पर्यावरण से लेकर हमारे जीवन तक पर प्लास्टिक का बुरा असर सामने आ रहा है, फिर भी प्लास्टिक का उत्पादन बढ़ता ही जा रहा है। इस वर्ष इन्हीं वजहों से विश्व पर्यावरण दिवस, 2018 की थीम प्लास्टिक प्रदूषण को मात देने पर आधारित की गई है। भारत के लिये यह और महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमें इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व पर्यावरण दिवस का मेजबान राष्ट्र बनाया है।
जिन्दगी के लिये पाँच तत्व हैं, जल, हवा, आसमान, आग और मिट्टी। यहीं से हमें चेतना मिलती है। लेकिन नई सभ्यता के इस दौर में चेतना के ये स्रोत दूषित हो रहे हैं। प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह प्लास्टिक है। इस बार के विश्व पर्यावरण दिवस पर हमने प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्ति की चाह रखी है। एक खास रिपोर्ट-प्लास्टिक आज न केवल हर जगह है, बल्कि लगभग हमेशा के लिये भी है। इससे बने बर्तनों में हम खाते-पीते हैं, इसकी कुर्सी पर बैठते हैं, प्लास्टिक से बनी कारों में सफर कर रहे हैं। ये चीजें लम्बे समय तक चलें, इसके लिये इन्हें ‘ड्यूरेबल’ बनाया जा रहा है। उपयोग बढ़े, इसके लिये कई रूपों में बनाया जा रहा है। इसमें सीलन नहीं आती और तरल वस्तुएँ लीक नहीं होती। यह लचीला है, हल्का भी है। यह हीरे की तरह महँगा नही है, लेकिन उसी की तरह सदा के लिये बनाया जा रहा है। इसका यही गुण हमारे और हमारी धरती व पर्यावरण के लिये खतरा बन चुका है। इस पर्यावरण दिवस पर इसे खत्म करने का दायित्व दिया गया है, जो हम सभी का है।
निश्चित रूप से प्लास्टिक हमारे लिये उपयोगी तत्व है, यही वजह है कि आज जीवन के लगभग हर क्षेत्र में हम इसे मौजूद पाते हैं। लेकिन क्या कभी यह सोचते हैं कि जिस तरह लकड़ी लोहे अथवा कागज की वस्तुओं के अनुपयोगी होने पर हम उन्हें फेंक देते हैं, क्या प्लास्टिक की वस्तुओं को भी फेंकना सही है? क्या होता है, जब हम इसे मिट्टी या पानी में फेंकते हैं? क्या होता है, जब इसे जलाते हैं?
यह किसी अन्य तत्व या जैविक चीजों की तरह पर्यावरण में घुलता नहीं, बल्कि सैकड़ों साल तक वहाँ वैसे ही बना रहता है, जहाँ इसे फेंका गया था। साथ ही उस जगह को अपने केमिकल से जहरीला भी बनाता जाता है। जिस मिट्टी में यह प्लास्टिक जाता है, उसे बंजर बना देता है। पानी में जाता है, तो पानी को न केवल जहरीला बनाता है, बल्कि जलीय जीवों के लिये मौत का कारण बन जाता है।
प्लास्टिक थीम, भारत मेजबान
बीते 50 वर्ष में हमने जितना उपयोग प्लास्टिक का बढ़ाया है, किसी अन्य चीज का इतनी तेजी से नहीं बढ़ाया। 1960 में दुनिया में 50 लाख टन प्लास्टिक बनाया जा रहा था, आज यह बढ़कर 300 करोड़ टन के पार हो चुका है। यानी हर व्यक्ति के लिये करीब आधा किलो प्लास्टिक हर वर्ष बन रहा है।
पर्यावरण से लेकर हमारे जीवन तक पर इसका बुरा असर सामने आ रहा है, फिर भी प्लास्टिक का उत्पादन बढ़ता ही जा रहा है। इस वर्ष इन्हीं वजहों से विश्व पर्यावरण दिवस, 2018 की थीम प्लास्टिक प्रदूषण को मात देने पर आधारित की गई है। भारत के लिये यह और महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमें इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व पर्यावरण दिवस का मेजबान राष्ट्र बनाया है।
प्लास्टिक से होने वाले नुकसान
माइक्रो प्लास्टिक- कॉस्मेटिक में उपयोग हो रहा माइक्रो प्लास्टिक या प्लास्टिक बड्स पानी में घुलकर प्रदूषण बढ़ा रहे हैं। इसकी मौजूदगी जलीय जीवों में भी मिली है माइक्रो प्लास्टिक मछलियों के साथ-साथ भोजन-श्रृंखला के जरिये पक्षियों और कछुओं में भी मिलने की पुष्टि हुई है। यही वजह है कि भारत सहित कई देशों ने जुलाई 2017 में इस पर बैन लगाया, लेकिन अब तक हमारे वातावरण को हुए नुकसान की भरपाई में कितना समय लगेगा, कहना मुश्किल है।
समुद्र में प्लास्टिक- रीसाइक्लिंग से बचे और बेकार हो चुके प्लास्टिक का बड़ा हिस्सा हमारे समुद्रों में डम्प हो रहा है। वैज्ञानिक अध्ययनों का अनुमान है कि 2016 में समुद्र में 70 खरब प्लास्टिक के टुकड़े मौजूद थे, जिसका वजन तीन लाख टन से अधिक है।
जलीय जीवों में पहुँचा- वैज्ञानिक अब तक 250 जीवों के पेट में खाना समझकर या अनजाने में प्लास्टिक खाने की पु्ष्टि कर चुके हैं। इनमें प्लास्टिक बैग, प्लास्टिक के टुकड़े, बोतलों के ढक्कन, खिलौने, सिगरेट लाइटर तक शामिल हैं। समुद्र में जेलीफिश समझकर प्लास्टिक बैग खाने वाले जीव हैं, तो हमारे देश में सड़कों पर आवारा छोड़ दी गई गायें इन प्लास्टिक के बैग में छोड़े गये खाद्य पदार्थों के साथ बैग भी खा जाती हैं। साथ ही 693 प्रजातियों के जलीय, पक्षी और वन्य जीव अब तक प्लास्टिक के जाल रस्सियों और अन्य वस्तुओं में उलझे मिले हैं, जो अक्सर उनकी मौत की वजह बनते हैं।
बचाव में आर्थिक नुकसान
संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम की रिपोर्ट के अनुसार, प्लास्टिक से बचाव में हो रहा निवेश विभिन्न देशों को आर्थिक रूप से भी नुकसान पहुँचा रहा है। अमेरिका अकेले 1300 करोड़ डॉलर अपने समुद्र तटों से प्लास्टिक साफ करने में खर्च कर रहा है। भारत जैसे देशों के लिये भी यह बड़ा भार है।
सी-फूड से हमारे खाने में
जो जलीय जीव प्लास्टिक खा रहे हैं, उनमें से कई हम मनुष्यों की भोजन-श्रृंखला का हिस्सा भी हैं। जब ये जीव प्लास्टिक हजम करने लगते हैं, तो न केवल अन्य जीवों की जान के लिये खतरा बनते हैं, बल्कि उनका प्लास्टिक मनुष्यों की भोजन की थाली मे भी पहुँच रहा है, जिनके लिये सी-फूड ही मुख्य भोजन है।
प्लास्टिक को कहिए ना
इस तरह किये जा रहे खत्म करने के उपाय
सड़क निर्माण- दुुनिया के कई हिस्सों में अनुपयोगी प्लास्टिक कचरे से सड़कें बनाई जा रही हैं।
कंक्रीट- ईरान सहित कई देश प्लास्टिक को छोटे टुकड़ों में तोड़कर उन्हें कंक्रीट के रूप में पत्थरों की कमी दूर करने के लिये उपयोग कर रहे हैं।
रीसाइकिल- इस समय दुनिया का एक तिहाई प्लास्टिक ही रीसाइकिल हो पा रहा है। वैज्ञनिकों के अनुसार, प्लास्टिक को अधिक से अधिक मात्रा में रीसाइकिल करने की जरूरत है।
अभियान
मुम्बई का वर्सोवा तट, लोगों द्वारा प्लास्टिक से मुक्त करने के अभियान का एक अनूठा उदाहरण बना है। ऐसे ही अभियान देश के विभिन्न हिस्सों में चलाए जा रहे हैं।
पायरोलाइसिस
एक तकनीक है, जिसके जरिए प्लास्टिक को ईंधन के रूप में बदला जाता है।
खुद कर सकते हैं
थैला लेकर बाजार जायें। प्लास्टिक कचरे को कूड़ा संग्रह कर रही एजेंसी के सफाईकर्मी को दें, ताकि उसको रीसाइकिल किया जा सके।
903 करोड़ टन प्लास्टिक मौजूद है पृथ्वी पर
1. 6 करोड़ जम्बो जेट के बराबर।
2. 110 करोड़ हाथियों के बराबर (एक हाथी करीब 7.5 हजार किलो)।
3. 9 करोड़ ब्लू व्हेल के बराबर (एक ब्लू व्हेल 1 लाख किलो)।
4. 9 एफिल टावर खड़े किये जा सकते हैं।
5. 19 हजार बुर्ज खलीफा जैसी इमारतें बनाई जा सकती है।
9% प्लास्टिक की रीसाइक्लिंग होती है
1. 609 करोड़ टन प्लास्टिक कचरे के रूप में धरती पर फेंका गया।
2. 79 प्रतिशत कचरा जमीन में भरा गया।
3. 1.3 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा हर साल सीधे समुद्रों में गिराया जा रहा है।
4. एक लाख करोड़ प्लास्टिक बैग हर वर्ष उपयोग हो रहे हैं।
5. 150 प्लास्टिक बैग हर व्यक्ति पर।
6. 8 प्रतिशत जीवाश्म ईंधन प्लास्टिक निर्माण में हो रहा है खर्च।
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