तुलसी रमण

तुलसी रमण
अनंत दीप
Posted on 05 Dec, 2013 10:55 AM
हिमालय पिघल के
उतर आया
सागर से मिलने को आतुर

पृथ्वी के वक्ष से
बह रही गंगा

यह कैसी संध्या है!
घुल रहे जलधार में
आरती के मंत्र
ठहर गया हवा में
अंतस का संगीत

उतर आया
एक उत्सव घाट पर
गंगा से आ लिपटी
आकाशगंगा
पृथ्वी की गोद में
जल की लहरों पर
उर में अग्नि लिए
प्रकंपमान जगत्प्राण में
सलापड़
Posted on 05 Dec, 2013 10:53 AM
पर कटे पर्वत का
बींधकर उदर
पानी से पानी मिला
घाटी से घाटी

मानसरोवर में जा डूबा
व्यास-कुंड
शतद्रु से जा गले मिली
वत्सला विपाशा

मस्तिष्क के विस्तार में
आदमी के हाथों ने
भविष्य के लिए रचा है
एक और पुराण।

5 नवंबर, 1999, मंडी से मनाली जाते हुए

पण्डोह
Posted on 05 Dec, 2013 10:52 AM
विकास बुद्धि ने
रोक दिया
छलछलाती निरंतर बहती
नील-श्वेत नदी का रास्ता

बीच में ही टोक दिया
जल का राग

पृथ्वी की धमनी में
जम गया रक्त का थक्का

पाशबद्ध है
मुनि वशिष्ठ की विपाशा

क्रोध में कांप रही।
गहरी हरी झील।

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