अंकुश्री

अंकुश्री
पेयजल, क्या है साधन और समस्या
Posted on 12 Mar, 2016 01:53 PM

पेयजल की समस्या को देखते हुए सन 1977 में अर्जेन्टिना में संयुक्त राष्ट्र जल सम्मेलन हुआ था। सम्मेलन में 1981-90 को अन्तरराष्ट्रीय जल आपूर्ति एवं स्वच्छता दशक के रूप में मनाए जाने का फैसला किया गया। उस फैसले के अनुसार संयुक्त राष्ट्रसंघ की विभिन्न एजेंसियों द्वारा सन 1990 तक विकासशील देशों की 2 अरब जनसंख्या को पेयजल उपलब्ध कराने का कार्यक्रम तैयार किया गया। इस कार्यक्रम से सम्बन्धित प्रस्त
कलकल, छलछल,बहती गंगा
पूरे विश्व में किसी भी नदी की तुलना में गंगा सर्वाधिक आबादी को प्रभावित करती है।
Posted on 16 Aug, 2023 04:00 PM

धरती को प्रकृति ने बहुत कुछ दिया है, उनमें प्रमुख हैं पहाड़, खनिज, नदी और जंगल नदियां बहुत प्रकार की हैं, लेकिन सब में गंगा की अलग पहचान है। पूरे विश्व में किसी भी नदी की तुलना में गंगा सर्वाधिक आबादी को प्रभावित करती है। यह हिमालय के गंगोत्री से 19 किलोमीटर आगे गोमुख से निकलती है और कुल 2525 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इसका नाम जगह-जगह बदल जाता है। हिमालय में यह भाग

धार्मिक आस्था का प्रतीक गंगा,PC-Wikipedia
शुद्ध पेय जल और प्रदूषण की समस्या
तालाबों के किनारे प्रायः पेड़ लगाने की परम्परा है। यह अच्छी परम्परा है। लेकिन तालाब किनारे पेड़ लगाते समय पूरब या पश्चिम दिशा खुली छोड़ देनी चाहिये; ताकि तालाब के पानी को धूप मिल सके। तालाब का घेरान करना भी आवश्यक है। घेरान से बाहरी कचरा हवा के साथ उड़ कर उसके अंदर नहीं आता है और अचानक दौड़ कर आने वाले जानवरों या आदमी के लिये भी वह खतरनाक साबित होने से बच जाता है। कुएं या तालाब के जल के शुद्धीकरण के लिये उसमें मछली पालना आवश्यक है।
Posted on 11 Aug, 2023 04:10 PM

जिस तरह वायु हमारे जीवन के लिये आवश्यक है, उसी तरह जल भी जीवन के अस्तित्व के लिये अति महत्वपूर्ण है। लेकिन आज वायु और जल दोनों बुरी तरह प्रदूषित हो चुके हैं। बदले हुए मौसम जैसे बाढ़ और सुखाड़ का हमारे पेय जल पर असर पड़ता है। पीने के पानी में विषैले रसायन जैसे आर्सेनिक, फ्लोराइड, सीसा, पेस्टिसाइड्स आदि घुले हो सकते हैं। जल में जंग और रंग भी मिला हो सकता है। प्रदूषणमुक्त पेय जल की उपलब्धता हमारे

प्रदूषण की मार झेलती यमुना नदी,Pc-wikipedia
दसम जल प्रपात
Posted on 16 Aug, 2010 10:28 PM

छोटानागपुर को झरनों और चट्टानी नदियों का क्षेत्र कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी।


आबादी बढने के साथ ही वनों में वृक्षों की सघनता भले कम हो गई हो मगर रैयती जमीन पर अब भी हरियाली बुरी नहीं है। दस किलोमीटर रास्ते के दोनों ओर पलास की हरियाली पर कालिमा आने लगी थी। उसकी लालिमा तो करीब छह माह पूर्व ही खत्म हो गई थी। पलास की लाली से आंखों को जो सकून मिलता है, किसानों को उससे कहीं अधिक सकून उस पर होने वाली लाह की खेती से मिलता है

जोगी का डेरा नाम है उस स्थल का, जहां हमें जाना था। पेट्रोल पंप के मालिक बीबी शरण, मेघालय में व्याख्याता रह चुके चौहान जी और कुछ गांव वालों के साथ वहां जाने का

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