पेयजल, क्या है साधन और समस्या


पेयजल की समस्या को देखते हुए सन 1977 में अर्जेन्टिना में संयुक्त राष्ट्र जल सम्मेलन हुआ था। सम्मेलन में 1981-90 को अन्तरराष्ट्रीय जल आपूर्ति एवं स्वच्छता दशक के रूप में मनाए जाने का फैसला किया गया। उस फैसले के अनुसार संयुक्त राष्ट्रसंघ की विभिन्न एजेंसियों द्वारा सन 1990 तक विकासशील देशों की 2 अरब जनसंख्या को पेयजल उपलब्ध कराने का कार्यक्रम तैयार किया गया। इस कार्यक्रम से सम्बन्धित प्रस्ताव पर भारत ने भी हस्ताक्षर किये थे।

जल जल अपनी उपयोगिता के कारण जीवन के हर क्षेत्र में मौजूद है। इसीलिये कहा जाता है जल ही जीवन है। प्राचीन ऋषि-मुनियों से लेकर आधुनिक वैज्ञानिकों द्वारा जल के महत्त्व को पारिभाषित किया गया है। एक तरफ पृथ्वी की पूरी सतह के करीब 70 प्रतिशत भाग में जल फैला हुआ है तो दूसरी तरफ मानव-शरीर के करीब 70 प्रतिशत भाग में जल समाहित है। मानव-शरीर में जल की 10 प्रतिशत कमी हो जाने पर हालत चिन्तनीय हो जाती है। मानव शरीर में यदि 20 प्रतिशत जल की कमी हो जाये तब तो मौत का पैगाम लिये हुए उसके पास यमदूत को पहुँचना ही है।

शरीर में जल की कमी से अनेक प्रकार की बीमारियाँ पैदा हो जाती हैं। जल के अभाव में बच्चों व बड़ों में डीहाइड्रेशन हो जाता है, जिसे समय पर गौर नहीं किये जाने पर बच्चे की मौत तक हो सकती है।

भोजन बनाना हो या भोजन करना, पेयजल की हर जगह आवश्यकता दिखाई देती है। गर्मी की तपती हुई दुपहरी हो या जाड़े की कड़कदार ठंड, प्यास हमें हर मौसम में सताती है और उसे दूर करने के लिये पेयजल की आवश्यकता होती है। भोजन के लिये किसी विशेष पदार्थ या पीने के लिये किसी विशेष पेय पदार्थ की, किसी क्षेत्र विशेष में भले समान रूप से आवश्यकता नहीं हो। लेकिन पेयजल की आवश्यकता हर क्षेत्र में समान है, भले ही उसकी मात्रा भिन्न हो सकती है।

गर्मी के दिन आये नहीं कि यात्रियों के पीने के लिये पनशाला की व्यवस्था, शहरों में सड़क किनारे, जगह-जगह सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों द्वारा पेयजल की व्यवस्था, गाँवों में भी सार्वजनिक कुओं की व्यवस्था, रेल में चल रहे यात्रियों की प्यास बुझाने के लिये रेलवे स्टेशनों पर पेयजल की व्यवस्था, सड़कों पर चलने वाले सवारियों के लिये रास्ते में उनके ठहराव की जगह पेयजल की व्यवस्था, परीक्षा भवनों में परीक्षार्थियों के लिये पानी की व्यवस्था करना नितान्त आवश्यक है। अतः उपरोक्त साधन हमें विशेष रूप से उपलब्ध कराने होंगे। अन्य सुविधाएँ चाहे हों या नहीं, मगर उन्हें पानी पिलाने के लिये पानी जरूर रखे जाते हैं।जल संकट विकासशील देशों के गाँवों में करीब 80 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिन्हें शुद्ध और स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 1975 की सूचनानुसार शुद्ध और स्वच्छ पेयजल की सर्वाधिक कमी दक्षिण अफ्रीका में है। पश्चिम एशिया के विकासशील देशों की 38 प्रतिशत जनसंख्या शुद्ध और स्वच्छ जल के लिये तरसती है।

उपलब्ध साधन


ऐसी बात नहीं है कि जिन क्षेत्रों में पेयजल सर्वसुलभ नहीं है, उन क्षेत्रों में पेयजल उपलब्ध ही नहीं है। ऐसे अधिकांश क्षेत्रों में पेयजल उपलब्ध तो है लेकिन इस रूप में कि उसे सुगमता से उपयोग में नहीं लाया जा सकता। अधिकांश क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ जलस्रोत उपलब्ध तो है लेकिन वह जमीन के बहुत अन्दर गहराई में पाया जाता है। कुछ क्षेत्रों में जल के स्रोत हैं ही नहीं। ऐसे क्षेत्रों में लोगों को काफी दूर से पेयजल लाना पड़ता है।

पेयजल के उपलब्ध साधनों को मुख्यतः तीन हिस्सों में बाँटा जा सकता है- भूजल, रुका हुआ जल और बहता हुआ जल।

कुआँ खोदकर भूजल स्रोत को उपयोग में लाना पेयजल का एक सर्वव्यापी साधन है। पेयजल की व्यवस्था के लिये धरती की खुदाई कर तालाब विकसित करना भी एक मुख्य साधन है। कुएँ द्वारा केवल भूजल स्रोत का उपयोग होता है, लेकिन तालाब में भूजल के अलावा बाहरी पानी का भी जमाव हो जाता है। यह बाहरी जल वर्षा का जल हो सकता है और बाढ़ या नदी का बरसाती पानी भी।

गाँव में भूजल स्रोत के उपयोग का मुख्य तरीका है कुएँ की खुदाई या नलकूपों का लगाना। नलकूप द्वारा भूजल स्रोत से पेयजल प्राप्त करना सर्वाधिक उपयोगी और सर्वसुलभ साधन है। देश भर में सरकारी या गैर सरकारी नलकूप लगाए गए हैं और लगाए जा रहे हैं।

बड़े-बड़े शहरों में पेयजल की आपूर्ति जल मीनारों से पाइप लाइनों द्वारा की जाती है। जल मीनारों में जल एकत्रित करने के लिये भूजल का ही मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। संचित जल की भी पाइप लाइनों द्वारा आपूर्ति की जाती है। इस काम के लिये बड़े-बड़े बाँध बनाए जाते हैं। नदियों को बाँधकर भी पाइप लाइनों द्वारा उसके जल की आपूर्ति की जाती है।

बाँध बनाकर संचित किये गए जल की पाइप लाइनों द्वारा आपूर्ति करना और तालाब से जल प्राप्त करना - रुके हुए जल के उपयोग के उदाहरण हैं। बड़े-बड़े तालाबों में रुके हुए जल के अलावा भूजल भी काम में आता है।

नदी-नाले बहते हुए जल के उदाहरण हैं। बहते हुए नदी-नालों का जल पीने के काम में लाया जाता है। पहाड़ी क्षेत्र के गाँवों में पथरीले नालों में बह रहे पानी को इकट्ठा करने के लिये छोटा-सा गड्ढा बनाकर उसे पत्थरों से बाँध दिया जाता है, जिसे चुआँ कहते हैं।

जल की समस्या


जल प्रदूषण हमारे देश में भी सभी गाँवों और समूचे शहरों में पेयजल सुलभता से उपलब्ध नहीं है। अनेक ऐसे गाँव हैं, जहाँ पेयजल काफी दूर से लाना पड़ता है। बहुत सारे गाँव ऐसे भी हैं, जहाँ उपलब्ध जल पीने के काम में नहीं लाया जा सकता। जिन शहरों में पेयजल की व्यवस्था है, वहाँ भी अनेक कारणों से लोगों को पीने के लिये जल नहीं मिल पाता। इसका मुख्य कारण है बिजली का अभाव। पाइप लाइनों द्वारा जलापूर्ति की सारी व्यवस्था प्रायः बिजली पर ही आश्रित रहती है। इसलिये शहरों में पेयजल की इस समस्या को दूर करने के लिये बिजली-आपूर्ति की व्यवस्था ठीक करने की जरूरत है।

प्रदूषित जल


कुछ ऐसी भी जगहें हैं, जहाँ प्रचुर मात्रा में जल उपलब्ध है। लेकिन वह प्रदूषित है और इस कारण उसे पीने के काम में नहीं लाया जा सकता। जल के प्रदूषण की समस्या एक जटिल समस्या है। बड़े-बड़े कल-कारखाने नदी किनारे ही बनाए जाते हैं। उन कल-कारखानों का कचरा नदियों में बहाया जाता है। इससे नदी का जल प्रदूषित हो जाता है। प्रायः हर शहर की गन्दगी नालों के जरिए नदियों में बहाई जाती है। इससे भी नदी का जल गन्दा हो जाता है और वह पीने योग्य नहीं रह पाता है।

बरसात में भू-क्षरण होता है, जिससे नदियों का जल गन्दा हो जाता है। भू-क्षरण के कारण नदियों की तलहटी में मिट्टी का जमाव बढ़ता जाता है और उसकी जलधारक शक्ति कम हो जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि गर्मी के दिनों में नदियों में जल की कमी हो जाती है। अतः भू-क्षरण को रोकना बहुत जरूरी है। इसके लिये बेकार की खाली पड़ी जमीन को वनाच्छादित करना आवश्यक है।

सरकारी कार्यक्रम


कूड़े-कड़कट से प्रदूषित होते पेयजल पेयजल की समस्या को देखते हुए सन 1977 में अर्जेन्टिना में संयुक्त राष्ट्र जल सम्मेलन हुआ था। सम्मेलन में 1981-90 को अन्तररष्ट्रीय जल आपूर्ति एवं स्वच्छता दशक के रूप में मनाए जाने का फैसला किया गया। उस फैसले के अनुसार संयुक्त राष्ट्रसंघ की विभिन्न एजेंसियों द्वारा सन 1990 तक विकासशील देशों की 2 अरब जनसंख्या को पेयजल उपलब्ध कराने का कार्यक्रम तैयार किया गया। इस कार्यक्रम से सम्बन्धित प्रस्ताव पर भारत ने भी हस्ताक्षर किये थे।

भारत में पहली पंचवर्षीय योजना के दौरान ही राष्ट्रीय जल आपूर्ति कार्यक्रम शुरू किया गया था। लेकिन इसको कोई प्राथमिकता नहीं मिल पाई थी। तीसरी पंचवर्षीय योजना में श्रमदान द्वारा किये जाने वाले सामुदायिक विकास कार्यक्रमों में पेयजल की आपूर्ति भी शामिल थी। लेकिन इस ओर विशेष कार्य चौथी पंचवर्षीय योजना में ही किये जा सके। परन्तु चौथी पंचवर्षीय योजना में पेयजल आपूर्ति के लिये उन्हीं क्षेत्रों को चुना जा सका था, जहाँ अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़ी जातियों की बहुलता थी। पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में पेयजल आपूर्ति को गाँव की न्यूनतम आवश्यकताओं में शामिल कर लिया गया। इस कार्यक्रम के तहत उन गाँवों में विशेष सुविधाएँ उपलब्ध कराई गईं, जहाँ पेयजल का सदा अभाव बना रहता है या जहाँ शुद्ध पेयजल नहीं मिलता है।

पेयजल की समस्या को देखते हुए उसे बीस सूत्री कार्यक्रम का एक अंग बनाया गया। भूमिगत और सतह-जल के सम्पूर्ण उपयोग पर बल दिया गया। साथ ही वनरोपण, भू-क्षरण रोकने एवं अन्य सुरक्षात्मक उपायों को भी उस कार्यक्रम में सम्मिलित किया गया।

सम्पर्क
अंकुश्री, सिदरौल, प्रेस कॉलोनी, पीओ - 28, नामकुम, राँची- 834010 झारखण्ड

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