पानी को पॉली कचरे से बचाओ!

Poly waste
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ऐसा नहीं है कि बढ़ते पॉलीथीन कचरे को रोका नहीं जा सकता या पॉलीथीन का कोई विकल्प नहीं है। विकल्प है और कचरे को रोका भी जा सकता है; किंतु इस इस दिशा में सरकारों का सचमुच ही कोई संकल्प नहीं है। पॉलीथीन बिक्री के स्थान पर सीधे उत्पादन पर ही रोक लगा देने के अलावा फिलहाल कोई रास्ता भले ही न दिखता। लेकिन हम उसकी प्रतीक्षा में बैठे नहीं रह सकते। संकल्प व प्रेरणा से रास्ते खुल सकते हैं। मूल तत्व पॉलीमर रसायन के कारण पॉलीथीन घातक सिद्ध हो रहा है। दूध, दही, जूस, मिठाई, फल सब्जियों जैसे आर्द्र पदार्थों के साथ क्रिया कर यह रसायन उन्हें जहरीला बना देता है। गर्म पदार्थों के साथ इसका संयोग तो मारक है ही। किडनी फेल होने से लेकर आमाशय आदि की तमाम बीमारियों का कारण आज यही बन रहा है। हम सभी जानते हैं कि कचरा बनकर पॉलीथीन आज यह हमारी धरती की नसों को चोक कर रहा है। इससे पानी का प्रवाह तो बाधित हो ही रहा है। नदियां कचरा घर बन ही रही हैं। भूजल संचयन के ढांचे बर्बाद हो ही रहे हैं। धरती बंजर हो रही है। पॉली कचरे को जलाने से उठी गैसों के कारण आबो हवा विषाक्त हो रही है। हम बीमार हो रहे हैं। हम मर रहे हैं। बावजूद इसके काली झिल्लियों में गर्मागर्म जलेबी और घटिया किस्म के प्लास्टिक कप में गांव-गांव... शहर-शहर चाय परोसने का चलन है कि रूक ही नहीं रहा।

भोजों मे प्लास्टिक पत्तल-दोनों का बोल बाला है। खाली हाथ झुलाते जाने और पॉलीथीन की झिल्लियों में लटकाकर ढेर सारा सामान ले आने में हम गर्व महसूस करते हैं। झोला ले जाना हमें पिछड़ापन लगता है। हम भूल जाते हैं कि हम सामान के साथ साल भर में कई किलो पॉली कचरा भी अपने घरों में ढो लाते हैं। कंपनियां भी गुणवत्ता के नाम पर सामानों को पैकिंग उतारने में रूचि रखती हैं; जबकि हकीकत में नकली पैकिंग के सामानों से बाजार अटे पड़े हैं। नतीजे में हर गांव-शहर के किनारे नीली-काली पन्नियों के पॉली कचरे से अटे पड़े हैं। सड़क के किनारों से लेकर रेल की पटरियों तक पॉली संस्कृति के दर्शन कर भी हम चेतते नहीं।

इसे देखते हुए ही कई राज्यों ने पॉलीथीन पर प्रतिबंध लगाया है। गुटके पर भी कई राज्यों में प्रतिबंध है। पॉली झिल्लियों के लिए न्यूनतम 40 माइक्रॉन का न्यूनतम मानक बनाया गया है। “प्लास्टिक एंड अदर बायोडिग्रेडेबल गार्बेजरेगुलेशन एंड डिसपोजेबल एक्ट-2002” के तहत प्रतिबंध के उल्लंघन पर जुर्माने तथा सजा तक का प्रावधान है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंगा किनारे से दो किलोमीटर की परिधि में पॉलीथीन के प्रयोग पर रोक लगा रखी है। कुंभ मेला क्षेत्र को पूर्णतः पॉलीथीन प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित किया जा चुका है। बावजूद इसके ये प्रतिबंध कागजी साबित हुए हैं। गंगा अभी भी पन्नियों से पटी पड़ी है। बाजार में उपयोग में लाई जा रही पॉली झिल्लियों में से ज्यादातर भी न्यूनतम 40 माइक्रॉन के मानक का पालन नहीं करते। क्यों? क्योंकि समाज व सरकार दोनों के संकल्प में कमी है। बिना संकल्प प्रतिबंध हमेशा नाकाफी ही सिद्ध होता है। वही हो रहा है। ऐसा नहीं है कि बढ़ते पॉलीथीन कचरे को रोका नहीं जा सकता या पॉलीथीन का कोई विकल्प नहीं है। विकल्प है और कचरे को रोका भी जा सकता है; किंतु इस इस दिशा में सरकारों का सचमुच ही कोई संकल्प नहीं है। पॉलीथीन बिक्री के स्थान पर सीधे उत्पादन पर ही रोक लगा देने के अलावा फिलहाल कोई रास्ता भले ही न दिखता। लेकिन हम उसकी प्रतीक्षा में बैठे नहीं रह सकते। संकल्प व प्रेरणा से रास्ते खुल सकते हैं।

जल बिरादरी के अगुवा जल पुरुष राजेन्द्र सिंह जल बिरादरी साथियों को संकल्प दिलाते हैं कि वे न तो प्लास्टिक की पत्तल-दोने में खायेंगे और न ही प्लास्टिक गिलास-कप में पीयेंगे। बाजार का सामान पॉलीथीन की झिल्लियों में नहीं लायेंगे। पैकिंग वाले सामान के स्थान पर शुद्धता का ध्यान रखते हुए खुले सामान को प्राथमिकता देंगे। कितने ही अवसरों पर मुझे ख्याल है कि संकल्प पक्का होने के कारण हमेशा रास्ता निकला। गंगा लोक यात्रा करते हुए कासगंज के आस-पास आयोजकों ने एक सरस्वती शिशु मंदिर में हमारे भोजन का इंतजाम किया था। प्लास्टिक की पत्तल सामने आते ही राजेन्द्र भाई ने कहा- “हम हाथ में रोटी-सब्जी खा लेंगे। अंजुरी से पानी पी लेंगे। ये पत्तल-गिलास हटालो।’’ हमारे साथ एक विदेशी मीडिया टीम भी थी। सबने पत्तल-गिलास अपने सामने से हटा दिए। नतीजा देखिए! पांच मिनट में स्टील के गिलास व थालियां सज गये। भोजन करके हम सबने अपने बर्तन खुद धोये। बर्तन धोने की उनकी उलझन मिट गई और इस कवायद ने कई को प्लास्टिक में न खाने-पीने के लिए संकल्पित कर दिया। हमें भी सीख मिली।

आगे की यात्रा के लिए हमने पत्तों की पत्तल तथा कुल्हड़ खरीद के गाड़ी में रख लिए। ऐसी सीख से ही परिवर्तन आयेगा। इसी से मन संकल्पित होंगे। इसी संकल्प के साथ ग्लोबल ग्रीन नामक एक संस्था इलाहाबाद में लोगों से संकल्प पत्र भरा रही है। लक्ष्य है कि आगामी कुंभ सचमुच पॉली कचरे से मुक्त हो आइये! एक संकल्प पत्र हम भी भरें और उसकी पालन भी करें.... ताकि मां गंगा को अपना चेहरा तो दिखा सकें।

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