लिए अपनी जान दे सकते हैं; वह मां का सौदा नहीं कर सकते। जबकि आज सरकारें यहीं कर रही हैं। इसी को लेकर वह व्यथित हैं। इसी व्यथा को लेकर वह तीन बार अनशन कर चुके हैं। 13 अगस्त, 2013 से चौथी बार पुनः अनशन पर हैं। इस गंगा अनशन को हरिद्वार प्रशासन ने आत्महत्या का प्रयास करार दिया; हरिद्वार के कनखल पुलिस थाने में धारा 309 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई; इसके बाद उन्हें इलाज के नाम पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली ले जाया गया। वहां से लौटने पर 14 अगस्त तक हरिद्वार की रोशनाबाद जेल की अंधेरी कोठरी में पटक दिया गया। इस बीच स्वामी जी द्वारा जमानत लेने में असमर्थता व्यक्त करने पर न्यायिक हिरासत की अवधि 14 दिन बढ़ाकर 26 अगस्त तक कर दी गई।
हालांकि देश की सबसे बड़ी अदालत ने स्वामी सानंद की याचिका पर बिना जमानत रिहाई के आदेश देकर उनके संकल्प का सम्मान किया। (स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद-सिविल याचिका संख्या 200 (वर्ष-2013), सर्वोच्च न्यायालय - न्यायमूर्ति श्री टी. एस. ठाकुर और न्यायमूर्ति श्री विक्रमजीत सेन की पीठ। याचिका पक्ष के वकील - सर्वश्री के टी एस तुलसी, ख्यातिनाम पर्यावरण वकील एम सी मेहता, कुबेर बुद्ध और डा कैलाश चंद। ) अब वह जेल से मुक्त हैं। 81 वर्ष की उम्र! प्राण पर संकट प्रतिदिन की रफ्तार से गहरा रहा है। बावजूद इसके अनशन जारी है। आज 10 सितम्बर को अनशन अपने 90 दिन पूरे कर चुका है।
विवरण हेतु संपर्क:
स्वामीश्री शिवानंद सरस्वती जी
एवम् स्वामीश्री दयानंद जी
मातृ सदन,
जगजीत नगर, कनखल रोड,
हरिद्वार (उत्तराखंड)
फोन: 09410-561-010, 09808-725-573
ई मेल: matrisadan@hotmail.com, matrisadan@yahoo.com
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