मप्र के बांद्राभान संगम पर पाँचवा नदी महोत्सव प्रारम्भ
इस बार की थीम नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर आधारित है। दो दिनों तक नर्मदा की सहायक नदियाँ, इनके पुनर्जीवन, संरक्षण नीति, नियम और सम्भावनाओं पर सरकार, नर्मदा समग्र और विषय विशेषज्ञ विचार मंथन करेंगे। इसमें नदी किनारे की संस्कृति एवं समाज, नदी से कृषि एवं आजीविका का सम्बन्ध, उसके अस्तित्व और जैवविविधता पर चर्चा होगी। नदी महोत्सव में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों के लिये नर्मदा नदी के किनारे ही कुटीर बनाई गई है। समूचा आयोजन यहीं होगा। इस बार विषय पर आधारित प्रदर्शनी भी लगाई गई है। पाँचवें अन्तरराष्ट्रीय नदी महोत्सव मध्य प्रदेश के नर्मदा-तवा नदी के बांद्राभान संगम पर शुभारम्भ करते हुए नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी ने नदियों के बिगड़ते स्वरूप पर चिन्ता जताते हुए यह बात कही। मप्र सरकार, नर्मदा समग्र तथा विषय विशेषज्ञों द्वारा आयोजित होशंगाबाद के पास नर्मदा नदी के किनारे इस दो दिनी महोत्सव का प्रारम्भ 16 मार्च 18 को हुआ। यहाँ 400 से ज्यादा विशेषज्ञ नर्मदा और उसकी सहायक नदियों की दशा और दिशा पर चार समानान्तर सत्रों में अपनी बात रखेंगे।
इस बार की थीम नर्मदा और उसकी सहायक नदियों पर आधारित है। दो दिनों तक नर्मदा की सहायक नदियाँ, इनके पुनर्जीवन, संरक्षण नीति, नियम और सम्भावनाओं पर सरकार, नर्मदा समग्र और विषय विशेषज्ञ विचार मंथन करेंगे। इसमें नदी किनारे की संस्कृति एवं समाज, नदी से कृषि एवं आजीविका का सम्बन्ध, उसके अस्तित्व और जैवविविधता पर चर्चा होगी। नदी महोत्सव में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों के लिये नर्मदा नदी के किनारे ही कुटीर बनाई गई है। समूचा आयोजन यहीं होगा। इस बार विषय पर आधारित प्रदर्शनी भी लगाई गई है। इस परिसर का नाम अनिल माधव दवे के नाम पर ही किया गया है।
गौरतलब है कि नदियों के संरक्षण तथा जनमानस में नदियों के प्रति जागरुकता बढ़ाने के उद्देश्य से नदी महोत्सव की अवधारणा तथा देश का नदियों की ओर ध्यान खींचने की यह परिकल्पना नर्मदा के लिये सदैव चिन्तित रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अनिल माधव दवे की ही रही है। उनकी अगुवाई में अब तक नदी महोत्सव के आयोजन नर्मदा समग्र जन सहयोग से करता रहा था।
2015 में अनिल माधव दवे के प्रयासों से 33 लाख रुपए लोगों से चंदे के रूप में इकट्ठे कर इसे आयोजित किया गया था। लेकिन श्री दवे के निधन के बाद किसी ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली और इस बार सरकार ने 5.50 करोड़ रुपए खर्च कर यह आयोजन किया जा रहा है। इसके लिये देश और विदेशों से 400 से ज्यादा विषय विशेषज्ञ यहाँ खासतौर पर इकट्ठा हुए हैं। पाँचवें नदी महोत्सव में सभी अतिथि वक्ताओं ने अनिल माधव दवे के नर्मदा नदी के लिये किये गए प्रयासों तथा पर्यावरण के प्रति उनकी गहरी रुचि को रेखांकित किया।
श्री गडकरी ने यहाँ मंच से कहा कि आज भारत में पानी की सबसे बड़ी समस्या है। इसका समाधान नदियों के संरक्षण में ही निहित है। देश में जल संचय करने की मानसिकता की कमी है। नदी का सम्बन्ध केवल पानी से नहीं है, बल्कि नदियों के प्रवाह के आसपास बसे लोगों, वहाँ के जीव-जन्तु और जानवरों के जीवनयापन पर भी इसका बड़ा प्रभाव होता है।
जल के साथ जंगल, जमीन और जानवर का संवर्धन करना होगा। इसी से देश की प्रगति सम्भव है। उन्होंने स्वीकार किया कि देश में जल, जंगल और जमीन का सही ढंग से उपयोग नहीं हो पा रहा है। पानी के नियोजन की कमी ही पानी की कमी का सबसे बड़ा और अहम कारण है।
देश का 70 प्रतिशत से ज्यादा पानी समुद्र में चला जाता है। इसलिये बाकी बचे हुए पानी के नियोजन का सही ढंग से प्लानिंग करना जरूरी है। भारत सरकार इस दिशा में काम कर रही है। करीब साढ़े आठ लाख करोड़ के 30 प्रोजेक्ट तैयार हो रहे हैं और कई प्रोजेक्ट अब भी पाइप लाइन में हैं।
उन्होंने कहा कि पड़ोसी राज्य नदियों के पानी के लिये आपस में लड़ते हैं लेकिन भारत की नदियों का पानी पाकिस्तान में बह रहा है। जिस पानी पर हमारे देश का अधिकार है, उस पर कोई नहीं बोलता। यहाँ तक कि कोई पत्रकार भी कभी इस पर कोई लेख नहीं लिखता। इसके लिये कोई माँग नहीं की जाती है। यह पानी के गलत नियोजन का सबसे बड़ा उदहारण है।
देश में बड़ी बेरोजगारी है। देश धनवान है लेकिन लोग गरीब हैं। ऐसे में हमें जल, जंगल, जमीन और जानवर के संवर्धन का काम गम्भीरता से हाथ में लेने होंगे। अनिल दवे को याद करते हुए उन्होंने कहा कि वे नर्मदा नदी के प्रति पूरी तरह समर्पित रहे। उन्होंने पारिस्थितिकी और पर्यावरण के बीच सन्तुलन बनाने का विचार रखकर काम किया। दवे मानते थे कि इससे ही देश में आर्थिक समृद्धि आएगी। अर्थ तंत्र मजबूत होगा। दुर्भाग्य से वे आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन हमें उनके विचारों को आगे ले जाना जरूरी है। हमारी यह कोशिश जारी है।
इससे पहले मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने महोत्सव के शुभारम्भ अवसर पर कहा कि मध्य प्रदेश में नदी संरक्षण के तहत नर्मदा और 300 से ज्यादा उसकी सहायक नदियों और बड़े तालाबों को संरक्षित किया जाएगा। प्रदेश में अब मुख्यमंत्री सरोवर योजना प्रारम्भ की जाएगी। इसमें जन सहयोग से तालाब बनाए जाने के प्रयास किये जाएँगे। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री सरोवर योजना के जरिए नर्मदा और अन्य नदियों के विकल्प के तौर पर तालाबों का निर्माण होगा।
प्रदेश सरकार इसके लिये 500 करोड़ रुपए खर्च करेगी। इसके अलावा 300 से ज्यादा नर्मदा की सहायक नदियों तथा बड़े तालाबों को भी पुनर्जीवित किया जाएगा। प्रदेश के विकास के लिये नर्मदा को समृद्ध बनाना जरूरी है। नर्मदा के दोनों तटों पर पिछले साल की तरह इस बार भी राज्य की सरकार वृहद रूप से पौधरोपण करेगी।
इस बार सरकार का लक्ष्य होगा कि बारिश से पहले अधिक-से-अधिक तालाब बनाए जाएँ ताकि बारिश के पानी को सहेजा जा सके तथा नदियों का जलस्तर बढ़ सके। पिछले साल मध्य प्रदेश की सरकार ने नर्मदा की जलधारा के किनारे-किनारे 6 करोड़ से ज्यादा पौधे लगाए थे, इनमें से करीब 80 फीसदी पौधे अब भी जीवित हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर कार्यवाह सुरेश सोनी ने कहा कि समस्या सिर्फ जल, जंगल और जमीन की नहीं है, बल्कि हवा और पर्यावरण की शुद्धता की भी है। इसके लिये नदियों का संरक्षण बहुत जरूरी है। उन्होंने प्राकृतिक स्रोतों के संरक्षण पर जोर देते हुए कहा कि ये वैश्विक समस्या है और इस पर उसी तरह से वृहद स्तर पर काम करने की भी जरूरत है। खेतों में रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल हो रहा है। इसने जमीनों को बंजर बना दिया है। इस पर अंकुश लगाना चाहिए। बड़े स्तर पर प्रयास करना होगा।
विकास और आधुनिक तकनीक की कोशिशें मानव को आधार बनाकर ही किये जा रहे हैं, जबकि इनमें जल, जंगल और जमीन के साथ नदियों, पेड़-पौधों, वन्यजीवों तथा जीव जन्तुओं के बारे में कोई विचार ही नहीं किया जाता है। इसी कारण ये असन्तुलन पैदा हो रहा है।
इससे पहले भी 2008 से अब तक दस सालों में चार बार नदी महोत्सव हो चुके हैं लेकिन इनसे निकलकर आये विचारों का कोई खास इस्तेमाल नीतियाँ बनाने या नदियों के संरक्षण के काम में नहीं हो सका है। पर्यावरण से सरोकार रखने वाले पर्यावरणविद बताते हैं कि बीते चार महोत्सव के बाद 2015 में ही दृष्टि पत्र तैयार किया गया। इससे पहले तक सिर्फ विचार मंथन ही होता रहा है।
इस दृष्टिपत्र को भी सरकार ने खुशी-खुशी ले तो लिया लेकिन अब तक इसके आधार पर नदियों के लिये कोई बड़ी नीति या नियम नहीं बनाए गए हैं। इस दौरान मध्य प्रदेश में नर्मदा सहित अन्य नदियों की हालत बद-से-बदतर होती चली गई। यहाँ तक कि कभी सदानीरा कही जाने वाली प्रदेश की जीवनरेखा नर्मदा नदी ही जगह-जगह से सूखने लगी है तो कई जगह बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी है। 2015 से अब तक सरकार ने ऐसी कोई नीति ही नहीं बनाई।
आयोजन में अनिल दवे के भतीजे निखिल दवे, विष्णुदत्त शर्मा, स्वामी परमानन्द, केन्द्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री उमा भारती सहित कई लोग शामिल हुए हैं।
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Post By: RuralWater