विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) के इस वर्ष की विषय-वस्तु पारिस्थितिक तंत्र की बहाली (इकोसिस्टम रेस्टोरेशन) कई मामलों में अत्यंत महत्वपूर्ण है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस के इसी मौके पर आधिकारिक रूप से यूनाइटेड नेशंस डिकेड ऑन इकोसिस्टम रेस्टोरेशन 2021-2030 लॉन्च किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य प्रत्येक महाद्वीप और समस्त महासागरों में हो रहे पारिस्थितिक तंत्र के अपकर्ष को रोकना और अधोमुखी करना है। उम्मीद की जा रही है कि इससे गरीबी को समाप्त करने, जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने और बड़े पैमाने पर हो रहे जीवों के विलोपन को रोकने में भी मदद मिल सकेगी। वहीं, सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) - 13 में जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभाव से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करने की बात पर प्रमुखता से ध्यान दिया जा रहा है।
संयुक्तराष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की साझेदारी में विश्व पर्यावरण दिवस 2021 की मेजबानी कर रहे पाकिस्तान ने अपने महत्वाकांक्षी वनीकरण प्रयासों में से एक, 5 वर्षों में, 10 बिलियन ट्री सुनामी' योजना के माध्यम से देश के जंगलों के विस्तार और पुनर्स्थापन की योजना बनाई है, जिसमें विभिन्न स्थानों पर पेड़ लगाने के अलावा मैंग्रोव और अन्य प्रकार के जंगलों को पुनर्स्थापित करने की बात कही है।
जीवधारियों के अस्तित्व का मुद्दा है पर्यावरण की बहाली
यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन कहते हैं "वर्ष 2020 की गिनती एक वैश्विक महामारी से जूझने के साथ-साथ जलवायु, प्रकृति और प्रदूषण के निरंतर संकट सहित अनेकानेक संकटों का सामना करते हुए बीता है। अब 2021 में, हम इन संकटों से पार पाने हेतु सार्थक व सटीक कदम उठाने ही पड़ेंगे जिसमें पर्यावरण की बहाली सम्बन्धी सुधार हमारे ग्रह और मानव जाति के अस्तित्व के लिए अपरिहार्य हैं।"
पिछले कुछ दशकों में कोयला, तेल आदि जैसे जीवाश्म ईंधनों के जलने से कार्बन प्राकृतिक कारणों तथा मानवीय क्रियाकलापों डाइऑक्साइड की मात्रा में भारी वृद्धि हुई है इसके लिए विकसित देश ज्यादा जिम्मेदार रहे हैं किन्तु इसके भार से विकासशील देश अधिक प्रभावित होते रहे हैं। ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट' में पुनः इस बात की तसदीक की है कि वर्ष 2020 में भी वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में इजाफा हुआ है। प्राकृतिक कारणों तथा मानवीय क्रिया कलापों ने सम्यक रूप से विश्व के औसत मौसमी दशाओं के पैटर्न में ऐतिहासिक रूप से बदलाव ला दिया है और यह सिलसिला अनपेक्षित ढंग से जारी है। मनुष्य द्वारा पर्यावरण में हो रही इन्हीं दखलअंदाजियों के फलस्वरूप धरती के औसत तापमान में निरंतर वृद्धि हो रही है। इस चुनौती का तत्काल व अभीष्ट समाधान आवश्यक है, क्योंकि तापमान में यह परिवर्तन पृथ्वी की जलवायु की सामान्य क्रिया हेतु गंभीर समस्या बन गया है तथा इसके भयंकर परिणाम हमें विविध रूपों में भुगतने पड़ रहे हैं।
"जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स' में अप्रैल 2021 में छपे एक नए अध्ययन से पता चला है कि 1990 के दशक में उत्तरी ध्रुव अचानक से जिस तरह तैरने लगे थे, वह भी संभवतः जलवायु परिवर्तन के कारण हिमनदों के बड़े हिस्से के पिघलने से हुआ था, इस अध्ययन की पुष्टि के लिए इसमें वैज्ञानिक अनुसंधानों और विज्ञान सम्मत तथ्य भी प्रस्तुत किये गए।
ग्रीन हाउस गैसों के कारण विकट होती समस्या
ज्ञातव्य है कि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ी हुई मात्रा में सूर्य की किरण अवशोषित तो हो जाती हैं किन्तु उनका विकिरण नहीं हो पाता है, जो वायुमंडल के तापमान में वृद्धि का सबब बनता है। इसके अतिरिक्त, कार्बन डाइऑक्साइड गैस में पृथ्वी से वापस लौटने वाली अवरक्त किरणों (इंफ्रारेड-रेज) को ग्रहण करने का भी विशेष गुण अंतर्निहित होता है। अतः इन अवरक्त किरणों का उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड में अवशोषण भी तापमान में बढ़ोतरी का कारण बनता है। फलतः, मौसम में भी बदलाव हो जाता है। यह सम्पूर्ण प्रक्रिया "ग्रीन हाउस प्रभाव' के तौर पर जानी जाती है, जिसे वर्ष 1986 में, स्वीडन के रसायनशास्त्री आर्थोनियस ने बताया था।
कार्बन डाइऑक्साइड के अलावा नाइट्रस ऑक्साइड, मीथेन, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, ओजोन आदि गैसों के उत्सर्जन से भी भूमंडलीय ऊष्मीकरण की समस्या और भी विकट होती जा रही है। जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार इन अधिकांश ग्रीन हाउस गैसों का धरती पर उत्सर्जन, पिछले कुछ दशकों में, कई गुना अधिक बढ़ गया है। इन कारणों से धरती के नैसर्गिक पारिस्थितिक प्रणालियों को भी काफी नुकसान पहुँचा है, जिनकी बहाली मानव समेत समस्त ग्रहवासियों के अस्तित्व को कायम रखने के लिए आवश्यक है। मौजूदा समय में, दुनिया भर से जंगलों में आग लगने की घटनाएं आम होती जा रही हैं। उधर, ग्लेशियरों में भारी मात्रा में बर्फ पिघल रही है तथा महासागर भी गर्म हो रहे हैं और इन सबसे बढ़कर मानव-निर्मित जलवायु परिवर्तन को आज एक स्थिरता-सी मिलती जा रही है।
कार्बन डाइऑक्साइड के उपरांत, ग्लोवल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार मीथेन, दूसरी सबसे अहम् ग्रीनहाउस गैस हैं और वातावरण में इसकी मात्रा भी बढ़ी है। एक अद्यतन खोज में, वैज्ञानिकों ने गर्म पानी के झरने की तलछटों में रहने वाले, एक नए खोजे गए जलवायु अनुकूली, एकल-कोशिका वाले आर्किया समूह के सूक्ष्म जीवों द्वारा मीथेन गैस का उत्पादन किए बिना कार्बन का पुनर्चक्रण करते हुए पाया है। यह शोध 'नेचर कम्युनिकेशन्स' में अप्रैल 2021 में प्रकाशित हुआ है। पृथ्वी की भूमि, महासागरों और वायुमंडल के मध्य, कार्बन और नाइट्रोजन चक्रों में अनेक सूक्ष्म-जीवियों की भूमिका पहले से ही स्थापित है और अब इस प्रकार के नूतन खोज पर्यावरण की बहाली की दिशा में क्रांतिकारी सिद्ध हो सकते हैं।
कार्बन फुटप्रिंट पर अंकुश लगाने की जद्दोजहद
कार्बन उत्सर्जन अथवा कार्बन फुटप्रिंट का तात्पर्य प्रति व्यक्ति अथवा प्रति औद्योगिक इकाई द्वारा उत्सर्जित कुल कार्बन डाइऑक्साइड या ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की मात्रा से है। इसे ग्राम उत्सर्जन में मापा जाता है। एक शोध निष्कर्ष के अनुसार, कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में कार्बन मूल्य निर्धारण की महत्वपूर्ण भूमिका रही है तथा पाया गया कि जिन देशों में कार्बन मूल्य निर्धारण का प्रावधान किया गया, वहां जीवाश्म ईंधन दहन से कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की औसतन वार्षिक वृद्धि दर 2% से कम रही बनिस्पत उन देशों के जहाँ कार्बन मूल्य का निर्धारण नहीं किया गया। हाल के वर्षों में, दुनिया भर में कार्बन फुटप्रिंट कम करने में, कार्बन-टैक्स की अवधारणा को अधिक मजबूती मिली है। प्रदूषण के कारण अनेकों जान असमय ही काल के गाल में समा जाती हैं। एक शोध में, वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में फेफड़ों के आकार में भी पूर्ण विकास न हो सकने की बात भी सामने आयी है। कार्बन के उत्सर्जन की मात्रा के आधार पर जीवाश्म ईंधनों के उत्पादन, वितरण एवं उपयोग पर शुल्क लगा कर टैक्स का प्रावधान रखा जाता है, जिससे ऐसे ईंधनों के प्रयोग को हतोत्साहित किया जा सके। कार्बन टैक्स के कारण जहाँ सरकारों के राजस्व में वृद्धि होती है, वहीं अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन करने वाली इकाइयों में भी कमी आती है और प्रदूषण का स्तर घटता है।
पिछले कुछ दशकों से कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिए दुनिया भर के देश एकजुट हो रहे हैं, जो नई नीतियां बनाने के साथ-साथ सस्ती व अक्षय प्रौद्योगिकियों को व्यवहार में लाने, व्यापक वृक्षारोपण के कार्यक्रमों, सौर तथा पवन ऊर्जा के बढ़ते उपयोग से भी पर्यावरण व पारितन्त्र की बहाली की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। वर्तमान समय में हरित आर्थिक उगाही (ग्रीन इकोनॉमिक रिकवरी-जीईआर) जैसे पुनर्चक्रण आर्थिक पैकजों में उत्पादन के दौरान व उसके बाद कार्बन और ऊर्जा के पदचिन्हों को कमतर करने का प्रयास किया जा रहा है।
कार्बन भंडारण के पावरहाउस हैं मैंग्रोव के जंगल
गत माह 5 मई 2021 को "बायोलॉजी लेटर्स" में प्रकाशित एक शोध में मैक्सिको के युकाटन प्रायद्वीप के मैंग्रोव के जंगलों में रिकॉर्ड मात्रा में कार्बन संग्रहीत होने की बात रिपोर्ट की गयी। ऑस्ट्रेलिया के ब्रिसवेन में ग्रिफिथ विश्वविद्यालय के एक वेटलैंड वैज्ञानिक फर्नांड अदाम के नेतृत्व में उनके अन्य तीन सह शोधकर्ताओं ने 6 मीटर तक की गहराई पर मिट्टी के नमूनों में औसतन लगभग 1,500 से लगभग 2800 मीट्रिक टन प्रति हेक्टेयर होने की बात बताई। यह अनुमान, कार्बन-14 डेटिंग के उपयोग के आधार पर किया गया।
मैग्रोव धरती पर सबसे अधिक कार्बन-युक्त पारिस्थितिक तंत्रों में से गिने जाते हैं और इन वैज्ञानिकों ने अपने शोध के माध्यम से कार्बन को संग्रहीत और संचित करने के लिए मैंग्रोव की क्षमता का व्यापक आकलन कर तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत किया है।
मैग्रोव की जालयुक्त जड़ जैविक सामग्रियों व जलमग्न मिट्टी में कार्बन को संरक्षित करने में भी मददगार होती हैं। मैंग्रोव-रिंग वाले सेनोट्स के नीचे की मिट्टी में दुनिया में सबसे अधिक कार्बन सांद्रता है। तटीय मैंग्रोव वन कार्बन भंडारण के पावरहाउस माने जाते हैं, जो अपने जलमग्न, उलझे हुए जड़ों के मध्य बड़ी मात्रा में कार्बनिक पदार्थों को पृथक करते हैं और युकाटन प्रायद्वीप में स्थित इन सिंकहोलों (सेनोट्स) का शुमार सबसे बड़े कार्बन स्टॉक में से एक का होता है। इन वनों में, अधिकांश अन्य स्थलीय जंगलों की तुलना में, प्रति हेक्टेयर पांच गुना अधिक कार्बन का स्टॉक कर सकने की क्षमता होती है। तथा इस प्रायद्वीप पर दर्जनों ऐसे पंक्तिबद्ध मैंग्रोव सिंकहोल या सेनोट हैं। वातावरण में अनवरत रूप से ग्रीनहाउस गैसों की उत्सर्जित मात्रा कार्बन की मात्रा में कमी लाने व संतुलन प्रदान करने में इनकी अहम भूमिका होती है।
अदाम बताते हैं कि समुद्र के शनैः-शनैः बढ़ते जल स्तर में मैंग्रोव डूबने से बचने के लिए अधिक जड़ पैदा करते हैं और पेड़ अधिक तेजी से ऊपर चढ़ते हैं। साथ ही, अधिक कार्बनिक पदार्थ जमा कर सकने की जगह बनाते हैं। ज्यों-ज्यों वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है, बढ़ते समुद्री-स्तर में मंग्रोव बहुत तेजी से बढ़ सकते हैं।
पारितंत्रीय बहाली में कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (सीओपी) की महती भूमिका
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (यूनाइटेड नेशंस क्लाइमेट चेंज कॉन्फ्रेंस), जिसे 'कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज' (सीओपी) भी कहा जाता है, के सम्मेलनों में दिसंबर 1997 से औपचारिक रूप से अपनाये गए क्योटो प्रोटोकॉल' के तहत ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने तथा जलवायु परिवर्तन से निपटने की प्रगति का आकलन किया जाता रहा है। सीओपी के हाल की बैठकों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का शमन, तथा वित्तीय प्रकरणों आदि पर 'पेरिस समझौते' की आम सहमति को आगे बढ़ाने के लिए किया जाने लगा है।
उल्लेखनीय है कि क्योटो प्रोटोकॉल में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करने तथा इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये किफायती साधनों को विकसित करने की दिशा में विकसित देशों के समक्ष कुछ अन्य प्रावधानों के अलावा, 'क्लीन डेवलपमेंट मेकैनिज्म का विकल्प भी रखा गया है, जिसमें उनके द्वारा विकासशील देशों के लिये किये गए स्वच्छ प्रौद्योगिकी निवेश पर ऋण अर्जित करने की अनुमति दी गयी है, जिस ऋण को 'कार्बन क्रेडिट' के रूप में जाना जाता है।
उधर, संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन की कार्यकारी सचिव, पेट्रीसिया एस्पिनोसा ने कहा है कि अभी तक कार्बन-बाजार के लिए दिशा-निर्देशों पर अपेक्षित कार्य नहीं हो सका है तथा विकसित देशों ने वित्तीय समर्थन बढ़ाने की बात को पूरी तरह से अमल में नहीं लाया है। उन्होंने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए, अधिक उत्सर्जन करने वाले देशों से आग्रह किया है कि ऐसे समस्त देश इस बाबत अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (नेशनल डेटर्मिन्ड कंट्रीब्यूशन- एनडीसी) को स्पष्ट रूप से रखें, जिस पर सीओपी 26 के दौरान बात की जा सके।
26वें जलवायु शिखर सम्मलेन (सीओपी26) से हैं विशेष उम्मीद
सीओपी सम्बन्धी एक अद्यतन प्रगति में, विश्व प्रसिद्ध ब्रॉडकास्टर और प्राकृतिक इतिहासकार सर डेविड एटनबरो को आगामी नवंबर 2021 में ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन के 26वें शिखर सम्मेलन के यूनाइटेड किंगडम (यूके) प्रेसीडेंसी हेतु 'पीपुल्स एडवोकेट' नामित किया गया है।
इंग्लैंड के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन कहते हैं कि एटनबरो पहले से ही ब्रिटेन और दुनिया भर में लाखों लोगों को जलवायु परिवर्तन पर कार्य करने और आने वाली पीढ़ियों के लिए ग्रह की रक्षा करने के लिए, अपने जुनून और ज्ञान से प्रेरित किया है और इस कार्य को आगे गति देने के लिए वही सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं। फरवरी 2021 में बोरिस जॉनसन के निमंत्रण पर, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को संबोधित करते हुए, डेविड एटनबरो ने कहा था कि आगामी सीओपी 26 संभवतः ग्रह की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने हेतु अंतिम अवसर ठहरेगा। अतः यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि ग्लासगो में हो रही इस बैठक को पूर्ण सफलता मिले, जिससे राष्ट्रों को पर्यावरण की उन गंभीर समस्याओं को एकजुट होकर हल करने के लिए व्यापक संबल मिल सके।
वहीं, सीओपी26 के नामित अध्यक्ष आलोक शर्मा ने, 14 मई 2021 के अपने एक ताजा बयान में कहा है कि इस साल का जलवायु शिखर सम्मेलन (सीओपी 26 ) एक स्वच्छ तथा हरित भविष्य के निर्माण हेतु सबसे सुनहरा मौका है, जिसमें से 12 नवंबर 2020 को ग्लासगो में 196 देशों, यूरोपीय संघ के साथ-साथ व्यवसायों, संगठनों, विशेषज्ञों और विश्व के नेताओं की एक साझा मंच मिलेगा।
एक उत्साहवर्धक खबर यह है कि संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए) समेत विश्व के 73 देशों ने 2050 तक विशुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लिए प्रतिबद्धता जताई है। वहीं, अमेरिकी राष्ट्रपति जो विडेन ने 2050 के उपरांत अमेरिका को 100 स्वच्छ ऊर्जा वाली अर्थव्यवस्था तथा विशुद्ध-शून्य उत्सर्जन वाला देश बनाने की बात कही है।
आगामी सीओपी संभवतः ग्रह की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठाने हेतु अंतिम अवसर रहेगा। अतः यह जयंत महत्वपूर्ण है कि ग्लासगों में हो रही इस बैठक को पूर्ण सफलता मिले, जिससे राष्ट्रों को पर्यावरण की उन गंभीर समस्याओं को एकजुट होकर हल करने के लिए व्यापक सम्वत मिल सके।
आज पृथ्वी की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करने व पारिस्थितिक तंत्र की बहाली हेतु सहयोगात्मक रवैया अपनाते हुए राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में राजनीतिक प्रतिबद्धता और इच्छाशक्ति के साथ कार्यों में तेजी लाने के महती आवश्यकता है।
आज पृथ्वी की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करने व पारिस्थितिक तंत्र की बहाली हेतु सहयोगात्मक रवैया अपनाते हुए राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में राजनीतिक प्रतिबद्धता और इच्छाशक्ति के साथ कार्यों में तेजी लाने के भूतपूर्व सोवियत संघ के अंतर्राष्ट्रीय ख्यातिलब्ध अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन, जिन्हें अंतरिक्ष में जाने वाले वे प्रथम मनुष्य के तौर पर जाना जाता है, ने भी अंतरिक्ष से लौटते ही वर्ष 1961 में धरती के विषय में कहा था, "अंतरिक्ष यान में पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए, मैंने देखा कि हमारा ग्रह कितना सुंदर है। आइए हम इसकी सुंदरता को बनाए रखें और बढ़ाएं, इसे नष्ट नहीं करें।"
संपर्क - . अनिल प्रताप सिंह, सचिव व निदेशक, ग्लोबल साइन्स एकेडमी सत्यवानपुरी, ब्लाक रोड जिला- वस्ती 272 001 (उत्तर प्रदेश)
/articles/paaraitantaraiya-bahaalai-evan-kaarabana-phautaparainta-ghataanae-haetau-abhainava