पानी की निकासी का रास्ता कहाँ गया?

उमेश राय, ग्राम मोरों, प्रखंड हनुमान नगर, दरभंगा कहते हैं, ‘‘...दरभंगा जिले में नेपाल से निकलने वाली 19 नदियाँ गुजरती हैं और इस जिले की भौगोलिक बनावट ऐसी है कि इन नदियों के माध्यम से बरसात के मौसम में आने वाला सारा का सारा पानी 24 घंटे के अंदर खेत की सिंचाई करके निकल जाया करता था। किसी को बाढ़ से कोई नुकसान नहीं पहुँचता था। आजादी के पहले तक यह पूरा इलाका खुशहाल था और अन्न का भंडार हुआ करता था। आजादी के बाद से इस इलाके की बेबसी बढ़ती गयी और अब हालत यह है कि यहाँ की 34 प्रतिशत आबादी सिर्फ रोटी की तलाश में बाहर जाने को मजबूर है। यहाँ की नदियों के किनारे बने तटबंध ही एक मात्र कारण है जिनकी वजह से सारे नदी-नालों के पानी की निकासी रुक गयी और जिसे बनाने में आजादी के बाद आने वाली सभी सरकारों ने काम किया। इस मुहिम में सारे एजेन्ट लग गए और अब हालत यह है कि यहाँ बाढ़ नहीं आती, प्रलय होती है। पहले किसान बाढ़ आने का इंतजार करते थे, मनौतियाँ मानी जाती थीं मगर अब बाढ़ से घर का बचाव कैसे हो, अनाज की रक्षा किस तरह की जाए आदि समस्याओं से निपटने की तैयारी होती है। अभी सरकार की योजना बागमती तटबंधों को रुन्नीसैदपुर से हायाघाट तक ले आने की है। ऐसा अगर हो गया तो इलाके में एक भी घर नहीं बचेगा, चाहे वह तटबंध के अंदर अवस्थित हो या उनके बाहर। स्थिति इतनी भयावह होने वाली है कि भविष्य में इस इलाके में केवल बांध रह जायेंगे, यहाँ का आदमी यहाँ से चला जोयगा। यह सिर्फ यहाँ के किसानों के साथ ही नहीं होगा, तटबंध बनाने वालों की दूसरी पीढ़ी की भी यही हालत होने वाली है। वह या तो शहर में जाकर मजदूरी करेंगे या ठेला खींचेंगे।

दरभंगा से लेकर झंझारपुर के बीच आज की तारीख में 8 बड़ी नदियाँ हैं जिनसे होकर पानी कोसी या कमला में चला जाया करता था। अब इन सारी नदियों को जबरन अधवारा समूह की नदियों के बीच घेर कर उनके पानी की निकासी के रास्ते को रोक दिया गया है। यहाँ दरभंगा शहर और हवाई अड्डे के बीच जयनगर वाले रास्ते में 30 फाटकों का एक स्लुइस हुआ करता था जिसकी मदद से वहाँ तक का सारा पानी जीवछ, कमला और कोसी के माध्यम से निकल जाया करता था। उस पुल को हटा कर अब तीन फाटकों वाला 3 फुट का कलवर्ट बना दिया गया है। इस परिवर्तन की वजह से आधा दरभंगा शहर प्रायः हर साल बरसात में डूब जाया करता है। तब यहाँ की जनता रिलीफ के लिए गुहार लगाती है मगर समस्या कहाँ है यह किसी की समझ में नहीं आता और रिलीफ तो इस समस्या का समाधान है ही नहीं। अब चलिये सकरी वाले रास्ते की तरफ जहाँ पानी की निकासी वाले रास्तों पर अब घर बन गए हैं। वहाँ भी निकासी बंद है। अधवारा समूह की नदियों से आने वाले अतिरिक्त पानी की निकासी छकौड़ी लाल के बाहा से होती थी। इस बाहा से थोड़ा बहुत पानी पहले भी छलकता था पर उससे खेतों को फायदा ही होता था। 1975 के आस-पास दरभंगा-बागमती पर जो तटबंध बना उसने इस बाहा का मुँह बंद कर दिया और शहर के पानी की निकासी ठप्प पड़ गयी और शहर डूबने लगा। इसके साथ ही बागमती के दाहिने किनारे पर सोरमार हाट से हायाघाट के बीच में एक कम ऊँचाई वाला तटबंध हुआ करता था जिसे स्थानीय लोग पंचफुटिया बांध कहते थे। नदी में पानी अधिकहोने पर बाढ़ का पानी इस बांध के ऊपर से बह जाया करता था मगर इसे ऊँचा और मजबूत कर दिया गया। इस बार नदी में बाढ़ का जो पानी आया उसने गीदड़गंज के पास तटबंध को तोड़ दिया और फिर सारा का सारा पानी दरभंगा शहर में। गीदड़गंज के इस गैप को तो, सरकार को भरना ही था मगर इमरजेन्सी का फायदा उठाते हुए 1976 में छकौड़ी लाल बाहा को भी बांध दिया गया। अब गंडक और कमला की बाढ़ के पानी की निकासी का केवल एक ही रास्ता बचता है कि उसे हायाघाट में बने 16 तथा 17 नम्बर रेल पुल से गुजारा जाय। इन पुलों की इतनी क्षमता ही नहीं है कि वह सारे पानी की निकासी कर सकें। अब लोग डूबेंगे नहीं तो क्या होगा?

पानी की निकासी नहीं होगी तो कहीं न कहीं तटबंध टूटेगा ही। तब शहर में पानी आयेगा तो जरूर मगर निकलने का उसे कोई रास्ता नहीं मिलेगा। 2004 में नीतीश कुमार जी बाढ़ के समय यहाँ लहेरियासराय आये थे, उनसे स्थानीय सभी लोगों ने एक स्वर से कहा था कि यहाँ से पानी की निकासी की व्यवस्था करवा दीजिये और उसके बाद हमारे यहाँ इतनी जबर्दस्त फसल होगी कि अगले साल आप जहाँ कहेंगे वहाँ रिलीफ बांटने अपने खर्चे से हमलोग जायेंगे। हमें रिलीफ नहीं चाहिये।

दरअसल, पहले बागमती खरसर से लगभग 40 किलोमीटर दूर उमेश राय कलवारा में बूढ़ी गंडक में मिल जाया करती थी। यह करेह नदी तो महज एक नाला थी। तटबंध बना कर बागमती को सील कर दिया और करेह, जो कि एक मामूली सा नाला था उसे नदी बना दिया गया। इसलिए जब तक खरसर में नदी का मुँह खोल कर बागमती को पुनर्स्थापित नहीं किया जायेगा तब तक यहाँ रिलीफ बटना बंद नहीं होगा। यही काम घोघराहा में शांति धार का बंद मुँह खोल कर करना पड़ेगा।

1987 में पूरे उत्तर बिहार में जबर्दस्त बाढ़ आयी थी। हम लोग इसका जायजा लेने के लिए बिशुनपुर से लहेरियासराय के लिए निकले। लहेरियासराय से कोई 17 किलोमीटर पहले महादेव स्थान पर बागमती का बांध टूट गया था। इस घटना के आधे घंटे बाद पानी उतरना शुरू हो गया और लगभग 24 घंटो के अंदर पूरे इलाके से पानी चला गया। तब जाकर लोगों की समझ में बात आयी कि वहाँ बाढ़ के पानी के टिके रहने में बागमती तटबंध की बड़ी भूमिका है। उसके पहले लोग बाढ़ को दैवी विपत्ति ही मानते थे। उस साल इस इलाके में हुकुमदेव नारायण यादव और विजय कुमार मिश्र (तत्कालीन सांसद) आये थे और उन्होंने भी पानी की निकासी की समस्या के समाधान के रूप में देखा और उसी के अनुरूप बयान भी दिया था। तभी हम लोगों ने बागमती संग्राम परिषद के नाम से एक संगठन बनाया और महादेव स्थान के पास जाकर संकल्प लिया कि भले ही जान देनी पड़े पर बागमती को फिर बांधने नहीं देंगे। लौटने पर बाढ़ मुक्ति संग्राम परिषद का गठन किया। हमारे गांव मोरों के बगल के गांव बसुआरा के पूर्व मुखिया हरिनारायण मिश्र ने हाई कोर्ट में अपील की कि बांध बनाने के स्थान पर जल निकासी की व्यवस्था की जाय। हाई कोर्ट का 1988 में फैसला हुआ कि सरकार दोनों पक्षों की बात सुनकर व्यवस्था करे, ऐसा निर्देश दरभंगा के कमिश्नर को दिया गया। तब यह तय हुआ था कि घोघराहा में 100 मीटर लम्बा एक स्लुइस बनेगा जिसमें एक सीमा के बाद पानी खुद-ब-खुद शांति धार में चला जायेगा। इस समझौते के बाद वहाँ निर्माण सामग्री का इकट्ठा होना शुरू हुआ। मगर इस काम में टालमटोल का माहौल ज्यादा था, काम कम था। हम लोग चाहते थे कि बागमती को भी साथ-साथ मुक्त किया जाय। हम लोगों ने प्रतिरोध किया और धरने पर बैठे। सरकार ने 153 लोगों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया। पहले समस्तीपुर और फिर केन्द्रीय कारागार मुजफ्फरपुर में हम लोगों को 36 दिन तक रखा। हम लोगों की गैर-मौजूदगी का फायदा सरकार ने उठाया और बागमती का गैप तो भर ही दिया, घोघराहा को भी जैसे-तैसे पूरा कर के अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। 2002 में भी तटबंध टूटने और उसे जोड़ने के लिए फौजदारी की नौबत आ गयी थी। जल निकासी की जरूरत तो सब समझते और कहते हैं मगर बनता और मरम्मत होता तटबंध ही है।

गजेन्द्र प्रसाद सिंहगजेन्द्र प्रसाद सिंहबिहार के भूतपूर्व शिक्षा मंत्री, गजेन्द्र प्रसाद सिंह का कहना है, ‘‘...सिंघिया के पास तटबंधों के बीच का फासला है पौन किलोमीटर और वहाँ कोल्हुआ पुल की चौड़ाई है 300 फीट इसमें कुल 6 पिलर हैं। कोल्हुआ पुल के 13 किलोमीटर ऊपर बना है बरियाही पुल जिसमें 22 पिलर हैं-राम लखन सिंह सेतु पर। बरसात में कोल्हुआ पुल पर खड़े होकर देखेंगे तो अपस्ट्रीम और डाउन स्ट्रीम में 8 फुट का फर्क नंगी आंख से नजर आयेगा। इसका असर पुल के ऊपर और नीचे दोनों तरफ पड़ता है। ऊपर के हिस्सों को यह पुल अनावश्यक रूप गजेन्द्र प्रसाद सिंह से डुबाता है और नीचे तेज़ी से कटाव करता है। जब तक यह पुल चौड़ा नहीं किया जायेगा और तटबंध पर पिचिंग नहीं होगी, हालत नहीं सुधरेगी।

यह इलाका टापू बनेगा जब रुन्नी सैदपुर से आगे चलता हुआ तटबंध हायाघाट से इसमें जुड़ जायेगा। जो पानी 10-15 किलोमीटर में फैल कर बहता है उसे पौन किलोमीटर में बहाइयेगा तो जो होगा वह किसी से छिपा है क्या? आज पानी खिड़की से होकर जाता है, कल छप्पर के ऊपर से जायेगा। दरभंगा से खगडि़या तक सब बर्बाद होगा।’’

संदर्भ:


1. झा इन्द्रकान्त; ग्राम ठेंगहा प्रखंड तारडीह जिला दरभंगा से व्यक्तिगत संपर्क
2. मंडल जियालाल; बिहार विधान सभा वादवृत्त 30 मार्च 1955 पृष्ठ 71
3. सिंह दीप नारायण; उपर्युक्त 11 अप्रैल 1958 पृष्ठ 45
4. सादा मन्टुन; ग्राम पैकड़ा प्रखंड सिंहया जिला समस्तीपुर से व्यक्तिगत संपर्क
5. सिंह विमल कुमार; ग्राम मांहे खैरा प्रखंड सिंधिया जिला समस्तीपुर से व्यक्तिगत संपर्क
6. सिंह गंगेश प्रसाद; ग्राम कुंडल प्रखंड सिंधिया जिला समस्तीपुर से व्यक्तिगत संपर्क
7. सिंह बबलू ग्राम कुंडल प्रखंड सिंधिया जिला समस्तीपुर से व्यक्तिगत संपर्क
8. यादव राम सुधारी; ग्रामी कारांची प्रखंड बिथान जिला समस्तीपुर से व्यक्तिगत संपर्क।
9. ठाकुर सुशील; ग्राम फुहिया प्रखंड बिथान जिला समस्तीपुर से व्यक्तिगत संपर्क
10. पासवान ठाकुर; ग्राम बेलहा प्रखंड मानसी जिला खगड़िया से व्यक्तिगत संपर्क
11. श्रीकांत आजाद; ग्राम आनन्दपुर परास प्रखंड अलौली जिला खगड़िया से व्यक्तिगत संपर्क
12. राय उमेश; ग्राम मोरों प्रखंड हनुमान नगर जिला दरभंगा से व्यक्तिगत संपर्क
13. सिंह गजेन्द्र प्रसाद; से व्यक्तिगत संपर्क

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