कुलदे से कुछ ही दूरी पर है, परसराम तालाब। गांव के एकदम बाहर फिरनी (रिंग रोड) के दूसरी ओर। कुलदे फिरनी के गांव की ओर और लाला परशुराम का तालाब इसके दूसरी ओर। यहां पहुंचते ही हमारा सामना होता है, बेरी के सुरेंद्र (46) से। तालाब पर बात करने का समय उनके पास नहीं है। कहते हैं, घाम (धूप) होरी सै, जो भी पूछणा है, तकाजे तै पूछ ले। हमनै तो न्यू बेरा सै अक, पहल्यां परसराम आले म्ह नहाए तै फोड़े-फुणसी खत्म हो ज्याया करते, अर जै आज नहावैं त होज्यां करड़े बीमार। और मेरे धौरे बताण न्ह कीम्है नहीं। इतना कह कर चल दिए।
तकरीबन तीन दशक बाद कुछ समय बिताने के लिए मैं बेरी आया। परसराम का तालाब पहचान ही नहीं पाया। उस वक्त गधों का मेला देखने आया था। मेरी बुआ पार्वती यहां रहती थीं, जो अब नहीं हैं। तब यह तालाब पानी से लबालब था। इसके चारों ओर के पेड़ इसका आकर्षण बढ़ाते थे। तालाब का आकर्षण यहां बने मंदिरों से अधिक था। तालाब अपनी ओर खींचता था, आज चिढ़ाता है। आज पानी बस कहने भर को है। कई पेड़ गायब हैं। वक्षों की छांव एक ओर ही बची है। यह भी बहुत अधिक नहीं है।
तालाब के चारों घाट अब खंडहर बन चुके हैं। चारदीवारी ढह चुकी है। इसके इर्द-गिर्द बने दूसरे चार कुंओं की तरह मंदिर की ओर धर्मशाला के किनारे बना कुआं भी अब दम तोड़ चुका है। यहां अब गिरगिट पहरा देते हैं। तालाब के किनारे बने मंदिर की देखभाल करने वाले सत्यनारायण शर्मा सेवानिवृत्त शिक्षक हैं। वह तालाब और मंदिर के बारे में फटाफट सब कुछ बता देना चाहते हैं, दिखा देना चाहते हैं। बताते हैं, एक जमाने में इस तालाब में नहाने से त्वचा संबंधी रोग दूर होते थे। बकौल सत्यनारायण जिनकी आस्था है, वे अब भी त्वचा संबंधी रोगों की दूरी के लिए इस तालाब में नहाने के लिए आते हैं तालाब पूरी तरह सड़ता है। अंधविश्वासों से भरे समाज में कुछ भी संभव है, सिवाय इसके कि अपनी सर्वाधिक मूल्यवान समाज की धरोहर तालाबों को बचाया जाए।
यहां तालाब के साथ मंदिर पर लगे शिलापट्ट के मुताबिक परशुराम तालाब का निर्माण संवत् 1837 यानी सन् 1881 में यह तालाब लाला रामगोपाल के पुत्रों भगवान दास और परशुराम ने बनवाया। 133 साल पहले बने इस ऐतिहािसक तालाब पर 50 हजार रुपए की राशि खर्च हुई थी।
इस तालाब के शिल्प और भव्यता से प्रभावित होकर संयुक्त पंजाब के तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर ने 1500 रुपए इनाम के रूप में दिए थे। मिस्त्री किशनलाल और गणेशीलाल द्वारा बनाए गए इस तालाब पर चार घाट हैं। दो घाट मर्दाने, एक जनाना और तीसरा घाट गऊघाट था। बुजर्ग रमेश के मुताबिक यहां का जनाना घाट सुंदरता और गोपनीयता की दृष्टि से बेरी के तालाबों में में सबसे अच्छा माना जाता था।
वर्ष 1993 में इस तालाब परिसर, घाटों, कुंओं, मंदिर आदि की मरम्मत पर 75,100 रुपए खर्च किए लेकिन यह आटे में नमक की तरह था। जल्दी ही तालाब फिर से जीर्ण-शीर्ण अवस्था में आ गया।
गांव का वह समाज जो वह समाज जिसने परंपरागत जल संरचनाओं के लिए खुद नियम-कायदे बनवाए थे। पूरा समाज मिलकर इनका पालन करता था। पहले मंदिरों का निर्माण तालाबों के रखरखाव और उसे कोई गंदा न करे, इसके लिए होता था। आज ठीक इसके उलट है।
हरियाणा भर में परंपरागत तालाबों के निकट लाखों करोड़ों की लागत से ताबड़तोड़ मंदिरों का निर्माण हो रहा है, लेकिन तालाबों को बर्बाद किया जा रहा है। रोज वरुण देवता की पूजा करने वाले और शिव का जलाभिषेक कराने वाले बाबाओं, पंडितों के एजेंडे में न तालाब हैं और न ही कुएं। बेरी भी उससे अलग नहीं है।
परसराम तालाब पर ही बने मंदिर के जीर्णोंद्धार का काम यहां के मूलवाशिंदे और हाल दिल्ली निवासी सेठ किशोरीलाल लाखों रुपए लगाकर करा रहे हैं, लेकिन तालाब किसी के एजेंडे में नहीं है। सत्यनारायण जानते हैं कि तालाब उनके मंदिर की खूबसूरती और महत्व को चार चांद लगा देगा। मंदिर के साथ तालाब के जीर्णोद्धार की बात भी लाला जी से क्यों नहीं करते पर चुप ही रहते हैं।
नरक जीते देवसर (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिए कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें) | |
क्रम | अध्याय |
1 | |
2 | |
3 | पहल्यां होया करते फोड़े-फुणसी खत्म, जै आज नहावैं त होज्यां करड़े बीमार |
4 | |
5 | |
6 | |
7 | |
8 | |
9 | |
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11 | जिब जमीन की कीमत माँ-बाप तै घणी होगी तो किसे तालाब, किसे कुएँ |
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16 | सबमर्सिबल के लिए मना किया तो बुढ़ापे म्ह रोटियां का खलल पड़ ज्यागो |
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18 | |
19 | |
20 | पाणी का के तोड़ा सै,पहल्लां मोटर बंद कर द्यूं, बिजली का बिल घणो आ ज्यागो |
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Post By: Shivendra