पण्डोह

विकास बुद्धि ने
रोक दिया
छलछलाती निरंतर बहती
नील-श्वेत नदी का रास्ता

बीच में ही टोक दिया
जल का राग

पृथ्वी की धमनी में
जम गया रक्त का थक्का

पाशबद्ध है
मुनि वशिष्ठ की विपाशा

क्रोध में कांप रही।
गहरी हरी झील।

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