प्रदेशों की परेशानी

उत्तर प्रदेश


आवश्यकता: 20 हजार एमएलडी उपलब्धता: 15 हजार एमएलडी

जल संरक्षण प्रदेश में जल संरक्षण और प्रबंधन के नाम पर कागज की नाव ही तैरायी गयी है। यहां न बड़े भवनों में रेन हार्वेस्टिंग के नियम पूरी तरह अमल में आ सके और न ही अंधाधुंध जल दोहन पर अंकुश लगाने के लिए बना जल प्रबंधन एवं नियामक आयोग अपने पूरे प्रभाव में नजर आया।

कानून कायदे: लगभग साल भर पहले उत्तर प्रदेश भूजल संरक्षण, सुरक्षा एवं विकास (प्रबंध, नियंत्रण एवं विनियमन) विधेयक का मसौदा तैयार हुआ था लेकिन उसमें भी सुझाव आमंत्रित करने के अलावा अगला कदम नहीं उठाया गया है। केंद्र सरकार का दबाव पड़ने पर राज्य के भूमि विकास एवं जल संसाधन विभाग को गांव, कस्बों और शहरों के समीप तालाब-पोखर, कुंओं का जलस्तर बनाये रखने की जिम्मेदारी दी गई थी लेकिन यह प्रयास भी रंग न लाया।

 

 

दिल्ली


पेयजल की उपलब्धता: 825 एमजीडी
आवश्यकता: 1140 एमजीडी
पेयजल का औद्योगिक उपयोग: 858 एमएलडी
व्यावसायिक व संस्थाओं द्वारा उपयोग: 171 एमएलडी

 

 

 

 

कानून कायदे


33 ओवर ब्रिज पर जल संचयन से संबंधित व्यवस्थाएं, नए सरकारी निर्माण पर जल संचयन कानून का पालन हो रहा है लेकिन नए निर्माणाधीन मकानों में कानून का पालन न के बराबर है।

 

 

 

 

जम्मू कश्मीर


सतह पर उपलब्ध जल की वर्तमान मात्रा: 2.70 बीसीएम (बिलियन क्यूसिक मीटर)
रोजाना जरूरत: 212.10 मिलियन गैलन पानी
उपलब्धता:133.21 मिलियन गैलन
कानून-कायदे सतह पर मौजूद जल व जल निकायों के संरक्षण के लिए राज्य सरकार ने फरवरी 2011 में वाटर रिसोर्सेस एक्ट लागू किया है। इस एक्ट को लागू करने से जहां पानी के दुरुपयोग को रोका जाएगा वहीं दरियों का पानी इस्तेमाल करने वाली पनबिजली परियोजनाओं से सालाना 900 करोड़ रुपए का लाभ भी मिलेगा। फिलहाल इस एक्ट को लागू करने की प्रक्रिया जारी है।

 

 

 

 

बिहार


प्रतिवर्ष प्रतिव्यक्ति: 500 घन मीटर सतही जल व 280 घनमीटर भू-गर्भ जल उपलब्ध भू-गर्भ जल निदेशालय द्वारा कराये गए सर्वेक्षण के अनुसार 20 जिलों के जलस्तर में 1 से 3 मीटर तक गिरावट 11 ऐसे प्रखण्ड हैं जिसके सभी कूप सूख गए हैं।

कानून कायदे : सरकार ने 2006 में बिहार भू-गर्भ जल (विकास व प्रबंधन का विनियमन व नियंत्रण) अधिनियम विधानमंडल से पारित किया गया लेकिन लागू नहीं हो पाया। सतही व भू-गर्भ जल पर नियंत्रण के लिए जल विनियामक प्राधिकार के गठन की तैयारी।

 

 

 

 

पंजाब


केंद्रीय पंजाब के 9058 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में पानी 20 मीटर से नीचे है। सन 2000 में 3471 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 15 से 20 मीटर नीचे तक पानी था, यह क्षेत्र अब बढ़ कर 7500 किलोमीटर से अधिक हो गया है। 2000 में पांच से दस मीटर नीचे पानी वाला क्षेत्र का रकबा 10,096 वर्ग किलोमीटर था जो अब घट कर 4000 वर्ग किलोमीटर रह गया है।

भूजल खराब होने के कारण अब ज्यादातर पानी राज्य की तीन नदियों सतलुज, ब्यास व रावी से नहरों के जरिए उपलब्ध कराया जाता है।

 

 

 

 

झारखंड


उपलब्धता : 4292 एमसीएम
जरूरत शहरी क्षेत्र में प्रति व्यक्ति: 135 लीटर प्रतिमाह
पानी के औद्योगिक एवं व्यावसायिक उपयोग की स्थिति: उद्योगों को करीब 4338 एमक्यूएम पानी चाहिए, मिल रहा है 3790 एमक्यूएम।
पेयजल संरक्षण के उपाय: डीप बोरिंग पर रोक, लेकिन अंधाधुंध हो रही बोरिंग। बड़े भवनों का नक्शा बगैर वर्षा जल संरक्षण का उपाय किए स्वीकृत नहीं करने का प्रावधान लेकिन इस नियम की भी हो रही अनदेखी।

 

 

 

 

उत्तराखंड


ग्रामीण पेयजल की स्थिति: औसत आपूर्ति : 33.46
नगरीय पेयजल की स्थिति : मानक 135 लीटर प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति
औसत आपूर्ति दर: 111.01 एलपीसीडीपेयजल संरक्षण के उपाय
जलस्नोतों के संरक्षण के लिए खाल-चाल के पारंपरिक तौर-तरीकों को इसमें शामिल किया गया है। अब तक करोड़ों की राशि भी व्यय हो चुकी है। दुखद स्थिति यह है कि राज्य बने दस साल होने के बाद भी उत्तराखंड की पेयजल नीति नहीं बन पाई है।

 

 

 

 

हिमाचल प्रदेश


ग़्रामीण क्षेत्र में :जलापूर्ति रोजाना: 70 लीटर प्रति व्यक्ति
शहरी इलाकों में जलापूर्ति: घरेलू कनेक्शन : 79796
व्यवसायिक कनेक्शन: 5339
कुल हैंडपंप : 23371

कानून कायदे : बर्षा जल संग्रहण प्रणाली को अनिवार्य बनाया गया है। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग एरिया में आने वाले मकानों का नक्शा तभी पास होता है, जब नक्शे के साथ वर्षा जल संग्रहण भंडार के लिए टैंक होता है। लेकिन इस कानून की पालना न के बराबर हो रही है।

 

 

 

 

हरियाणा


जरूरत : 36 मिलियन एकड़ पानी उपलब्ध : 14 मिलियन एकड़

जल स्नोत नहरें, ट्यूबवेल व प्राकृतिक चश्मेंहरियाणा के सात जिलों महेंद्रगढ़, भिवानी, सिरसा, रोहतक, झज्जर, मेवात और हिसार में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता मानक 40 लीटर प्रति दिन की जगह 70 लीटर पानी प्रति व्यक्ति उपलब्ध है। बाकी 14 जिलों में 55 लीटर पानी का दावा है।

जल संरक्षण : हरियाणा सरकार द्वारा वर्ष 2011 को जल संरक्षण वर्ष घोषित, प्रदेश की विभिन्न ड्रेनों पर हंपस का निर्माण, झीलों व तालाबों की सफाई कर उन्हें गहरा करना, रिचार्ज चैनलों का निर्माण, क्रास रेगुलेटरों का निर्माण, छोटे चैक बांध, मिट्टी के बांध तथा जल संचय संरचनाओं का निर्माण, आवासीय परिसरों में बरसाती पानी के संचय की प्रणाली को अनिवार्य रूप से लागू करना।

 

 

 

 

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